भरत तिवारी : खोखली लेकिन दमदार दलीलें @bharattiwari


सदियाँ लगी हैं भारत के इस गंगा-जमुनी परिधान को बुनने में #शब्दांकन

सदियाँ लगी हैं भारत के इस गंगा-जमुनी परिधान को बुनने में। 



— शाम अपने एक अज़ीज़ दोस्त के साथ था। वह ऐसा यार है कि ना उसने कभी मुझे हिंदू-है की तरह देखा है और ना ही मैंने उसे मुस्लिम-है की नज़र से देखा। जैसा कि आजकल होता है – हम मौसम, महँगाई जैसी बातों को भूल देश के हालात की बातें करने लगते है – वही हुआ और बातोंबातों में ही उसने बहुत कातर नज़रों से देखते हुए बताया – "मेरा एक दोस्त जिसके साथ मैं बचपन से होली, दिवाली, ईद, दशहरा सारे त्योहार मनाता आया हूँ। हमारे घर कभी पराए नहीं हुए। उसमें पिछले कुछ महीनों में आ रहे बदलाव ने मुझे स्तब्ध किया हुआ है। कल उसने फ़ेसबुक पर एक तस्वीर पोस्ट की, एक झूठी तस्वीर – पता नहीं वो कौन है हमारे बीच जो ऐसी साज़िशें रचे जाता है – ऐसी तस्वीर जो दो धर्म के लोगों में एकदूसरे के लिए नफ़रत पैदा करने के लिए ही 'बनाई' गयी है। बात यहीं ख़त्म भी हो जाती लेकिन उस तस्वीर को पोस्ट किए जाने के साथ मेरे दोस्त ने जो बातें लिखी थीं उन्हें पढ़ने के साथ मुझे ये अहसास हुआ – वो जो हमारे बीच नफ़रत को पैदा किए जाने की कोशिश करता रहा है, अब उसकी पहुँच मेरे-तुम्हारे घर की दहलीज़ पार कर भीतर आ गयी है। "

मैं हैरान था और नहीं भी क्योंकि उसने जो कहा वैसा बहुत कुछ मैं ख़ुद महसूस कर रहा हूँ। मुझे राजनीति के वो परिवार याद आए जिसके सदस्य दो अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टी से जुड़े होते हैं। एक से अधिक दफ़ा मुझे मेरे ही सम्बन्धियों ने यह समझाने की कोशिश की है कि मुझे अपने ब्राह्मण होने पर गर्व क्यों नहीं है और क्यों मेरे मित्रों में हर सम्प्रदाय के लोग शामिल हैं। हैरानी इस बात की है यह सब पिछले कुछेक महीनों में ही हुआ है। मुझे दी जाने वाली दलीलें खोखली लेकिन दमदार होती है, अच्छा तो यह है कि मेरे संस्कार जिनमें ऐसी नफ़रत पैदा करने वाली बातें कहीं नहीं रहीं – वह मुझे उस जाल में फँसने नहीं देते। लेकिन जब भी ऐसी बातों के बारे में अकेले बैठ सोचता हूँ तो लगता है कि इन नफ़रत के बीजों से हर कोई अपना खेत नहीं बचा पाता होगा कि नफ़रत के ये बीज जो हमारी साँझा खेती में रोपे जा रहे हैं इनकी परिणती क्या होगी ?

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