Header Ads Widget

मुकाबला घाघ लड़ाकों से है मगर सरकार कांग्रेस की बनेगी @brajeshabpnews



आयो बूढो बसंत कांग्रेस दफतर में ...

:: सुबह सवेरे में ब्रजेश राजपूत: ग्राउंड रिपोर्ट


सोचा तो था कि इस ग्राउंड रिपोर्ट का शीर्षक बगरौ बसंत से शुरू करूंगा मगर हालत ऐसे नहीं दिखे तो बदल दिया। बहुत दिनों के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के तीन मंजिला दफतर में जो रौनक एक मई को नये अध्यक्ष कमलनाथ के पद भार संभालने के साथ आयी थी, वो अभी थोडे कम-ज्यादा अनुपात में हर मंजिल पर बनी हुयी है।

हांलाकि उस दिन तो भोपाल के शिवाजी नगर में कांग्रेस दफतर के बाहर तो क्या पूरे भोपाल में नये अध्यक्ष के स्वागत का जो मजमा उमड़ा था, वो यादगार था। एयरपोर्ट से शिवाजी नगर तक पोस्टर बैनर होर्डिग्स और स्वागत मंच तो गिने नहीं जा पा रहे थे। अगले दिन भोपाल के प्रमुख अखबारों ने भी तय प्रोटोकाल तोडकर पहले पेज पर कांग्रेस की खबर दी और बताया कि कांग्रेस के नये अध्यक्ष के काफिले ने बीस किलोमीटर का सफर छह घंटे में तय किया।
कांग्रेस दफतर के बाहर भी नजारा नये अध्यक्ष नहीं मुख्यमंत्री के शपथ लेने जैसा ही था। डायस सजा था मंच पर कुर्सियां थीं सामने समर्थकों की जोश में हिलोरे मारती भी भीड़ थी। बस नहीं थीं तो सिर्फ राज्यपाल। मगर पीसीसी की तीसरी मंजिल में बने अध्यक्ष के एंटी चैंबर में सोफे और काउच पर बुरी तरह से घुसे बैठे कांग्रेस के नेता दावे कर रहे थे कि देखना इस बार दिसंबर में शपथ भी होगी और यहीं होगी। वजह। वजह ये कार्यकर्ताओं की स्वतस्फूर्त भीड़ और मजमे को देखो क्या उत्साह उमड़ कर आया है।

मगर ये क्या मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास पर यादगार किताब लिखने वाले हमारे मित्र ने उत्साह से लबरेज कांग्रेस के इन नेताजी को याद दिलाया कि मत भूलिये फरवरी 2008 में जब सुरेश पचौरी और अप्रेल 2011 में कांतिलाल भूरिया जब पीसीसी चीफ बनकर आये थे, तब भी ऐसा ही मजमा और उत्साह उमड़ कर आया था। मगर चुनावों के रिजल्ट हमारे आपके सामने हैं। हमारे मित्र की बात सुन वहां बैठे सारे कांग्रेसी नेताओं के मुंह में कड़वाहट घुल गयी। मैंने भी सोचा नेताओं के उत्साह के गुब्बारे में पिन चुभोने की कारीगरी हम पत्रकारों को ही आती है।
खैर अभूतपूर्व उत्साह के चार दिन बाद भी माहौल वही था। नीचे कांग्रेस की किसान कलश यात्रा को रवानगी दी जा रही थी। किसानों में कांग्रेस का माहौल बनाने किसान कांग्रेस की ओर से इस यात्रा को मंदसौर तक ले जाया जाने वाला है। समझा जा रहा है कि वहां छह जून को यात्रा की समाप्ति पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी आ जायें क्योंकि जब मंदसौर गोली कांड हुआ था तो वे नीमच से ही वापस भेज दिये गये थे मगर अब उनके आने की योजना बन रही है।

राहुल गांधी और कमलनाथ के जिंदाबाद के बाद जब ये यात्रा रवाना हो गयी तो कांग्रेस दफतर में प्रवेश करते ही लिफट के करीब मिल गये गोविंद गोयल जिनको पार्टी ने कोषाध्यक्ष बनाया है। बेबाक और बिंदास अंदाज में रहने वाले गोंवंद इस पुनर्वास से प्रसन्न दिखे। वरना पिछले अध्यक्ष के समय तो उन्होंने पार्टी दफतर के सामने चरखा चलाकर गांधी गिरी की थी। गोयल ने जब पिछला चुनाव गोविंदपुरा से लड़ा था तब वो साठ साल के थे। पैंसठ साल में मिली ये जिम्मेदारी उन पर भारी है। नेता प्रतिपक्ष के कमरे की ओर बढते ही दिख गये चंद्रप्रभाष शेखर जिनका अपनी उमर को लेकर हंसी ठटठा चल रहा था। शेखर जी उन पांच लोगों में से हैं जिनको पद संभालने के पहले ही दिन अध्यक्ष जी ने जिम्मेदारी सौंपी थी। वो उपाध्यक्ष संगठन प्रभार हैं। सामने बैठे पत्रकार ने जब बातों बातों में उनसे उम्र पूछ ही डाली तो उनका जबाव था कि किसी पुरूष से उमर नहीं पूछी जाती मगर बता देता हूं छह चुनाव लड़े हैं तीन देवास से तीन इंदौर से। पूर्व सीएम पीसी सेठी से लेकर श्यामाचारण शुक्ला और अर्जुन सिंह तक की कैबिनेट में मंत्री रहा हूं। अब समझ लो पहली बार विधायक इंदौर तीन से 1972 में बन गया था। उस वक्त तुम्हारे में से कुछ तो पैदा भी नहीं हुये होगें। समझे अब चलने दो बहुत काम करने हैं। इस अंजानी उमर में काम के प्रति ये लगन देख दिल भर आया।



कांग्रेस दफतर के भूतल के किनारे वाले कमरे पर ही बैठे थे मानक अग्रवाल। मानक जी के अनुभव का कोई जबाव नहीं। पार्टी के वरिष्ट नेता है पर पिछले चुनाव के समय टिकट नहीं पर सारी जिम्मेदारियों को छोड़ पीसीसी से बाहर हो गये थे वरना हम मीडिया कि लिये वो सुबह दस से छह तक बाइट के लिये दफतर में रहते थे। मानक भाई मीडिया कमेटी के चैयरमेन हैं। प्रिंट मीडिया, इलेक्टानिक मीडिया, सोशल मीडिया और मोबाइल मीडिया के जमाने में मानक भाई कैसे सबको साधेंगे देखना होगा।
तीसरी मंजिल पर नये नियुक्त अध्यक्ष का कमरा था जो अध्यक्ष जी के नहीं होने पर पूरी तरह बंद था। वहां मौजूद पत्रकार मित्रों ने बताया कि पहले जहां हम अध्यक्ष के एंटी चैंबर तक चले जाते थे और वहीं पर कैमरा लगाकर बाइट ले लेते थे मगर अब यहां चैंबर के बाहर खड़े रहने वाले अध्यक्ष जी के स्टेनगन लिये सुरक्षा गार्डों से कमरे में झांकने के लिये भी जूझना पड़ता है। अध्यक्ष जी तक आपकी बात पहुंचाने वाले लोग भी नहीं है ऐसे में हम बाइट कलेक्टरों की मुश्किल बढने वाली है। मैंने उनको धीरज बंधाया यार वरिष्ठ नेताओं के साथ ये दिक्कतें आतीं हैं मगर हर हालत में जो काम ना निकाले वो कैसा टीवी जर्नलिस्ट इसलिये मुन्ना भाई लगे रहो...

पुनश्च :

सौ बात की एक बात दफतर के नीचे कांग्रेस से हाल में जुड़े एक प्रोफेशनलिस्ट ने कही कि यहां हमारे यहां नेताओं में आन-बान-शान की लड़ाई है मगर सामने मुकाबला चुनाव को युद्व समझ कर लड़ने वाले घाघ लड़ाकों से है मगर सरकार कांग्रेस की बनेगी क्योंकि यहां भले ही तैयारी कम हो मगर वहां जनता में सरकार का विरोध ज्यादा है। 

ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज
भोपाल

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

ठण्डी चाय: संदीप तोमर की भावनात्मक कहानी
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
बंद गली का आखिरी मकान, देवेंद्र राज अंकुर और कहानी के रंगमंच की स्वर्ण जयंती
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना