Header Ads Widget

स्वरांगी साने की 11 कविताएँ | Poems - Swaraangi Sane (hindi kavita sangrah)


कविताएँ

- स्वरांगी साने


स्वरांगी साने की 11 कविताएँ | Poems - Swaraangi Sane

1. स्वप्न यात्रा

हर बार शुरू होती है स्वप्न यात्रा
कहते हुए
सपनों का कुछ
सच नहीं होता
सपनों में कुछ
सच नहीं होता।




2. मुझे  नहीं पता

मुझे नहीं पता
वह सोलह साल बाद क्या करेगी
कैसी दिखेगी, कैसे हँसेगी
मुझे तो यह भी नहीं पता
वह कौन-सा गुलाब लगाएगी
और कौन-सा हरसिंगार झरेगा
उसके प्रेम स्वीकारने पर

वह किस वृक्ष का लेगी संबल
किस पीपल से माँगेगी मनौती
यह भी हो सकता है
वक्त से पहले ही वह सूख जाए
या उखाड़ दी जाए जड़ से ही

यदि बच गई
तो क्या उसके लिए
रह पाएगा कोई गुलमोहर
जिसके नीचे वह
हौले से कह सकेगी- प्रेम।




3. पतझड़ के विरुद्ध

सुनो बड़!
तुम्हें पूजती हैं औरतें इस मुल्क की
और तुम
पूरी करते हो सबकी मनौतियाँ

इतना तो बताओ
तुमने कहाँ से मांगी मनौती
पतझड़ के विरुद्ध
हर बार हरे होने की।






4. जिया जा सकता है ऐसे भी

रात हुई सो जाऊँ
इस समय जाग रही होगी
अमरीकी लड़की
कर रही होगी फुर्ती से काम
दौड़ा रही होगी सुई से भी तेज़ दिमाग
कंप्यूटर पर चला रही होगी अंगुलियाँ
या फिर व्यस्त होगी
कुछ पकाने-खाने में

जब होगी रात अमेरिका में
सो जाएगी वो लड़की
तब जागूँगी मैं
करूँगी फटाफट काम
झटपट चलाऊँगी हाथ
सोचूँगी एक ही समय सौ बातें
करूँगी रसोई साफ़

जब वो होगी सपनों में
मैं करूँगी काम
और जब करती है काम वो
मैं देखती हूँ सपने

5. दुनिया भी बँटी है
दो हिस्सों में
बँटे हैं दिन और रात
अलग हैं हमारे सपने हमारे काम
पूरी दुनिया
क्यों नहीं बाँट लेती सपनों को
जैसे हम दोनों ने बाँटे हैं
दुनिया भी कर सकती है यही
क्यों किसी का सपना
किसी की आँख की किरकिरी बने

सब देखें अपने सपने
करें अपने काम
सीखें दो लड़कियों से
दुनियादारी।




6. पिता- एक

पिता के साथ चली गई
एक चादर, उनके कपड़े
उनकी साइकिल
छोड़ दिया पुराना घर
वह खाट भी नहीं रही
जिस पर सोते थे पिता
अंतिम दिनों में

और ऐसी ही
कई चीज़ें मिट गईं
समझा जाता रहा
यही पर्याप्त है
उन्हें भूलने को
पर कैसे बताएँ
पिता के साथ चली गई
माँ की लाल साड़ी
भैया के खिलौने
मेरे सपने

और वे तो
अभी भी हैं
हमारे आस पास।





7. पिता-दो

पिता की उम्र क्या
उतनी जो थे हमारे साथ
या उतनी
जितनी बार हँसे साथ
या कम किये उन्होंने हमारे दुःख

पिता की उम्र आकाश जितनी
या फिर समंदर
जीवन का स्नेह-जैसे सूर्य
या मन को शांति-जैसे चंद्र
पिता की उम्र बड़ी
या उम्र से बड़े पिता

चले गए थे बिना बताए
शायद जल्दी में थे
इसलिए नहीं बता पाए तब वे अपनी उम्र

पिता की उम्र इतनी छोटी जैसे साँस
या बड़ी इतनी
जितनी आस।





8. सूने घर में बच्चे

वे लौटते हैं घर
उनके कंधों पर होता है
बोझ बस्तों का
वे खोलते हैं किवाड़
परे रखते हैं बस्ता
हावी हो जाती है तन्हाई।
उनकी थकी आँखों में
भर जाती हैं उदासी।
वे तन्हाई में करते हैं
बातें दीवारों से
सूने घर में
अक्सर बच्चे
अपने माँ-बाप की
आवाज़ तलाशते हैं ।

स्वरांगी साने
जन्म ग्वालियर में, शिक्षा इंदौर में और कार्यक्षेत्र पुणे
कार्यक्षेत्रः नृत्य, कविता, पत्रकारिता, अभिनय, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षा, आकाशवाणी पर वार्ता और काव्यपाठ
प्रकाशित कृति:  “शहर की छोटी-सी छत पर” 2002 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के कार्यक्रम में म.प्र. के महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मानित.

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशितः कादंबिनी, इंडिया टु़डे (स्त्री), साक्षात्कार, भोर, कल के लिए, आकंठ, जनसत्ता (सबरंग), शेष, वर्तमान साहित्य, जानकीपुल आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित साथ ही वैबदुनिया ने यू ट्यूब पर मेरी कविताओं को सर्वप्रथम श्रव्य-दृश्यात्मक माध्यम से प्रस्तुत किया.

कार्यानुभव:  इंदौर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र ‘प्रभातकिरण’ में स्तंभलेखन, औरंगाबाद से प्रकाशित पत्र ‘लोकमत समाचार’ में रिपोर्टर, इंदौर से प्रकाशित ‘दैनिक भास्कर’ में कला समीक्षक/ नगर रिपोर्टर, पुणे से प्रकाशित ‘आज का आनंद’ में सहायक संपादक और पुणे के लोकमत समाचार में वरिष्ठ उप संपादक

शिक्षा: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से एम. ए. (कथक) (स्वर्णपदक विजेता), बी.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य) प्रथम श्रेणी  और डिप्लोमा इन बिज़नेस इंग्लिश

संपर्क: ए-2/504, अटरिया होम्स, आर. के. पुरम् के निकट, रोड नं. 13, टिंगरे नगर, मुंजबा बस्ती के पास, धानोरी, पुणे-411015

ई-मेल: swaraangisane@gmail.com
मोबाइल : 09850804068



9. दुनिया रंगमंच है

दुनिया रंगमंच है
शेक्सपियर ने कहा था।

कितना अच्छा होता
इसी मंच पर होती तैयारी बार-बार
प्रदर्शन से पहले।

हर वह दृश्य
किया जाता दुबारा
जो हो कमज़ोर
और होती रंगीन तालीम।

बहुत अच्छा होता
जीवन के वे सारे दृश्य
जिन्हें जिया जा सकता था बेहतर
करते फिर एक बार
और काट देते उन्हें
जो नहीं कर पाए थे बेहतर

कुछ समय दे देता
यह निर्देशक भी हमें
सोचने समझने
जानने अपने किरदार को
तो क्यों मर जाता
हमारा चरित्र
हमारे भीतर

इस तरह
विफलता के साथ
दृश्य दर दृश्य
बदलता है
अंचभित करता हमें
यह कैसा
किसका नाटक है
चलता रहता है अविरत।





10. तुम्हारी चौखट से

माँ तुम्हारी चौखट से
किसी दिन
गाजे बाजे के साथ
निकल जाऊँगी बाहर
और तुम नहीं दोगी हिदायत
शाम ढले लौटने की

मेरे पराए हो जाने में
धन्य हो जाओगी तुम
गोया इसीलिए सहेजा था तुमने मुङो

मैं पराएपन के एहसास के साथ
प्रवेश करूँगी
नई दहलीज़
नई सीमा रेखा में

छिटक जाऊँगी
रंग कर्म और सृजन से
भोगूँगी नए सृजन की पीड़ा
बूँद बूँद
पसीने से सींचती
सँजोती
माँ
किसी दिन मैं भी बुढ़ा जाऊँगी।






11. जिन्हें जोड़ना होता है कठिन

माँ याद आ रहा है
वह दिन
जब मैंने रौंद डाले थे
कुछ अपने ही बनाए मिट्टी के घर
कुछ चिड़ियों के घोंसले
खोद डाली थी क्यारी
फिर किसी दिन
पकड़ लाई थी तितलियाँ
तोते को पालना चाहती थी
कुत्ते के गले में डालना चाहती थी जंजीर
 तुमने डाँटा था बहुत
नहीं तोड़ते उन चीज़ों को
जिन्हें जोड़ना होता है कठिन
कई सालों तक सोचती रही
तुमने किस पाठशाला से सीखा
अहिंसा का इतना बड़ा पाठ

मैं भी
बस थोड़ी सी धूप देकर
खिलते देखना चाहती हूँ
कोई पौधा
बोना चाहती हूँ
तुलसी के चौरे में
थोड़ी सी उजास।
...................





००००००००००००००००
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
कहानी — नदी गाँव और घर  — स्वप्निल श्रीवास्तव kahani nadi gaanv aur ghar swapnil srivastava
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy