आइए!
देश के विवेक, लोकतंत्र और साझा संस्कृति पर हो रहे प्रहारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं
रचने और सोचने वाले जागरूक लोग एकजुट हों और अपना इक़बाल बुलंद करें
तारीख़: अप्रैल 8, 2016
समय: दोपहर 2:30 बजे से
स्थान: मावलंकर हॉल, कांस्टीट्यूशन क्लब, रफ़ी मार्ग, नई दिल्ली
बात असहिष्णुता से बहुत आगे बढ़ गई है। नागरिकों पर ठेठ राजद्रोह मढ़ा जा रहा है, असहमति को कुचला जा रहा है; सरकारी मशीनरी का बेतरह दुरुपयोग करते हुए बौद्धिक गतिविधियों, अर्थात अभिव्यक्ति, विचार और वाद-विवाद-संवाद के आयोजनों के विरुद्ध जैसे कोई मुहिम व्याप्त है; विश्वविद्यालयों को बहुलता, मुक्त ज्ञान और आज़ाद ख़यालों के केंद्र बने रहने पर भी उन्हें तकलीफ़ है; बौद्धिक जिज्ञासा, असहमति और विरोध के इन केंद्रों का अवमूल्यन किया जा रहा है। इस सब से देश भर में भय, दबाव, धमकियों का माहौल खड़ा कर दिया गया है। कुचालों से लोकतांत्रिक, कानूनी और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को हड़पते हुए भारतवर्ष, उसकी परंपरा और संस्कृति पर एक नितांत संकीर्ण और इकहरा रुख़ थोपा जा रहा है। हम इस रुख़, उसके भयावह आशयों और उसके तौर-तरीकों को आँखें मूँद कर देश पर हावी नहीं होने दे सकते। इसलिए कि हमें अपने देश, उसकी बहुलतावादी संस्कृति व परंपरा, नागरिकों की अपार संभावनाओं व क्षमताओं और उनके अतीत और संघर्षों से लगाव और सरोकार है।
'प्रतिरोध' के हक़ और जज़्बे को जारी रखते हुए हम - यानी हम और आप - 8 अप्रैल, 2016 (शुक्रवार) को फिर उसी स्थान पर जमा होने जा रहे हैं। आपको आना है। ...
आइए, कि आवाज़ उठाने का हक़ अदा करें।
वक्ता : कृष्णा सोबती, हरबंस मुखिया, कांचा इलैया, कुमार प्रशांत, गौहर रज़ा, सिद्धार्थ वरदराजन, वृंदा ग्रोवर, शोमाचौधरी, डोंथा प्रशांत (हैदराबाद विश्व.), राकेश शुक्ल (एफ़टीआइआइ), ऋचा सिंह (इलाहाबाद विश्व.), शेहला रशीद (जेएनयू)
निवेदक
अशोक वाजपेयी, ओम थानवी, एमके रैना, अपूर्वानंद, वन्दना राग और आप
समय: दोपहर 2:30 बजे से
स्थान: मावलंकर हॉल, कांस्टीट्यूशन क्लब, रफ़ी मार्ग, नई दिल्ली
बात असहिष्णुता से बहुत आगे बढ़ गई है। नागरिकों पर ठेठ राजद्रोह मढ़ा जा रहा है, असहमति को कुचला जा रहा है; सरकारी मशीनरी का बेतरह दुरुपयोग करते हुए बौद्धिक गतिविधियों, अर्थात अभिव्यक्ति, विचार और वाद-विवाद-संवाद के आयोजनों के विरुद्ध जैसे कोई मुहिम व्याप्त है; विश्वविद्यालयों को बहुलता, मुक्त ज्ञान और आज़ाद ख़यालों के केंद्र बने रहने पर भी उन्हें तकलीफ़ है; बौद्धिक जिज्ञासा, असहमति और विरोध के इन केंद्रों का अवमूल्यन किया जा रहा है। इस सब से देश भर में भय, दबाव, धमकियों का माहौल खड़ा कर दिया गया है। कुचालों से लोकतांत्रिक, कानूनी और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को हड़पते हुए भारतवर्ष, उसकी परंपरा और संस्कृति पर एक नितांत संकीर्ण और इकहरा रुख़ थोपा जा रहा है। हम इस रुख़, उसके भयावह आशयों और उसके तौर-तरीकों को आँखें मूँद कर देश पर हावी नहीं होने दे सकते। इसलिए कि हमें अपने देश, उसकी बहुलतावादी संस्कृति व परंपरा, नागरिकों की अपार संभावनाओं व क्षमताओं और उनके अतीत और संघर्षों से लगाव और सरोकार है।
'प्रतिरोध' के हक़ और जज़्बे को जारी रखते हुए हम - यानी हम और आप - 8 अप्रैल, 2016 (शुक्रवार) को फिर उसी स्थान पर जमा होने जा रहे हैं। आपको आना है। ...
आइए, कि आवाज़ उठाने का हक़ अदा करें।
वक्ता : कृष्णा सोबती, हरबंस मुखिया, कांचा इलैया, कुमार प्रशांत, गौहर रज़ा, सिद्धार्थ वरदराजन, वृंदा ग्रोवर, शोमाचौधरी, डोंथा प्रशांत (हैदराबाद विश्व.), राकेश शुक्ल (एफ़टीआइआइ), ऋचा सिंह (इलाहाबाद विश्व.), शेहला रशीद (जेएनयू)
निवेदक
अशोक वाजपेयी, ओम थानवी, एमके रैना, अपूर्वानंद, वन्दना राग और आप
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