राग देश: जय हो ठोकतंत्र की, जय श्री इलेक्शन! - क़मर वहीद नक़वी | Raag Desh: Qamar Waheed Naqvi - Jai Shri Election


राग देश

जय हो ठोकतंत्र की, जय श्री इलेक्शन!

- क़मर वहीद नक़वी

अब ललकार, हुँकार, दहाड़, फुफकार का ज़माना है, गरम ख़ून चाहिए, जो बात-बात पर खौल उठे और मरने-मारने पर उतारू हो जाये! सदियों पहले लड़ाके क़बीले ऐसे ही हुआ करते थे. दुनिया सैंकड़ों साल आगे बढ़ गयी. हम जंगल युग के इतिहास को लोकतंत्र में सजा कर मुदित हो रहे हैं. मोदीत्व और केजरीत्व की महिमा है!
जय हो! श्री इलेक्शन महाराज आ गये हैं! प्रजा विभोर है. सर्वत्र मंगलगान हो रहा है! लाठियों से, गालियों से, पत्थरों से, ईंट से ईंट बजा कर लोग अपनी अपार प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं! आख़िर क्यों न करें? श्री इलेक्शन महाराज जब-जब आते हैं,  देश की प्रजा उनके श्री दर्शन कर आश्वस्त हो जाती है कि देश में लोकतंत्र सकुशल चल रहा है. इस उपलक्ष्य में देश भर में बड़ा मेला लगता है. अपने परम प्रिय महाराज को सब मिल कर अपनी परम प्रिय वस्तु एक-एक वोट का दान देते हैं. लोकतंत्र आयुष्मान होता रहता है. और देश चैन की नींद सोता है. कहीं कोई ख़तरा नहीं है! लोकतंत्र बिलकुल सुरक्षित है. स्वस्थ है. गुजरात की तरह 'वाइब्रेंट' है!


          इसीलिए अपने केजरीवाल जी जब गुजरात में लोकतंत्र देखने गये, विकास देखने गये, तो लोगों ने दिखा दिया कि 'वाइब्रेंट' होने से वे क्या-क्या कर सकते हैं? 'वाइब्रेंट' लोकतंत्र में किसी असहमति की, जो सुर में सुर न मिला सके, ऐसे बेसुरे की कोई गुंजाइश नहीं होती! ठीक है. तो दिल्ली के क्रान्तिजीवी केजरीवीर भला किससे कम हैं. उन्होंने भी दम दिखा दिया. तुम सेर तो हम सवा सेर! देश ने देखा, केजरी कमांडो और मोदी सेना का गुत्थम-गुत्था, लट्ठम-लट्ठा. ख़ूब लड़े मर्दाने, लोकतंत्र की रक्षा के लिए!


          ये लोकतंत्र का नया ब्राँड आया है! शटाक! सटाक! तड़ाक! झटाक! अब पुराने टुटहे-फुटहे, घेंचू-ढेंचू खटारा माडल नहीं चलेंगे! इचार-विचारधारी पोथा पंडितों, बहसबाँकुरों और ज्ञान वाणी वाले सयानों की जगह अब कबाड़ख़ाने में है, चाहे वह अपनी पार्टी के ही क्यों न हों! अब ललकार, हुँकार, दहाड़, फुफकार का ज़माना है, गरम ख़ून चाहिए, जो बात-बात पर खौल उठे और मरने-मारने पर उतारू हो जाये! सदियों पहले लड़ाके क़बीले ऐसे ही हुआ करते थे. दुनिया सैंकड़ों साल आगे बढ़ गयी. हम जंगल युग के इतिहास को लोकतंत्र में सजा कर मुदित हो रहे हैं. मोदीत्व और केजरीत्व की महिमा है!
             
          वैसे मोदीत्व और केजरीत्व में यह अद्भुत समानता बड़ी हैरानी की बात है! आप किसी सोशल मीडिया पर किसी दिन किसी मुद्दे पर मोदी की आलोचना करके देखिए! ऐसा लगेगा जैसे बर्र के छत्ते को छेड़ दिया हो. हज़ारों-लाखों गालियों की सुनामी चल पड़ेगी. और किसी दिन केजरीवाल के तौर-तरीक़ों की मीन-मेख निकाल कर देखिए. वैसी ही बर्रों की फ़ौज निकल पड़ेगी. बस फ़र्क़ यह है कि केजरीवाल के लड़ाके कुछ भावुक ज़्यादा हैं, और गालियों में अश्लील नहीं होते, ज़्यादा से ज़्यादा आपको काँग्रेस, बीजेपी या कारपोरेट दलाल कह कर बख़्श देंगे, आपके परिवार से नाता जोडनेवाले श्रीवचन नहीं बरसायेंगे!

          ये कार्यकर्ताओं का लोकतंत्र है. अब ज़रा नेताओं के लोकतंत्र की बानगी देखिए. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी. आज़ादी का दिन. 15 अगस्त. वह इन्तज़ार करते हैं. प्रधानमंत्री लाल क़िले की प्राचीर से क्या बोलते हैं. उसके बाद उनका भाषण शुरू होता है. वह प्रधानमंत्री के भाषण की बखिया उधेड़ डालते हैं! केन्द्र और राज्य के सम्बन्धों का एक नया 'अनुकरणीय' उदाहरण पेश करते हैं. एक 'वाइब्रेंट' यानी जीवन्त लोकतंत्र की बेमिसाल मिसाल! एक दिल्ली के मुख्यमंत्री थे. 49 दिन वाले! वह ललकारे. कौन है शिन्दे? शिन्दे तय करेगा कि मैं कहाँ धरने पर बैठूँ? मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूँ. मैं तय करूँगा कि मैं धरने पर कहाँ बैठूँगा. वाह. क्या भाषा है? क्या शिष्टाचार है? केन्द्र और राज्य के रिश्तों की एक और गौरवशाली मिसाल! एक बिहार के मुख्यमंत्री हैं. चुनावी राजनीति का पाँसा सही नहीं बैठा तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल पाया. क्या करते बेचारे. मुख्यमंत्री महोदय ने बिहार बन्द करा दिया! सरकारी सम्पत्ति का नुक़सान हुआ तो हुआ. पैसा उन 'अमीरों' की जेब से गया, जो टैक्स देते हैं. नीतिश जी ने तो अपनी राजनीति चमकायी. पापी वोट के लिए किसे क्या नहीं करना पड़ता? केन्द्र और राज्य के रिश्तों की एक और मिसाल! एक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं शिवराज सिंह चौहान. बहुत सज्जन पुरुष हैं. उन बेचारे को भी धरने पर बैठना पड़ा. ओले से बरबाद हुई फ़सल के लिए वह केन्द्र से पाँच हज़ार करोड़ का पैकेज माँग रहे थे. चुनाव का मौसम है न भाई. इतना तो आप भी समझते ही होंगे!

          ख़ैर ये सब तो विपक्ष के मुख्यमंत्री थे. तेलंगाना मामले पर आँध्र के काँग्रेसी मुख्यमंत्री केन्द्र में अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ धरने पर बैठ गये. यह अलग बात है कि वह तेलंगाना बनने से नहीं रोक पाये. वह अपना खेल खेल रहे थे और पार्टी अपना. दोनों ही वोटों की बाज़ी में जुटे थे. सबसे बड़ा वोटर भैया! लेकिन इस खेल में दोनों को शायद कुछ न मिल सके. तेलंगाना में बीजेपी अब टीआरएस पर डोले डाल रही है. और किरन रेड्डी काँग्रेस छोड़ कर नया ठौर तलाशने में लगे हैं.

          लोकतंत्र की ये कौन-सी परम्पराएँ डाल रहे हैं हम? ना शर्म की सीमा हो, ना नियमों का हो कोई बन्धन! यह ठोकतंत्र है. जिसकी भीड़ बड़ी, जिसकी भीड़ खड़ी, जिसकी भीड़ लड़ी, जिसकी भीड़ जितनी उन्मादी, वह सही. बाक़ी सब ग़लत. न संविधान, न कोर्ट, न क़ानून, न चुनाव आयोग, न परम्परा, न शिष्टाचार. बस एक उन्मत्त बहुमत के मदाँध दम्भ का उद्घोष!

कबीर दास आज होते तो रोते---नेता खड़ा चुनाव में, माँगे भर भर वोट, ना काहू की लाज, ना काहू की ओट!

एक तो वैसे ही हमारा लोकतंत्र, वोटतंत्र का राजतंत्र है. अब करेला हो गया नीम चढ़ा. पहले राजा होते थे, अब नेता हैं! वह एक बार वोट से चुने जाते हैं. फिर हमेशा-हमेशा के लिए राजा बन जाते हैं. फिर इस राजा के बेटे-बेटी, नाती-पोते, बहू-दामाद सब राज करते हैं, करते रहेंगे. आप वोट देते रहिए और लोकतंत्र के कथित पालक, पोषक, शासक, शोषक और चूषक चुनते रहिए. लेकिन वह जैसे भी थे, कम से कम लोकतंत्र का, क़ायदे-क़ानून का भरम तो बनाये रखते थे. अब तो वह भरम भी टूटता दिख रहा है. जय हो ठोकतंत्र की. आओ सखी सब मिल गुन गायें श्री इलेक्शन महाराज की!

www.raagdesh.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES