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कविता: सारे रंगों वाली लड़की - भरत तिवारी | Sare Rangon Vali Ladki - Poems Bharat Tiwari (hindi kavita sangrah)



सारे रंगों वाली लड़की

कल किसी ने याद दिलाया इन कविताओं को, ये 'बहुवचन अंक 41', अप्रैल-जून 2014 में प्रकाशित हुईं थीं... 

कविता: भरत तिवारी की कविताएं
कविता: सारे रंगों वाली लड़की - भरत तिवारी | Sare Rangon Vali Ladki - Poems Bharat Tiwari


सारे रंगों वाली लड़की (एक)

सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
आम के पेड़ में अभी–अभी जागी कोयल
धानी से रंग के बौर
सब दिख रहे हैं
उन आंखों को
जो तुम्हें देखने के लिए ही बनीं
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो
तुम्हारी सांसों का चलना
मेरी सांसों का चलना है
और अब मेरी सांसें दूभर हो रही हैं
गए दिनों के प्रेमपत्र पढ़ता हूं
जो बाद में आया वह पहले
सूख रही बेल का दीवार से उघड़ना
सिरे से देखते हुए जड़ तक पहुंचा मैं
पहले प्रेमपत्र को थामे देख रहा हूं, पढ़ रहा हूं
देख रहा हूं पहले प्रेमपत्र में दिखते प्यार को
और वहीं दिख रहा है नीचे से झांकता सबसे बाद वाला पत्र
और दूर होता प्रेम
वहां हो
यहां हो
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?




सारे रंगों वाली लड़की (दो)

सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
फिर आई
बिना–बताए–आने–वाली–दोपहर
बढ़ाती, दूरी से उपजती पीड़ा
अहाते में सूखता सा मनीप्लांट
जैसे मर ही जाएगा
जो तुम बनाती हो
उसकी बेल आम के पेड़ पर चिपकी है
पता नहीं क्यों नहीं मरा ?
नियति
और कैसे पेड़ के तने को छू गया
पत्तों का विस्तार
देखते–देखते हथेलियों से बड़ा हो गया
वेदना जब लगा कि जाएगी
स्मृतियों को खंगाल
जड़ से लगी यादें बाहर आने लगी
दर्द पुराना साथी
सहारा देता है फिर क्या धूप क्या अमावस ?
दूर गए प्रेम की खोज
मिल ही जाता है स्मृति का कोई तना
ब्रह्मंड की हथेली से बड़ा रुदन ?
कैसे मरे ये वेदना
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
सारे रंगों वाली लड़की
वृक्षों में भी हो ना ।




सारे रंगों वाली लड़की (तीन)

सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
वहां हो
यहां हो
मेरी तरह
हमारे बादलों को भी
बिना बताए ही चली गई
जो तुम गई तो खूब बरसे
जो उसके बाद नहीं ही बरसे
बड़े भालू बादल ने बताया था
जब मैं तुम्हें प्यार कर रहा होता हूं
बादल बूंदें इक्कठी कर रहा होता है
हमारी गर्मी से
बरस जाता है
तपती सड़क पर
पानी का भ्रम होता है
इंद्रधनुष नहीं –––
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
इंद्रधनुष के किसी छोर पर
पानी बरसे
तब धूल छंटे ।




सारे रंगों वाली लड़की (चार)

सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
ज्वार चढ़ी लहरें
सीने में
नहीं उतरती अब नीचे
नहीं सूखती
भीगी पलकें
रुकें ना कंपन बदन का
रह गई किनारे पर जो लहरें
वही हूं मैं
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
सूरज उतरा आंख में
डूबता जाता हूं उसमें
आ रहा है अंधेरा
लहरों के निशान
सूख निरा रेत होते
सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
समंदर हो, जलपरी हो
मेरी हो
ले जाओ मुझे
जलपरी ।




सारे रंगों वाली लड़की (पांच)

सारे रंगों वाली लड़की
कहां हो ?
तुम्हें याद है
कब मिले हम
कि हम अलग नहीं हो सकते
तुम्हें याद है
मौसम गर्मी, उमस का
सुहाना लगता है सिर्फ
सारे रंगों वाली लड़की

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