
Ek Dopahar...Tum Yakin Nahi Karoge
Pratyaksha
सिरीज़ 'ये जो दिल है दर्द है कि दवा है' की दूसरी कहानीमेज पर रखे तश्तरी और कटोरे में दाल और चावल के साथ हमारी उँगलियों का स्वाद भी तो रह गया है ।
हम जब बात करते हैं हमारे बीच की हवा तैरती है, तरल । तुम यकीन नहीं करोगे लेकिन कई बार मैंने देखी है मछलियाँ, छोटी नन्ही मुन्नी नारंगी मछलियाँ, तैरते हुये, लफ्ज़ों के बीच, डुबकी मारती, फट से ऊपर जाती, दायें बायें कैसी चपल बिजली सी । तुम कहते हो, मेरी बात नहीं सुन रही ?

तुम यकीन नहीं करोगे । दीवार पर जो छाया पड़ती है, जब धूप अंदर आती है, उसके भी तो निशान जज़्ब हैं हवा में । सिगरेट का धूँआ, तुम्हारे उँगलियों से उठकर मेरे चेहरे तक आते आते परदों पर ठिठक जाता है । मैं कहाँ हूँ पैसिव स्मोकर ? न तुम्हें नैग करती हूँ, छोड़ दो पीना । सिगरेट का धूँआ मुझे अच्छा लगता है । मैं मुस्कुराती हूँ । तुम कहते हो, मेरी बात नहीं सुन रही ?
मैं सचमुच नहीं सुन रही तुम्हारी बात । मैं खुशी में उमग रही हूँ । मैं अपने से बात कर रही हूँ । परदे के पीछे रौशनी झाँकती सिमटती है । उसके इस खेल में रोज़ की बेसिक चीज़ें एक नया अर्थ खोज लेती हैं, जैसे यही चीज़ें ज़रा सी रौशनी बदल जाने से किसी और दुनिया का वक्त हो गई हैं । तुम सचमुच यकीन नहीं करोगे ।
लेकिन कई बार मेरी छाती पर कुछ भारी हावी हो जाता है जो मुझे सेमल सा हल्का कर देता है । तब छोटी छोटी तकलीफें अँधेरे में दुबक जाती हैं । मेरा मन ऐसा हो जाता है जैसे मैं आकाशगंगा की सैर कर लूँ, दुनिया के सब रहस्य बूझ लूँ, पानी के भीतर, रेगिस्तान के वीरान फैलाव के परे, चट नंगे पहाड़ों के शिखर पर .. जाने कहाँ कहाँ अकेले खड़े किन्हीं आदिम मानवों की तरह प्राचीन रीति में सूर्य की तरफ चेहरा मोड़ कर उपासना कर लूँ ।
परदा हिलता है, रौशनी हँसती है, अँधेरा मुस्कुराता है । तुम कहते हो, मेरी बात नहीं सुन रही ?
तुम यकीन नहीं करोगे लेकिन अब मैं सचमुच तुम्हारी बात सुन रही हूँ ।
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