![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCy5g07IsSkrDd_Ou-8jJC6mKUJ8Y6Gw0zSCvhynYQ51G3kk_p4RampGzNs_AZiw1D63FWIU1QeVKlS_y02_o566cGgwGAgvjtXhrp0ABZ6cWFGzyiAZUhyphenhyphenQvxpHo1nhcB5qJMByLGG3Ct/s1600-rw/profile-poetry-Anulata-Raj-Nair-shabdankan-nagfani.jpg)
मेरा ब्लॉग "माय ड्रीम्स एंड एक्सप्रेशंस" http://allexpression.blogspot.in/
आइये अब उनकी कुछ नयी रचनाओं का रस्वादन यहाँ शब्दांकन पर कीजिये और अपनी राय से उनके हौसले में भी इज़ाफा कीजिये.
नागफनी
आँगन में देखो![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIuCVhbVNTeyYHuNO3-ZRnuNkwEkH2jPbYb8sxYir37AFUqENGwlf-W7kZvpXlZ4hyphenhyphenC53Rds_Z9A9AJ0jlA9vhTTqU_xeuEhHrwnq-I9dp3ll1YgvYs1NqLZ3rS9COzOyuNKEHOde6h2EI/s1600-rw/poetry-1-Anulata-Raj-Nair-shabdankan-nagfani.jpg)
जाने कहाँ से उग आई है
ये नागफनी....
मैंने तो बोया था
तुम्हारी यादों का
हरसिंगार....
और रोपे थे
तुम्हारे स्नेह के
गुलमोहर.....
डाले थे बीज
तुम्हारी खुशबु वाले
केवड़े के.....
कलमें लगाई थीं
तुम्हारी बातों से
महके मोगरे की.......
मगर तुम्हारे नेह के बदरा जो नहीं बरसे.....
बंजर हुई मैं......
नागफनी हुई मैं.....
देखो मुझ में काटें निकल आये हैं....
चुभती हूँ मैं भी.....
मानों भरा हो भीतर कोई विष .....
आओ ना ,
आलिंगन करो मेरा.....
भिगो दो मुझे,
करो स्नेह की अमृत वर्षा...
कि अंकुर फूटें
पनप जाऊं मैं
और लिपट जाऊं तुमसे....
महकती ,फूलती
जूही की बेल की तरह...
आओ ना...
और मेरे तन के काँटों को
फूल कर दो.....
चिता
जल रही थी चिता![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0d5_dnmPqkbLuHPgIidRZ2jVP6pZ0DE_DamaT8eH3-4rm1OoKW7bBzepntHiERBvDT_HMHdrbcTesH7DWg_PUh3mwBGBdi0XN-aoH1XYh6dPWXE7jPAe7bbVPOCNuyf7oWqipDBpNaCpL/s1600-rw/poetry-2-Anulata-Raj-Nair-shabdankan-chita.jpg)
बिना संदल की लकड़ी
बिना घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
फिर चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....
लौट रही हूँ,
प्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां, आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
स्मृतियाँ
तुम्हारी स्मृतियाँ पल रही हैं
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZXrjH9TG9LI3CcPylCMM-Bw5VXU7-P-6YjDCGEMnyMx2kNHrFklsk4iR1TzeHV0uRE9CsxkIFwiyS6OZbSzyEnEunYbvLSkwdaNW2UGcEfSeTlvflLYDMkQLJizw6lq3ylEPkxLsS3g3b/s1600-rw/poetry-3-Anulata-Raj-Nair-shabdankan-smritiyan.jpg)
घनी अमराई में ।
कुछ उम्मीद भरी बातें अक्सर
झाँकने लगतीं है
जैसे
बूढ़े पीपल की कोटर से झांकते हों
काली कोयल के बच्चे !!
इन स्मृतियाँ ने यात्रा की है
नंगे पांव
मौसम दर मौसम
सूखे से सावन तक
बचपन से यौवन तक ।
और कुछ स्मृतियाँ तुम्हारी
छिपी हैं कहीं भीतर
और आपस में स्नेहिल संवाद करती हैं,
जैसे हम छिपते थे दरख्तों के पीछे
अपने सपनों की अदला बदली करने को ।
तुम नहीं
पर स्मृतियाँ अब भी मेरे साथ हैं
वे नहीं गयीं तेरे साथ शहर !!
मुझे स्मरण है अब भी तेरी हर बात,
तेरा प्रेम,तेरी हंसी,तेरी ठिठोली
और जामुन के बहाने से,
खिलाई थी तूने जो निम्बोली !!
अब तक जुबां पर
जस का तस रक्खा है
वो कड़वा स्वाद
अतीत की स्मृतियों का !!
7 टिप्पणियाँ
आपका बहुत बहुत शुक्रिया भरत जी.
जवाब देंहटाएंशब्दांकन में स्थान पाकर बहुत खुश हूँ...
सादर
अनु
अनु जी लिखती ही बहुत सुन्दर है ..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....बधाई
जवाब देंहटाएंhamesha kee tarah behatrin dost!
जवाब देंहटाएंगहरा एहसास समेटे अनु जी की लाजवाब रचनाएं ... बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविताएँ पढवाने के लिए आभार,बधाई.
जवाब देंहटाएंअनु जी आप बहुत ही अच्छा और साथ में जो कहानिया वो भी काफी अच्छी लिखती हो में काफी दिनाें से आपकी कहानिया सुनता आरा हूॅा
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