अभिसार शर्मा ने अब यह पर्दाफाश किया...


लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं

— अभिसार शर्मा


अभिसार शर्मा अपने फेसबुक से पर्दाफाश करते हैं:
मानो सामूहिक सम्मोहन किया गया हो. आज सुबह एक शो किया अपने चैनल पर जिसमे भारतीय रेल का पर्दाफाश किया था. मुद्दा ये था कि जो खाना आप खाते हैं, उसमे शौच के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और ये पहली बार नहीं, खुद मैंने इसका expose कुछ दिनों पहले किया था जिसमे शौच के पानी से लोगों को चाय कॉफी पिलायी जा रही थी. जब इसका प्रसारण हुआ तब कई ऐसे लोग सामने आए जो इसमे भी सरकार की तरफदारी करते दिखे. मैंने यही मुद्दा उठाया कि जो लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं, क्या उन्हे सिर्फ फाइन करके छोड़ा जा सकता है? क्या उनपर पाबंदी नहीं लगायी जानी चाहिए? और ऐसे मे सरकार का रवैय्या इतना ढीला क्यों है?





आप विश्वास नहीं करेंगे कि कुछ लोग इस मुद्दे पर भी रेलवे मंत्रालय के पक्ष मे दिखाई दिए. आप कुछ लोगों के tweets पढ़ सकते हैं. ध्यान से देखिए इन्हें. विश्वास नहीं होगा. उनका मानना था कि इससे ज़्यादा और क्या किया जा सकता है. ये भी कि आर्थिक दंड तो बगैर टिकिट की यात्रा के लिए भी होता है और इसके लिए भी सिर्फ यही होना चाहिए.




सरकार ने अच्छा किया. यानी कि वही शौच परोसने वाले कांट्रेक्टर हमारे बीच फिर एक्टिव हो गए हैं, न जाने अब क्या परोसेगे, उन्हे इस बात की कोई चिंता नहीं है. मल मूत्र खा लेंगे मगर मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं करेंगे. कुछ लोगों ने तो सीधा ठीकरा जनता पर फोड़ डाला कि ये जनता अपने गिरेबां मे झांक कर देखे. इसकी ज़िम्मेदारी रेल्वे मंत्रालय की नहीं हो सकती. यानी कि ट्रेन लेट हो, एक्सिडेंट होते रहें, खाने मे शौच परोसा जाते रहे, मगर मोदी सरकार से कोई सवाल नहीं! हम "गू" खा लेंगे, मगर ये सरकार कुछ गलत नहीं कर सकती. क्या लोगों के ज़हन मे इस कदर सियासी गू भर दी गयी है? कि हम सवाल ही नहीं करेंगे और जो करेगा उसे ना सिर्फ खामोश करेंगे बल्कि उसके खिलाफ हर किस्म का झूठा और घटिया प्रोपोगंडा चलाएंगे?


क्या सत्तासीन लोगों को आभास है कि घृणा और नफरत की सियासत ने हमें किस मोड़ पर ला दिया है?

कठुआ और उन्नाव मे रेप पर हम आरोपी के पक्ष मे खड़े हो जाते हैं. ऐसा पहले होता देखा है कभी? न सिर्फ उसके पक्ष मे बल्कि बीजेपी नेताओं की शर्मनाक हरकत को जायज़ ठहराने का ज़रिया ढूंढते हैं? पोस्टमोर्टेम रिपोर्ट को गलत ढंग से पेश किया जाता है? सच सामने आए. ज़रूर आए. मगर झूठ का सहारा क्यों? उन्नाव मे गैंग रेप मे विधायक के पक्ष मे जिस तरह योगी सरकार ने सार्वजानिक तौर पर और अदालत के सामने अपनी नाक कटवाई है, ये तो अप्रत्याशित है! ऐसा कब हुआ है जब सरकार रेपिस्ट के साथ खड़ी दिखाई देती है? और जनता मे इस बात का कोई आक्रोश नहीं? और ये सब नफरत के चलते? माफ कीजिए ये भक्ति नहीं है. ये एक श्राप है. एक ऐसा काला श्राप जो आपको आने वाले वक़्त मे भुगतना होगा. जब आपने नाकाम सरकार से सवाल करना बंद कर दिया था.

हिंदी की बड़ी लेखिका ने ऐसा क्यों कहा... 




मुझे ताज्जुब नहीं के लोग खाने मे शौच बर्दाश्त कर सकते हैं, धर्म के नाम पर खुला खेल खेल रही सरकार से सवाल नहीं कर सकते! क्योंकि यही शौच पिछले कुछ अर्से से उन्हे हर जगह परोसा जा रहा है. टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर घृणा और दोहराव पैदा करना, लोगों के खिलाफ, धर्म विशेष के खिलाफ माहौल बनाना. दंगा तक भड़काने से परहेज़ ना रखना और जो समझदारी की बात करे, उसे खामोश कर देना. सूचना प्रसारण मंत्रालय से अदृश्य फरमान जारी करके लोगों की ज़ुबान पर अंकुश लगाना? तो जब नफरत परोसी जाएगी तो दिमाग मे तो गोबर ही तो भरेगा ना? तब लोगों को शौच युक्त खाना खाने मे क्या दिक्कत होगी, जब आए दिन उन्हे news चैनल के ज़रिए यही परोसा जा रहा हो, जब चुनावी मंचों पर श्मशान, कब्रिस्तान जैसी बातें की जाती हो! जब देश के प्रधानमंत्री विदेश जाकर कहते हों कि रेप पर सियासत नहीं होनी चाहिए और कुछ दिनों बाद यानी एक हफ्ते के अंदर उसे भूल कर, कर्नाटक की सियासी भूमि मे उसी बात का गला घोंट देते हों?



जिन्ना मर गए. उनकी एक तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय मे होगी, मगर उस मुद्दे को दोबारा उठा कर हमने लाखों जिन्ना अपने टीवी स्टूडियो के ज़रिए देश भर मे जन्म दे दिए!

किसी ने ये नहीं पूछा कि बीजेपी सांसद सतीश गौतम इस मुद्दे को अब क्यों उठा रहे हैं? क्योंकि आज़ादी के इतने साल बाद भी मोदी सरकार आपको पीड़ित बने रहने का पाठ पढ़ा रही है. कि बेचारा हिंदू अब भी मुगल काल की तरह इन अत्याचारी मुसलमानों के हाथ मे बंधक है. और जब हम सरकारी propaganda जिसे कुछ news चैनल के ज़रिए प्रसारित किया जाता है, पर विश्वास करते हैं, तो इसी तरह हम अपने भोजन मे भी मल मूत्र बर्दाश्त कर लेते हैं. ये बना दिया है भक्ति ने आपको. जो व्यक्ति हमारा नायक होता है, वो हमें प्रेरित करता है, बेहतर बनने के लिए, मगर हम तो और भी रसातल मे जा रहे हैं. गलत बयानी, झूठ मानो अब उपलब्धियां हो गयी हैं! किसी के बारे मे कुछ भी बोल दो, बगैर प्रमाण के उस पर विश्वास करके इंसान को सूली पर लटका दिया जाता है. त्वरित सियासी फायदे के लिए बीजेपी इस देश को कहां ढकेल रही है क्या अंदाज़ा है आपको? क्या अंदाज़ा है पार्टी के नेताओं को? वो भी क्या करेंगे जब घृणा की गंगोत्री ऊपर से बहती हो तो! दुखद है. और मुझे दुख मौजूदा पीढ़ी का नहीं, चिंता अपने बच्चों की है कि विरासत मे उन्हे क्या दिए जा रहा हूं!


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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