यथार्थ के क्रूर चक्र — कमला दास — कहानी | अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद अनामिका अनु | Kamala Das Short Story in Hindi

Kamala Das Short Story in Hindi 



कमला दास की, बड़े लेखक की कहानी को अनामिका अनु ने हिन्दी में पढ़ाकर बड़ा अच्छा काम किया है। कहानी पढ़ने के बाद हुआ मार्मिक मन कहानी और अनुवाद दोनों की कथा कह गया। - सं०  

यथार्थ के क्रूर चक्र

— कमला दास 

अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद अनामिका अनु


माँ ने अकेलेपन के कड़वे फल को अपने जीवन में प्रथम बार तब खाया जब उसकी शादीशुदा बेटी ने धीरे-धीरे उससे दूरियां बढ़ा ली। उसे लगा कि अकेलापन बिषमुष्टि (काहिरा) का वह वृक्ष है जिसे उसने अपने जीवन में दूर तक इससे पूर्व इंगित नहीं किया था। वह यह देखने में व्यस्त थी कि कैसे उसकी बेटी चली गयी और उसके चेहरे के आवभाव भी बदल गये। उसके पति उसी वर्ष मृत्यु को प्राप्त हुए जिस वर्ष उसकी बेटी का जन्म हुआ था। तब से वह जी तोड़ कोशिश कर रही है कि वह माता पिता दोनों के दायित्वों का निर्वहन संपूर्णता से कर सके। बेटी से अपने मध्यमवर्गीय मूल को छिपाने के लिए वह दोस्तों से पैसे उधार लेती है ताकि वह अपनी बेटी के लिए सिल्क के कपड़े खरीद सके, शहर के बेहतरीन शिक्षक से अपनी बेटी को ट्यूशन दिला सके और जन्मदिन के दिन बाग के पेड़ों पर रंगीन बल्ब जला सके। अंततः उसने अपनी बेटी का विवाह एक धनी और व्यवहारी लड़के से कर दिया। इन सब के बाबजूद जिन्दगी उसे किस ओर ले गयी? उसने अनगिनत बार पड़ोसियों से कहा है कि इस विवाह से उसे दामाद के रूप में एक बेटा भी मिल गया है। मगर वह दामाद शादी के बाद उससे औपचारिक बातचीत भी नहीं करता है। उसने बेटी से पूछा भी था कि आखिर क्या बात है? कितनी जल्दी वह प्यारा-सा लड़का बिल्कुल अनजबी में तब्दील हो गया। क्या कुछ दुष्ट लोगों ने मेरी निंदा की है? बहुत से पुरुषों ने उसे पाप से सम्मोहित करने की कोशिश की, पति की अनुपस्थिति में उसका सौन्दर्य उसके लिये बोझ बन चुका था। मगर वह जिंदा रही तो बस अपनी बेटी में भगवान और भगवती दोनों के स्वरुप को देखकर, बिना किसी के मायाजाल में फँसे। वह रात में लेटकर बेटी को बाँहों में भर लेती और नींद का इंतजार करती तब उसने दुःस्वप्न में भी इस दिन की कल्पना नहीं की थी कि कोई भी दिन उसकी बेटी और उसके संचित प्रेम के बिना होगा। उसे पूर्ण विश्वास था कि वह मृत्यु तक अपनी बेटी के साथ ही रहेगी।

शादी से पहले उसकी बेटी को किसी और लड़के से प्यार हो गया था। वह नौसेना में अभियंता था। जब भी वह छुट्टियों में आता था तो उसके लिए और उसकी बेटी के लिए विदेशी कपड़े, प्रसाधन और इत्र लाता था। कुछ गलतफहमियों के कारण वह रिश्ता टूट गया। लेट कर बिस्तर में मुँह छिपाकर वह बहुत समय तक रोती रही, उसके बाद उठी और उससे बोली -- “मैं उसके बारे में दुबारा कभी नहीं सोचूंगी।” जिस तरह से रिश्ते में दरार आयी, उसके लिए उसकी बेटी ही जिम्मेदार थी। लेकिन इस बात के लिए उसने कभी अपनी बेटी को नहीं कोसा। कभी उसे फटकारने का भी नहीं सोचा। क्या वह लड़की जो अभी बीस साल की होने जा रही है, उससे स्त्रैण सुलभ सौम्यता की मिशाल होने की उम्मीद करना उचित होगा? क्या किसी पुरूष को यह अधिकार है कि वह एक स्त्री को सिर्फ इसलिए बदचलन कह दे क्योंकि वह किसी पुरूष के साथ एक आध बार सिनेमा देखने चली गयी। क्या एक पुरूष जो हर वक़्त जहाज में काम करता है उसको यह अधिकार है कि वह निरंकुश जिद्द करे कि उसकी पत्नी घर से बाहर न जाए। इसी तरह वह अपनी बेटी की हर हरकत के पीछे एक कारण ढूँढ़ती और उसकी हिम्मत बढ़ाती । शायद इन सबके बदले ही, उसकी बेटी उसे उन मौकों पर गले लगा कर उसके कान में कहती थी--“मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है।” 

उन क्षणों में उसके पेट के गहरे अंदर गर्व भरी मरोड़ उठती थी। वह उन दोस्तों को दुश्मन की तरह देखती थी जो उसे उसकी बेटी पर लगाम कसने को कहते थे। उन दिनों उसे सिर्फ़ अपनी बेटी का प्यार चाहिए होता था।

दामाद की उसके प्रति उदासीनता का कारण कौन हैं? जब उसने बेटी से पूछा तो उसने कंधों को उठाकर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की। 

“कौन जाने मैं नहीं जानती।”, वह बोली।

उसके शारीरिक आव-भाव और शब्दों ने यह दिखा दिया कि वह माँ की वेदना को गंभीरता से नहीं लेती। जब वह अपनी बेटी के घर बिना सूचना के पहुँची तो नौकरानी जिसने दरवाजा खोला, वह पीली पड़ गयी।

“आप कृपया यहाँ बैठ जाएँ। मैं ऊपर जाकर उनको बताती हूँ।”

“क्या मैं ऊपर नहीं जा सकती?”

“बिल्कुल नहीं, 
साहब को किसी का ऊपर आना अच्छा नहीं लगता। 
वे मुझे डाँटेंगे।”, 
नौकरानी ने कहा।

“फिर मैं यहाँ बैठती हूँ, तुम जाओ दोनों को बुला कर लाओ।”

लगभग आधे घंटे बाद लड़की उठकर नीचे आयी और चेहरा धोया।

“तुम इतनी सुबह क्यों आ गयी माँ?”, उसने पूछा।

माँ को लगा था कि उसको देखकर बेटी खुश होगी और हर बार की तरह उसके गालों को चूम लेगी। लेकिन उसने किसी भी प्रकार का प्रेम प्रदर्शन नहीं किया।

“यह बदलाव कैसे आया?”, माँ ने पूछा।

“बदलाव,कैसा बदलाव?”, बेटी ने पूछा।

मेरे आने से तुम खुश नहीं लग रही हो। मैंने तुम्हारे लिए जो केले और सब्जियाँ लायी है, वह कार में हैं। नौकरानी को बोलो कि वह कार में से ले आए।”, माँ बोली।

“माँ अब से सब्जियाँ मत लाना। इन्हें अच्छा नहीं लगता है।”, बेटी बोली।

तुम सब्जियों का उपयोग नहीं करती?”, माँ ने पूछा।

बेटी चुप रही।

“मैं ने क्या किया है बच्चा? 
तुम दोनों मेरे साथ ऐसा निष्ठुर व्यवहार क्यों कर रहे हो? या तुम किसी की बनी बनायी कहानियों में आ गयी हो?”, 
माँ ने पूछा।

बेटी उस क्षण भी मौन रही।

माँ उल्टे पाँव लौट आयी बिना चाय का इंतज़ार किये। उसे लगा कि उसकी उपस्थिति दामाद के लिए ही नहीं बल्कि उसकी अपनी बेटी के लिए भी अरूचिकर है।

उस दिन न उसने नहाया और न खाना बनाया। वह सिसक-सिसक कर रोती रही। अंधेरे कमरे में पीठ के बल लेट कर, वह अपनी बेटी के बचपन की एक एक घटनाओं को एक एक करके याद करने लगी। उसने महसूस किया किया उसकी बेटी के बातचीत और व्यवहार के वे छोटे छोटे अंश जो कल उसे खुशी देते थें, आज वही उसे दु:खी कर रहे हैं।

वह महिला जिसे कभी उसकी बेटी ने 
“दुनिया की सबसे बेहतरीन माँ”, 
कहा था।

 वह माँ आज 
“मेरा बच्चा,मेरा बच्चा”, 
कह कर रो रही है और सिसकियाँ भर रही है।

बीतते समय के साथ माँ नितांत अकेली हो गयी। उसके बाल सफ़ेद हो गये। नहीं सोने के कारण उसका रक्तचाप बढ़ गया और उसके पड़ोसी अब उसे दया की दृष्टि से देखने लगे।

“क्या तुम्हारी बेटी तुम्हारे पास नहीं आती?”, पड़ोसी पूछते।

“हाँ वह आती है। वे रात में आते हैं। दोनों दिन में व्यस्त होते हैं।”, माँ बोलती।

और इस तरह माँ झूठ बोलने लगी।

एक दिन वह बाथरूम में बेहोश हो गयी। वह सफाई करने वाली महिला ही थी जिसने पड़ोसियों को बुलाया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल में जब उसे होश आया तो उस महिला ने उससे पूछा--“अम्मा आप अपनी बेटी को देखना नहीं चाहती?”

“उसे मत बताना ।”, माँ ने कहा।

“जब मैं घर वापस लौट जाऊँगी, तब उसे बताना, उसे बेवजह क्यों घबराना?”

सब्जी वाला, सफाई करने वाली महिला का पति, दूधवाला और धोबी, सब उसे देखने अस्पताल आये।

“तुम्हारी बेटी नहीं आयी?”, धोबी ने पूछा।

“मैंने उसे कहा था। आज सबेरे मैं वहाँ गया था और उन्हें बताया था, तब साहब ने कहा था कि वे पैसों के साथ अस्पताल आएँगे।”, सब्जी वाले ने कहा।

“अब तो अंधेरा होने वाला है।”, धोबी बोला।

“अब वे नहीं आएँगे।”, सफाई करने वाली महिला ने कहा।

किस चुगलखोर ने माँ के बारे में बेटे(दामाद) से झूठ बोला होगा? पापी, अभी तो बेटी की शादी के दो साल भी नहीं हुए हैं, अभी तो वह माँ को जान भी नहीं पाया है। यह कितनी कुम्हला गई है।”, सब्जी वाला बोला।

“यह सब तुम्हारी बेटी का किया-कराया है।”, सफाई करने वाली महिला बोली।

“वह शायद सोचती होगी कि उसके पुराने करतूत माँ के मुँह से उसके पति को सुनने को नहीं मिले।”

माँ उन शब्दों को सुनकर स्तब्ध रह गयी। पर उसे यथार्थ के क्रूर चक्र को सुनना पड़ेगा।

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