देश की आशा, हिन्दी भाषा - शिवानी कोहली 'अनामिका' Hindi is the language of Nation

देश की आशा, हिन्दी भाषा

शिवानी कोहली 'अनामिका'


भारत को आज़ादी मिले आज 67 वर्ष हो चुके हैं. परंतु क्या हमें सच में आज़ादी मिली है. जी नही . हमारा देश आज भी भाषा का गुलाम है. अँग्रेज़ी भाषा का. लॉर्ड मैकाले का मानना था कि भारत देश को अँग्रेज़ी भाषा के माध्यम से ही गुलाम बनाया जा सकता है. मैकाले ने अँग्रेज़ी जानने वालों को नौकरियों में प्रोत्साहन देने की पहल की. जिससे अधिक से अधिक भारतीयों का झुकाव अँग्रेज़ी भाषा को सीखने में हो गया. इसी तरह बड़ी तादात में हिन्दुस्तानी, अँग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए आगे आए. भाषा के सवाल को ले कर लॉर्ड मैकाले स्वपन दर्शी थे परंतु एक उद्देश्य के साथ. और उधर गाँधी जी का सपना था कि यदि भारतवर्ष भाषा में एक ना हो सका तो ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम को आगे नही बढ़ाया जा सकेगा. पूरे विश्व में एक भी ऐसा राष्ट्र नही है जहाँ विदेशी भाषा को शासन की भाषा बताया गया हो, सिवाए भारत के.

हज़ारों वर्षों की संस्कृति से जुड़ा है ये देश, परंतु भारतवर्ष आज भी भाषा में गुलाम है और ये गुलामी की ज़ंज़ीरें और भी घनी होती जा रही हैं. अँग्रेज़ी को इतना बढ़ावा परतंत्रता के 200 वर्षों में नही मिला जितना स्वतंत्रता के 67 वर्षों में मिल गया है और आज भी निरंतर जारी है. आज विद्यालयों में ‘क, ख, ग…’ से शुरुआत ना करके ‘A, B, C…’ सिखाई जाती है. बच्चे अँग्रेज़ी के एलफाबेट्स को रटते हैं. यहाँ तक कि बच्चों को विद्यालयों में दाखिला लेने के पहले इंटरव्यू में अँग्रेज़ी में ही उत्तर देने पड़ते हैं, कोई राइम सुनानी पड़ती है. हमारे यहाँ शिक्षा ढाँचा कुछ ऐसा हो चुका है की हिन्दी को सीखना तो दूर सिखाने वालों को भी पिछड़ा माना जाने लगा है. हिन्दी में गिनती तो आज कॉलेज के छात्रों को भी नही आती. हमें अँग्रेज़ी का अपमान नही करना है पर हां हिन्दी जो कि हमारी राष्ट्रभाषा है उसका पूरा सम्मान तो कर ही सकते हैं ना जिसकी वो हकदार है.

आज 14 सितंबर है. हिन्दी दिवस. अनेकों आयोजन होंगें जिसमें, हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए अनेकों भाषण भी दिए जाएँगे. हिन्दी की दुर्दशा पर आँसू बहाए जाएँगे, हिन्दी में काम करने की कस्में खाई जाएँगी और पता नही क्या क्या…. और ठीक अगले ही दिन ये सब भुला भी दिया जाएगा. ऐसा माना गया है कि हिन्दी तो उन लोगों की भाषा है जो अँग्रेज़ी ठीक ढंग से बोल नही पाते. पढ़े लिखे घरों में बच्चों के साथ अँग्रेज़ी में बात की जाती है और जैसे ही उनके घर में कोई निचले तबके का व्यक्ति आता है तो वो हिन्दी में बात करना ही मुनासिब समझते हैं. ऐसा माना जाता है कि हिन्दी उनकी भाषा है जिन्हे अँग्रेज़ी आती नही या फिर यूँ कहिए कि जो पढ़े लिखे लोग जिन्हें हिन्दी से कुछ ज़्यादा ही लगाव है उनकी भाषा है हिन्दी और ऐसे लोगों को पिछड़ा हुआ या फिर बेवकूफ़ माना जाता है.   

आज के युग में अँग्रेज़ी का ज्ञान होना आवश्यक है. परंतु अपनी राष्ट्र भाषा को किनारे करके नही. अँग्रेज़ी पढ़ने वाले विद्यालयों में आज हर कोई अपने बच्चे को पढाना चाहता है. सरकारी विद्यालय तो केवल उन लोगों के लिए रह गये हैं जो आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. इन विद्यालयों में सुविधाओं के नाम पर छल होता है, वज़ीफ़े के नाम पर चंदा दिया जाता है, अधिकतर अध्यापक इसे समय बिताने का साधन मात्र मानते हैं. तो फिर कैसे होगी तरक्की?

वर्तमान शिक्षा प्रणाली अँग्रेज़ी केंद्रित हो जाने से समाज में लोगों के बीच आर्थिक, वैचारिक दूरी आ रही है. स्थिति और भी बद्तर हो जाए इससे पहले हमें जाग जाना चाहिए और इस दूरी को बढ़ने से रोकना चाहिए. हमें अपनी भाषा को सुदृड बनाना चाहिए, उसे राज की, शिक्षा की, काम की और व्यवहार की भाषा बनाना चाहिए. जिससे हम विकास कर सकें और हमारा भारतवर्ष भी प्रगति की उँचाइयों को छू सके. 

आज के युवा वर्ग से, पढ़े लिखे वर्ग से, उच्च पदों पर आसीन लोगों से मेरा यही आग्रह है कि अँग्रेज़ी को सीखें, बिल्कुल सीखें, परंतु उसे अपने दिलो दिमाग़ पर राज ना करने दें क्योंकि… 

‘हिन्दी हमारी मातृभाषा है, 
मात्र एक भाषा नही.’
ईमेल: anamika1851983@yahoo.com

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