![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3wpB_zRTT1r_pjUM4jHAN-1tqdu_yIQtIUrt5_mGSrGOf6H8nWO91srFUJp91_QzejJaasIyjB_2Z-EaBNUY9AI3gkr0dI3zsFMM8A2VQGXQiU_4UwtkCutDr8K0cnMQCBxQxuEiv5lpT/s1600-rw/vartika_nanda_poetry_shabdankan.jpg)
चुप्पी
हर औरत लिखती है कविता
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEharuc4kxqXnna5R0CPGQn4n5-0NZHVFj9iabB4wxl_O1vJxK1hY6gwoReilh1f3QtypW6ujvSjoX-eXrK_82aMoUywfZLHd0sS0VdAAFRTQM1q9Hs9RBWUvlOsdwNfLiDhj-pv1khC90-n/s200-rw/Vartika+Nanda+Poetry+Shabdankan+1-various-artists-stories-in-3-shots.jpg)
हर औरत होती है कविता
कविता लिखते-लिखते एक दिन खो जाती है औरत
और फिर सालों बाद बादलों के बीच से
झांकती है औरत
सच उसकी मुट्ठी में होता है
तुड़े-मुड़े कागज –सा
खुल जाए
तो कांप जाए सत्ता
पर औरत
ऐसा नहीं चाहती
औरत पढ़ नहीं पाती अपनी लिखी कविता
पढ़ पाती तो जी लेती उसे
इसलिए बादलों के बीच से झांकती है औरत
बादलों में बादलों सी हो जाती है औरत
:: 2 ::
शहर के शोर के बीच
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यही चुप्पी है
जो शहर की इज्जत को
बचाए रखती है
औरत और किनारे
एक ही जैसे होते हैं, कमबख्त
:: 3 ::
कमरे की खिड़कियां और रौशनदान
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjibyuGIWKmJ843x6LUhoGQJpBAHP61HeYjOZ982iPJLz8geHDpUu-4lC-BXegmnlNlDChciH3kEN4CtEIBm_wdaQyomkGbPJH_k0GVm3zyHRdaUdYWuLyLjbJJW1VH_sc3MpeusVV9rmhq/s200-rw/Vartika+Nanda+Poetry+Shabdankan+JLagunasweb+.jpg)
कुछ दिनों के लिए
बाहर का बासीपन कमरे में आता है
तो चेहरे पर पसीने की बूंदें चिपक जाती हैं
बंद कमरे में
अलमारी के अंदर
सच के छोटे-छोटे टुकड़े
छिपा दिए हैं
लब अब भी सिले हैं
जिस दिन खिड़कियां खुलेंगीं
लब बोलेंगें
लावा फूटेगा
हवा कांप उठेगी
नहीं चाहती कांपे बाहर कुछ भी
इसलिए मुंह पर हाथ है
दिल पर पत्थर
:: 4 ::
जलती लकड़ी के छोटे गट्ठर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFP07iV_SoAq9DAf3ZjKQil33O3LFiSOrMgkoooqDXg5ds2yTesUoI5EyDzqNGwhiEs1bAoPMFreBV1Kdm-103haEur3fJqGHdf0n354BfFa2NXsD8jXmJlFVjrWhWwA74kAq0sJk4jz1S/s200-rw/Vartika+Nanda+Poetry+Shabdankan+2.jpg)
मैं उस पर रखी कड़ाही हूं
जब तक लकड़ी जलेगी
मैं भी पकती रहूंगी
जिस दिन लकड़ी जलना छोडेगी
और मैं पकना
घर की चक्की रूक जाएगी
परत दर परत
एक-दूसरे पर चढ़ी हुई
दुखों की लकड़ी राख नहीं होती
रोज नए दुख उग आते हैं
रोज मरकर भी
जी उठती है कड़ाही
जरूरी है हम दोनों सुलगें रोज ही
गृहस्थी की पहली शर्त
औरत का सुलगना
और भरपूर मुस्कुराना ही है
औरत शर्तें नहीं भूलती
:: 5 ::
आंखों का पानी
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इस पानी से
रचा जा सकता है युद्ध
पसरी रह सकती है
ओर से छोर तक
किसी मठ की-सी शांति
पल्लू को छूने वाला
आंखों का पोर
इस पानी की छुअन से
हर बार होता है महात्मा
समय की रेत से
यह पानी सूखेगा नहीं
यह समाज की उस खुरचन का पानी है
जिससे बची रहती है
मेरे-तेरे उसके देश की
शर्म
मानव अधिकारों की श्रद्धांजलि
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj93ulaMPHqupQ8-XSoiyLyMQn_yYM1q2rGwi6JDtFpd_FH7pzo7A7zqaAET4Sz194JWipGKcjPULYtF2Y_EYEJbnQxvJDpbtgGJK3g9HyQPYjtYdv3s_E9DTULLxB0P-2K6uaewNKNfccR/s200-rw/Vartika+Nanda+shabdankan+poetry+ST_20130402_DSINDIA3CG20_3592451e.jpg)
तस्वीर के साथ
समय तारीख उम्र पता
यह तो सरकारी सुबूत होते ही हैं
पर
यह कौन लिखे कि
मरने वाली
मरी
या
मारी गई
श्रद्धांजलि में फिर
श्रद्धा किसकी, कैसे, कहां
पूरा जीवन वृतांत
एक सजे-सजाए घेरे में?
यात्रा के फरेब
षड्यंत्र
पठार
श्रद्धांजलि नहीं कहती
वो अखबार की नियमित घोषणा होती है
एक इश्तिहार
जिंदगी का एक बिंदु
अफसोस
श्रद्धांजलि जिसकी होती है
वो उसका लेखक नहीं होता
इसलिए श्रद्धांजलि कभी भी पूर्ण होती नहीं
सच, न तो जिंदगी होती है पूरी
न श्रद्धांजलि
बेहतर है
जीना बिना किसी उम्मीद के
और फिर मरना भी
परिभाषित करना खुद को जब भी समय हो
और शीशे में अपने अक्स को
खुद ही पोंछ लेना
किसी ऐतिहासिक रूमाल से
प्रूफ की गलतियों, हड़बड़ियों, आंदोलनों, राजनेताओं की घमाघम के बीच
बेहतर है
खुद ही लिख जाना
अपनी एक अदद श्रद्धांजलि
कठपुतली
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP0uU2oR36hLtksKU7oi6UrvXZShSGHRumDXFoUuGGLomljuO3x6EtgMdTWjA1pmtkR4Avn4UkYToL9q7V_jIhGpBd0G4igCffBu4UM-iXoGWuk3x47pewR4cUEU0ubd6bjXfIh8Ss8zLh/s320-rw/Vartika+Nanda+Poetry+Shabdankan+Olivia-Weiss-People-Women-Animals-Water-Contemporary-Art-Contemporary-Art.jpg)
मेले
हाट
तमाशे
देखने के बाद
अपना चेहरा बहुत भला लगने लगा है
सुंदर न भी हो
पर मन में एक लाल बिंदी है अब भी
हवन का धुंआ
और स्लेट पर पहली बार उकेरा अपना नाम भी
सब सुंदर है
सत्य भी, शिव भी और अपना अंतस भी
काश,
यह प्यार जरा पहले कर लिया होता
पानी-पानी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGlLDL8LwGT53yXOZloaILuokO3pcYDQBHB4RXKPWDUdpEBua2UO0CxAhJXXz3mQIkcQYwHRq-OdCzCqYQsNKc6XSRtkRNZTXRgA2hNH0p9ijrmJ-ja5mVjEXdtSKBixQgsbuRP6ZfixuL/s200-rw/Vartika+Nanda+poetry+shabdankan+Two-of-a-Kind-original-mixed-media-painting.jpg)
अब समझा वो पानी-पानी होना होता क्या है
और घाट-घाट का पानी पीना भी
वो तो समझ गया
समझ के सिमट गया
उसकी आंखों में पानी भी उतर गया
जो न समझे अब भी
तो उसमें क्या करे
बेचारा पानी
संपर्क : Vnandavartika@gmail.com
1 टिप्पणियाँ
वर्तिका नन्दा जी की कविताओं मे गंभीर रचनाकार की झलक है|
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