पातर पातर मुनगा फरय
15 दिसंबर, 2013
छत्तीसगढ़ साहित्य की शान जयप्रकाश मानस की डायरी के पन्नों से रूबरू हों.
जयप्रकाश मानस
जयप्रकाश मानस
जन्म- 2 अक्टूबर, 1965, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मातृभाषा – ओडिया
शिक्षा- एम.ए (भाषा विज्ञान) एमएससी (आईटी), विद्यावाचस्पति (मानद)
प्रकाशन – देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक/लघु पत्र-पत्रिकाओं में 300 से अधिक रचनाएँ
प्रकाशित कृतियाँ-
* कविता संग्रहः- तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आँगन, अबोले के विरूद्ध
* ललित निबंध- दोपहर में गाँव (पुरस्कृत)
* आलोचना - साहित्य की सदाशयता
* साक्षात्कार – बातचीत डॉट कॉम
* बाल कविता- बाल-गीत-चलो चलें अब झील पर, सब बोले दिन निकला, एक बनेगें नेक बनेंगे
मिलकर दीप जलायें,
* नवसाक्षरोपयोगीः यह बहुत पुरानी बात है, छत्तीसगढ के सखा
* लोक साहित्यः लोक-वीथी, छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग), हमारे लोकगीत
* संपादन: हिंदी का सामर्थ्य, छत्तीसगढीः दो करोड़ लोगों की भाषा, बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र), एक नई पूरी सुबह कवि विश्वरंजन पर एकाग्र), विंहग 20 वीं सदी की हिंदी कविता में पक्षी), महत्वः डॉ.बल्देव, महत्वः स्वराज प्रसाद त्रिवेदी, लघुकथा का गढ़:छत्तीसगढ़, साहित्य की पाठशाला आदि ।
* छत्तीसगढ़ीः कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)
* विविध: इंटरनेट, अपराध और क़ानून
संपर्क
एफ-3, छग माध्यमिक शिक्षा मंडल
आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़, 492001
मो.- 9424182664
ईमेल- srijangatha@gmail.com
आप इसे सहजन, सुरजना, सुजना, सेंजन, मुरूंगा चाहे जो कह लें । हम छत्तीसगढ़िया और उड़िया लोग इसे मुनगा कहते हैं । इसके फूल, फली, पत्ती सबके सब मज़ेदार । जादू का पेड़ । बड़ी, टमाटर के साथ मां जब गांव में पकाती थी तो स्वाद के क्या कहने । छत्तीसगढ़ी में विवाह गीत में तो ये श्रीमान सदियों से विराजमान है - पातर पातर मुनगा फरय, पातर लुरय डार रे....पातर हवय समधीन छिनारी, ओकर नइये जात रे । हिंदी के प्रिय कवि त्रिलोचन जी ने तो तारीफ में एक कविता ही लिख दी है -
। मुनगा ।
इतने सारे फूल,
डालें, टहनियाँ भार से
झुकी झुकी पड़ती हैं
लगता है अब टूटीं, बस टूटीं
कहा था रहीम ने
सहिजन अति फूलै तऊ
डार पात की हानि।
बखरी में जो जनमें
उनके कई नाम होते हैं
सहिजन को मुनगा भी कहते हैं
फूल की अधिकाई से क्या हुआ
उसकी तो कहीं कोई चर्चा नहीं करता
लाँबी खाँबी फलियाँ
रसोई में पहुँचती हैं।
भई, क्या बात है ?
मुझे हाल ही में पढ़ने को मिला - कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानी 'मिल मजदूर' पर 'गरीब मजदूर' नामक फिल्म बनी थी । इसमें प्रेमचंद ने एक रोल भी किया था । फिल्म सेंसर से कई सीन काटे जाने के बाद रिलीज हुई थी । कहते हैं पूरे पंजाब में इसे देखने मजदूर निकल पड़े थे । लाहौर के इंपीरियल सिनेमा में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मिलिट्री तक बुलानी पड़ी थी । ये फिल्म जबर्दस्त हिट हुई और सरकार के लिए मुसीबत बन गई । दिल्ली में इसे देख एक मजदूर मिल मालिक की कार के आगे लेट गया । नतीजा कि इस पर प्रतिबंध लग गया ।
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