Namita Gokhale
— शकुन्तला: स्मृति जाल
नमिता गोखले जी को दिल से बधाई! उनके चर्चित उपन्यास 'Shakuntala : The play of memory' 'शकुन्तला: स्मृति जाल' का नया हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिये 'वाणी प्रकाशन' को साधुवाद। ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर, कनॉट प्लेस तो कमाल कर रहा है – हिंदी को पहली बार कोई ऐसा सही संस्थान और स्थान मिला है जो लगातार उसे बढ़ावा दे रहा है। कुलमिला के 25 फ़रवरी को एक अच्छी शाम बिताने का इंतजाम है, जिसमें अनु सिंह चौधरी और उपन्यासकार आपस में और आपके साथ उपन्यास 'शकुन्तला: स्मृति जाल' पर बातचीत करेंगे और ... ... साथ ही उपन्यास के अंश की नाट्य प्रस्तुति भी होगी।
काशी के घाट पर, एक नेत्रहीन पंडित एक युवती से कहता है कि अपने पूर्वजन्म का सामना करे, वही उसे मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से बांधे हुए है। वह याद करती है कि उस जीवन में वह शकुंतला थी - उत्फुल्ल, कल्पनाशील और साहसी, पर अपनी मिथकीय नामराशि शकुंतला की भाँति उसकी नियति में भी ‘त्यागे जाने के संस्कार’ से त्रस्त रहना था।
पहली बार शकुंतला घर से भागती है, तो एक कंदरा में निवास करने वाली स्त्री की शरण लेती है, जो उसे आदि देवी के रहस्यों और शक्तियों से परिचित करवाती है। ‘‘ध्यान रखना,’’ वह कहती है, ‘‘अपने हर रूप में देवी स्वयं अपनी स्वामिनी है।’’ बाद में जीवन के आश्चर्यजनक उतार-चढ़ावों के बीच शकुंतला इस अमोल सीख का रहस्य समझती है।
जब उसके पति अपनी सुदूर यात्रा से उसके लिए एक दासी ले कर आते हैं, तो संदेह और ईर्ष्या से भर कर वह यदुरि-पतिता-का रूप धर लेती है, और अपने घर और कर्त्तव्यों से मुख फेर कर गंगा किनारे मिले एक यूनानी पथिक के साथ चल देती है। साथ-साथ वे काशी की यात्रा करते हैं, वहाँ शकुंतला रंगरेलियों में लिप्त हो जाती है, नियमों और बंधनों से मुक्त आनंदलोक में विचरती है, जोकि उसकी सदैव से इच्छा रही थी। पर शीघ्र ही एक व्याकुलता उसे इस संसार को भी त्याग देने को बाध्य कर देती है...
एकदम मौलिक और मर्मस्पर्शी उपन्यास शकुंतला एक ऐसी स्त्री के त्रासदीपूर्ण जीवन का सजीव चित्रण है, जिसकी अपनी शर्तों पर जीने की इच्छा को परिस्थितियां और उसके युग का समाज पग-पग पर कुचल देता है। नमिता गोखले ने कथानक में इतिहास, धर्म और दर्शन को असाधारण कौशल से पिरो कर एक अपूर्व उपन्यास रचा है जो अपने पुरातन युग-काल से भी आगे निकल जाता है।
स्थान: ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर, एन-81, कनॉट प्लेस, नयी दिल्ली
समय: शाम 6:15 बजे
शकुन्तला स्मृति जाल —
पहली बार शकुंतला घर से भागती है, तो एक कंदरा में निवास करने वाली स्त्री की शरण लेती है, जो उसे आदि देवी के रहस्यों और शक्तियों से परिचित करवाती है। ‘‘ध्यान रखना,’’ वह कहती है, ‘‘अपने हर रूप में देवी स्वयं अपनी स्वामिनी है।’’ बाद में जीवन के आश्चर्यजनक उतार-चढ़ावों के बीच शकुंतला इस अमोल सीख का रहस्य समझती है।
जब उसके पति अपनी सुदूर यात्रा से उसके लिए एक दासी ले कर आते हैं, तो संदेह और ईर्ष्या से भर कर वह यदुरि-पतिता-का रूप धर लेती है, और अपने घर और कर्त्तव्यों से मुख फेर कर गंगा किनारे मिले एक यूनानी पथिक के साथ चल देती है। साथ-साथ वे काशी की यात्रा करते हैं, वहाँ शकुंतला रंगरेलियों में लिप्त हो जाती है, नियमों और बंधनों से मुक्त आनंदलोक में विचरती है, जोकि उसकी सदैव से इच्छा रही थी। पर शीघ्र ही एक व्याकुलता उसे इस संसार को भी त्याग देने को बाध्य कर देती है...
एकदम मौलिक और मर्मस्पर्शी उपन्यास शकुंतला एक ऐसी स्त्री के त्रासदीपूर्ण जीवन का सजीव चित्रण है, जिसकी अपनी शर्तों पर जीने की इच्छा को परिस्थितियां और उसके युग का समाज पग-पग पर कुचल देता है। नमिता गोखले ने कथानक में इतिहास, धर्म और दर्शन को असाधारण कौशल से पिरो कर एक अपूर्व उपन्यास रचा है जो अपने पुरातन युग-काल से भी आगे निकल जाता है।
नमिता गोखले
— 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल' सह-संस्थापक, प्रख्यात लेखिका, साहित्यकार, प्रकाशक नमिता गोखले का जन्म 1956 में हुआ। कॉलेज छोड़ने के बाद नमिता गोखले ने वर्ष 1970 के अंत में 'सुपर' नमक फिल्मी पत्रिका प्रकाशित की। अंग्रेजी में अब तक उनके चार उपन्यास - ‘पारो ड्रीम्स ऑफ़ पैशन,’ 'गॉड्स, ग्रेव्ज़ एंड ग्रांडमदर', 'ए हिमालयन लव स्टोरी' और 'द बुक ऑफ़ शैडोज़' - तथा कथेतर पुस्तकें 'माउंटेन इकोज़' ,'द बुक ऑफ़ शिवा', 'द महाभारत' और 'सर्च ऑफ सीता' प्रकाशित हो चुकी हैं। पहला उपन्यास 'पारो : ड्रीम्स ऑफ पैशन' स्पष्ट' यौन मनोवृति के कारण काफी विवादों में रहा। भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध 'नीमराना अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव' और 'अफ्रीका एशिया साहित्य सम्मेलन' का श्रेय नमिता को ही जाता है। साथ ही भूटान के साहित्यिक समारोह 'माउंटेन इकोस' व नेपाल के 'काठमांडू जात्रा' की समारोह सलाहकार भी हैं।किताबें — नमिता गोखले
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