Media ki vartman sanskritik chetna
सांस्कृतिक चेतना समाज के जीवन व्यापार का आईना होती है । इसके निर्माण का केंद्र बिन्दु वह मानवीयता है, जो जीवन के तमाम क्रियाकलापों को संवेदनात्मक गहराइयों के साथ जीने में विश्वास रखती है । एक ऐसे समय में जब व्यक्ति और समाज की स्थापित मूल्यों एवं मान्यताओं से दूरी लगातार बढ़ती जा रही है नए की ओर बढ़ते कदम संशय से खाली नहीं है, ऐसी दुविधाजनक तरल मनोवस्था में हमारी सांस्कृतिक चेतना ही वह ठौर है जो व्यक्ति और समाज को एक स्थिर आधार प्रदान करती है ।
मीडिया की वर्तमान सांस्कृतिक चेतना
शनिवार, 10 सितम्बर 2016
6 बजे सायं
प्रमुख वक्ता
नाम वर्णमाला के क्रम में
नाम वर्णमाला के क्रम में
अनुराग बत्रा
चेयरमैन एवम एडिटर इन चीफ ,बिजनेस वर्ड मीडिया ग्रुप
उर्मिलेश
पूर्व कार्यकारी संपादक ,राज्यसभा टीवी
जयंती रंगनाथन
वरिष्ठ संपादक ,हिंदुस्तान
निधीश त्यागी
संपादक ,बी.बी. सी.
राणा यशवंत
मैनेजिंग एडिटर ,इंडिया न्यूज़
राम बहादुर राय
अध्यक्ष ,इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र
इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर
लेक्चर हॉल - 2
नई दिल्ली
(निकटतम मेट्रो बैगनी मार्ग: जेएलएन स्टेडियम व पीला मार्ग : जोरबाग)
सांस्कृतिक चेतना के इसी विमर्श को अगर वृहद रूप में देखा जाए तो पहली नज़र में यह जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता नज़र आता है । चाहे वह भाषा का रचना कर्म हो या कोई सामाजिक निर्वाह, हर एक क्रिया या विचार में अचेत सचेत रूप में सांस्कृतिक चेतना विघमान है ।
मौजूदा दौर की सूचना क्रांति के संदर्भ में सांस्कृतिक चेतना का विमर्श बहुआयामी जान पड़ता है । एक ओर सूचनाओं का विस्फोट, संस्थाओ-संरचनाओ का शोर है तो इसके दूसरी तरफ समाज की टूटन और व्यक्ति का विखंडन एकांकी चुप्पापन है । सभ्यताओं के वादों, मनुष्य की उन्मुक्तता के नारे है तो वही हिंसा, बर्बरता की अनकही स्वीकरोक्ति ठोस यथार्थवाद के रूप में मौजूद है । सूचना क्रांति की इस पूरी काया को यदि मीडिया के नाम से समझा जाए तो बात ज़्यादा स्पष्ट होती है । अब सवाल ये है की यदि इस काल में इंसानी जीवन से जुड़ी हर संरचना, स्थापना, मनोवृति पर मीडिया इस कदर प्रभावी है तो मीडिया की सांस्कृतिक चेतना क्या हो या यूं कहें कि क्या मीडिया की भी कोई सांस्कृतिक चेतना होती है ?
इस क्रम में कई सवाल कई दिशाओं से पैदा होते है मसलन क्या मीडिया वास्तव में किसी सांस्कृतिक चेतना का निर्वाह करती है जिसमें मनुष्यता और उससे जुड़े मंगलकारी सरोकारों जैसे लोक-कला व शास्त्रीय-कला आदि की चिंता मौजूद है या वो महज कुछ संरचनों के निजी स्वार्थ के पोषण का औज़ार है ? क्योंकि सांस्कृतिक चेतना देश और काल के दायरों में पनपती है पोषित होती हैं तो क्या मीडिया की इस निराकार भूमंडलीय काया के लिए कोई सार्वभौमिक सांस्कृतिक चेतना संभव हो सकती है ? क्या मीडिया सही मायनों में सही और बेहतर की बहस समाज के सामने रख रहा है या कुछ स्वार्थी अराजक तत्वों की स्वार्थ सिद्धि के लिए संस्कृति को विस्थापित करने की कवायद का नाम मीडिया है ?
ऐसे ही सवालों और उससे जुड़े सार्थक संवाद की दिशा में श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर फाउण्डेशन अपनी संवाद शृंखला के अंतर्गत दिनांक 10 सितम्बर 2016, सायं 6 बजे नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर सभागार में आपको आमंत्रित कर रहा है। आमंत्रण को स्वीकार कर इस ज़रूरी संवाद को दिशा व गति प्रदान करें ।
श्री अचलेश्वर महादेव मन्दिर फाउण्डेशन, समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य आध्यात्मिक बौद्धिक विकास एवं सांस्कृतिक साक्षरता लाने हेतु संकल्प कृत संस्थान है। फाउण्डेशन भारतीय दर्शन (वेद-उपनिषद) चित्रकला, नाट्य, नृत्य, संगीत (लोक-शास्त्रीय) साहित्य एवं अन्य कला रूपकों के विभिन्न आयामों की न केवल प्रस्तुति अपितु इनके लौकिक व मीमांसिक पक्षों पर गहनता से सामाजिक संवाद स्थापित कर समाज में समरसता बनाये रखने के लिए प्रयासरत है।
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