टीवी चैनल मौन हो जाएं देश बचा रहेगा #JNURow @ChakradharAshok


मीडिया शाश्वत सजीव पेटू है, जिसे चौबीस घंटे भोजन चाहिए — अशोक चक्रधर

मौन की राष्ट्रभाषा

—अशोक चक्रधर


  मीडिया शाश्वत सजीव पेटू है, जिसे चौबीस घंटे भोजन चाहिए  


— चौं रे चम्पू! हरियाना और जेएनयू पै इत्ती बहस है रई ऐं, तू काऊ चैनल पै नायं दीखौ?

— चचा, जब चीज़ें समझ में न आएं तो चैनलों पर जाने और आंखों के पनाले बहाने से क्या फ़ायदा? इस दौर को समझने के लिए मौन एक शरणगाह है। कौन क्या बोले, कौन क्या समझे, कौन नाराज़ हो जाए और कौन बेलिहाज हो जाए, इसलिए गांधीजी की बात रह-रह कर याद आती है। उन्होंने कहा था, ’प्रतिक्षण अनुभव लेता हूं कि मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना ही चाहिए तो कम से कम बोलो। एक शब्द से चले तो दो नहीं।’

— तौ तू एक सब्द ई बोल! बोल, चुप्प चौं ऐ?

— मौन भाषा संविधान की किसी अनुसूची में नहीं है। यथार्थ का गर्भ धारण करके मौनावस्था सत्य की जननी बन जाती है। जब आप कुछ करने की स्थिति न रखते हों तो मौन भाषा राष्ट्रभाषा के समकक्ष पहुंच सकती है। व्यर्थ की तुनक-तुनक से मुनक का पानी खुल जाएगा क्या? तुम किसी आवासीय परिसर में किसी की पानी की टंकी बंद करके देखो। फ़ौरन पुलिस की सहायता लेगा। पुलिस आ भी जाएगी। लेकिन, अब मुझसे और न बुलवाइए! सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को भगा दिया। जाओ हरियाणा सरकार से बात करो। कौन किससे बात करे चचा? कुछ दिन अपने आप से बात करें और मौन की निरंतर वाणी अपनाएं।

— मौन तौ मूरखन कौ गुण होयौ करै, तैंने जे बात सुनी ऐ कै नायं?  

— बोलने वालों को देख रहे हैं? किसी भी टी.वी. चैनल पर चले जाइए, वहां आपको इतना उकसाया जाएगा, इतना उकसाया जाएगा कि आप ऐसा भी कुछ कह बैठेंगे जैसा आप न भी कहना चाहें। एक शेर याद आता है, ‘ख़मोशी इसलिए दीवानगी में हमने हासिल की, ख़ुदा जाने वो क्या पूछें हमारे मुंह से क्या निकले।’ यह जो अराजकता सी दिखाई दे रही है, अचानक नहीं आई है। अभी दस दिन पहले तक इस जाट आंदोलन का कहीं गुमान नहीं था। पहले जब भी आंदोलन हुए कोई न कोई नेता होता था। सभाएं होती थीं। फिर वे पटरियों पर बैठ जाते थे। सम्पत्ति-विनाश का ऐसा तांडव पहले नहीं हुआ। देखने की बात है कि अराजकता का उकसावा कहां से आया! मेरा मौन एक ही शब्द बोल रहा है।

— कौन सौ सब्द?

— उकसावा! साम्प्रदायिक दंगे अफवाहों पर चलते आए हैं। किसी ने गाय की ख़बर उड़ा दी, किसी ने सूअर की, लेकिन अब जो तोड़-फोड़ और आगज़नी और ख़ून-खच्चर है, वह किसी अफवाह का परिणाम नहीं, उकसावे की पैदाइश है। निहित स्वार्थों के लिए हिंसा उकसाने वाले लोग मनुष्य नहीं होते। कितने शहर सुलग रहे हैं। रोहतक बरबाद हो गया। हतक रो नहीं सकते। सकते में आ गए हैं चचा। पुलिस नेताओं के घर बचाने में लगी रही। मॉल, मकान-दुकान धू-धू कर जलते रहे। आग लगाने वाले को ऐसा ही मजा आता है जैसा कि रामलीला में रावण को जलता देख कर। कहां है सीसीटीवी फुटेज?

— मिल गई तौ गुंडन ते जादा गरीब ई पकरे जामिंगे।

— सो तो ठीक है चचा! आरक्षण कोई गलत बात है, मैं ये नहीं मानता, क्योंकि हमारे देश में गरीबी है, असमानता है। उन समाजों को जो सचमुच पिछड़े हुए हैं, उन्हें आरक्षण दिया जाना न्यायसंगत है, लेकिन बहुत सारे किन्तु-परन्तु हैं। आरक्षण उन लोगों को भी मिलने वाला है, जिनकी आमदनी छ: लाख सालाना है। अंतर्विरोध इतने ज़्यादा हैं कि अगर आप मौन रहने के कारण मूर्ख मान लिए जाएं तो क्या किया जा सकता है। मौर्ख्य हमारे चिंतन की धारा बनता जा रहा है। वह संस्थान जो सर्वाधिक आईएएस, आईपीएस और आईएफएस देने वाला संस्थान है, वह देशद्रोहियों का अड्डा माना जाने लगा है। देशद्रोही हैं भी या नहीं, कैसे कहूं? ग़लतियों की सानुपातिक परीक्षा होनी चाहिए। मीडिया शाश्वत सजीव पेटू है, जिसे चौबीस घंटे भोजन चाहिए। परस्पर गलाकाट स्पर्धा! अगर एक का पेट नहीं भरा तो वह दूसरे से ज़्यादा नीचे उतरकर बात करेगा। ये चैनल अगर मौन हो जाएं न चचा, तो ये देश रहेगा बचा।

— फिर राष्ट्रपती कौ भासन कैसै सुनैगौ?

— ये भी है। सबका साथ सबका विकास, युवाओं को रोज़गार, दो हज़ार बाईस तक सबको घर। सबको बिजली। सबको सड़क। संसद में नो हंगामा। आमीन! बीस स्मार्ट सिटी बनेंगे। आमीन! इक्कीसवां रोहतक भी हो। फिलहाल मौनम् शरणम् गच्छामि!

००००००००००००००००



nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
एक स्त्री हलफनामा | उर्मिला शिरीष | हिन्दी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari