जयप्रकाश मानस: कवि सूरदास से मिला | Diary - 2


कल मैं कवि सूरदास से मिला 

17 दिसंबर, 2013

'पातर पातर मुनगा फरय' जयप्रकाश #मानस_डायरी - १ | From Jayprakash #Manas_Diary - 1

छत्तीसगढ़ साहित्य की शान जयप्रकाश मानस की डायरी के पन्नों से रूबरू हों.
जयप्रकाश मानस
जन्म- 2 अक्टूबर, 1965, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मातृभाषा – ओडिया 
शिक्षा- एम.ए (भाषा विज्ञान) एमएससी (आईटी), विद्यावाचस्पति (मानद)
प्रकाशन – देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक/लघु पत्र-पत्रिकाओं में 300 से अधिक रचनाएँ
प्रकाशित कृतियाँ-
* कविता संग्रहः- तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आँगन, अबोले के विरूद्ध 
* ललित निबंध- दोपहर में गाँव (पुरस्कृत)
* आलोचना - साहित्य की सदाशयता
* साक्षात्कार – बातचीत डॉट कॉम
* बाल कविता- बाल-गीत-चलो चलें अब झील पर, सब बोले दिन निकला, एक बनेगें नेक बनेंगे
मिलकर दीप जलायें, 
* नवसाक्षरोपयोगीः  यह बहुत पुरानी बात है,  छत्तीसगढ के सखा
* लोक साहित्यः लोक-वीथी, छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग), हमारे लोकगीत
* संपादन: हिंदी का सामर्थ्य, छत्तीसगढीः दो करोड़ लोगों की भाषा, बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र), एक नई पूरी सुबह कवि विश्वरंजन पर एकाग्र), विंहग 20 वीं सदी की हिंदी कविता में पक्षी), महत्वः डॉ.बल्देव, महत्वः स्वराज प्रसाद त्रिवेदी, लघुकथा का गढ़:छत्तीसगढ़, साहित्य की पाठशाला आदि । 
* छत्तीसगढ़ीः कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)
* विविध: इंटरनेट, अपराध और क़ानून

संपर्क
एफ-3, छग माध्यमिक शिक्षा मंडल
आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़, 492001
मो.- 9424182664
ईमेल- srijangatha@gmail.com

कल (डॉ. अरुण कुमार सेन स्मृति संगीत समारोह, रायपुर, 15 दिसंबर, 2014) शेखर सेन के अभिनय और संगीत की परिधि में पहुंचने की देरी भर थी । क्षण भर में ही मेरा मन, आत्मा और देह जैसे चौदहवीं सदी में जा पहुंचीं । ये सब के सब जुड़ चुके थे – भक्तिकाल के अनन्य कवि सूरदास से । मैं एकतारे की धुन में जैसे नहाता चला गया - मैंया मोरी मैं नहीं माखन खायो... भोर भयो गैयन के पाछे मधुबन मोहे पठायो । चार प्रहर बंसी बट भटक्यो । सांझ परे घर आयो । मैं सूरदास और सूरसखा श्रीकृष्ण के बारे में जितना जानता, समझता था कुछ भी याद नहीं था उस क्षण । ज्ञान और अभिमान के सारे किले ढह चुके थे । वहाँ केवल शेखर सेन थे या कि सूरदास, श्रीकृष्ण और उनका सारा समय । शेखर सेन भी कहां थे वहाँ ? वहां तो सिर्फ सूरदास थे । सूरदास के जीवन के बाल्यकाल से लेकर किशोर, युवा व वृद्धावस्था का जीवंत चलचित्र था । महाप्रभु वल्लभाचार्य से दीक्षा, स्वामी हरिदास, बादशाह अकबर के दरबारी कवि तानसेन, कृष्ण भक्त मीरा व गोस्वामी तुलसीदास जैसी समकालीन कवि विभूतियों से मुलाकात व उससे जुड़े सारे प्रसंग थे । लोदी का आंतक था । मथुरा, वृंदावन, काशी था । सदियों पहले व्यतीत हो चुका संपूर्ण समय और उसकी समूची संस्कृति दृश्यमान थी। कभी मेरा अंतर्मन खिलखिला उठता तो कभी गला भर आता, आंखे भर भर उठती, रोम रोम पुलकित हो उठता... । पिछली बार विवेकानंद जी से उन्होंने मिलाया था इस बार सूरदास से । इसे मेरा सौभाग्य ही कहिए !

क्या यह संभव है ? बेशक, संभव है जी । आप मुंबई (रायपुर) के कलापुत्र शेखर सेन के एक पात्रीय संगीतमय नाटक एक बार देख लीजिए । आपको भी बिलकुल यही अनुभव होगा । आप भी सूरदास के साथ कभी वात्सल्य रस के साक्षात् दर्शन कर लेंगे तो कभी श्रृंगार और विरह के । सूरदास के पदों व जीवन दृश्य के माध्यम से कृष्ण से आप ख़ुद ब खुद मिलकर ही लौटेंगे ।

।। शेखर सेन ।।

शेखर सेन हिन्दी नाट्य जगत के गायक, संगीतकार, गीतकार एवं अभिनेता हैं। वे अपने एक पात्रीय प्रस्तुतियों तुलसी, कबीर, विवेकानन्द और सूरदास के लिये सारी दुनिया में जाने-माने जाते हैं। वे मंच पर लगभग डेढ़ घंटे शेखर अकेले अभिनय करते हैं तो वहाँ समृद्ध अतीत के सारे दृश्य, ध्वनि, प्रकाश एकबारगी उनके नियंत्रण में आ जाते हैं । दर्शक भाव विभोर हो उठते हैं । वे वस्तुतः एक आदमी नहीं संपूर्ण अकादमी हैं ।

यूं तो हिंदी संस्कृति की पहुंच जहाँ जहाँ तक है शेखर दादा के बारे में सभी जानते हैं फिर भी यह बताना लाजिमी होगा कि शेखर सेन का जन्म एवं पालन पालन रायपुर, छतीसगढ़ में एक बंगाली परिवार में हुआ। उनके पिता डॉ. अरुण कुमार सेन इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के कुलपति थे और मां डॉ. अनीता सेन ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका और संगीतज्ञ थी। उन्हें संगीत विरासत में मिला। एकल अभिनेता शेखर सेन को संगीत विरासत में मिला है। रायपुर के रहने वाले शेखर अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। वे अपने एकल अभिनय वाले संगीत नाटकों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। ये वही शेखर सेन हैं जिनके बारे में कभी धर्मवीर भारती बड़ी आत्मीयता से धर्मयुग में लिखा करते थे । पहले ये शेखर-कल्याण (दोनों सगे भाई) की संगीतकार जोड़ी के रूप में जाने जाते हैं । समय की गड़बड़ी कहिए या हमारा संस्कृतिप्रेमियों का दुर्भाग्य कि शेखर और कल्याण का रास्ता आज अलग अलग है ।

।। उन्हें मिले पद्म सम्मान।।

शेखर दादा का सच्चा सम्मान वैसे तो यही है कि देश-विदेश के हजारों दर्शक, श्रोता जब उनके थियेटर से निकलते हैं तो जीवन भर के लिए उनको नहीं भूला पाने का मर्म लेकर फिर भी विडंबना कहिए कि शेखर दादा के रहते सत्ता की चापलूसी करनेवाले, फूहड लोग पद्म सम्मान लेते रहे हैं पर यह दादा का सौभाग्य ही है कि वे ऐसी करतूतों पर विश्वास नहीं करते । और वे ऐसा क्यों करें ? पर क्या हम छत्तीसगढ़ के संस्कृतिप्रेमियों को यह आवाज़ नहीं पहुंचानी चाहिए कि शेखर दादा का सम्मान छत्तीसगढ़ की माटी को ही गौरवान्वित करेगा । चाहे कोई आगे आये या ना आये मैं मुक्त और निष्कलुश मन से चाहता हूँ कि उन्हें इस महादेश का पद्म सम्मान अवश्य मिले । अवश्य मिलेगा । मुझे पूरा विश्वास है हमारे अग्रज श्री गिरीश पंकज वरिष्ठ पत्रकार भाई अहफाज रशीद,  संपादक संदीप तिवारी  इस दिशा में जरूर आगे आयेंगे । और आप सभी संस्कृतिकर्मी भी....

००००००००००००००००

ये पढ़ी हैं आपने?

काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है