टेलीविजन पत्रकारों ने खबरों को समझना बंद कर दिया है - शैलेश (न्यूज नेशन) मीडिया की भाषा- खतरे और चुनौतियां के साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के …
आगे पढ़ें »राजेन्द्र यादव की कवितायेँ न-बोले क्षण न, कुछ न बोलो मौन पीने दो मुझे अपनी हथेली से तुम्हारी उँगलियों का कम्प... उँह, गुज़रते सै…
आगे पढ़ें »अंधेरी कोठरी मेँ रोशनदान की तरह कविता ‘हंस’ मेरा दूसरा मायका था आज राजेन्द्र जी पर जब लिखने बैठी हूँ, ऐन सुबह का वही समय है जब वे अपने …
आगे पढ़ें »राजेंद्र यादव के जाने से साहित्य जगत में जो सन्नाटा पसरा है वह हाल फिलहाल में टूटता नजर नहीं आ रहा है - हमारे समय का कबीर - अनंत विजय …
आगे पढ़ें »अनामिका की कविताएँ नारी के अस्तित्व, संघर्ष और समाज में उसकी भूमिका पर गहरी टिप्पणी करती हैं। उनकी कविता 'स्त्रियाँ' इस विषय पर एक सशक्त …
आगे पढ़ें »हाथ से फिसलती ज़मीन... तेजेन्द्र शर्मा “ग्रैण्डपा, आपके हाथ इतने काले क्यों हैं?... आपका रंग मेरे जैसा सफ़ेद क्यों नहीं है?... आप मुझ से …
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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