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प्रवासी साहित्य को मुख्यधारा में स्थान दिया जाए - मृदुला गर्ग | Pravasi literature be brought into the mainstream - Mridula Garg


17 जनवरी, यमुनानगर

कथा युके व डीएवी गर्ल्स कालेज के संयुक्त तत्वावधान में 17-18 जनवरी 2014 को अंतराष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन (अप्रसास) यमुनानगर, हरियाणा में आयोजित किया।


प्रवासी  साहित्य  को  अलग  करके  देखने  की  बजाए,  उसे  हिंदी  की  मुख्यधारा  में  स्थान  दिया  जाए . . .  
- मृदुला गर्ग


        दो दिवसीय सम्मलेन के उद्घाटन सत्र की रिपोर्ट आपके लिए

       हिंदी साहित्य मूल रूप से प्रवासी साहित्य है। भारत के साहित्यकार अंतरदेशीय (दूसरे राज्य में जाकर लिखना) प्रवासी है, जबकि विदेशी रचनाकारों का साहित्य अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्य है। उक्त शब्द कथा यूके के महासचिव तेजेंद्र शर्मा ने डीएवी गर्ल्स कालेज में आयोजित तृतीय अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन के दौरान कहे। इसी कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मृदुला गर्ग का मानना था कि परंपराओं से टकराव का नाम साहित्य है। साहित्य जहां कहीं होता है, वह परंपराओं से टकराता है।

       कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य तथा कथा यूके लंदन की संरक्षक ज़किया ज़ुबैरी ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कथा यूके लंदन के महासचिव एवं वरिष्ठ कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने सम्मेलन का बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। जबकि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से आए डा. अजय नावरिया ने विषय प्रस्तावना तथा मंच संचालन किया।

       मृदुला गर्ग ने कहा कि प्रवासी साहित्य को अलग करके देखने की बजाए, उसे हिंदी की मुख्यधारा में स्थान दिया जाए। विदेशों में रहने वाले लेखक जब संस्कृति के टकराव के बारे में लिखते हैं, तो लोगों को उच्च श्रेणी के साहित्य से मुखातिब होने का अवसर मिलता है। गांव से शहर में आकर बसने वाले लोगों में भी प्रवास का दर्द देखा जा सकता है। यही वजह है कि साहित्य स्थापित मूल्यों के विरुद्ध मुहिम चलाने का काम कर रहा है।

       यूएसए स्थित मिशिगन यूनिवर्सिटी से आईं अनुवादक क्रिस्टी ए मेरिल ने तेजेंद्र शर्मा की तीन कहानियों पर आधारित शोधपत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शर्मा की कहानियों में हिंदी व अंग्रेजी की संस्कृति तथा समाज को करीब से देखने का अवसर मिलता है। उन्होंने अपने साहित्य के जरिए भारत की यादों को ताजा किया है, इसलिए उसे प्रवासी साहित्य का दर्जा न दिया जाए।

       यूएसए स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय से आईं वरिष्ठ कथाकार सुषम बेदी ने कहा कि प्रवासी लेखन ने विश्व को एक सूत्र में जोडऩे का काम किया है। फिलहाल प्रवासी साहित्य का बड़ा मुद्दा अस्मिता का है। प्रवासी लेखक को राष्ट्रीय बद्धता में बंधने की जरूरत नहीं। जबकि भारत के साहित्यकार की रचनाएं समाज व राष्ट्रीयता से बंधी नजर आती है। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्यकारों ने युवा पीढ़ी के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है। जिसके जरिए उन्होंने बताया कि यहां से विदेशों में गए लोग संस्कारों में बंधे हुए हैं, जबकि उनके बच्चें किसी दूसरी दुनिया में रहते हैं।

       जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली से आए प्रोफेसर महेंद्रपाल शर्मा ने कहा कि देश की सीमा लांघकर लिखा गया साहित्य प्रवासी साहित्य की श्रेणी में आता है। लेकिन भारत में तथा विदेशों में लिखने वाले लेखकों के अनुभव एक जैसे हैं। बावजुद इसके प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं को दोयम दर्जा दिया जा रहा है। जो कि प्रवासी साहित्य के साथ अन्याय है।

       कथा यूके लंदन की संरक्षक ज़किया ज़ुबैरी ने कहा कि प्रवासी साहित्य भारत में लिखे जा रहे साहित्य से कहीं आगे है। सुषम बेदी, तेजेंद्र शर्मा के साहित्य को किसी से कम नहीं आंका जाए। उन्हें भी हिंदी साहित्य की मुख्य धारा में वही स्थान मिलना चाहिए, जो भारत के रचनाकारों को मिल रहा है। उन्होंंने गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय से आईं रेनू यादव द्वारा कोर्स में प्रवासी साहित्य शुरू करने पर आभार व्यक्त किया।

 विदेशों  में  बैठकर  लिखने  वाले  लेखकों  को  प्रवासी  न  कहा  जाए . . .    तेजेंद्र शर्मा  
       कथा यूके लंदन के महासचिव तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि डीएवी गर्ल्स कालेज तथा कथा यूके लंदन की लौ अब पूरे विश्व को प्रकाशमय कर रही है। विदेशों में बैठकर लिखने वाले लेखकों को प्रवासी न कहा जाए। उन्होंने कहा कि उषा प्रियंवदा ने भारत में रहकर साहित्य की रचना की। बावजुद इसके उन्हें प्रवासी साहित्यकारों की श्रेणी में रखा जाता है। उन्होंने पूरे हिंदी साहित्य को प्रवासी बताया और कहा कि अमेरिका, कैनेडा तथा लंदन में लिखा जा रहा साहित्य मुख्यधारा का साहित्य है। विदेशों में युवा हिंदी नहीं जानते, जबकि भारत में भी नई पीढ़ी हिंदी से विमुख हो रही है। डर है कहीं विदेशों में लिखा जाने वाला साहित्य खतम न हो जाए। या फिर साहित्य को बचाए रखने के लिए माइग्रेशन का सिलसिला यूं ही जारी रहेगा। उन्होंने आलोचकों से आह्वान किया कि वे पुराने हथियारों से उनके साहित्य का आंकलन न करें।

       कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों व शिक्षाविदों को विदेशों में रचे जा रहे साहित्य से रू-ब-रू करवाना है। ताकि साहित्य के प्रति समझ विकसित हो सकें।

विषय प्रस्तावक डा. अजय नावरिया ने कहा कि भूमंडलीकरण के कारण हिंदी के लिए बहुत सारे अवसर खुल गए हैं। आज विश्व में हिंदी की अलग पहचान है। प्रवासी साहित्य ने विश्व को एक सूत्र में जोडऩे का काम किया है। जो कि मुख्य धारा का साहित्य है।

पहले दिन इन किताबों का हुआ विमोचन-
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन के पहले दिन कनाडा से आई वरिष्ठ कथाकार स्नेह ठाकुर के शोधग्रंथ कैकयी, नीना पॉल के कहानी संग्रह शराफत विरासत में नहीं मिलती तथा प्रवासी विशेषांक पर आधारित प्रवासी संसार पत्रिका के संस्करण का विमोचन हुआ। कथा यूके लंदन के महाासचिव तेजेंद्र शर्मा ने बताया कि इस पत्रिका में उन्होंने बतौर अतिथि संपादक काम किया है। जो कि उनके लिए गर्व की बात है।
शब्दांकन संपादक Web Developer

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4 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी में लिखा एक एक शब्द मुख्यधारा में माना जाये।

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  2. प्रवासी कह देने से प्रवासी नही हो जायेगा क्योंकि हिंदी पहचान है देशज होने की

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  3. BHASHA YAA SANSKRITI KABHEE PRAVASI NAHIN HOTEE . ANGREZEE , FRENCH ,
    YAA KISEE ANYA SAHITYA KE SAATH ` PRAVASI ` NAHIN HAI ,HINDI KE HEE SAATH
    KYON ?

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  4. तेजेंद्र जी की पीड़ा सही है कि प्रवासी कहके हम हिंदी लेखन में मूल्याङ्कन को बाँट रहे हैं...हिंदी तो वसुधेव कुटुम्बकम को मानती है...इसमें सीमाओं का कहाँ स्थान....

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