सोनमछरी: दैहिक प्रेम पर निःस्वार्थ प्रेम की जीत - सुशील कुमार भारद्वाज


 सोनमछरी: दैहिक प्रेम पर निःस्वार्थ प्रेम की जीत 

- सुशील कुमार भारद्वाज


स्त्री अस्मिता के अनछुए पहलुओं पर बेबाकी से लिखने वालों में गीताश्री का नाम अहम है. लंबे समय से पत्रकारिता एवं साहित्य से जुडी लेखिका का अनुभव फलक इतना विस्तृत है कि उन्हें सिर्फ स्त्री विमर्श या किसी और विमर्श तक में सीमित करना उचित नहीं है. वे अपने पात्रों को स्त्री–पुरुष मानने की बजाय उसे सिर्फ पात्र मानती हैं और परिस्थिति के अनुसार न्याय करती हैं. खालिस आदर्शवाद की बजाय वो मनोवैज्ञानिक यथार्थ को तवज्जो देती हैं.

गीताश्री की कहानी “सोनमछरी” चयन के अधिकार और बेमेल विवाह के बीच संकरे आर्थिक गली से गुजरती है. जहाँ एक तरफ धोखा है तो दूसरे तरफ बेबसी. किसी को बदल देने की जिद्द है तो स्वयं ही बदल जाने की नियति. कुछ श्राप का भ्रम है तो कुछ अपनी अपरिपक्वता में लिए गए निर्णय का पश्चाताप. अंत में है दैहिक प्रेम पर निःस्वार्थ प्रेम की जीत, और उद्देश्यपूर्ण जीवन.

गौर करने वाली बात है कि लेखिका पत्रकारिता में बीडी व्यवसाय एवं बीडी मजदूर पर गहन रिपोर्टिंग कर चुकी हैं. अतः संभव है कि सोनमछरी कहानी का बीजारोपण उसी अनुभव की परिणति हो. खैर कहानी फ्लैशबैक में तीव्र गति से बगैर विशेष रायता फैलाये आगे बढती है. जहाँ शंकर लड़की की बीडी बनाने की कला के बारे में जानकारी लेने के बाद ही शादी के लिए हामी भरता है. शंकर के नजरिये से शादी का मतलब है - स्त्री-पुरुष का दैहिक मिलन और बीडी बनाने के सामाजिक पेशे में ही रम कर सारे सुखों और दुखों के बीच जीवन का पूर्ण निर्वाह. जहाँ न चुहल करने के लिए अवकाश है, न ही अपने आर्थिक स्थिति को विस्तार देने की चाह है और न ही सेफ जोन से बाहर जाकर कुछ नया कर गुजरने की प्रेरणा.

भारतीय समाज में एक कहावत है “किसी लड़की की शादी में झूठ बोलना ठीक वैसे ही गलत नहीं है जैसे महाभारत में युद्धिस्थिर का झूठ बोलना”, और वे सोचते हैं कि स्त्री में वह शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति और परिस्थिति पर शासन कर सकती है. जिसके परिणाम को हम रुम्पा के उस रूप में देख सकते हैं जिसमें वो अपने मायके से लायी कहानियों में शंकर को उलझा कर शारीरिक संसर्ग से महीनों दूर ही नहीं रखती है, बल्कि बीडी बनाने के काम को छोड़ कर मछली मारने को विवश भी करती है.

घर की शांति और सफल गृहस्थ जीवन की चाह में हार मानकर खुद को बदलने की गरज से शंकर जब मछली मारने के लिए तैयार होता है तब रुम्पा के ह्रदय में समायी अंतहीन भावनाएं मुखर हो विजय घोष को पूरे जांगीपुर में फैलाने लगती हैं. उसके अंदर का नासमझ लालच इस कदर फुंफकार मारता है कि शंकर अपने पहले दैहिक सुख को पाने के आश्वासन मात्र से काल्पनिक दुनिया में खोकर बेबस मन से ही सही लेकिन गंगा के लहरों से जूझने चला जाता है.

इंसान तब सबसे ज्यादे दुखी होता है जब उससे कोई चीज छीन लिया जाय, चाहे वह वस्तु उसके नज़र में कितना ही तुच्छ क्यों न हो? रुम्पा का दुख-दारुण होना, और उसी बीडी व्यवसाय में अव्वल होना जिससे नफ़रत हो, उबकाई आती हो, नियति का रहस्योद्घाटन करता है. यदि रुम्पा अपनी जिद्द में न बहकती तो क्या यह परिस्थिति संभव था? कहा जाता है जब इंसान दुखी होता है तभी उसे प्रेम होता है, वह जीवन की सच्चाइयों से वाकिफ होता है, वह उन्नति के मार्ग की ओर बढ़ता है. लेकिन यह भी सच है कि रुम्पा को नयी खुशी भी इसी बीडी व्यवसाय में लगे अमित दास से मिलती है. जिससे मछली का उसका चयन गलत साबित होता है. लेकिन यह हमारे बदले एवं उन्मुक्त वातावरण का असर है, जहाँ छटपटाहट है मुक्ति का, उन्मुक्त जीवन जीने का, आसमान को किसी भी कीमत पर छूने का.

लेकिन बंग्लादेश की जेल से साल भर की यातना झेलने के बाद जब शंकर वापस आया तो उसकी दुनिया उजड चुकी थी, उसका दोष क्या था? नियति को उसी से सारा दगा करना था जो निर्दोष था? उसने शांति से जीवन जीना चाहा, क्या यह था उसका दोष? पत्नी की खुशी की खातिर खुद को बदल लेना गुनाह था? रुम्पा के माता-पिता ने झूठ बोला और उनकी शादी करवा दी, उसकी सजा सिर्फ शंकर को मिलनी चाहिए? रुम्पा न तो शंकर का चयन की थी न ही उसके व्यवसाय और आर्थिक स्थिति को, तो इसमें उसका क्या दोष था? रुम्पा का कष्ट तो उसके माता-पिता या उसका खुद का चयन था, लेकिन शंकर का कष्ट किसका चयन था?

माना कि बाद में बीडी का चयन उसकी नियति थी, लेकिन अमित का चयन किसका था?

क्या उसका काल्पनिक दुनियां चकनाचूर हो चुका था? क्या वो व्यावहारिक हो चुकी थी? नियति को चुनौती देने का सामर्थ उसमें आ चुका था या उससे समझौता कर चुकी थी? कहीं रुम्पा का ये यथार्थ से पलायन तो नहीं? उसमें शंकर के सवालों का सामना करने का साहस नहीं?

लेखक पटना में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं, मुख्य रूप से लघुकथा लिखते हैं और साथ ही साथ आलेख आदि भी. विभिन्न पत्र -पत्रिका समेत जानकीपुल, समालोचन, हमरंग आदि में प्रकाशित होते रहते हैं .
संपर्क: sushilkumarbhardwaj8@gmail.com
मानवीय दृष्टिकोण से जो गलत हुआ लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो रुम्पा ने अमित का चयन सही ही किया, इससे सिर्फ एक इंसान, शंकर, की जीते जी मौत हुई वर्ना तीनों जिंदगी की तबाही ही नियति थी. जब त्रेता युग में लंका से वापसी के बाद सीता का शांतिपूर्वक निर्वाह राम के साथ न हो सका तो जहरीले वातावरण वाले कलयुग में रुम्पा का निर्वाह शंकर के साथ कैसे हो पाएगा? यातनाओं एवं भावनात्मक जख्मों से छलनी हो चुका शंकर फ्रायड के सिद्धांत से शायद ही कहीं चुकेगा. आदर्शवाद और कानून कुछ भी कहे लेकिन टूट चुका विश्वास का गांठ शायद ही कभी उन्हें चैन की साँस लेने देगा. एक इंसान के तौर पर शंकर रुम्पा को एक शरीर के अलावे शायद ही कुछ और समझ पाएगा, जहाँ सहानुभूति भी कभी रिस-रिस कर ही पहुंचे. लेकिन अमित के साथ नये जीवन में व्यावहारिक रूप से उसे सबकुछ मिलने की संभावना शेष है.

गीताश्री ने गंगा किनारे बसे एक बस्ती की कहानी में जहाँ बिम्बों का यथोचित प्रयोग किया है, वहीं हिंदी और बांग्ला के शब्दों का इस्तेमाल कर एक बेहतरीन शिल्प में कहानी को प्रस्तुत करने का सफल प्रयास भी किया है.

यहाँ तक की शीर्षक “सोनमछरी” भी विरोधाभास को समेटे आकर्षण का केंद्र है जो आपको सोचने-विचारने पर मजबूर कर देता है. संभव है कुछ लोग इसके भावनात्मक पक्ष को लेकर टीका –टिप्पणी करें, लेकिन भावना हमारे जीवन से इतर है क्या? विद्वान आलोचकों ने भावना में बहने से मना किया है भावना से तो नहीं.


००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा