nmrk2

एक टिप्पणी भेजें

7 टिप्पणियाँ

  1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया भरत जी.
    शब्दांकन में स्थान पाकर बहुत खुश हूँ...
    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. अनु जी लिखती ही बहुत सुन्दर है ..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. गहरा एहसास समेटे अनु जी की लाजवाब रचनाएं ... बहुत बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी कविताएँ पढवाने के लिए आभार,बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. अनु जी आप बहुत ही अच्‍छा और साथ में जो कहानिया वो भी काफी अच्‍छी लिखती हो में काफी दिनाें से आपकी कहानिया सुनता आरा हूॅा

    जवाब देंहटाएं

कवितायेँ: अनुलता राज नायर | Poetry - Anulata Raj Nair

अनुलता राज नायर अपने बारे में बताते हुये कहती हैं ...  केमेस्ट्री में एम.एस.सी हूँ. पढ़ना बहुत पसंद है. कुछ सालों से लेखन से जुड़ी हूँ तथा दो साल पहले जब ब्लॉग लिखने लगी तब से पाठकों और माननीय रचनाकारों के प्रोत्साहन और माता-पिता के आशीर्वाद से नियमित लेखन जारी है. अब तक तकरीबन १५० से ज्यादा कवितायें, कुछ संस्मरण, लेख और कुछ कहानियाँ लिख चुकी हूँ. सबसे पहले १९९५ में मनोरमा में एक संस्मरण प्रकाशित हुआ था. दैनिक भास्कर, कादम्बिनी, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित समाचार पत्र "भास्कर भूमि", "अहा जिंदगी" आदि में रचनाएँ प्रकाशित. कविता संग्रह- "ह्रदय तारों का स्पंदन ", "खामोश खामोश और हम", "शब्दों के अरण्य" में रचनाओं को स्थान. "आधी आबादी " पत्रिका में नियमित लेखन.
मेरा ब्लॉग "माय ड्रीम्स एंड एक्सप्रेशंस" http://allexpression.blogspot.in/

आइये अब उनकी कुछ नयी रचनाओं का रस्वादन यहाँ शब्दांकन पर कीजिये और अपनी राय से उनके हौसले में भी इज़ाफा कीजिये.

नागफनी 

आँगन में देखो

जाने कहाँ से उग आई है
           ये नागफनी....
मैंने तो बोया था
तुम्हारी यादों का
     हरसिंगार....
और रोपे थे
तुम्हारे स्नेह के
   गुलमोहर.....
डाले थे बीज
तुम्हारी खुशबु वाले
        केवड़े के.....
कलमें लगाई थीं
तुम्हारी बातों से
महके  मोगरे की.......

मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
बंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....

देखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
चुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष .....

आओ ना ,
आलिंगन करो मेरा.....
भिगो दो मुझे,
करो स्नेह  की अमृत वर्षा...
                 कि अंकुर फूटें
                 पनप जाऊं मैं
और लिपट जाऊं तुमसे....
         महकती ,फूलती
जूही की बेल की तरह...
आओ ना...
और मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो.....



चिता 

जल रही थी चिता
धू-धू करती
बिना संदल की लकड़ी
बिना घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
फिर चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....

लौट रही हूँ,
प्रेम  की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....

बाकी  है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.

दिल को थोड़ा आराम है अब
हां, आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....




स्मृतियाँ 


तुम्हारी स्मृतियाँ पल रही हैं
               मेरे मन की
            घनी अमराई में ।
कुछ उम्मीद भरी बातें अक्सर
झाँकने लगतीं है
जैसे
बूढ़े पीपल की कोटर से झांकते हों
            काली कोयल के बच्चे !!

इन स्मृतियाँ ने यात्रा की है
                नंगे पांव
मौसम दर मौसम
सूखे से सावन तक
बचपन से यौवन तक ।

और कुछ स्मृतियाँ तुम्हारी
छिपी हैं कहीं भीतर
और आपस में स्नेहिल संवाद करती हैं,
जैसे हम छिपते थे दरख्तों के पीछे
अपने सपनों की अदला बदली करने को ।

तुम नहीं
पर स्मृतियाँ अब भी मेरे साथ हैं
        वे नहीं गयीं तेरे साथ शहर !!

मुझे स्मरण है अब भी तेरी हर बात,
तेरा प्रेम,तेरी हंसी,तेरी ठिठोली
और जामुन के बहाने से,
खिलाई थी तूने जो निम्बोली !!

अब तक जुबां पर
    जस का तस रक्खा है
        वो कड़वा स्वाद
            अतीत की स्मृतियों का !!

nmrk2

एक टिप्पणी भेजें

7 टिप्पणियाँ

  1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया भरत जी.
    शब्दांकन में स्थान पाकर बहुत खुश हूँ...
    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. अनु जी लिखती ही बहुत सुन्दर है ..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. गहरा एहसास समेटे अनु जी की लाजवाब रचनाएं ... बहुत बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी कविताएँ पढवाने के लिए आभार,बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. अनु जी आप बहुत ही अच्‍छा और साथ में जो कहानिया वो भी काफी अच्‍छी लिखती हो में काफी दिनाें से आपकी कहानिया सुनता आरा हूॅा

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
एक स्त्री हलफनामा | उर्मिला शिरीष | हिन्दी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل