लगा दो अशोक चक्रधर की जीत गी छन्नो | Ashok Chakradhar


...आपका घोड़ा ऐंड़ता हुआ पड़ौसी के खेत में चराई करने लगे तब तो दूसरे की आज़ादी का हनन हो जाएगा। अपने घोड़े को अस्तबल में बांधकर नहीं रखा तो पड़ौसी आपके बल को अस्त करने आ जाएगा 
लगा दो अशोक चक्रधर की जीत गी छन्नो | Ashok Chakradhar

कवि के घोड़े

— अशोक चक्रधर




चौं रे चम्पू! आजकल्ल हर चैनल पै कबियन की बहार आय रई ऐ! तू चौं नायं दीखौ?


मैं उस चैनल पर था जिसे आप नहीं देखते हैं, जबकि आप स्वयं एक किसान हैं। डीडी किसान चैनल! ग्यारह कवि थे। मैंने संचालन किया था। सत्तर-अस्सी के दशक का ‘कृषि-दर्शन’ याद आ गया। ’कृषि-दर्शन’ के प्रोड्यूसर चौधरी रघुनाथ सिंह मुझे ख़ूब बुलाया करते थे। वहां सुनाओ कुछ भी, लेकिन प्रारम्भ में सम्बोधन करना ज़रूरी होता था ’किसान भाइयो और बहनो’। ’कृषि-दर्शन’ के कार्यक्रमों को सिर्फ़ किसान नहीं, वे सभी देखते थे जिनके पास टेलीविजन सैट होता था। देखने के लिए कोई और विकल्प तो होता ही नहीं था। टीवी ख़रीदा है, पैसे वसूल करने हैं, तो फिर देखो। भारत में दूरदर्शन एकमात्र सर्वसुलभ टीवी चैनल हुआ करता था। जहां तक किसानों की बात है, किसानों पर टीवी सैट होते ही कहां थे। एक टीवी गांव के पंचायतघर में रखवा दिया जाता था, वह भी रख-रखाव के अभाव में प्रायः ख़राब। मेरी एक फ़िल्म ‘जीत गी छन्नो’ चौधरी साहब ने सौ से ज़्यादा बार दिखाई होगी। समय-सीमा के कारण प्रारम्भ और अंत के क्रेडिट-टाइटिल्स उड़ा दिए जाते थे। यानी, अपना नाम आता ही नहीं था। लोग समझते थे कि दूरदर्शन का इनहाउस प्रोडक्शन है। चौधरी साहब ने बताया कि जब भी कार्यक्रम की कमी पड़ती थी, मैं कह देता था ‘लगा दो चक्रधर की जीत गी छन्नो।’

जीत गी छन्नो  — अशोक चक्रधर’





मैंनैंऊ देखी ऐ वो फिलम। तू तौ कबीसम्मेलन की बता!


चचा चार बजे शुरू होना था, छः बजे हो पाया। कवियों को तो ख़ैर अभ्यास है, श्रोता मुरझा गए। कुछ घटे, कुछ रहे डटे। मेरी प्रारम्भिक दो प्रस्तावनाएं तकनीकी कारणों से बेकार गईं। तीसरी बार तत्काल कुछ नया सोचो, क्योंकि वही दोहराओ तो श्रोताओं समझेंगे कि ये तो वही प्रस्तावना रट कर आए हैं। नया सोचने के फायदे होते हैं चचा क्योंकि उससे नई बात निकलती है।


तू सोचि कै बोलै कै बोलि कै सोचै?


चचा जब चुनौती हो तो सोचना और बोलना साथ-साथ चलते हैं। डीडी किसान के राष्ट्रीय कविसम्मेलन में मैंने संचालकीय प्रस्तावना में लगभग ऐसा कहा कि आज़ादी किसी एक के लिए नहीं, हम सब के लिए आई है। हमें इसकी रक्षा करनी है। रक्षा ऐसे करनी है कि दूसरे की आज़ादी का हनन न हो। जैसे, आप आज़ाद हैं कि अपने खेत में मेंड़ के अन्दर-अन्दर कोई भी वैधानिक फसल उगाएं। खाद-पानी अपनी इच्छानुसार दें। अब चचा, मेरा दिमाग़ अगला वाक्य बुनने लगा, उपयुक्त शब्द चुनने लगा। भाव यह आया कि ऐसा न हो कि आपका कोई जानवर मेंड़ तोड़कर दूसरे के खेत में चराई करने लगे। पर ऐसा नहीं कहा। भाव-ध्वनि के लिए अच्छी शब्द-ध्वनि चाहिए थी। ‘मेंड़’ शब्द दिमाग़ में अटक चुका था। शब्द-मैत्री के लिए तत्काल एक शब्द मिला ‘एड़’। एड़ तो घोड़े को लगाई जाती है। फिर मैंने अपने उदाहरण के लिए गाय, बैल, भैंस या बकरी नहीं चुनी, घोड़ा चुना और कहा, यदि आपने अपनी मेंड़ पर एड़ लगाई और आपका घोड़ा ऐंड़ता हुआ पड़ौसी के खेत में चराई करने लगे तब तो दूसरे की आज़ादी का हनन हो जाएगा। अपने घोड़े को अस्तबल में बांधकर नहीं रखा तो पड़ौसी आपके बल को अस्त करने आ जाएगा। बात मुझे फिर अपनी पटरी पर लानी थी। मैंने कहा, लेकिन कवि अपनी कल्पनाओं के सभी घोड़े खोल सकता है। उसके घोड़े दसों दिशाओं में जाते हैं। सूरज के पास तो सिर्फ़ सात हैं, कवि के पास कल्पनाओं के सात हज़ार से ज़्यादा घोड़े हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।


तर्क भड़िया ऐ रे!


चचा, इसी बात का आनन्द है। सोचकर बोलो और बोलकर सोचो। आज़ादी, ज़िम्मेदारी की मेंड़, घोड़े की एड, अस्तबल, बल का अस्त, किसान का घोड़ा, कवि के घोड़े, सूरज के सिर्फ़ सात, कवि के सात हज़ार, कल्पना पलांश में ले जाती है ब्रह्मांड के पार। चचा, फ़िलहाल में सोच रहा हूं कि कोई ऐसा घोड़ा मिले जो आज विश्वभर में फैली मेरी प्यारी बहनों के पास पहुंचा दे और मैं उनसे राखी बंधवा आऊं।




००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा