विनोद भारदवाज संस्मरणनामा - 15 : रघुवीर सहाय | Vinod Bhardwaj on Raghuvir Sahay


रघुवीर सहाय - विनोद भारदवाज संस्मरणनामा  


विनोद भारदवाज संस्मरणनामा - 15 : रघुवीर सहाय | Vinod Bhardwaj on Raghuvir Sahay

लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, फिल्मकारों की दुर्लभ स्मृतियाँ

संस्मरण 14

कवि, उपन्यासकार, फिल्म और कला समीक्षक विनोद भारदवाज का जन्म लखनऊ में हुआ था और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की नौकरी क़े सिलसिले में तत्कालीन बॉम्बे में एक साल ट्रेनिंग क़े बाद उन्होंने दिल्ली में दिनमान और नवभारत टाइम्स में करीब 25 साल नौकरी की और अब दिल्ली में ही फ्रीलांसिंग करते हैं.कला की दुनिया पर उनका बहुचर्चित उपन्यास सेप्पुकु वाणी प्रकाशन से आया था जिसका अंग्रेजी अनुवाद हाल में हार्परकॉलिंस ने प्रकाशित किया है.इस उपन्यास त्रयी का दूसरा हिस्सा सच्चा झूठ भी वाणी से छपने की बाद हार्परकॉलिंस से ही अंग्रेजी में आ रहा है.इस त्रयी क़े  तीसरे उपन्यास एक सेक्स मरीज़ का रोगनामचा को वे आजकल लिख रहे हैं.जलता मकान और होशियारपुर इन दो कविता संग्रहों क़े अलावा उनका एक कहानी संग्रह चितेरी और कला और सिनेमा पर कई किताबें छप चुकी हैं.कविता का प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार क़े अलावा आपको संस्कृति सम्मान भी मिल चुका है.वे हिंदी क़े अकेले फिल्म समीक्षक हैं जो किसी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म जूरी में बुलाये गए.1989 में उन्हें रूस क़े लेनिनग्राद फिल्म समारोह की जूरी में चुना गया था. संस्मरणनामा में विनोद भारद्धाज चर्चित लेखकों,कलाकारों,फिल्मकारों और पत्रकारों क़े संस्मरण एक खास सिनेमाई शैली में लिख रहे हैं.इस शैली में किसी को भी उसके सम्पूर्ण जीवन और कृतित्व को ध्यान में रख कर नहीं याद किया गया है.कुछ बातें,कुछ यादें,कुछ फ्लैशबैक,कुछ रोचक प्रसंग.

संपर्क:
एफ 16 ,प्रेस एन्क्लेव ,साकेत नई दिल्ली 110017
ईमेल:bhardwajvinodk@gmail.com
विनोद भारदवाज संस्मरणनामा - 15 : रघुवीर सहाय | Vinod Bhardwaj on Raghuvir Sahay
रघुवीर सहाय से मेरी पहली मुलाकात 1968 में हुई थी. वे अपने छोटे भाई धर्मवीर सहाय की शादी के सिलसिले में दिल्ली से अपनी एम्बेस्डर गाड़ी ले कर आये थे. दिनमान के संपादक की कुर्सी पर वे अभी नये नये बैठे थे और उनका चर्चित कविता संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ अभी राजकमल प्रकाशन से आया ही था. लखनऊ के उनके पुराने मित्र कृष्णनारायन कक्कड़ के चित्रों की प्रदर्शनी में उन्हें मेरे साथ जाना था. कक्कड़जी युवा लेखकों के प्रिय थे जो अक्सर उनके रिक्शे में उनसे ज्ञान प्राप्त करते रहते थे. मैंने एक बार उनके केसर बाग वाले मकान में उन्हें कुछ अपनी कविताएं सुनाईं तो उनमें लोग शब्द कई बार सुन कर वे बोले रघुवीर सहाय को पढ़ो और अचानक मेरे साथ इतना बड़ा कवि कार में दोस्त की तरह घूम रहा था. उन्होंने मुझे हस्ताक्षर कर के अपना नया संग्रह दिया जो आज भी मेरे निजी पुस्तकालय की शान है. चित्रों को देख कर वे बोले. मुझे लगता है आज भी कला पर इमोशन हो कर ही लिखा जा सकता है. विदा लेते हुए वे बोले, दिल्ली आइए तो मेरे घर पर ही रुकिएगा. दिल्ली गया तो मामा के घर से उन्हें फ़ोन किया तो वे पहचान नहीं पाये. कई साल बाद मैं समझ पाया कि दिल्ली की व्यस्तता में हम कुछ और हो जाते हैं.

रघुवीर सहाय दिनमान में मुझसे लिखवाने लगे. मुझे जब उनका तार मिला, चॉम्स्की पर लिखिए, तो मेरे लिए यह बड़ी बात थी. बाद में जब मुझे रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, प्रयाग शुक्ल के साथ बैठ कर काम करने का मौका मिला, तो मुझे लगा मैं इतिहास बनानेवालों के बीच बैठा हूँ. पर हिंदी के इन तीन बड़े कवियों के बीच ईर्ष्या का ख़राब माहौल था. एक बार रघुवीरजी बहुत बीमार थे. श्रीकांतजी उनका हालचाल पूछने के लिए मुझे भी साथ ले गये. पहले उन्होंने अशोक होटल के बार में 2 पेग व्हिस्की के चढ़ाये, फिर आर. के. पुरम वाले रघुवीरजी के घर नर्वस हालात में पहुंचे. मैं पास में ही रहता था, इसलिए रुक गया. रघुवीरजी बोले, जिसकी वजह से बीमार पड़ा हूँ, वही हालचाल पूछने आया.

रघुवीरजी बहुत मूडी थे. दिनमान जब छपने चला जाता था, तो कभी कभी प्रेस क्लब बियर पिलाने ले चलते थे. एक बार बोले, कार चलाना सीख लीजिये. अगले दिन सुबह आठ बजे कार सिखाने आ गए. तीन दिन तक ड्राइविंग लेसन चले. उनका ज़ोर था जब बच्चे सामने आ जाएं, तो कैसे ध्यान से चलायें.

आलोचना में कवि धूमिल की मेरे नाम 27 चिट्ठियां पढ़ कर बोले, आप किसी दूसरे शहर में होते, तो आपको खूब पत्र लिखता.

एक आदमी के जीवन में नौकरी, मकान, प्रेम, विवाह से बड़ी चीज़ें क्या होती हैं? इन सब में रघुवीरजी का महत्वपूर्ण योगदान था. रघुवीरजी अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति थे. एक बार हमारे बीच हल्का सा तनाव था. अगली सुबह रघुवीरजी मिले तो बोले, मैं रात को आपके फ्लैट के नीचे खड़ा शुबर्ट की पूरी सिम्फनी सुनता रहा. सोचा आपको डिस्टर्ब न करूँ. मन उदास है ये सब लिखते हुए.

००००००००००००००००
nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज