प्रधानमंत्री के नाम चिट्ठी
- पी. चिदंबरम
प्रिय प्रधानमंत्री महोदय,
मैं एक मामूली नागरिक हूं। एक मामूली परिवार से आता हूं, मामूली पढ़ाई-लिखाई है, एक मामूली से शहर में रहता हूं और मेरी बड़ी मामूली हसरतें हैं। मुझे एहसास है कि मैं एक शिक्षक का बेटा हूं और मेरे पास बीए की डिग्री (द्वितीय श्रेणी) है, इसलिए शायद मैं औसत से ऊपर हूं। इससे बस ये पता चलता है कि औसत कितना नीचे है।
बीते हफ्ते, मुझ पर और मेरे जैसे बाकी नागरिकों पर संपादकीयों, वक्तव्यों, साक्षात्कारों, स्तंभों, ब्लॉग, ट्वीट और पता नहीं क्या-क्या बरसते रहे, और मैं बिल्कुल उलझन में हूं। मुझे लगा कि 26 मई को आपका जो पत्र अखबारों में छपा, उससे स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, लेकिन क्या कहूं, मैं और उलझन में पड़ गया हूं। इसलिए कृपया कुछ सवाल पूछने की मेरी गुस्ताखी झेल लें।
कहां हैं नौकरियां?
मेरा पहला सवाल है, अर्थव्यवस्था कैसा कर रही है? मेरे लिए और मेरे बच्चों के लिए, और मेरी गली में रहने वाले हर परिवार के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण चिंता नौकरी है। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आपकी सरकार के पहले साल के दौरान कितने रोजगार सृजित किए गए? जो संख्या मुझे दिखी, वह हर तिमाही एक लाख से कुछ ज्यादा है, यानी साल भर में कुल जमा 4 से 5 लाख रोजगार। मैंने यह भी पढ़ा कि तमिलनाडु के रोजगार कार्यालय में 85 लाख लोग रजिस्टर्ड हैं। अगर इस हिसाब से पूरे देश का हिसाब लगाएं तो क्या आप नहीं मानेंगे कि हालात बेहद चिंताजनक हैं? तो कृपया हमें नौकरियों की सच्चाई बताएं।
इसी से मेरा अगला सवाल पैदा होता है - कौन दे रहा है ये नौकरियां? यहां के एक सरकारी कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाली मेरी एक पड़ोसी ने मुझे बताया कि खेती में कोई ‘वास्तविक’ नया रोजगार पैदा नहीं हो सकता। उसे लगता है कि अगर ज्यादा से ज्यादा लोग नए कारोबार शुरू करें और बिजली या इस्पात या कार या मोबाइल फोन या किसी और चीज के ज्यादा से ज्यादा बड़े कारखाने लगें, तभी ज्यादा प्रत्यक्ष या परोक्ष रोजगार आएगा। उसने कहा कि मूल चीज ‘निवेश’ है और आपसे पूछने को कहा कि बीते साल सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के उद्यमों ने कितना पैसा निवेश किया, जब उनकी परियोजनाओं में उत्पादन शुरू हो जाएगा तो वे कितनी नई नौकरियां देने की उम्मीद कर रहे हैं और कब तक। वैसे, हमें हजारों करोड़ रुपए वाली किसी बड़ी परियोजना के उद्घाटन या भूमि पूजा के विज्ञापन अब क्यों नहीं दिख रहे जैसे कुछ साल पहले दिखते थे?
क्यों हर कोई चिंतित है?
एक छोटा कारोबार करने वाले मेरे एक रिश्तेदार ने मुझे बताया कि अब बैंक कर्ज देना पसंद नहीं करते। हाल के एक लेख में डॉ रंगराजन ने कहा कि सैकड़ों निजी और सार्वजनिक परियोजनाएं रुकी पड़ी हैं। एक पत्रकार ने मुझे बताया कि पिछले पांच महीनों में देश में बिजली की खपत ठहरी हुई है। उपभोक्ता सामग्री का उत्पादन करने वाली कंपनियां कहती हैं कि ‘सकल मांग’ हताश करने वाली है, जो मेरी समझ में नहीं आता, लेकिन मैं मानता हूं कि आप समझते होंगे। मैंने टीवी पर एक वकील को कहते सुना कि बिजली, कोयला, गैस और तेल, हवाई अड्डे, सड़क, दूरसंचार और दवाओं के क्षेत्र में काम कर रही हर बड़ी कंपनी मुकदमों में उलझी हुई है। अगर असली हालात यही हैं, तो प्रधानमंत्री जी, आप कैसे उम्मीद करते हैं कि कोई विदेशी निवेशकर्ता, या फिर भारतीय निवेशकर्ता ही, भारत में निवेश करेगा?
वित्त मंत्री की दलील यह होती है कि यह ‘विरासत में मिला है,’ लेकिन मेरे सरल सोच में, यह तो हर सरकार की किस्मत है। हर सरकार को बहुत सारी समस्याएं मिलती हैं जिन्हें सुलझाना होता है। मैं आपको याद दिलाऊं कि आप गुजरात मॉडल को (वह क्या था, मैं नहीं जानता हूं) को लागू करने और अच्छे दिन लाने के वादे पर सत्ता में लाए गए थे। बहानों के लिए कोई जगह नहीं है।
सेहत, शिक्षा, दोपहर के भोजन की योजना, पेयजल, आइसीडीएस, आरकेवीवाइ और आदिवासियों और दलितों के कल्याण के लिए आबंटित फंड में भारी कटौती से भी मैं चिंतित हूं। मैंने पढ़ा कि मुख्यमंत्रियों ने यह शिकायत की और आपके कई मंत्री भी कर रहे हैं। मुझे बताया गया कि इसके नतीजे साल के अंत में समझ में आएंगे।
एक और किस्से की गवाही ने लोगों के दिमाग में डर पैदा किया है और उनमें सरकार का भरोसा छीजा है। एक ग्रेजुएट को नौकरी नहीं मिलती और एक कामकाजी लड़की को उसके किराये के फ्लैट से बाहर कर दिया जाता है क्योंकि वे मुसलिम हैं। गैरसरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ती असहनशीलता को लेकर जूलियो रिबेरो अपनी पीड़ा जताते हैं। राज्यों में भाजपा सरकारें बीफ के उपभोग या बिक्री पर पाबंदी लगा रही हैं। क्या आप किसी खुले समाज में, और तकनीक से जुड़े संसार में, किसी चीज पर वाकई पाबंदी लगा सकते हैं, और अगर आप लगा भी सकते हैं तो कितनी चीजों - मटन, किताबों विदेश यात्राओं, डॉक्युमेंटरी, फिल्मों में अपशब्द, गैरसरकारी संगठनों - पर पाबंदी लगाएंगे? ऐसे मुद्दों पर इतनी ऊर्जा क्यों बरबाद करना जो बांटने वाले और अनुत्पादक हों?
मेरा आखिरी सवाल है, आप उस स्पष्ट बहुमत का क्या कर रहे हैं जो हमने चुनावों में आपकी पार्टी को दिया था? आपके कुछ सांसद बिल्कुल शर्मिंदगी का सबब हैं। (सियोल में भारत में पैदा होने को लेकर आपने जो भाषण दिया था, वह भी।) मैंने सोचा था कि आप अपने बहुमत का इस्तेमाल नीतियों, कार्यक्रमों और क्रियान्वयन में बदलाव लाने के लिए करेंगे, लेकिन मुझे बस आपके हाथों में सत्ता केंद्रित होती दिख रही है और काम कम बात ज्यादा नजर आ रही है। इकोनॉमिस्ट ने आपको ‘वन मैन बैंड’ बताया है जिसे नई धुन की जरूरत है। मैं आशा करता हूं कि आप अपने आलोचकों की बात सुनेंगे जो दिल से देश का कल्याण और विकास चाहते हैं।
आपका विश्वासी
एक चिंतित नागरिक।
साभार जनसत्ता
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