जिसके पास लेखनी है मसि उसी की है
आराधना प्रधान
ने इतनी गहरी बात को मुझसे इतनी सहजता से कहा कि मैं अचंभित रह गया. दिल्ली की आराधना पिछले दिनों बिहार में साहित्य के लिए कुछ कर रही थीं जिस पर मेरी नज़र सोशल मिडिया के चलते पड़ी, लगा कि कोई कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा है और यही हुआ. मेरा ये मानना है कि जब कोई बधाई का पात्र हो तो हमें उसकी-बधाई को अपने पास नहीं रुकने देना चाहिए और फ़ौरन उसे उसतक पहुंचा देना चाहिए और इसीलिए उनसे बात कर की... वो बोलीं कि सारे साहित्यिक आयोजनों को बड़े शहरों में होता देख उन्हें लगा कि कोई छोटे शहरों में नहीं जा रहा है जबकि छोटे शहरों में पाठक बहुत हैं... उनकी इस बात की तसदीक मैंने भी की, क्योंकि ‘फैजाबाद पुस्तक मेला’ का प्रभारी होने के कारण मैं अभी पूरे एक हफ्ते वहाँ था और ये देख कर खुश हो रहा था कि कितने पाठक हैं मेरे इस छोटे शहर में... उसके बाद आराधना बोलीं कि जब बिहार में ऐसे आयोजन होते हैं तो बस पटना तक ही सिमट के रह जाते हैं इसलिए मैंने ये ठाना है कि ‘मसि’ के साथ ऐसे शहरों में जाऊं जहाँ पाठक को हम इसलिए अनदेखा कर रहे हैं क्योंकि वो इलीट नहीं है...
बधाई एक बार फिर आराधना जी, इस बार सारे शब्दांकन की और से...
मसि रिपोर्टर ने आराधना प्रधान की इस बड़ी मसि-यात्रा की शुरआत पर एक छोटी रपट और कुछ चित्र आप पाठकों के लिए भेजे हैं ... देखिये, पढ़िए... और बधाई अपने पास न रखियेगा
मसि-यात्रा की रपट
मसि रिपोर्टर
पटना के बाद मुजफ्फरपुर और दरभंगा में आयोजन करके मसि ने इतिहास रच दिया है. इन आयोजनों ने कई मिथों को तोड़ दिया है. एक मिथ यह है कि केंद्र के हटकर जो शहर-कस्बे हैं वहां लेखकों को कोई नहीं पहचानता, उनको कोई नहीं पढता. पंकज दुबे और प्रभात रंजन दोनों ही लीक से हटकर लिखने वाले लेखक हैं. दोनों की पुस्तकों के केंद्र में बिहार का समाज है, राजनीति है. मुजफ्फरपुर और दरभंगा के पाठकों, लेखकों, प्राध्यापकों ने जिस तरह से इस नयेपन की पहचान की, जिस तरह के ताजा हवा के इन झोंकों का स्वागत किया वह काबिले-दाद है. मसि के इन आरंभिक आयोजनों से यह बात साबित हुई है कि नई शैली, नई जमीन के लेखन के प्रति हिंदी का एक नया पाठक वर्ग तैयार हो चुका है और उन तक अगर नई पुस्तकों, लेखकों को पहुंचाया जाए तो वे खुले दिल से स्वागत करने को तैयार बैठे हैं. आवश्यकता पुस्तकों के नेटवर्क को तैयार करके आई. इन आयोजनों से एक बात यह उभर कर आई.
मसि इंक संस्था का लक्ष्य और उद्देश्य
ईमेल: inc.masi@gmail.com
मो०: +919810099618
- साहित्यिक चर्चाओं के लिए मंच प्रदान करना.
- भारत के भीतरी इलाकों में साहित्यिक(कविता, कहानी और अनुवाद) को लेकर कार्यशालाएं आयोजित करना
- लेखकों और पाठकों का एक ऐसा समूह तैयार करना जिनके साथ समय-समय पर प्रासंगिक साहित्यिक/सामजिक मुद्दों के ऊपर चर्चा का आयोजन करना
- रचना पाठ, पुस्तक विमोचन और विद्वानों के साथ चर्चा का आयोजन
- समय-समय पर वक्ताओं के साथ नुक्कड़ चर्चाओं (Speakers' Corner) के आयोजन की शुरुआत
- साहित्यिक आयोजन के लिए उसके विचार और आयोजन से जुड़ी सुविधाएँ उपलब्ध करवाना
- नए दौर के लेखन और लेखकों को समुचित मंच प्रदान करना
- बाल साहित्य को उचित महत्व दिलवाने के लिए काम करना
- सिनेमा से जुड़े पटकथा लेखकों के साथ पटकथा लेखन(फिल्म और नाटक) के लिए कार्यशालाओं का आयोजन
- डिजिटल मीडिया के दौर में लेखकों को समुचित तकनीकी दक्षता प्रदान करने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन पुस्तकों के प्रचार-प्रसार अभियान की शुरुआत
ईमेल: inc.masi@gmail.com
मो०: +919810099618
पटना में युवा लेखक प्रभात रंजन ने पंकज दुबे से बातचीत की, जिसमें पंकज के उपन्यास ‘इश्कियापा’ के बहाने प्रेम, घृणा, राजनीति के सन्दर्भों को लेकर चर्चा हुई. आज के सन्दर्भ में इन शब्दों और इनसे जुड़े विषयों का विशेष महत्व है.
मुजफ्फरपुर में ‘कोठागोई’ का विशेष सन्दर्भ जुड़ता है क्योंकि प्रभात रंजन की यह पुस्तक मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान की परम्परा से जुड़ी हुई है. लेकिन पाठकों और सभी स्थानीय समाचारपत्रों ‘दैनिक हिन्दुस्तान’, ‘दैनिक जागरण’ एवं ‘प्रभात खबर’ ने इस आयोजन से जुड़ी ख़बरों में भी दोनों पुस्तकों को समान रूप से प्रमुखता दी. उस आयोजन को शहर के मध्य में किड्स कैम्प स्कूल में आयोजित किया गया. यहाँ यशवंत पराशर, पंकज दुबे और प्रभात रंजन की बातचीत बहुत रोचक शैली में हुई. दोनों किताबों के बारे में यहाँ की बहस जीवंत रही जिसमें रश्मिरेखा सहित कई लोगों ने भाग लिया. दरभंगा में सुनने वालों की उपस्थिति सर्वाधिक रही और वहां अजीत कुमार वर्मा, जगदीश जी, किरण शंकर, जीतेन्द्र नारायण, सकल देव शर्मा समेत शहर के कई वक्ताओं ने दोनों पुस्तकों के ऊपर सारगर्भित व्याख्यान दिए.
मुज़फ्फरपुर में श्री यशवंत पराशर एवं दरभंगा में श्री नरेन्द्र ने स्थानीय आयोजकों के रूप में सहयोग दिया.
००००००००००००००००