सलमान खान भले ही आदर्श स्थिति की बात करें और ये कहें कि पाकिस्तानी कलाकार आतंकवादी नहीं हैं लेकिन क्या पाकिस्तानी कलाकारों ने आतंकवादी हमलों की निंदा की है
अगर भारत की जमीन से पैसा कमाने वाले कलाकार भारत के दुश्मनों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखते हैं तो क्या उनको भारत की जमीन पर रहकर पैसे कमाने की इजाजत देनी चाहिए
— अनंत विजय

सलमान खान ने भारतीय सेना के सर्जिकल ऑपरेशन को सही ठहराया लेकिन साथ ही ये जोड़ना भी नहीं भूले कि दोनों देशों के बीच शांति आदर्श स्थिति होगी । सलमान खान भले ही आदर्श स्थिति की बात करें और ये कहें कि पाकिस्तानी कलाकार आतंकवादी नहीं हैं लेकिन क्या पाकिस्तानी कलाकारों ने आतंकवादी हमलों की निंदा की है । किसी भी भारतीय की भारत में काम कर रहे पाकिस्तानी कलाकारों से ये अपेक्षा नहीं है कि वो उड़ी हमले के लिए पाकिस्तान की निंदा करें लेकिन उतनी अपेक्षा तो करते ही हैं कि भारत की सरजमीन पर फल फूल रहे पाकिस्तानी कलाकार कम से कम आतंकवादी हमलों की निंदा करें । क्या किसी पाकिस्तानी कलाकार ने उड़ी में भारतीय सेना के उन्नीस जवानों की शहादत पर एक शब्द भी बोला । पाकिस्तानी कलाकार भले ही आतंकवादी ना हों लेकिन आतंकवादियों की निंदा भी नहीं करते हैं । भारतीय सेना के जवानों की शहादत उनके लिए कोई मायने रखती हो ऐसा उनके किसी बयान या कृत्य से साबित नहीं होता है । जब पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों मे भारतीय सेना के उन्नीस जवानों को मार डाला हो इन हालात में क्या आदर्श स्थिति की कल्पना की जा सकती है । पाकिस्तानी कलाकार फव्वाद खान और माहिरा खान वे अबतक भारतीय सेना के शहीदों पर दो शब्द बोलना उचित नहीं समझा ।
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तानी कलाकार आतंक और आतंकवाद पर कुछ नहीं बोलते रहे हैं । अपने देश में आतंकवादी वारदातों पर उनके टसुए बहाने के किस्से आम हैं । उनका दर्द तभी बाहर निकलता है जब कोई पाकिस्तानी मरता है उनको हिंदुस्तानियों और हिन्दुस्तान से क्या लेना देना । हिन्दुस्तान को तो वो पैसा कमाने की जमीन की तरह देखते हैं और यहां रहते हुए भी यहां के लोगों के दर्द के साथ खुद का जुड़ाव महसूस नहीं करते हैं । कम से कम अपने व्यवहार से तो पाकिस्तानी कलाकारों ने कभी ऐसा महसूस नहीं करवाया । सवाल यही उठता है कि जिस फव्वाद खान ने दो हजार चौदह में पेशावर में आतंकी हमले में मारे गए बच्चों के लिए आंसू बहाए थे उन्हीं फव्वाद खान के आंसू उड़ी के शहीदों के लिए सूख क्यों गए । सवाल तो ये भी उठता है कि जिस अली जाफर ने पेशावर के आतंकी हमलों में मारे गए बच्चों की याद में गीत बनाए थे वो अली जाफर उड़ी के आतंकवादी हमले के बाद खामोश क्यों हैं । सवाल तो उन चालीस पाकिस्तानी कलाकारों से भी पूछे जाने चाहिए जिन्होंने पेशावर आतंकवादी हमले के बाद सामूहिक रूप से अपनी पीड़ा का इजहार किया था । लेकिन भारत में काम कर रहे इन चालीस पाकिस्तानी कलाकारों को क्या उड़ी हमले के बाद कोई पीड़ा नहीं हुई । क्या इन पाकिस्तानी कलाकारों ने भारत के खिलाफ घृणा और नफरत उगलनेवाले और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देनेवाले ‘जैश ए मोहम्मद’ और आतंकवादी हाफिज सईद का विरोध किया । क्या उनकी निंदा में उनके मुंह से कोई शब्द निकले । इन सारे सवालों के जवाब नकारात्मक हैं ।
अगर भारत की जमीन से पैसा कमाने वाले कलाकार भारत के दुश्मनों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखते हैं तो क्या उनको भारत की जमीन पर रहकर पैसे कमाने की इजाजत देनी चाहिए ।
जावेद अख्तर ने सही कहा है कि भारत ने हमेशा खुले दिल से पाकिस्तानी कलाकारों का स्वागत किया और फिल्म इंडस्ट्री ने उनको अपनाया भी लेकिन पाकिस्तान की तरफ से कभी भी ऐसा नहीं किया गया । वो कहते हैं कि पाकिस्तान में लता मंगेशकर बेहद लोकप्रिय हैं और वहां उनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में है लेकिन कभी पाकिस्तान की तरफ से उनके परफार्मेंस की दावत नहीं आई। इस मसले पर भारत के कुछ बुद्धिजीवी भी पाकिस्तानी कलाकारों के पक्ष में खडे नजर आते हैं । इनके भी वही तर्क हैं कि कला और आतंकवाद को अलग करके देखा जाना चाहिए । इन बुद्धिजीवियों को क्या ये समझाने की जरूरत है कि कला भले ही सरहदों को नहीं मानती हो लेकिन वो किसी भी राष्ट्र से बड़ा नहीं हो सकती है । राष्ट्र की कीमत पर कला को बढ़ाने की वकालत करनेवालों को यह बात समझनी होगी । समझनी तो उन पाकिस्तानी कलाकारों को भी होगी कि भारत की जमीन पर रहकर पैसे कमाने पर रोक नहीं है लेकिन भारत के दुश्मनों के खिलाफ आवाज तो उठानी होगी ।
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