कहानी
नास्तिक
अशोक मिश्र

बरसात का मौसम था। राकेश को कॉलेज से निकलने में काफी देर हो गई। घर पहुंचते-पहुंचते अंधड़, चमक और गरज के साथ बारिश तेज हो गई थी। वह पूरी तरह भीग गया था। स्कूटर बाहर ही खड़ा कर तेजी से अंदर चला गया।
घर में घुसते ही राकेश इधर-उधर देखते हुए बोला- ‘अरे मैडम, कहां आप? जरा जल्दी से एक प्याला चाय पिलाने का कष्ट करें, नहीं तो बंदा गया काम से।’
नगमा छत पर बनी बरसाती में दोनों बच्चों के साथ खड़ी थी। बेटी ईशा बराबर कह रही थी- ‘मां, आपने कहा था कि जब पानी बरसेगा, तब आसमान में इंद्रधनुष निकलेगा, पर अब इंद्रधनुष क्यों नहीं निकल रहा है?’
राकेश की आवाज कानों में पड़ते ही नगमा बच्चों को वहीं छोड़कर जल्दी से नीचे आ गयी। पति को देखते ही घबरा गई, ‘आप तो ऊपर से नीचे तक भीग गए हैं। कपड़े उतार दीजिए तब तक मैं कुर्ता-पाजामा लेकर आती हूं।’
नगमा ने अलमारी से कुर्ता-पाजामा निकालकर रकेश को पकड़ाया, फिर जल्दी से रसोई में जा गैस पर पानी चढ़ा दिया।
राकेश ने पुछा, ‘अरे डियर, बच्चे नहीं दिख रहे हैं। क्या स्कूल से आए नहीं?’
‘वे छत पर बरसात का मजा ले रहे हैं।’
बारिश अब धरे-धीरे थम रहीं थी। इतने में नगमा एक ट्रे में चाय और नमकीन लेकर मेज के पास पहुंच गयी।
राकेश ने मजाक से लहजे से कहा, ‘आज तो आप बहुत खिली-खिली लग रही हैं। क्या बात है जानेमन कुछ मुझे भी तो बताओ।’
नगमा ने प्याले में चाय डालते हुए कहा, ‘आप तो हर समय रोमांटिक मूड में रहते हैं। हम लोगों की शादी को 10 साल हो गए हैं। अब तो ये चोचले छोडि़ए।
‘मैडम आज मौसम का सुहानापन, बिजली का चमकना, बादलों का गरजना और पक्षियों का चहचहाना, देख-सुनकर मन यही कहता है कि हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाभी खो जाए।’
‘आप तो पूरी शायरी करने लगे, क्या हो गया है आपको?’
कुछ नहीं मैडम, दिल आखिर दिल ही तो है, तुम पर नहीं तो और किस पर आएगा।’ कहते हुए राकेश ने नगमा को उठाकर बांहों में भर लिया।
नगमा शर्माते हूए बोली, ‘अरे छोडि़ए भी आप बड़े बेशरम है कहीं बच्चे आ गए तो क्या सोचेंगे?’ इतने में बेटी ईशा और बेटा उज्जवल ऊपर से आ गए। आते ही दोनों ने शोर मचाया पापाजी आ गए, पापाजी आ गए और दोनों आकर राकेश की गोदी में बैठ गए।’ बेटा उज्जवल बोला, पापाजी, आप ने आज मेरे लिए कॉमिक्स लाने को कहा था।’ अरे! बेटा बारिश के चक्कर में भूल गया। आज मैं बाजार गया ही नहीं। कल जरूर ला दूंगा।’ ‘आप मेरी फ्रॉक भी नहीं लाए’, बेटी ईशा बोली। ‘अरे! बेटा, कल जरूर ला दूंगा।’ इतने में रसोई से आकर नगमा पूछने लगी, ‘आज खाने में क्या बनाऊं, सब्जी तो कुछ है ही नहीं?’
राकेश ने कहा, आलू के परांठे बना लो। दही और आचार के साथ खाने में मजा आएगा।’
नगमा कुछ ही देर में खाना बनाकर ले आयी। राकेश टीवी देख रहा था। नगमा बच्चों और पति को आवाज दी, ‘चलो खाना खा लो।’ दोनों बच्चे भी आकर मेज के पास कुर्सियों पर बैठ गये। उसने जल्दी से बच्चों और राकेश को परांठे के साथ चटनी और आचार परोस दिए और खुद गरम परांठे सेंकने मे व्यस्त हो गई। राकेश ने आवाज दी, ‘सुनो, साथ में चाय या कॉफी जरूर बना लेना।’ कुछ ही देर में नगमा कॉफी लेकर आयी। राकेश बोला, ‘आज परांठे बड़े गजब के बने हैं, खाना बनाना कोई तो तुम से सीखे।’ ‘अरे! आप कहीं झूठी तारीफ तो नहीं कर रहे हैं? इतने में बेटा बोला- ‘मां पापाजी मस्का लगा रहे हैं।’ ‘चुप शैतान कहीं का’ उसने कहा। फिर दोनों बच्चे खा-पीकर अपने कमरे में चले गए।
राकेश खाना खा चुका था और कॉफी के घूंट भर रहा था। चाय पीकर वह शयनकक्ष में चला गया और एक पत्रिका उठाकर पढ़ने लगा।
कुछ ही देर में नगमा अपना काम खत्म कर, दोनों बच्चों को सुलाकर बेडरूम में आ गयी। नगमा और राकेश दोनों बैठकर बातें करने लगे। बारिश फिर काफी तेज हो गई थी। रह-रह कर बिजली चमक रही थी। नगमा ने कहा, ‘मुझे डर लग रहा है।’ इतने में बिजली भी चली गई। नगमा राकेश के और करीब आ गई, पर वह तो कहीं और खोया था। नगमा ने उसे हिलाते हुए पूछा, ‘कहा और किसकी यादों में खोए हैं आप?’
‘कुछ नहीं, मुझे 10 साल पहले की वह रात याद आ रही है, जब तुम हमेशा के लिए मेरा साथ निभाने के वास्ते अपनी अम्मी-अब्बा, धर्म-जाति, सारे रिश्ते और बंधनों को तोड़कर अपना घर छोड़कर भागी थी। वह भी कुछ-कुछ ऐसी ही रात थी।’
‘अकेले मैंने ही तो अपना सब कुछ नहीं छोड़ा था। सारा त्याग और संघर्ष तो आपने किया है। अगर आप कदम-कदम पर मेरा साथ न देते, तो आप मेरा वजूद नहीं होता।’ यह कहते हुए नगमा राकेश के सीने से लिपट गई। उसकी आंखों में आंसू बहने लगे थे। राकेश की स्मृति में उस समय के सारे चित्र एक-एक करके आने लगे। वह उन्हीं विचारों में कुछ देर डूबा रहना चाहता था।
जब राकेश कॉलेज में एम.ए. अंग्रेजी(अंतिम वर्ष) का छात्र था। इसी साल किसी दूसरे शहर से आकर नगमा नाम की लड़की ने कालेज में कुछ देरी से दाखिला लिया था। अंग्रेजी के प्रोफेसर मोहन खरे उसे बहुत मानते थे, सो कोर्स पूरा कराने के लिए नगमा को उसके पास भेज दिया था। नोट्स लेन-देन से शुरु हुआ राकेश-नगमा का परिचय धीरे-धीरे दोस्ती में कब बदला दोनों को ही पता न चला। धीरे-धीरे राकेश नगमा के दिल में समाने लगा था। नगमा को एक पल भी राकेश के बिना अच्छा न लगता था। कुछ यही हाल राकेश का भी था जिसकी सांसों में बस गई चुकी थी नगमा। राकेश भी खोया खोया रहता था। नगमा के कॉलेज न आने पर राकेश का मन ही न लगता था। दोनों एक दूसरे से देर रात तक मोबाइल पर खूब बातें करते और शेरो-शायरी वाले एसएमएम भेजते रहते। राकेश को एमए पूरा करते-करते ऐसा लगने लगा कि नगमा के बिना उसकी दुनिया बेरंग है, जिसमें रंग सिर्फ नगमा ही भर सकती है। एक दूसरे को चाहने के बावजूद दोनों ही पहल नहीं कर पा रहे थे।
राकेश हालांकि बहुत ही धीरे-गंभीर और अपने काम से काम रखने वाला छात्र था। फिर भी एक दिन राकेश ने कॉलेज में मौका पाकर नगमा से कह दिया, ‘मैं तुम्हें चाहता हूं, तुमसे प्यार करता हूं और शादी भी तुम्हीं से करना चाहता हूं।
नगमा ने गंभीरता के साथ उत्तर दिया, ‘तुम होश में हो या तुम्हारा दिमाग खराब है?’ ‘मैं तरह होश में हूं और मुझे अपने निर्णय पर भरोसा हैं।’ राकेश ने उत्तर दिया। ‘नहीं राकेश, तुम्हारा और मेरा धर्म अलग-अलग है। हमारे घर के लोग इस रिश्ते को किसी भी हालात में स्वीकार नहीं करेंगे। एक तूफान सा खड़ा हो जाएगा।’ ‘हमें धर्म, समाज और घर-परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। मैं अपनी जिंदगी का फैसला खुद करने में सक्षम हूं।’ राकेश ने उत्तर दिया था।
सच तो यह था कि राकेश को भली-भांति मालूम था कि नगमा के मां-बाप और भाई इस रिश्ते को किसी भी स्थिति में स्वीकारेंगे नहीं, बल्कि यदि धर्म के आकाओं को खराब लग गई तो उसे तिल का ताड़ बनाकर उसका जीना हराम कर देंगे। राकेश की पहल के बावजूद अपने घर वालों की कट्टरता देखते हुए नगमा काफी बुझी-बझी सी रहने लगी। राकेश भी नगमा से अपने संबंधों के भविष्य को लेकर परेशान था। अभी उसकी आमदनी का भी कोई जरिया नहीं था। उसने एकाध बार अपने घर में बात चलाई, तो उसके पिताजी गुस्से में बोले, ‘गधे तुझे पढ़-लिखाकर बड़ा किया। अब इश्क का भूत सवार हो गया। शादी करेगा, वह भी एक गैर धर्म की मुस्लिम लड़की से। क्या कायस्थों में लड़कियों की कमी है? क्या अपने धर्म और जाति में लड़कियां नहीं हैं, जो दूसरे धर्म में शादी करेगा? बड़ा आया सेकुलरिज्म का आदर्शवाद पेश करने वाला। क्या तूने ही समाज सुधारने का ठेका ले रखा है? खुद तो मरेगा ही, दूसरों को भी मरवाएगा।’
राकेश और नगमा को अब एक-दूसरे से अलग रह पाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मानसिक रूप से दोनों अपने-अपने घरों में बिल्कुल अकेले होते जा रहे थे। दोनों अपना-अपना घर छोड़, एक रात साथ-साथ भागकर दूसरे शहर में जा पहुंचे। उस शहर में राकेश के कुछ मित्र भी थे। उन्हीं में से एक के यहां दोनों ने शरण ली। 3-4 दिन बाद राकेश ने नगमा से कोर्ट में शादी कर ली।
मित्रों के प्रयासों से स्थानीय इंटर कॉलेज में टीचर के रूप में राकेश को नौकरी भी मिल गयी। वह काफी खुश था और फूला ना समा रहा था, परंतु पांचवें दिन ही उसे शहर की पुलिस ढूंढती हुई कॉलेज आ पहुंची। प्रिसिपल के सामने ही सब-इंस्पेक्टर ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘एक नाबालिग लड़की को भगाकर लाने के जुर्म में हम तुम्हें गिरफ्तार करने आए हैं।’
‘मैं किसी को भगाकर नहीं लाया और फिर जिस लड़की की बात आप कह रहे हैं, अब वह मेरी वाइफ है। हम कोर्ट में शादी कर चुके हैं।’ यह कहते हुए शादी के प्रमाण-पत्र की एक प्रति राकेश ने इंस्पेक्टर को थमा दी।
काफी बहस के बाद पुलिस तो चली गई, मगर राकेश के लिए कालेज में तिरछी निगाहों और कानाफूसियों के चलते अपमान बर्दाश्त करना कठिन हो रहा था। अब उसके लिए कॉलेज में रुकना कठिन हो गया। वह कुछ-कुछ उदास-सा घर आ गया। उसके टीचर साथियों ने जब उसका उतरा हुआ चेहरा देखा, तो कारण पूछा। राकेश ने उन्हें पूरी बात बता दी। साथियों ने धीरज बंधाया, ‘यह सब तो होगा ही। सब कुछ तुम्हें बर्दाश्त करना होगा। अभी तो और भी बहुत कुछ सहना है।’ फिर वही हुआ, जिसका डर था। कॉलेज के प्रिंसिपल ने दूसरे दिन उसे नोटिस थमा दिया और कहा, ‘हमें खेद हैं कि हम आपको नौकरी पर नहीं रख सकते। आपका चाल-चलन ठीक नहीं है। आप जैसे व्यक्ति टीचर पद के योग्य नहीं हैं। आपके कालेज में रहने से यहां का वातावरण खराब हो जाएगा और हमारे छात्र बिगड़ जाएंगे।’ राकेश को अपनी सफाई देने का मौका ही नहीं दिया गया। राकेश के लिए यह दूसरा झटका था। राकेश को इसका कुछ-कुछ अहसास था और हुआ भी वही। राकेश से निकलकर भारी कदमों से घर की ओर वापस आ रहा था कि रास्ते में उसे एक कोचिंग संस्थान का बोर्ड दिखा। उसने कोचिंग संस्थान के संचालक से मिलकर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मैं अंग्रेजी में एमए, बीएड हूं, यदि मेरे लायक आपके कोचिंग में जगह हो, तो काम देने का कष्ट करें।’ कोचिंग संचालक ने कहा, ‘आप अपने प्रमाण-पत्र लेकर कल सुबह 10 बजे आ जाइए, आपको काम मिल जाएगा।’
दूसरे दिन अपने प्रमाण-पत्रों के साथ राकेश वहां पहुंचा और कोचिंग संचालक ने उसे अंग्रेजी पढ़ाने का काम सौंप दिया। वेतन भी ऐसा था कि दो जनों का खर्च आराम से चल सकता था।
राकेश के कोचिंग ज्वाइन करने के बाद है न जाने कैसे नगमा के भाइयों को उसकी खबर मिल गयी। शाम को जब राकेश पढ़ाकर लौट रहा था, तो एकाएक 3-4 बदमाशों और नगमा के भाई रशीद ने उसका रास्ता रोक लिया। ‘क्यों बे, हमारे मजहब की लड़की ही मिली थी? हमको नीचा दिखाना चाहता है?’ एक बदमाश ने कहा, ‘हिंदू होकर तूने हमें चुनौती दी है।, तुझे आज जान से मार देंगे, फिर उन लोगों ने राकेश की हाकियों से खूब पिटाई की और मरा समझकर खुद भाग गए। किसी व्यक्ति ने पुलिस को फोन किया और पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया। वहां उसे तत्काल इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। खून के अत्यधिक बह जाने से उसकी स्थिति नाजुक हो गई थी। नगमा को जब खबर मिली, तो वह घबराकर बेहोश हो गई। होश आने पर राकेश के दोस्त के साथ किसी तरह रोते-रोते अस्पताल पहुंची। डॉक्टर ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘घबराने से कुछ नहीं होगा, हम अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं इसलिए ऊपर वाले पर पूरा भरोसा रखें।’
‘क्या खाक भगवान पर भरोसा रखूं, यह सब उसकी ईश्वर और अल्लाह की वजह से हो रहा है,’ नगमा ने कहा। डॉक्टरों के प्रयासों से सात-आठ घंटों बाद राकेश को होश आया। नगमा रोते हुए बोली, ‘आखिर धर्मों में एक-दूसरे के प्रति इतनी नफरत क्यों हैं? नगमा को अपने अब्बाजान और भाईजान से ऐसी उम्मीद न थी। वह गुस्से में बोली, ‘अगर इतना ही था, तो मुझे ही जान से मार देते।’ राकेश ने हाथ के इशारे से उसे चुप हो जाने को कहा। कछ ही देर में जूस और फल आदि लेकर राकेश का दोस्त ललित आ गया। उसने नगमा से कहा, ‘भाभी, इन्हें यहां से तीन-चार दिन बाद छुट्टी मिलेगी।’
राकेश नगमा ने एक दूसरे से प्रेम विवाह क्या किया कि हिंदू सेना और अली सेना को इस विवाह से अपना-अपना धर्म खतरे में नजर आने लगा। प्रेम विवाह के मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई थी। कुछ चैनल वालों ने भी उसे घेरने और प्रकरण को बिकाऊ बनाकर सनसनी फैलाने में कोई कसर न छोड़ी। नगमा की हिम्मत भी टूटने लगी थी कि उसने मजहब छोड़कर ऐसा क्या गुनाह किया कि सब उसकी जान के पीछे पड़े हैं और अपने भाई तक खून के प्यासे हो गए हैं। डरावनी रातें और खौफजदा दिन धरी-धीरे बीतते रहे।
इसी बीच सारे संबंधियों ने राकेश से नाता तोड़ लिया था। राकेश के दोस्त ने उसके घर वालों को मोबाइल पर घटना की जानकारी दे दी थी। उसके घर से मां-बाप, भाई-बहन भी कोई भी देखने नहीं आया। राकेश को अपने मां-बाप से ऐसी उम्मीद न थी। उसे अब चिढ़ हो रही थी, घर और बाहर वालों के ऐसे रूढि़वादी और संकीर्णता से भरे विचारों से। ‘धर्म, धर्म, धर्म’, बस एकमात्र धर्म ही प्रमुख हैं? क्या खून के नाते-रिश्ते कुछ भी नहीं? इस बारे में वह जितना अधिक सोचता, उतना ही उसे दुनिया और रिश्तों से नफरत सी होती जा रही थी। अचानक एक दिन अखबार में उसने एक सूचना पढ़ी, तो उसका मन और भी खिन्न हो गया। उसके पिताजी ने उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया था। इस तरह कानूनी रूप से भी परिवार से रहा-सहा रिश्ता तोड़ दिया गया। राकेश ने सोच लिया कि वह अब किसी से कोई वास्ता नहीं रखेगा।
उसी दौरान राकेश ने मध्य प्रदेश के एक इंटर कॉलेज में ‘लेक्चरर चाहिए’ का विज्ञापन पढ़ा। विषय भी अंग्रेजी था। राकेश किसी तरह इंटरव्यू देने कालेज पहुंच गया। कालेज चूंकि मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे का था, सो बहुत कम उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए आए थे। लंबे इंटरव्यू के बाद राकेश का आसानी से चयन हो गया। राकेश जब वहां से बाहर निकला, तो कमजोरी के बावजूद आत्मविश्वास से भरा था। उसे लग रहा था कि उसके अच्छे कर्मों का फल मिल गया है। राकेश ने सच्ची लगन, मेहनत और निष्ठा के साथ पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे घर गृहस्थी की गाड़ी चल निकली थी। इस बीच दो बच्चे भी हो गए। उसने कस्बे में अपना मकान भी बनवा लिया। विचारों का जब क्रम टूटा तो, सहसा उसे ध्यान आया कि रात गहरा गयी है। नगमा सो चुकी थी। हल्की बूंदबांदी जारी थी। राकेश ने उठकर बत्ती बंद कर दी और चादर ओढ़कर सो गया। सुबह-सुबह जब उसकी आंख खुली तो देखा, नगमा चाय लेकर आई है। वह कहने लगी- ‘रात को तो आप कहीं खो गए थे?’ ‘हां मोहतरमा, मैं अपने अतीत में खो गया था। क्या न्यूजपेपर नहीं आया?’ ‘आया है’, अखबार उसके हाथों में देते हुए नगमा ने कहा। अखबार देखते ही वह बोला, ‘अरे आज तो रविवार है, मुझे ध्यान ही न था’ इतने में डोरबेल बजी तो राकेश बोला, ‘देखो कोई आया है।’ नगमा ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक नौजवान खड़ा है। वह बोला, ‘क्या राकेशजी का घर यही है। वह पहले मेरठ में रहते थे।’ ‘जी हां,’ कहते हुए नगमा भीतर जाकर बोली, ‘शायद आपके कोई दोस्त आए हैं।’ अवनीश को देखते ही राकेश उससे लिपट गया और बोला, ‘अरे यार खबर कर देते, तो मैं खुद स्टेशन पर पहुंच जाता।’ ‘नहीं यार, मैं यहां किसी काम से आया था। सोचा, तुमसे मिले बगैर नहीं लौटूंगा।
नगमा ने टेबल पर पानी, चाय, नमकीन और बिस्कुट लाकर रख दिए दोनों दोस्त पुराने दिनों की यादों में खो गए। अचानक अवनीश बोला, ‘तूने एक मुस्लिम लड़की के साथ शादी की थी, यह बताओ किसने किसका धर्म ग्रहण किया?’ राकेश हंसते हुए कहा, ‘हम दोनों ने अपने-अपने धर्म छोड़ दिए हैं। हमारा किसी धर्म भगवान या अल्लाह में विश्वास नहीं रहा। हम लोग अब बिल्कुल नास्तिक हो गए हैं।’
‘आखिर धर्म ने हमें क्या दिया, सिवा ठोकरों के। सबने मुंह मोड़ लिया, इसी धर्म के कारण। भाड़ में जाए ऐसा धर्म, जो इंसान से इंसान को अलग करे, बांट दे, एक-दूसरे के खून का प्यासा बना दे। धर्म हमें दो वक्त की रोटी देने में सक्षम नहीं है। आज मैं जो भी कुछ हूं, अपनी मेहनत, निष्ठा और ईमानदारी की वजह से हूं’। अवनीश उसकी बातों का उत्तर न दे पा रहा था। राकेश आगे बोला, ‘अब मैं बहुत सुखी हूं। किसी रिश्तेदार से मेरा कोई संबंध नहीं है। सभी मतलबपरस्त हैं। मैंने तुम्हारी भाभी का नाम तक नहीं बदला है। हम अपने बच्चों को धर्म, जात-पांत और संकीर्णता से दूर रखने की कोशिश करेंगे।’ ‘इंसानियत और भाईचारा ही हमारा धर्म है।’ राकेश की बातें सुनकर अवनीश काफी देर तक सोच में डूबा रहा। दोनों मित्र देर रात तक गपशप करते रहे। राकेश का चेहरा आत्मविश्वास के साथ चमक रहा था, उस पर कहीं भी अवसाद या चिंता की लकीरें न थी-----।
अशोक मिश्र
संपादक बहुवचन,
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, गांधी हिल्स,
वर्धा-442005 (महाराष्ट्र)
मोबाइल-09422386554
ईमेल: amishrafaiz@gmail.com
badhiya
जवाब देंहटाएं