सारे रंगों वाली लड़की कल किसी ने याद दिलाया इन कविताओं को, ये 'बहुवचन अंक 41', अप्रैल-जून 2014 में प्रकाशित हुईं थीं... कविता: भरत …
हिंदी की दुनिया में बड़े लेखकों के निधन से रिक्तता - अशोक मिश्र रवीश कुमार की जिस लघु प्रेम कथा को ‘लप्रेक’ के नाम से छापा गया वह हिंदी की मु…
कहानी भीतरी सांकल बलराम अग्रवाल असगर मियां जिस समय बस से उतरे, नौ बज चुके थे । सड़क पर सन्नाटा था...गजब का सन्नाटा । उनके हाथ–पैर सुन्न–स…
आलोचकों की दृष्टि वहां तक नहीं पहुंच पाती जहां तक रचनाकारों की दृष्टि पहुंचती है - अनंत विजय यह वक्त आलोचना और आलोचकों के लिए गंभीर मंथन का है …
सातवें आसमान पर आलोचना ऊंट और गधे की शादी में ये लोग (मोहन, राकेश कमलेश्वर और राजेंद्र यादव) एक दूसरे के गीत गा रहे थे - विजय मोहन सिंह कृष्…
रैनेसाँ प्रियंवद रैनेसाँ ! इस दफा की 'बहुवचन' में जब यह लेख देखा तो लगा कि 'किस ज़माने की बात करते हो ..' लेकिन लेख प्रियंवद …