"सत्य बोलने का कोई समय नहीं होता । सत्य बोलने का जो समय चुनता है वो सत्य नहीं झूठ बोलता है ।" अध्यादेश फाड़ने के बाद से राहुल गांधी राजनीति की व्यावहारिकता को छोड़ कहीं आदर्शवादी तो होने नहीं जा रहे । कहीं वे बीच चुनाव में सत्य के साथ प्रयोग न करने लग जाएँ । राहुल गांधी को अब जोश आ गया लगता है । अच्छा है । पर सत्य बोलने का जो समय ही न चुनें वो भी क्या सत्य ही होता है । राहुल गांधी पर तो कई मौक़ों पर कुछ न बोलने का ही इल्ज़ाम है । राबर्ट वाड्रा प्रकरण पर चुप्पी किस सत्य के लिए थी । दुर्गा के लिए चिट्ठी और खेमका के लिए चुप्पी । समय के हिसाब से थी या सत्य के हिसाब से । इतने दिनों की चुप्पी अगर सत्य की खोज के लिए थी तो और सत्यों की उम्मीद करें ? दरअसल राहुल और नरेंद्र मोदी दोनों अपना वक्त चुन कर बोलने और चुप रह जाने में माहिर हैं । मुझे नहीं मालूम कि इन दोनों का मौन क्या है । सत्य या झूठ ।
इसीलिए राहुल का यह आदर्शवाद आत्मघाती लगता है । राजनीति में वक्त का चयन करना भी राजनीति है । राजनीति सत्य से नहीं होती । अब देखिये लालू यादव को सज़ा हुई तो नरेंद्र मोदी चुप्पी मार गए । जेडीयू के के सी त्यागी आरोप लगाते फिर रहे हैं कि जब मोदी भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं तो लालू पर चुप क्यों हो गए । कोई ट्वीट क्यों नहीं किया । बीजेपी ने ज़रूर प्रतिक्रिया दी मगर त्यागी का कहना था कि प्रधानमंत्री के उम्मीदवार चुप क्यों हैं । ये और बात है कि त्यागी जी के पार्टी के दो नेताओं को भी सज़ा हुई है । सब कह रहे हैं कि पटना की सभा में मोदी इस तरह से लालू के जेल जाने पर बोलेंगे ताकि यादव उनकी तरफ़ आ जायें राहुल से बदला लेने के लिए । देखना होगा कि अपने सज़ायाफ्ता मंत्री पर चुप रह जाने वाले मोदी मुलायम मायावती के बरी हो जाने के बहाने सीबीआई के मुद्दे को कैसे रखते हैं । मोदी का मुद्दा है कि यूपीए सीबीआई के डर से चल रही है । यूपीए ने मायावती मुलायम को सीबीआई के डर से आज़ाद कर दिया है । कहीं वे अपने और अमित शाह के डर के कारण इसे मुद्दा तो नहीं बना रहें । अगर नहीं तो क्या ये उम्मीद कर सकते हैं कि वे प्रधानमंत्री बनने पर सीबीआई की स्वायत्तता के लिए अपना प्लान भी बतायेंगे ।
दरअसल राहुल और मोदी के समर्थकों को सिर्फ दूसरे नेता पर होने वाले सवालों से मतलब है । अपने नेता पर होने वाले सवालों से नहीं । मोदी ने आनलाइन की दुनिया को संगठित तरीके से अपने रंग दिया है जहां मोदी पर किये जाने हर सवाल को कांग्रेस की दलाली बताने के लिए ' पेड नेटी घुड़सवार' सवाल करने वाले पर हमला कर देते हैं । इनके लिए तो सिर्फ मोदी सत्य हैं और बाक़ी झूठ । इनके लिए पत्रकारिता की तटस्थता का यही मतलब है कि कोई मोदी पर सवाल न करे । ऐसे लोगों के प्रति आनलाइन चुप्पी भी कम ख़तरनाक नहीं है । शर्मनाक भी है ।
इस पूरी प्रक्रिया पर अंग्रेज़ी की ओपन पत्रिका में हरतोष सिंह बल का एक अच्छा लेख है । हो सके तो पढ़ियेगा ।
इस चुनाव में झूठ सत्य है या सत्य झूठ तय करना मुश्किल है । पेड मीडिया और दलाल के नाम पर सवाल पूछने वालों को धमकाया जा रहा है । पेड मीडिया एक दुर्भाग्यपूर्ण हक़ीक़त है मगर इसकी आड़ में एक नेता की तरफ़ उठने वाले सवालों का गला घोंटा जा रहा है । सवाल छोड़ कर, करने वाले की साख दाग़दार की जा रही है । इसके बाद भी लोगों को सिर्फ अपने पसंदीदा नेता की जीत से मतलब है तो फिर कुछ कहा नहीं जा सकता । किसी की जीत के कारण सवाल कैसे स्थगित हो सकते हैं । क्या अब सवालों के यही जवाब होंगे कि जनता किसी को कितनी बार से चुन रही है ? तो फिर यह सबके साथ लागू होगा या किसी एक के साथ ।
छह अक्तूबर को जनसत्ता में एक रिपोर्ट छपी है । पहले पन्ने पर सबसे नीचे । रिपोर्ट सह सम्पादकीय टिप्पणी है । विवेक सक्सेना लिखते हैं कि हरियाणा में परमवीर चक्र विजेता को सरकार इकत्तीस लाख रुपये देती है जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार साढ़े बाइस हज़ार ही । इसी तरह खेल और सैनिक सम्मानों को लेकर हरियाणा और गुजरात की तुलना की गई है । मगर मोदी तो उसी रेवाड़ी में कह आए कि आज सैनिकों का सम्मान नहीं हो रहा । इसका भी लिंक दे रहा हूँ । मैंने अपनी तरफ़ से सूचनाओं का सत्यापन नहीं किया है मगर विवेक सक्सेना बहुत पुराने पत्रकार हैं इतनी कच्ची रिपोर्ट भी नहीं लिखेंगे ।
अब कोई सवाल करें तब तो । यहाँ तो खेमे बाँट दिये गए हैं । सिर्फ हो हो और हुले ले ले हो रहा है । सत्य का विज्ञापन नेता ही कर रहे हैं । जनता के हाथ तो कुछ लग नहीं रहा है । आज ही गूगल का आनलाइन जनता के साथ हुए एक सर्वे की रिपोर्ट आई है कि बयालिस प्रतिशत लोगों ने अपनी राय नहीं बनाई है कि किस पार्टी को वोट देना है । यह सर्वे दिलचस्प है । दो तिहाई पंजीकृत मतदाता अपना मत आनलाइन जगत में प्रकट नहीं करते हैं । इसका मतलब है कि नरेंद्र मोदी के पक्ष में जो आनलाइनीय हवा बाँधी गई है वो सही नहीं है । प्रायोजित तरीके से मोदी के हक़ में आनलाइनीय मुखरता व्यक्त की जा रही है । गूगल का सर्वे कहता है कि शहरी मतदाता का सैंतीस प्रतिशत आनलाइन है । पैंतालीस फ़ीसदी मतदाता फ़ैसला करने से पहले और जानकारी जमा करना चाहते हैं । मतदाताओं ने जिन दलों को सबसे ज़्यादा सर्च किया है उनमें पहले नंबर पर बीजेपी दूसरे पर कांग्रेस तीसरे पर आप चौथे पर बीएसपी और पाँचवे पर शिवसेना है ।
इसीलिए राहुल का यह आदर्शवाद आत्मघाती लगता है । राजनीति में वक्त का चयन करना भी राजनीति है । राजनीति सत्य से नहीं होती । अब देखिये लालू यादव को सज़ा हुई तो नरेंद्र मोदी चुप्पी मार गए । जेडीयू के के सी त्यागी आरोप लगाते फिर रहे हैं कि जब मोदी भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं तो लालू पर चुप क्यों हो गए । कोई ट्वीट क्यों नहीं किया । बीजेपी ने ज़रूर प्रतिक्रिया दी मगर त्यागी का कहना था कि प्रधानमंत्री के उम्मीदवार चुप क्यों हैं । ये और बात है कि त्यागी जी के पार्टी के दो नेताओं को भी सज़ा हुई है । सब कह रहे हैं कि पटना की सभा में मोदी इस तरह से लालू के जेल जाने पर बोलेंगे ताकि यादव उनकी तरफ़ आ जायें राहुल से बदला लेने के लिए । देखना होगा कि अपने सज़ायाफ्ता मंत्री पर चुप रह जाने वाले मोदी मुलायम मायावती के बरी हो जाने के बहाने सीबीआई के मुद्दे को कैसे रखते हैं । मोदी का मुद्दा है कि यूपीए सीबीआई के डर से चल रही है । यूपीए ने मायावती मुलायम को सीबीआई के डर से आज़ाद कर दिया है । कहीं वे अपने और अमित शाह के डर के कारण इसे मुद्दा तो नहीं बना रहें । अगर नहीं तो क्या ये उम्मीद कर सकते हैं कि वे प्रधानमंत्री बनने पर सीबीआई की स्वायत्तता के लिए अपना प्लान भी बतायेंगे ।
उनके नमो फ़ार पीएम टाइप समर्थकों ने भी ट्वीट नहीं किया कि हे नमो बता तो दो आप सीबीआई का क्या करोगे ।लोकपाल लाओगे ? लोकपाल के तहत सीबीआई को पूरी तरह दे दोगे ? बेहतर होगा कि दोनों ही अपनी अपनी योजनाएँ जनता के सामने रखें और इस पर लोग विचार कर फ़ैसला दें । हम नहीं वो वाला गेम बहुत हो चुका ।
दरअसल राहुल और मोदी के समर्थकों को सिर्फ दूसरे नेता पर होने वाले सवालों से मतलब है । अपने नेता पर होने वाले सवालों से नहीं । मोदी ने आनलाइन की दुनिया को संगठित तरीके से अपने रंग दिया है जहां मोदी पर किये जाने हर सवाल को कांग्रेस की दलाली बताने के लिए ' पेड नेटी घुड़सवार' सवाल करने वाले पर हमला कर देते हैं । इनके लिए तो सिर्फ मोदी सत्य हैं और बाक़ी झूठ । इनके लिए पत्रकारिता की तटस्थता का यही मतलब है कि कोई मोदी पर सवाल न करे । ऐसे लोगों के प्रति आनलाइन चुप्पी भी कम ख़तरनाक नहीं है । शर्मनाक भी है ।
इस पूरी प्रक्रिया पर अंग्रेज़ी की ओपन पत्रिका में हरतोष सिंह बल का एक अच्छा लेख है । हो सके तो पढ़ियेगा ।
कैसे दोनों ही नेता प्रेस कांफ्रेंस और पत्रकारों को नज़रअंदाज़ करते हैं । दोनों ने सार्वजनिक तौर से प्रेस से बात करना बंद कर दिया है । मगर व्यक्तिगत रूप से दोनों प्रेस से बात करते हैं । जिसकी पुष्टि कई बड़े पत्रकारों ने की है । मेरे ही शो में एन के सिंह ने कहा था कि मोदी रविवार को बात करते हैं । उनसे भी बात करते है । अंग्रेज़ी चैनल के एक बड़े सम्पादक ने भी ऐसा कुछ कहा था । राहुल गांधी भी बड़े पत्रकारों से अकेले में मिलते हैं । अहमदाबाद में ही पत्रकारों से आफ़ रिकार्ड मुलाक़ात की । कैमरे और फ़ोन बाहर रख लिये गए ।अब अगर ये किसी नागरिक के लिए गंभीर सवाल नहीं है तो इसका मतलब है कि आप अंध भक्तों से बात कर रहे हैं । ओपन पत्रिका के लेख का लिंक दे रहा हूँ । वैसे मेरी अभी तक दोनों से कोई बात नहीं हुई है । व्यक्तिगत रूप से बात करने में कोई बुराई नहीं है मगर ये दोनों प्रेस कांफ्रेंस में आते क्यों नहीं हैं । व्यक्तिगत बातचीत रिपोर्ट भी नहीं होती है ।
इस चुनाव में झूठ सत्य है या सत्य झूठ तय करना मुश्किल है । पेड मीडिया और दलाल के नाम पर सवाल पूछने वालों को धमकाया जा रहा है । पेड मीडिया एक दुर्भाग्यपूर्ण हक़ीक़त है मगर इसकी आड़ में एक नेता की तरफ़ उठने वाले सवालों का गला घोंटा जा रहा है । सवाल छोड़ कर, करने वाले की साख दाग़दार की जा रही है । इसके बाद भी लोगों को सिर्फ अपने पसंदीदा नेता की जीत से मतलब है तो फिर कुछ कहा नहीं जा सकता । किसी की जीत के कारण सवाल कैसे स्थगित हो सकते हैं । क्या अब सवालों के यही जवाब होंगे कि जनता किसी को कितनी बार से चुन रही है ? तो फिर यह सबके साथ लागू होगा या किसी एक के साथ ।
छह अक्तूबर को जनसत्ता में एक रिपोर्ट छपी है । पहले पन्ने पर सबसे नीचे । रिपोर्ट सह सम्पादकीय टिप्पणी है । विवेक सक्सेना लिखते हैं कि हरियाणा में परमवीर चक्र विजेता को सरकार इकत्तीस लाख रुपये देती है जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार साढ़े बाइस हज़ार ही । इसी तरह खेल और सैनिक सम्मानों को लेकर हरियाणा और गुजरात की तुलना की गई है । मगर मोदी तो उसी रेवाड़ी में कह आए कि आज सैनिकों का सम्मान नहीं हो रहा । इसका भी लिंक दे रहा हूँ । मैंने अपनी तरफ़ से सूचनाओं का सत्यापन नहीं किया है मगर विवेक सक्सेना बहुत पुराने पत्रकार हैं इतनी कच्ची रिपोर्ट भी नहीं लिखेंगे ।
अब कोई सवाल करें तब तो । यहाँ तो खेमे बाँट दिये गए हैं । सिर्फ हो हो और हुले ले ले हो रहा है । सत्य का विज्ञापन नेता ही कर रहे हैं । जनता के हाथ तो कुछ लग नहीं रहा है । आज ही गूगल का आनलाइन जनता के साथ हुए एक सर्वे की रिपोर्ट आई है कि बयालिस प्रतिशत लोगों ने अपनी राय नहीं बनाई है कि किस पार्टी को वोट देना है । यह सर्वे दिलचस्प है । दो तिहाई पंजीकृत मतदाता अपना मत आनलाइन जगत में प्रकट नहीं करते हैं । इसका मतलब है कि नरेंद्र मोदी के पक्ष में जो आनलाइनीय हवा बाँधी गई है वो सही नहीं है । प्रायोजित तरीके से मोदी के हक़ में आनलाइनीय मुखरता व्यक्त की जा रही है । गूगल का सर्वे कहता है कि शहरी मतदाता का सैंतीस प्रतिशत आनलाइन है । पैंतालीस फ़ीसदी मतदाता फ़ैसला करने से पहले और जानकारी जमा करना चाहते हैं । मतदाताओं ने जिन दलों को सबसे ज़्यादा सर्च किया है उनमें पहले नंबर पर बीजेपी दूसरे पर कांग्रेस तीसरे पर आप चौथे पर बीएसपी और पाँचवे पर शिवसेना है ।
लोग सत्य खोज रहे हैं । वे खोज ही लेंगे । बस नेता यह न समझें कि उनके बोले हुए को ही जनता सत्य समझती है । इस झूठ को वो जीना बंद कर दे । जनता बोलने और चुप रहने के समय को पहचान लेती है । यही सत्य है ।रवीश कुमार
8 अक्टुबर 2013 रवीश के ब्लॉग 'क़स्बा' से
http://naisadak.blogspot.in/2013/10/blog-post_6440.html
http://naisadak.blogspot.in/2013/10/blog-post_6440.html
2 टिप्पणियाँ
Bahut santulit lekh likha hai.. Badhaayee
जवाब देंहटाएंAurat ke khilaaf samaaj ke poorvaagraha ne mujhe to itnee santulit soch naheen dee.. :) :)
Baaqee phir kabhee........
If you are exposed as pro congress , then it is for your convenience to be another Kezariwal who can says that both are the same , and this step restores your credit before your followers,
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