व्यंग —घोड़ा की टांग पे, जो मारा हथौड़ा
Arifa Aris' satire
बचपन में गाय पर निबन्ध लिखा था। दो बिल्ली के झगड़े में बन्दर का न्याय देखा था। गुलजार का लिखा गीत ‘काठी का घोड़ा, घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा’ भी मिलजुलकर खूब गाया था। लेकिन ये क्या घोड़े की दुम पर, हथौड़ा नहीं मारा गया बल्कि उसकी टांग तोड़ी गयी। देखो भाई दाल में कुछ भी काला नहीं है, पूरी की पूरी दाल सफ़ेद है।
बहुत दिनों से महसूस हो रहा है कि प्राचीन किस्सागोई और प्राचीन प्रतीक अब गुजरे ज़माने की बात नहीं है। ये तो भला हो हमारे बुजुर्गों का जिनकी कही हुई बात समय-समय पर याद आ जाती है कि बड़ों की कही हुई बात और घर में रखी हुई वस्तु, कभी न कभी काम आ ही जाती है। इसीलिए आज फिर से प्राचीन इतिहास से घोड़े को निकाला गया है। देखो भाई जब वर्तमान में कोई हीरो न हो जो अपने समय का प्रतिनिधित्वकर सके तभी तो इतिहास से आपने अपने गिरोह के लिए ऐतिहासिक महापुरुष या प्रतीक तो लाने ही पड़ते हैं ।
मुझे ऐसा लगता है कि इतिहास में दबे उन सभी पात्रों और प्रतीकों को निकलने का सही समय आ गया है। जब गाय माता, भारत माता की जय और देशद्रोह जैसे मुद्दे फीके पड़ने लगेंगे तो घोड़े को बाहर निकालना तो पड़ेगा ही। आप जानते ही हैं कि यह साधारण घोड़ा नहीं है- जिताऊ घोड़ा है, कमाऊ घोड़ा है, राज्य को जीतने वाला घोड़ा है। गाय माता को अपने हाल पर इसलिए छोड़ दिया गया है ताकि उसको जब चाहे घर लाया जा सके।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, पुस्तक समीक्षा, कविता का प्रकाशन
ईमेल: arifa.avis@gmail.com
घोड़े को तभी छोड़ा जाता है जब दिग्विजय करनी हो, अश्वमेघ करना हो। अपनी पताका को लहराना हो। सब जानते हैं कि जब घोड़ा दौड़ता है तो उसके साथ गधे, जेबरा, टट्टू और खच्चर भी दौड़ते हैं। रेस में जीतता घोड़ा ही है। घोड़े को जिताने के लिए घुड़सवार क्या नहीं करता, सालभर उसकी सेवा करता, समय आने पर रेस में लगा देता है। खूब पैसा लगवाया जाता है। पैसा लगाने वाले चूँकि रेस में दौड़ने वाले सभी घोड़ों पर पैसा लगाते हैं। हारे या जीते, महाजन को सभी से भरपूर पैसा बनाने का मौका मिलता है। समय समय पर रेस में दौड़ने वाले घोड़ों को सेना में भर्ती कर लिया जाता है। लड़ाई लड़ने के लिए भी और जब राजा हार रहा हो तब भी उसी घोड़े का इस्तेमाल होता है।
घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा जा चुका है। अश्वमेघ यज्ञ की पूरी तयारी हो चुकी है। अश्व नदी के तट पर अश्वमेघ नगर बसाया जा चुका है। बस नगर के राजा का घोषित होना बाकी है। पूरी दुनिया यह अच्छी तरह से जानती है अमृत मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक उच्च अश्व घोड़ा भी निकला था। देहरादून में जो घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा गया है। वह भी अमृत के समान है। उसके विजयी होने का मुझे लेश मात्र भी संशय नहीं है।
चूँकि घोड़े कभी-कभी बेलगाम भी हो जाते है शायद इसीलिए घोड़े की टांग तोड़ी गयी है। भूल चूक होने पर लंगड़े घोड़े की दुहाई दी जा सके। इसका जानवरों की संवेदना से बिलकुल भी न जोड़ा जाये। कुत्ता, चूहा, हाथी बैल आदि भी अब अपने अच्छे दिन आने की बाट जोह रहे हैं। मुझे यकीन है, अगर सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिन इनके भी अच्छे ही होंगे।
बहुत दिनों से महसूस हो रहा है कि प्राचीन किस्सागोई और प्राचीन प्रतीक अब गुजरे ज़माने की बात नहीं है। ये तो भला हो हमारे बुजुर्गों का जिनकी कही हुई बात समय-समय पर याद आ जाती है कि बड़ों की कही हुई बात और घर में रखी हुई वस्तु, कभी न कभी काम आ ही जाती है। इसीलिए आज फिर से प्राचीन इतिहास से घोड़े को निकाला गया है। देखो भाई जब वर्तमान में कोई हीरो न हो जो अपने समय का प्रतिनिधित्वकर सके तभी तो इतिहास से आपने अपने गिरोह के लिए ऐतिहासिक महापुरुष या प्रतीक तो लाने ही पड़ते हैं ।
मुझे ऐसा लगता है कि इतिहास में दबे उन सभी पात्रों और प्रतीकों को निकलने का सही समय आ गया है। जब गाय माता, भारत माता की जय और देशद्रोह जैसे मुद्दे फीके पड़ने लगेंगे तो घोड़े को बाहर निकालना तो पड़ेगा ही। आप जानते ही हैं कि यह साधारण घोड़ा नहीं है- जिताऊ घोड़ा है, कमाऊ घोड़ा है, राज्य को जीतने वाला घोड़ा है। गाय माता को अपने हाल पर इसलिए छोड़ दिया गया है ताकि उसको जब चाहे घर लाया जा सके।

आरिफा एविस
हिंदी पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकविभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, पुस्तक समीक्षा, कविता का प्रकाशन
ईमेल: arifa.avis@gmail.com
घोड़े को तभी छोड़ा जाता है जब दिग्विजय करनी हो, अश्वमेघ करना हो। अपनी पताका को लहराना हो। सब जानते हैं कि जब घोड़ा दौड़ता है तो उसके साथ गधे, जेबरा, टट्टू और खच्चर भी दौड़ते हैं। रेस में जीतता घोड़ा ही है। घोड़े को जिताने के लिए घुड़सवार क्या नहीं करता, सालभर उसकी सेवा करता, समय आने पर रेस में लगा देता है। खूब पैसा लगवाया जाता है। पैसा लगाने वाले चूँकि रेस में दौड़ने वाले सभी घोड़ों पर पैसा लगाते हैं। हारे या जीते, महाजन को सभी से भरपूर पैसा बनाने का मौका मिलता है। समय समय पर रेस में दौड़ने वाले घोड़ों को सेना में भर्ती कर लिया जाता है। लड़ाई लड़ने के लिए भी और जब राजा हार रहा हो तब भी उसी घोड़े का इस्तेमाल होता है।
घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा जा चुका है। अश्वमेघ यज्ञ की पूरी तयारी हो चुकी है। अश्व नदी के तट पर अश्वमेघ नगर बसाया जा चुका है। बस नगर के राजा का घोषित होना बाकी है। पूरी दुनिया यह अच्छी तरह से जानती है अमृत मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक उच्च अश्व घोड़ा भी निकला था। देहरादून में जो घोड़ा अश्वमेघ के लिए छोड़ा गया है। वह भी अमृत के समान है। उसके विजयी होने का मुझे लेश मात्र भी संशय नहीं है।
चूँकि घोड़े कभी-कभी बेलगाम भी हो जाते है शायद इसीलिए घोड़े की टांग तोड़ी गयी है। भूल चूक होने पर लंगड़े घोड़े की दुहाई दी जा सके। इसका जानवरों की संवेदना से बिलकुल भी न जोड़ा जाये। कुत्ता, चूहा, हाथी बैल आदि भी अब अपने अच्छे दिन आने की बाट जोह रहे हैं। मुझे यकीन है, अगर सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिन इनके भी अच्छे ही होंगे।
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1 टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2016) को "ईर्ष्या और लालसा शांत नहीं होती है" (चर्चा अंक - 2297) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'