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देश में बह रही है बदलाव की बयार ~ राहुल देव | Rahul Dev on Increasing Speed of Changes


देश में बह रही है बदलाव की बयार

~ राहुल देव



rahul dev journalist राहुल देव पत्रकार

जिधर देखिए, मंजर महीनों में बदल रहा है। पहले दशक, साल लग जाते थे। पिछली पीढियां बीस-पच्चीस-तीस साल एक ही नौकरी, शहर, मोहल्ले और घर में काट देती थीं। आज के युवा का मन साल- दो साल में उचटने लगता है, नया मांगने लगता है- चाहे काम हो, घर हो, गाड़ी हो, फोन हो, कपड़े हों। या फिर साथी हो। तेज परिवर्तन की यह लहर हर क्षेत्र में हैं। बाजार की मिजाज़ कब बदल जाएगा कोई नहीं जानता। आज जो कम्पनी, जो उत्पाद, जो टेक्नॉलॉजी अपने अपने बाजार या क्षेत्र में राज कर रही है उसे कब, कहां से आकर एक नई कम्पनी, उत्पाद, टेक्नॉलॉजी यकायक पटक कर बेदखल कर देगी कोई नहीं कह सकता। आर्थिक चक्र अब तिमाही हो गया है। कम्पनियों के भाव, उनके प्रबंधनों का टिकाऊपन, उनकी आर्थिक सेहत सब तिमाही की गिनती पर चलते हैं। सरकारी नीतियां पहले दशकों में बदलती थीं, अब साल दो साल चल जाएं तो लगता है बड़ा स्थायित्व है। नेताओं के लोकप्रियता अंक, बड़े मुद्दों पर जनता की राय, जनमत की दिशा सब घटना से घटना, सुर्खियों से सुर्खियों और विवाद से विवाद के आधार पर ऊपर-नीचे होते रहते हैं।

सर्वेक्षण बता रहे हैं देश में अपने भविष्य के प्रति लोगों का विश्वास और आशा बढ़े हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस विश्वास के बड़े आधार हैं। भले ही उनकी सरकार के बहुत से पक्षों, सदस्यों और उपलब्धियों को लेकर संदेह-प्रश्न जग रहे हों लेकिन उनकी अपनी लोकप्रियता और देश को विकास के तीव्रतर मार्ग तथा दिशा में ले जाने की उनकी क्षमता में लोगों का विश्वास- दोनों कायम हैं। अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिति, तेल के घटे दामों ने भी निवेश बढ़ाने और व्यावसायिक सक्रियता बढ़ाने का माहौल बनाया है। नई, तकनीक-आधारित अर्थ व्यवस्था में स्टार्टअप संख्या और पहलों, सौदों, नए युवा उद्यमियों के उदय में जैसे विस्फोट हो रहा है। लगता है युवा उद्यमिता को वेंचर और एंजेल पूंजी का जो सहारा मिला है तो उसके पंख लग गए हैं। प्रधानमंत्री की विश्व पूंजी और वैश्विक, महाकाय कंपनियों को भारत की संभावनाओं को साकार करने में भागीदार बनाने के प्रयासों और उन्हें मिलती सकारात्मक प्रतिक्रियाओं ने एक नई , अभूतपूर्व व्यावसायिक ऊर्जा को तरंगित कर दिया है।

rahul dev journalist राहुल देव पत्रकार

राहुल देव

पत्रकारिता के गिरते मूल्यों और घटती साख के बीच एक ऐसा नाम जो पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों और भारतीय भाषाओं के वजूद के लिए लंबी लड़ाई लड़ रहा है। हिन्दी पत्रकारिता में राहुल देव का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। राहुल देव ने 30 साल से भी अधिक वक्त इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट ‍मीडिया में बिताया है। वर्ष 1977 में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद लोकप्रिय चैनल 'आज तक' पर एंकरिंग की जिम्मेदारी संभालने वाले राहुल देव पत्रकारिता में भाषा के स्वरूप और उसके संस्कार को लेकर बेहद संजीदा हैं। 'सम्यक फाउंडेशन' के माध्यम से वे सामाजिक विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, एचआईवी-एड्स और सामाजिक मूल्यों के प्रति भी लोगों को जागरूक करने में लगे हैं। इसके साथ ही युवाओं को समाजोन्मुखी पत्रकारिता का प्रशिक्षण देना और उन्हें शोधकार्य करने का अभ्यास भी वे बखूबी करा रहे हैं। खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू कर कई न्यूज चैनल्स के लिए बेहतरीन कार्यक्रम और महत्वपूर्ण वृत्तचित्र बनाने वाले राहुल देव ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज चैनल्स में काम किया। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। दि पायोनियर, करेंट, दि इलस्ट्रेटड वीकली, दि ‍वीक, प्रोब, माया, जनसत्ता और आज समाज में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालने के अलावा उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी लंबे समय तक काम किया। टीआरपी की जगह हर हाल में कंटेंट को प्राथमिकता देने वाले राहुल देव ने आज तक, दूरदर्शन, जी न्यूज, जनमत और सीएनईबी न्यूज चैनल में शानदार समय गुजारा है।
बदलाव केवल चीजों के बदलने की और जीवन की गति में ही नहीं है। शहरी हो या ग्रामीण, जीवन मात्र का परिदृश्य जैसे हर दिन बदल रहा है। नई चीजें, नित नई मंजिलें, नित नई इच्छाएं, आकांक्षाएं, अभीप्साएं, वासनाएं, नई कामयाबियां और उससे ज्यादा नई नाकामाबियां- ये सब मिल कर मनुष्य के मन, मस्तिष्क और शरीर पर, जीवन शैलियों पर, पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर नए तनाव और दबाव पैदा कर रहे हैं। पवित्रतम माने जाने वाले रिश्तों में ऐसी खबरों का आना लगातार बढ़ रहा है जो मानवीय रिश्तों की गरिमा पर नए सवाल खड़े करती हैं। युवाओं-किशोरों-बालकों तक में छोटी छोटी बातों पर हत्या, सहपाठी लड़कियों से सामूहिक बलात्कार, फिल्म बना कर भयादोहन करना, नशे की लत का कॉलेजों से स्कूलों पर फैलना, मोबाइल और इंटरनेट पर पसरी अपार अश्लील सामग्री का बच्चों तक आसानी से पहुंचना और उससे विकृत होते उनके मन-मस्तिष्क-व्यवहार- ये देश में बह रही तकनीकी क्रांति की बयार के अंधेरे पहलू हैं। तकनीक अगर शादियां करा रही है तो तलाकों और वैवाहिक संघर्षों का कारण भी। इस तकनीक और उसके तमाम मंचों से लगातार जुड़े रहना समूची युवा पीढ़ी का महाव्यसन बन रहा है और इस जुड़ाव से बच्चों, किशोरों, युवाओं और विवाहितों तक के निजी जीवन, स्वाश्थ्य, व्यवसाय और आपसी सम्बन्ध जहरीले और बीमार बन रहे हैं।

एक ओर टेक्नॉलॉजी ने ऐसी नई सुविधाएं हमें दे दी हैं, और देती जा रही है, जिनकी हम पांच-दस साल पहले कल्पना भी नहीं कर  सकते थे। आज बैंक जाना लगभग गैरज़रूरी हो गया है। इंटरनेट पर आप दर्जनों ऐसे काम घर बैठे, या अपने मोबाइल पर ही, कर सकते हैं जिनके लिए पहले घंटे, दिन और हफ्तों लग जाते थे। यानी सिद्धांततः हमारे पास अपने लिए या काम के लिए ज्यादा समय और सुविधा है। पर क्या यह बचने वाला समय हमारे काम आ रहा है?

क्या हम इतने तेज, गहरे, व्यापक, बहुआयामी, लगातार बदलाव के लिए भीतर से तैयार हैं? क्या हमारे तन और हमारे मन, हमारे रिश्ते, हमारी सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षिक संस्थाएं इन परिवर्तनों को ठीक से समझ कर इतने तैयार हो गए हैं कि कम से कम प्रभावित हुए, अपने पूरे होश, आन्तरिक स्थिरता और सन्तुलन को बिना खोए हुए इन परिवर्तनों के कदम से कदम मिलाते हुए जी सकें? क्या इन लगभग अनन्त, अनवरत और बहुधा अदृश्य, परिवर्तनों में से अच्छे और उपयोगी को अपना कर और घातक, खतरनाक को बाहर रख कर अपने निजी, सामूहिक, राष्ट्रीय हितों के लिए इस्तेमाल करने की प्रज्ञा, क्षमता और इच्छा हममें है?

राहुल देव


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