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कवितायेँ
- नायिका की
शैफाली 'नायिका' स्वतंत्र लेखन व अनुवाद से जुड़ी हुई हैं, माइक्रोबायोलॉजी में स्नातक हैं, हिन्दी पोर्टल 'वेबदुनिया' में तीन वर्षों तक उप-सम्पादक और ऑनलाइन समाचार पत्र 'पलपल इंडिया' में तीन वर्षों तक फीचर एडिटर रही नायिका की कवितायें और कहानियां विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. नायिका 'आकाशवाणी' एवं 'दूरदर्शन' कार्यक्रमों में संचालन भी करती रही हैं.
संपर्क: ईमेल - naayika@yahoo.in
वो दोनों चादर पर
सोये थे कुछ इस तरह
जैसे मुसल्ले पर
कोई पाक़ क़िताब खुली पड़ी हो
और खुदा अपनी ही लिखी
किसी आयत को उसमें पढ़ रहा हो...
वक्त दोपहर का
खत्म हो चला था,
डूबते सूरज का बुकमार्क लगाकर
ख़ुदा चाँद को जगाने चला गया ।
उन्हीं दिनों की बात है ये
जब दोनों सूरज के साथ
सोते थे एक साथ
और चाँद के साथ
जागते थे जुदा होकर...
दोनों दिनभर न जाने
कितनी ही आयतें लिखते रहते
एक की ज़ुबां से अक्षरों के सितारे निकलते
और दूजे की रूह में टंक जाते
एक की कलम से अक्षर उतरते
दूजे के अर्थों में चढ़ जाते ।
दुनियावी हलचल हो
या कायनाती तवाज़न (संतुलन)
हसद का भरम हो
या नजरें सानी का आलम
अदीबों के किस्से हो
या मौसीकी का चलन
बात कभी ख़ला तक गूंज जाती
तो कभी खामोशी अरहत (समाधि) हो जाती..
देखने वालों को लगता
दोनों आसपास सोये हैं
लेकिन सिर्फ खुदा जानता है
कि वो उसकी किताब के वो खुले पन्ने हैं
जिन्हें वही पढ़ सकता है
जिसकी आँखों में मोहब्बत का दीया रोशन हो...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdsYsSsK5PUFu2CGsCDh7JT8WpW-WBcTXeEH0ofe9Fzw4_KpmxWu8Bd_nV2-afDUjzLtRiv5n6YTbrkuyGFPSiTzO78rTcxuArmUzxcxFuFEnJmXl1gu2f5ZeIuOmXAtaHo5kv08G9OwvY/s1600-rw/02_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_grace-divine-art-alien-history-ufo-time-travel_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25A6_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25B0.jpg)
रेशमी धागों सी रात में
जब जिस्म उलझता है
तो खुलने लगती हैं
पोशीदा परतें रूह की
कि एक तेरे नाम की खातिर
कई जिस्मों से गुज़रा हूँ मैं
तुम मिले भी तो कहाँ
जहां जिस्म की सरहदें ख़त्म होती हैं...
तेरी तलाश में वक़्त का कोई लम्हा
जब किसी सवाल की रूह में उतरता है
तो जवाब एक ज़बान हो जाता है
जहां आंसूं के मायने मेरा दर्द
और खुशी के मायने तेरा मुस्कुराना हो जाता है
एक जवाब खुशबू में उतरा
तो मेरी मोहब्बत हरसिंगार से ढंकी सुबह की ज़मीन हो गयी
और रात रानी की तरह तेरा ज़िक्र निकल आता है
और यही जवाब जब आँखों की रौशनी में उतरता है
तो अँधेरा तेरी जुल्फें
और उजाला मेरी आरज़ू हो जाता है
कभी ये जवाब आसमान पर चढ़ता है
तो माहताब तेरी बातें
और आफताब मेरी जूस्तजूं हो जाता है
आज ये जवाब मेरी रूह में उतर आया है
तो सवाल बन बैठा है मेरे वजूद का
क्या मोहब्बत यही होती है
कि जब रूह पानी में और बदन आग में तब्दील हो जाता है
गर हाँ तो मैं फिर कहता हूँ
हां हमें मोहब्बत है ... मोहब्बत है ... मोहब्बत है ...
अब दिल में यही बात, इधर भी है, उधर भी ...
बहुत सूक्ष्म होती हैं वो बातें
लगभग अदृश्य सी...
जो स्थूल में परिवर्तित होते हुए
बदल देती है
एक पूरा रिश्ता
एक समय का टुकड़ा
कभी कभी एक पूरा जन्म ...
.
और जो स्थूल तल पर
देखते हो तुम
बड़ा सा बदलाव
जैसे चेहरे की झुर्रियां
ज्वालामुखी का फटना
और मेरा रूठ जाना ...
वो उन सूक्ष्म तलों पर हो रहे
बदलाव का ही परिणाम है
जिसे तुम्हारी आँखें देख नहीं पाती
या नज़रअंदाज़ कर जाते हो
सोचकर कि एक सांस ही तो है, कम ले लेंगे ...
और उसी आख़िरी सांस की मन्नत माँगते हो
मौत के दरवाज़े पर
सिर्फ एक सांस ही तो और चाहिए हैं
जिसे भर कर जी लूं वो आख़िरी पल
जो गँवा दिया था तेरे रूठ जाने पर
जिसे खो दिया था चुम्बन की चोरी में ...
और वो एक सांस ही तो थी
जो मेरे लबों पर छोड़ते हुए कहा था तुमने
रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार
हम ना करेंगे प्यार ...
हम ना करेंगे प्यार ...
पृथ्वी के भार जितना बोझ दिल में लिए भी
इंसान देख लेता है हवा में उड़ता सफ़ेद रेशों वाला
वो परागकण जो खोजता रहता है अपने जैसा कोई फूल ...
आँधियों के थमने पर चिड़िया फिर निकल पड़ती है
हवाओं को चीरती किसी चिड़े की तलाश में ...
बाढ़ में बिखर जाने के बाद भी
नदी नहीं छोड़ती सागर तक की अपनी राह ...
और किताब में दबे एक गुलाब के सूख जाने के बाद भी
उसकी महक ज़िंदा रहती है बरसो ...
सारी वर्जनाओं के बाद भी
आदम खा लेता है अदन के बाग़ का फल ...
आसमानी हवन और ब्रह्माण्ड की सारी हलचल के बाद भी
गूंजता रहता है अंतरिक्ष में ओंकार ...
जिस पर सवार होकर उतरती हैं कई अलौकिक कहानियां
इस लौकिक संसार में ...
दुनिया के इस कोने से उस कोने तक सारी कहानियां मेरी ही है
और उन सारी कहानियों की नायिका भी मैं हूँ
लेकिन बावजूद सारी संभावनाओं के
एक असंभव सा बयान आज मैं देती हूँ कि
तुम आग को रख लोगे सीने में,
तुम आँखों से पकड़ सकोगे पानी
हवा भी महकती रह सकती है तुम्हारी साँसों में
लेकिन मुझे कैसे पाओगे
जब मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की ...
'इंतज़ार'
बस इतना ही कहा उसने
और मैंने आसमान की तह लगाकर
भर दिया गठरी में,
ज़मीन की हर पर्त को साड़ी की पटली बनाकर
खोंस दी सूरज की पिन,
आँखों में रात का काजल लगाकर
माथे पर रख लिया चाँद,
बालों को धो लिया है सुबह की धूप से ....
मुलाक़ात के बचे पलों की उलट गिनती को
कांच की चूड़ी बनाकर
पहन लिया है हाथों में
और तोड़ रही हूँ एक चूड़ी रोज़...
जब भी मिलूंगी
गठरी से निकालकर
अपना पूरा आसमान धर दूंगी ...
कि देखो उस बादल को
आज तक बरसने नहीं दिया
जो तुम छोड़ आए थे मेरी आँखों में....
और वो सप्तऋषि के सात तारे
आज भी सातों दिन उलाहना देते हैं मुझको....
चाँद और सूरज रोज़ डूब जाते है
तुम्हारे इन्तजार में
लेकिन मैंने उस उम्मीद को डूबने नहीं दिया
जब तुमने कहा था
मैं तो ज़रूर आऊँगा एक दिन
क्या तुम कर सकोगी इंतज़ार???
जीवन का गीत
विलंबित से द्रुत में बढ़ता हुआ
जब-जब तेरे ख़याल पर आकर रुका
तो रुक गयी हर वो शै
जिसके बढ़ते रहने से
बढ़ रही थी तेरी तलाश
रुक गयी सूरज की किरण
पृथ्वी तक आने के अपने आधे सफ़र में ही
और रुक गयी महासागर सी उठती वो लहर
जो तुम्हारी खुली पीठ से गुज़रती हुई
मेरी गर्दन की नसों तक उतर जाती थी
...
उसी रुके हुए पल में
जब तुमने थामा था हाथ
तो धरती तक पहुँचने से पहले ही वो किरण
समा गयी थी मेरी आँखों में
आज भी रोशनी की वह किरण
उस ऊंची लहर से टकराती है
तो समूचे ब्रह्माण्ड में इन्द्रधनुष की
सात किरणें खिंच जाती है
उन सात किरणों में सात गाँठ लगाकर
सात जन्मों तक तेरे घर के सात फेरे लगाती हूँ
तब जाकर तेरे दुनियावी घर से सात घर दूर डेरा जमा पाती हूँ
इस जन्म का ये कैसा फेरा था
कि सातवीं बार में मेरी मांग पर आकर
सूरज ने दम तोड़ दिया
और सारी रोशनी मेरे माथे पर फ़ैल गई
कोई कहता है ये किस्मत का सूरज है
कोई कहता है ये इश्क़ का सूरज है .
मैं कहती हूँ ये उस धरती का सूरज है
जो उसकी एक किरण को पाने के लिए
दिन रात अपनी ही धुरी पर घूमती रही
और मुझे सिखाती रही घूमना
तेरी तलाश में...
सपने के टूटने से लेकर देह की टूटन तक
जो एक नाम सदा रगों में हरारत सा जलता रहा
वही हो तुम....
रात की छोटी सी सपनी से लेकर
जीवन के बड़े बड़े सपनों तक
जो एक नाम सदा नींद में उतरता रहा
वही हो तुम...
मेरे मौन की कविता से लेकर
कविताओं के मौन तक
जो एक नाम सदा गूंजता रहा
वही हो तुम...
जब तुम्हारे सम्पूरण को अपनाकर
अपने दिल को गुलज़ार किया
तो मुंह से निकल गया... गुल्लू
- देखो सब हँसते होंगे मेरी इस नादानी पर
मेरी नादानी से लेकर मेरी तथाकथित समझदारी तक
जो एक नाम सदा पथ प्रदीप रहा
वही तो हो तुम ...
तुम्ही से चुराई है मैंने अपनी कविताओं की रूह
और अपने शब्दों का पैरहन बना कर गाती फिरती हूँ
-
मोरा गोरा अंग लई ले
मोहे शाम रंग दई दे...
तुम भी कभी किसी कविता के जादुई चिराग से निकल आया करो...
तुम्हारी जगह मैं ही कह दूंगी...
क्या हुक्म है मेरे आका...
बसन्त पंचमी ... बसंत ऋतु का पांचवां दिन...
VIBGYOR का पांचवां रंग... पीला
तपते पीले सूरज की पांचवी किरण को
पंच तत्व में घोलकर
आज मैंने पंचामृत बनाया है...
और पांच दिशाओं में पांच लोगों को भोग लगाया है...
पहला भोग मेरी प्रथम माँ को
जो मेरे इस धरती पर आने के लिए प्रवेश द्वार है....
दूसरा भोग मेरी दूसरी माँ ... इस धरती माँ को
जिस पर पाँव रख कर भी उसकी नज़र में पवित्र हूँ मैं ...
तीसरा भोग मेरी मानस माँ अमृता प्रीतम को
जिसने मुझे किसी भी परिस्थिति में अकेला नहीं छोड़ा...
चौथा भोग अपने अन्दर की माँ को...
जिसने केवल प्रतीक्षा को जन्म दिया...
और पांचवा भोग सरस्वती माँ को ...
जो विद्या का पहला पाठ पढ़ाकर
हाथ में कलम थमा कर चली जा रही है...
कहकर कि जीवन के बाकी के पाठ
तुम्हें बाकी की चार माँएं पढ़ाएंगी...
और मैं पुकारती रह जाती हूँ...
ओ बसन्ती पवन पागल... ना जा रे ना जा रोको कोई...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbOzIojZ0k2r2Ek9wC0uZnIZgMCcQAg9X3HUVh5uzuKyggZaQM811B-e5ylHtAAluezpv3OgAJpmGbM1sDjpShgg1Gc_pqgfygnVt6AO3A-CsWFC5pdec1PYKoelDcb2bgeC9pNlV1FiNP/s1600-rw/10_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF_artist-jean-paul-avisse-2.jpg)
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ
बूँद भर आँखों में
सागर को उड़ेल देने का स्वप्न,
और गज भर आँचल में
वृहद समाज के लांछनों को ढोने पर भी
उसके छूट जाने का
या फट जाने का संदेह
मुझे विचलित नहीं करता,
न ही रोकता है
मेरे पैरों को
जो शांत श्वासों की थाप पर
नृत्य करते हैं बेसुध हो कर...
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ...
दो मुट्ठियों में
धरती और आकाश को भींचकर
और नाज़ुक से कंधों पर
संस्कारों में लपेटी परतंत्रता को ढोने पर भी
थक जाने का
या टूट जाने का संदेह
मुझे विचलित नहीं करता
न ही रोकता है
मेरी बाहों को
जो प्रकृति को समेट लेती हैं
जब पैर थिरकते हैं श्वासों की थाप पर...
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ...
जीवन और मृत्य के बिम्बों पर
आनंद के सूक्ष्म कणों को टिकाकर
और आत्मा की मिट्टी पर
देह के ऊग आने पर भी
पलीत नहीं होती
ना ही पतित होती है,
जहां सारे संदेहों को द्वार मिलता है
समाधान का,
जहां से सारे द्वार खुलते हैं
मुक्ति के...
उनके पास जीवन है, विज्ञान है, ताकत भी है
उनके पास जोश है, ज्ञान है, नफरत भी है
उनके पास प्यार है और परमात्मा भी है
उनके पास पानी है और आग भी है
उनके पास निर्जीव, सजीव दोनों दुनिया है
मेरे पास सिर्फ एक देह, एक आत्मा और कुछ संवेदनाएँ हैं
फिर भी वो नहीं जानते ये दुनिया कैसे चलती है
और मैं कहती हूँ मैं इश्क हूँ और दुनिया मुझसे चलती है...
संपर्क: ईमेल - naayika@yahoo.in
खुदा की क़िताब
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLQb3GJWG3nMKo68ZY7_JBTGuJKWFSYX_k7f0TqULVgVx8dn9OVMIugGtMCEAmnsSRcFbrW5r3l__fc3vdi3yIpfJYdtxE4p_huKsD8XaJpkL6NXQDApY6nJobmkdrB9qYWZFtIYR2Jv7A/s1600-rw/01_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_dante_khuda_ki_kitab.jpg)
सोये थे कुछ इस तरह
जैसे मुसल्ले पर
कोई पाक़ क़िताब खुली पड़ी हो
और खुदा अपनी ही लिखी
किसी आयत को उसमें पढ़ रहा हो...
वक्त दोपहर का
खत्म हो चला था,
डूबते सूरज का बुकमार्क लगाकर
ख़ुदा चाँद को जगाने चला गया ।
उन्हीं दिनों की बात है ये
जब दोनों सूरज के साथ
सोते थे एक साथ
और चाँद के साथ
जागते थे जुदा होकर...
दोनों दिनभर न जाने
कितनी ही आयतें लिखते रहते
एक की ज़ुबां से अक्षरों के सितारे निकलते
और दूजे की रूह में टंक जाते
एक की कलम से अक्षर उतरते
दूजे के अर्थों में चढ़ जाते ।
दुनियावी हलचल हो
या कायनाती तवाज़न (संतुलन)
हसद का भरम हो
या नजरें सानी का आलम
अदीबों के किस्से हो
या मौसीकी का चलन
बात कभी ख़ला तक गूंज जाती
तो कभी खामोशी अरहत (समाधि) हो जाती..
देखने वालों को लगता
दोनों आसपास सोये हैं
लेकिन सिर्फ खुदा जानता है
कि वो उसकी किताब के वो खुले पन्ने हैं
जिन्हें वही पढ़ सकता है
जिसकी आँखों में मोहब्बत का दीया रोशन हो...
सरहद पर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdsYsSsK5PUFu2CGsCDh7JT8WpW-WBcTXeEH0ofe9Fzw4_KpmxWu8Bd_nV2-afDUjzLtRiv5n6YTbrkuyGFPSiTzO78rTcxuArmUzxcxFuFEnJmXl1gu2f5ZeIuOmXAtaHo5kv08G9OwvY/s1600-rw/02_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_grace-divine-art-alien-history-ufo-time-travel_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25A6_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25B0.jpg)
रेशमी धागों सी रात में
जब जिस्म उलझता है
तो खुलने लगती हैं
पोशीदा परतें रूह की
कि एक तेरे नाम की खातिर
कई जिस्मों से गुज़रा हूँ मैं
तुम मिले भी तो कहाँ
जहां जिस्म की सरहदें ख़त्म होती हैं...
सिलसिला
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDUIyZ5uj3wr57KdsaMZMezLEKTf7iHgnVXpIxdb_NAL2BDvY5xZ76fVqz0k90t5p8j6uujc9hvNf3Y-hdwwe_froNiCY0GCkm7BeYXk-FFKU2_47RCLbxtgLY9ripI4VNwNfVsmCHJt5V/s1600-rw/03_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BE_silsila.jpg)
जब किसी सवाल की रूह में उतरता है
तो जवाब एक ज़बान हो जाता है
जहां आंसूं के मायने मेरा दर्द
और खुशी के मायने तेरा मुस्कुराना हो जाता है
एक जवाब खुशबू में उतरा
तो मेरी मोहब्बत हरसिंगार से ढंकी सुबह की ज़मीन हो गयी
और रात रानी की तरह तेरा ज़िक्र निकल आता है
और यही जवाब जब आँखों की रौशनी में उतरता है
तो अँधेरा तेरी जुल्फें
और उजाला मेरी आरज़ू हो जाता है
कभी ये जवाब आसमान पर चढ़ता है
तो माहताब तेरी बातें
और आफताब मेरी जूस्तजूं हो जाता है
आज ये जवाब मेरी रूह में उतर आया है
तो सवाल बन बैठा है मेरे वजूद का
क्या मोहब्बत यही होती है
कि जब रूह पानी में और बदन आग में तब्दील हो जाता है
गर हाँ तो मैं फिर कहता हूँ
हां हमें मोहब्बत है ... मोहब्बत है ... मोहब्बत है ...
अब दिल में यही बात, इधर भी है, उधर भी ...
कटी पतंग
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI9-HO1G9GCFNVLEnPA4zGUBOwEcswPemBJ7s66usmg6A4-J5FQnAm_souO-xGb5yyDce9GmxiCFb15LYPb4r9cAlgdzMIQMoqwrIq4916vmzjttFOaImyQOzApXajE6dqX-ciEMDUidTl/s1600-rw/04_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%259F%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%2597_kati_patang.jpg)
लगभग अदृश्य सी...
जो स्थूल में परिवर्तित होते हुए
बदल देती है
एक पूरा रिश्ता
एक समय का टुकड़ा
कभी कभी एक पूरा जन्म ...
.
और जो स्थूल तल पर
देखते हो तुम
बड़ा सा बदलाव
जैसे चेहरे की झुर्रियां
ज्वालामुखी का फटना
और मेरा रूठ जाना ...
वो उन सूक्ष्म तलों पर हो रहे
बदलाव का ही परिणाम है
जिसे तुम्हारी आँखें देख नहीं पाती
या नज़रअंदाज़ कर जाते हो
सोचकर कि एक सांस ही तो है, कम ले लेंगे ...
और उसी आख़िरी सांस की मन्नत माँगते हो
मौत के दरवाज़े पर
सिर्फ एक सांस ही तो और चाहिए हैं
जिसे भर कर जी लूं वो आख़िरी पल
जो गँवा दिया था तेरे रूठ जाने पर
जिसे खो दिया था चुम्बन की चोरी में ...
और वो एक सांस ही तो थी
जो मेरे लबों पर छोड़ते हुए कहा था तुमने
रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार
हम ना करेंगे प्यार ...
हम ना करेंगे प्यार ...
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUvjWuzJ7oiKJlSITXjZpZTeaamZD136T72ndlSqAhi8Sjn7PhuS5zVXDzBVf0mtpcSzMiJLi_rik42B3i-zSIrzpBN90sB0Jzi3NhNBIsWD599bluofpLF_4CDrT-5lZvL4awLrJShIVp/s1600-rw/05_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_DivineGrace_%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2588%25E0%25A4%2582_%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%2582_%25E0%25A4%2587%25E0%25A4%25B8_%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580.jpg)
इंसान देख लेता है हवा में उड़ता सफ़ेद रेशों वाला
वो परागकण जो खोजता रहता है अपने जैसा कोई फूल ...
आँधियों के थमने पर चिड़िया फिर निकल पड़ती है
हवाओं को चीरती किसी चिड़े की तलाश में ...
बाढ़ में बिखर जाने के बाद भी
नदी नहीं छोड़ती सागर तक की अपनी राह ...
और किताब में दबे एक गुलाब के सूख जाने के बाद भी
उसकी महक ज़िंदा रहती है बरसो ...
सारी वर्जनाओं के बाद भी
आदम खा लेता है अदन के बाग़ का फल ...
आसमानी हवन और ब्रह्माण्ड की सारी हलचल के बाद भी
गूंजता रहता है अंतरिक्ष में ओंकार ...
जिस पर सवार होकर उतरती हैं कई अलौकिक कहानियां
इस लौकिक संसार में ...
दुनिया के इस कोने से उस कोने तक सारी कहानियां मेरी ही है
और उन सारी कहानियों की नायिका भी मैं हूँ
लेकिन बावजूद सारी संभावनाओं के
एक असंभव सा बयान आज मैं देती हूँ कि
तुम आग को रख लोगे सीने में,
तुम आँखों से पकड़ सकोगे पानी
हवा भी महकती रह सकती है तुम्हारी साँसों में
लेकिन मुझे कैसे पाओगे
जब मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की ...
इंतज़ार
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT5hMoeTabaQc0c_xsprUiWtIH7t8rH_dAhiyh5fdkHDX8OnrMNH5ICZ2bDHU2CUbhd8-mm_LzFe5rgBMUtIB4wi3pBPVYp9MmhC-E5HV8tLZj0EXmUNGFmBcl0AR-IHKTr7U_l5Eg3ozA/s1600-rw/06_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_DivineGrace_%25E0%25A4%2587%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%259B%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0_wait.jpg)
बस इतना ही कहा उसने
और मैंने आसमान की तह लगाकर
भर दिया गठरी में,
ज़मीन की हर पर्त को साड़ी की पटली बनाकर
खोंस दी सूरज की पिन,
आँखों में रात का काजल लगाकर
माथे पर रख लिया चाँद,
बालों को धो लिया है सुबह की धूप से ....
मुलाक़ात के बचे पलों की उलट गिनती को
कांच की चूड़ी बनाकर
पहन लिया है हाथों में
और तोड़ रही हूँ एक चूड़ी रोज़...
जब भी मिलूंगी
गठरी से निकालकर
अपना पूरा आसमान धर दूंगी ...
कि देखो उस बादल को
आज तक बरसने नहीं दिया
जो तुम छोड़ आए थे मेरी आँखों में....
और वो सप्तऋषि के सात तारे
आज भी सातों दिन उलाहना देते हैं मुझको....
चाँद और सूरज रोज़ डूब जाते है
तुम्हारे इन्तजार में
लेकिन मैंने उस उम्मीद को डूबने नहीं दिया
जब तुमने कहा था
मैं तो ज़रूर आऊँगा एक दिन
क्या तुम कर सकोगी इंतज़ार???
जीवन का गीत
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0ArDXg0uDKN3rbN5QaaaAkvJ5TcSwnEh2kGXPJrTTtYdqa7iiVogwXlZxILb3xx4YhuDCl-DZpuDrYeVuReLFYu_97maYrnzYp3r9X34O3UCPKFTYYKG1exFjno5EACNfectOiMjI4HbH/s1600-rw/07_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%259C%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25A8-%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A4_venus_jivan_ka_geet.jpg)
विलंबित से द्रुत में बढ़ता हुआ
जब-जब तेरे ख़याल पर आकर रुका
तो रुक गयी हर वो शै
जिसके बढ़ते रहने से
बढ़ रही थी तेरी तलाश
रुक गयी सूरज की किरण
पृथ्वी तक आने के अपने आधे सफ़र में ही
और रुक गयी महासागर सी उठती वो लहर
जो तुम्हारी खुली पीठ से गुज़रती हुई
मेरी गर्दन की नसों तक उतर जाती थी
...
उसी रुके हुए पल में
जब तुमने थामा था हाथ
तो धरती तक पहुँचने से पहले ही वो किरण
समा गयी थी मेरी आँखों में
आज भी रोशनी की वह किरण
उस ऊंची लहर से टकराती है
तो समूचे ब्रह्माण्ड में इन्द्रधनुष की
सात किरणें खिंच जाती है
उन सात किरणों में सात गाँठ लगाकर
सात जन्मों तक तेरे घर के सात फेरे लगाती हूँ
तब जाकर तेरे दुनियावी घर से सात घर दूर डेरा जमा पाती हूँ
इस जन्म का ये कैसा फेरा था
कि सातवीं बार में मेरी मांग पर आकर
सूरज ने दम तोड़ दिया
और सारी रोशनी मेरे माथे पर फ़ैल गई
कोई कहता है ये किस्मत का सूरज है
कोई कहता है ये इश्क़ का सूरज है .
मैं कहती हूँ ये उस धरती का सूरज है
जो उसकी एक किरण को पाने के लिए
दिन रात अपनी ही धुरी पर घूमती रही
और मुझे सिखाती रही घूमना
तेरी तलाश में...
ओ गुलज़ार.. सुन ना !!!!
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghhvzu-JU1J6Q-gtsdFPPVANLnrlBKwLmFvS-v1GPvsy6AOLaNjo7Z6gP6vK30gAIbEMll6UeBy_PHf4n89lWZ_Q4LAW04ACtO44LoFotCjG0iyMyxbYKDl7kKnm-kCp8syxIgc8gqWxFX/s1600-rw/08_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%2593_%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%259B%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE_o_gulzar_sun_na.jpg)
जो एक नाम सदा रगों में हरारत सा जलता रहा
वही हो तुम....
रात की छोटी सी सपनी से लेकर
जीवन के बड़े बड़े सपनों तक
जो एक नाम सदा नींद में उतरता रहा
वही हो तुम...
मेरे मौन की कविता से लेकर
कविताओं के मौन तक
जो एक नाम सदा गूंजता रहा
वही हो तुम...
जब तुम्हारे सम्पूरण को अपनाकर
अपने दिल को गुलज़ार किया
तो मुंह से निकल गया... गुल्लू
- देखो सब हँसते होंगे मेरी इस नादानी पर
मेरी नादानी से लेकर मेरी तथाकथित समझदारी तक
जो एक नाम सदा पथ प्रदीप रहा
वही तो हो तुम ...
तुम्ही से चुराई है मैंने अपनी कविताओं की रूह
और अपने शब्दों का पैरहन बना कर गाती फिरती हूँ
-
मोरा गोरा अंग लई ले
मोहे शाम रंग दई दे...
तुम भी कभी किसी कविता के जादुई चिराग से निकल आया करो...
तुम्हारी जगह मैं ही कह दूंगी...
क्या हुक्म है मेरे आका...
ओ बसन्ती पवन पागल... ना जा रे ना जा रोको कोई...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdiB2dWCVfn_ME06io0Bw2_XRQ7ios2lYk9vY21MN3S5kj5uL96B_acCnbUi52LM2jXkgGp8izjpL5iGehyXZ7_v8pX_OvjATEYIVxKgjnjV6V02IUdQrgv_tCP6ji4HONnI5InOg5bpon/s1600-rw/09_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%2593_%25E0%25A4%25AC%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25A8_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%25B2_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2587_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258B_%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2588.jpg)
बसन्त पंचमी ... बसंत ऋतु का पांचवां दिन...
VIBGYOR का पांचवां रंग... पीला
तपते पीले सूरज की पांचवी किरण को
पंच तत्व में घोलकर
आज मैंने पंचामृत बनाया है...
और पांच दिशाओं में पांच लोगों को भोग लगाया है...
पहला भोग मेरी प्रथम माँ को
जो मेरे इस धरती पर आने के लिए प्रवेश द्वार है....
दूसरा भोग मेरी दूसरी माँ ... इस धरती माँ को
जिस पर पाँव रख कर भी उसकी नज़र में पवित्र हूँ मैं ...
तीसरा भोग मेरी मानस माँ अमृता प्रीतम को
जिसने मुझे किसी भी परिस्थिति में अकेला नहीं छोड़ा...
चौथा भोग अपने अन्दर की माँ को...
जिसने केवल प्रतीक्षा को जन्म दिया...
और पांचवा भोग सरस्वती माँ को ...
जो विद्या का पहला पाठ पढ़ाकर
हाथ में कलम थमा कर चली जा रही है...
कहकर कि जीवन के बाकी के पाठ
तुम्हें बाकी की चार माँएं पढ़ाएंगी...
और मैं पुकारती रह जाती हूँ...
ओ बसन्ती पवन पागल... ना जा रे ना जा रोको कोई...
मुक्ति
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbOzIojZ0k2r2Ek9wC0uZnIZgMCcQAg9X3HUVh5uzuKyggZaQM811B-e5ylHtAAluezpv3OgAJpmGbM1sDjpShgg1Gc_pqgfygnVt6AO3A-CsWFC5pdec1PYKoelDcb2bgeC9pNlV1FiNP/s1600-rw/10_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF_artist-jean-paul-avisse-2.jpg)
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ
बूँद भर आँखों में
सागर को उड़ेल देने का स्वप्न,
और गज भर आँचल में
वृहद समाज के लांछनों को ढोने पर भी
उसके छूट जाने का
या फट जाने का संदेह
मुझे विचलित नहीं करता,
न ही रोकता है
मेरे पैरों को
जो शांत श्वासों की थाप पर
नृत्य करते हैं बेसुध हो कर...
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ...
दो मुट्ठियों में
धरती और आकाश को भींचकर
और नाज़ुक से कंधों पर
संस्कारों में लपेटी परतंत्रता को ढोने पर भी
थक जाने का
या टूट जाने का संदेह
मुझे विचलित नहीं करता
न ही रोकता है
मेरी बाहों को
जो प्रकृति को समेट लेती हैं
जब पैर थिरकते हैं श्वासों की थाप पर...
मैं मुक्ति की आकांक्षा की परिणति हूँ...
जीवन और मृत्य के बिम्बों पर
आनंद के सूक्ष्म कणों को टिकाकर
और आत्मा की मिट्टी पर
देह के ऊग आने पर भी
पलीत नहीं होती
ना ही पतित होती है,
जहां सारे संदेहों को द्वार मिलता है
समाधान का,
जहां से सारे द्वार खुलते हैं
मुक्ति के...
दुनिया मुझसे चलती है
![कवितायेँ - नायिका की | Poems of Naayika](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSBA4KFQ7V_YlPlj5hrRusDfovzKVa8C1ydhSbHOoJwkjJz0-XPL2OD7QBJroGqwYvukDHuVEBlcEc0P5R5nL7PsEYtmNHjJBwvkEJx8T6P3yOeoySU185OFyAXrgu3u9XW3KTiRiOe_0G/s1600-rw/11_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581_%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580_Poems_of_Naayika_%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%259D%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2587_%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2588.jpg)
उनके पास जोश है, ज्ञान है, नफरत भी है
उनके पास प्यार है और परमात्मा भी है
उनके पास पानी है और आग भी है
उनके पास निर्जीव, सजीव दोनों दुनिया है
मेरे पास सिर्फ एक देह, एक आत्मा और कुछ संवेदनाएँ हैं
फिर भी वो नहीं जानते ये दुनिया कैसे चलती है
और मैं कहती हूँ मैं इश्क हूँ और दुनिया मुझसे चलती है...
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