तीनमूर्ति भवन सभागार, नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर, 2013
भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध न्यासी साहू अखिलेश जैन ने डॉ. रावूरि भरद्वाज का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया. दीप प्रज्वलन के बाद भारतीय ज्ञानपीठ के आजीवन न्यासी श्री आलोक प्रकाश जैन ने स्वागत भाषण में कहा कि तेलुगु के शीर्षस्थ कथाकार डॉ. रावूरि भरद्वाज मनुष्य जीवन की संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए विख्यात हैं। प्रेमचंद की तरह इनकी रचनाओं में आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद की झलक मिलती है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रवर परिषद् के अध्यक्ष, सीताकान्त महापात्र ने कहा कि डॉ. रावूरि भरद्वाज तेलुगु साहित्य में श्री चालम के उत्तराधिकारी ही नहीं है, अपनी अनोखी शैली, कहन, चरित्र-चित्रण और कथा-बनावट की दृष्टि से अपनी अलग पहचान भी रखते हैं।
उस्ताद अमजद अली खाँ ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह में आना मेरे लिए गर्व की बात है। साहित्य, •ला और संगीत का मूल स्वर और उद्देश्य एक होता है। यहाँ साहित्य और संगीत का मधुर मिलन देखने को मिला। उस्ताद अमजद अली खान ने कहा की उनके गुरु कहा करते थे की इस ब्रह्माण्ड में दो दुनिया है, एक शब्दों की दुनिया और दूसरी स्वर की दुनिया. इन दो दुनिया में से किसी एक को चुनना होगा. इन दोनों दुनिया को एक साथ चुनना बहुत कठिन होता है, मैंने संगीत की दुनिया चुना.
कार्यक्रम के अन्त में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री रवीन्द्र कालिया ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि डॉ. रावूरि भरद्वाज आज तेलुगु के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की श्रेष्ठता के प्रतीक बन चुके हैं। वे अपने भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि हैं और उनकी कीर्ति देश-विदेश तका फैली हुई है। भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान स्वीकार करके उन्होंने हमारा मान बढ़ाया है।
प्रबन्ध न्यासी साहू अखिलेश जैन की पहल पर इस बार साहित्य का यह सर्वोच्य पुरस्कार एक संगीतकार द्वारा प्रदान किया गया है जो कलाओं के सामंजस्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
सम्मान समारोह में अनेक गणमान्य व्यक्ति, साहित्यकार, पत्रकार उपथित थे।
साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का वर्ष 2012 का ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ तेलुगु के सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ. रावूरि भरद्वाज को नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय सभागार, नयी दिल्ली में सुप्रसिद्ध सरोदवाद उस्ताद अमजद अली खाँ के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया।
भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध न्यासी साहू अखिलेश जैन ने डॉ. रावूरि भरद्वाज का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया. दीप प्रज्वलन के बाद भारतीय ज्ञानपीठ के आजीवन न्यासी श्री आलोक प्रकाश जैन ने स्वागत भाषण में कहा कि तेलुगु के शीर्षस्थ कथाकार डॉ. रावूरि भरद्वाज मनुष्य जीवन की संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए विख्यात हैं। प्रेमचंद की तरह इनकी रचनाओं में आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद की झलक मिलती है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रवर परिषद् के अध्यक्ष, सीताकान्त महापात्र ने कहा कि डॉ. रावूरि भरद्वाज तेलुगु साहित्य में श्री चालम के उत्तराधिकारी ही नहीं है, अपनी अनोखी शैली, कहन, चरित्र-चित्रण और कथा-बनावट की दृष्टि से अपनी अलग पहचान भी रखते हैं।
अपने पुरस्कार स्वीकारोक्ति भाषण में डॉ. भरद्वाज ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि मात्र आदर्श का पालन करना ही नहीं, उसपर चलते हुए ही अपने उद्देश्य की प्राप्ति करना ही आदर्श की स्थापना करना है।मेरी रचनाओं को ज्ञानपीठ ने जो सम्मान दिया है यह उनके चयन की निष्पक्षता को दर्शाता है। इस सम्मान ने मुझे बहुत बल दिया है और मेरे सामने चुनौती रख दी है कि मैं अपने साहित्य में सामाजिक प्रतिबद्धता को उसी तरह निभाता चलूँ जैसी मेरी पहचान बनी है और जो मेरी लेखन-शक्ति है।
उस्ताद अमजद अली खाँ ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह में आना मेरे लिए गर्व की बात है। साहित्य, •ला और संगीत का मूल स्वर और उद्देश्य एक होता है। यहाँ साहित्य और संगीत का मधुर मिलन देखने को मिला। उस्ताद अमजद अली खान ने कहा की उनके गुरु कहा करते थे की इस ब्रह्माण्ड में दो दुनिया है, एक शब्दों की दुनिया और दूसरी स्वर की दुनिया. इन दो दुनिया में से किसी एक को चुनना होगा. इन दोनों दुनिया को एक साथ चुनना बहुत कठिन होता है, मैंने संगीत की दुनिया चुना.
कार्यक्रम के अन्त में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री रवीन्द्र कालिया ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि डॉ. रावूरि भरद्वाज आज तेलुगु के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की श्रेष्ठता के प्रतीक बन चुके हैं। वे अपने भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि हैं और उनकी कीर्ति देश-विदेश तका फैली हुई है। भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान स्वीकार करके उन्होंने हमारा मान बढ़ाया है।
प्रबन्ध न्यासी साहू अखिलेश जैन की पहल पर इस बार साहित्य का यह सर्वोच्य पुरस्कार एक संगीतकार द्वारा प्रदान किया गया है जो कलाओं के सामंजस्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
सम्मान समारोह में अनेक गणमान्य व्यक्ति, साहित्यकार, पत्रकार उपथित थे।
Ravuri Bharadwaja Jnanpith Award 2012
1 टिप्पणियाँ
भारतीय ज्ञानपीठ पुरुस्कार साहित्य के नोवुल पुरुस्कार से इस मायने में श्रेष्ठ है कि वह राजनीतिक रुझान के बजाय सिर्फ साहित्यिक उत्कृष्टता को ही चुनता है । .. अधिसम्माननीय रेबूरि भरद्वाज को कोटिश: वधाइयां । ... vikram singh bhadoriya.
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