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प्रेमा झा की कवितायेँ | Poems of Prema Jha



प्रेमा झा की कवितायेँ

Poems of Prema Jha 

प्रेमा झा की कवितायेँ | Poems of Prema Jha

१. सीप और मोती 

पथिक, तुम जा रहे थे
गठरी में मोतियाँ बांधकर
तुम्हारे जाने के दरम्यान
कुछ मोतियाँ रास्ते पर गिर गयीं
वहाँ अँधेरा था
और
ढलान भी.
कुछ मोतियाँ पथों की पहचान बन गयीं
और कुछ फिसलकर नीचे
किसी खाई में गिर गयीं
वो रास्ता जगमगा रहा है
नीचे खाई में गिरे मोती वहीं है अभी.
लोग ऊपर से देखते हैं
मोतियाँ नीचे गहराई में उतरती जा रहीं
किसी सीपी की तलाश में
और ऊपर वाला मोती
अपने साथी मोती की तलाश में
जलते हुए रास्ते पर.
सीपी जैसा कुछ जो है
झरनों से बह रहा/
मेघों में मिल रहा.




२. संसार का मनुष्य 

संसार से मनुष्यता
खत्म तो नहीं हुई न?
उम्मीद के दीपक ने
हौले से स्याह दीवारों से कहा
दीवार पर दीपक के ताप से
पनपी कालिख ने कई चित्र अख्तियार कर लिए थे
एक में मनुष्य की शक्ल से मिलता आदमी था
दूसरे में मनुष्य मादा-सी स्त्री थी
एक चित्र वनस्पतियों-से मिल रहा था
एक में जानवर से मिलती
शक्ल--- कुत्ते, कुछ बिल्लियाँ तो कुछ में
कई सांप से ज़ाहिर हो रहे थे
ऐसा लग रहा था
ये सब जीवित हो जाएँगे और
अपने राज्य की मांग करने लगेंगे
दीपक, दीवार से कहता है
मेरी लौ में ये सब चित्र
ऊर्जा लेने लगे हैं और
थोड़ी देर बाद
      मुस्कुराएँगे वे नाचेंगे, गाएंगे और दौड़ने लगेंगे
दीवार चुपचाप दीपक की बातों को सुनने लगी फिर पूछती है-
तुम्हें यहाँ किसने और क्यों जलाया?
दीपक कहता है-
एक लड़की कुछ ख्वाहिशों की ताबीर में
मुझे जलाकर चली गई
उसका कहना था-
जब तक मैं जलता रहूँगा
दुनिया में दुआएं और उनका असर कायम रहेगा/
जब बुझने लगूंगा दीवार की सब शक्लें जीवित हो जाएंगी
और
लड़की का जीना दूभर हो जाएगा
इसलिए लड़की फिर आएगी और
तेल डालेगी/
फिर यह चित्र
लिपते-पुतते स्याह होकर
दीवार में अंतर्ध्यान हो जाएँगे
और लड़की चैन से जी सकेगी
दीवार ने फिर पूछा,
“तब इन चित्रों के जनक और भक्षक तुम दोनों हो.
कहो,
क्या कहते हो?”
दीपक अब दीवार से पूछता है-
“तुम्हें यहाँ किसने और कब बड़ा किया?”
दीवार अट्टहास करती है,
जोर की साँसें और तेज आवाज़ में कहने लगती है,
“एक मर्द ने मुझे यहाँ ज़मींबद्ध कर दिया
उसका कहना था इससे
उसकी जमीन सुरक्षित रह सकेगी
और साथ ही सामने वाले के लिए यहाँ से
रास्ते भी बंद हो जाएँगे’’
इस तरह मैं जरूरी और चेतावनी दोनों साथ बन गई
और अब तुम्हारे ताप को दिन-रात सेंकती हूँ
कभी-कभी तुम्हारे जलन की पीड़ा भी महसूस करती हूँ
इस तरह दीपक, दीवार, लड़की और मर्द सब अपना-अपना काम करते हैं
और किला
सवालों से घिरा
हैबतनाक चुप्पी में बदल जाता है
सदियाँ इसकी गवाह है
बदस्तूर बंद होते जाते कई सवाल
और दीवार का चित्र
मनुष्यता के नाम पर
कालिख पोतता हुआ
जो मनुष्य होते-होते रह गया!

३. दाऊद  

क्या तुम एक झूठ बोल सकती हो?
अपने आप से बोलना होगा
और फिर उस झूठ को सुनकर खुद अपने-आप
तक ही रखना होगा
यदि झूठ दिखावटी हुआ तो तुम उसे खुद ही खारिज़
कर दोगी
अगर झूठ में दम होगा तो
तुम अभिनय करने लगोगी
शानदार अभिनय
कि लोग तुम्हें नायिका समझने लगेंगे
परदे पर नाचने वाली
ज़िन्दगी की शक्ल की असली नायिका
तुम जब झूठ को सच में बदलती हो
तो सबकी आँखों में आंसू आ जाते हैं
तुम नायिका बन सकी तो
बन सकोगी जिंदगी की असली खिलाड़ी
जीत लोगी बाज़ी
तमाम पेंचदगियों की/
षड्यंत्रों की और/
जालसाजी खुराफ़ातों की
तुम पहचान लोगी
बड़ी ही आसानी से
नकली चेहरे के मुखौटे
इस तरह नायिका
पर्दे पर असली रोल निभाती हुई
तमाम कारगुज़ारियों की दाऊद बन जाएगी/
दाऊद अपने असली अर्थों में पैगम्बर है
मगर आज की दुनिया में
ये नाम बदनाम हो गया है
लड़की दाऊद के असली
मतलब को पहचान रही है
दाऊद अल्लेसलाम पैगम्बर खुदा की संतान
ये झूठ नहीं है
सच है दाऊद अच्छा था
नेक दिल, पाक और ईमानदार
दाऊद की किरदार में
नायिका का असली टैलेंट नज़र आता है
सब फिल्मों का रिकॉर्ड तोड़ देगी ये फिल्म
इसमें झूठ को सच में नहीं
सच को झूठ में बदला गया है
दाऊद भी कहीं बैठा नथुने फुला रहा होगा
कैसे चोरी हुआ उसका किरदार कि/
उसके होने पर प्रश्नचिन्ह लग गया है/
यह झूठ नहीं सच है
सच है
और जो सच है
वो बहुत बड़ा झूठ/
नायिका हांफती हुई
मुखौटा फेंकती है और
दाऊद को ढूँढने लग जाती है
क्या तुम एक सच कह सकते हो?
नायिका सवाल करती है-
तुम्हारा नाम किसने रखा था?
जब रखा तो उसके जेहन में दाऊद का किरदार
सबसे सच्चे अर्थों में खुलकर सामने आया होगा
बताओ नाम रखने वाला कौन था?
वाल्देन या कोई और?
कहीं वो लड़की तो नहीं
जिसने सबसे पहले एक झूठ बोला था
- और शहीद हो गई थी
सच को सच्चे अर्थों में रखने के लिए!
कहीं तुम्हारी सरकार तो नहीं?
जिसने किसी हमलावारी करार के नाते
पहली गुस्ताख़ी करने की खातिर
एक झूठ का ट्रायल किया हो
-और
उसे नायक बनाकर हिट कर दिया गया.





४. मर्द और औरत

मेरे सामने तीन औरतें खड़ी थीं
तवायफ़, प्रेमिका और पत्नी
मर्द जो सिर्फ एक था-
तवायफ़ पर खूब पैसे लुटाता
रात को उसे प्यार करता
सुबह भूल जाता
पत्नी उसे दवाई के वक़्त दिखती थी/
थकी हुई कमजोर-सी मगर उसकी आँखों की
चमक कभी माँ बन जाती तो
कभी उस तवायफ़ की आँखों से भी
ज्यादा अपीलिंग
मर्द के गिर्द एक स्त्री जो
अंदाजन उसकी प्रेमिका थी/
उसकी रोटी का बड़ा ख्याल रखती थी/
तवे पर जब कोई रोटी जल जाती
उसे सबसे पहले खा लेती थी
इस तरह उस मर्द को
हमेशा नर्म और ताज़ा रोटियाँ मिलती थीं/
जो नसीब की खूबियों में
एक रोचक बात थी/
पत्नी की साड़ी के पल्लू में
जो उसकी सास ने आशीर्वाद में
कुछ फूल बांध दिए थे-
बहुत दिन हुए मुरझा गए थे
मगर पत्नी थी कि उसकी गांठों
को खोलने का नाम ही नहीं लेती/
रात जब उस तवायफ़ को किवाड़ खोलना होता-
उसकी फाटक पर कोई बहुत जोर से
रोने लगता था/
तवायफ़ डरकर खिडकियों से झाँकती
और रोशनदान में अखबार के पन्ने ठूस देती थी-
मर्द तवायफ़ को उल्टा-सीधा लिटाता
और
उसके कपड़े जब-तब
खींचता तो कभी फाड़ देता था/
तवायफ़ हंसती हुई नंगी हो जाती
मर्द उसे देखता रहता और
अगली रात के लिए
दूसरी तवायफ़ की तलाश में
कभी नीग्रो तो कभी इतालवी लड़की
ढूंढता रहता था/
इसी तरह कई रोज बीत गए
पहली वाली तवायफ़
जिसके पास वो मर्द सबसे पहले सोया था/
अब उसका इंतज़ार करने लगी थी/
मर्द कोई पांच-सात बार उसके पास गया था/
एक रात मर्द ने प्रेमिका को फ़ोन लगाया
प्रेमिका बेसाख्ता चूमने लगी थी रिसीवर पर
पत्नी किनारे वाली तकिए से
मुंह छिपाए गहरी नींद के भ्रम में
बेहोश हुई जाती रही/
तवायफ़ रोशनदान में
ठूसे अखबार के पन्ने बदलती रही/
प्रेमिका मोबाइल सम्हालकर रखने लगी थी
मर्द जिसे मर्द होने का बहुत दंभ थे
पानी के गिरते गिलास-सा लुढ़क गया/
जिस्म को उसके देखने की आग
गीले बिस्तर-सी सिकुड़ गई
जब उसे प्यार शब्द
जिसका उपयोग वो तवायफ़ के साथ
सोने पर करता था-
लगा कि स्लेट पर उगे अक्षरों की तरह
बारिश की बूंदों-सा
आँगन में फ़ैल गया है/
फिर वो चाक बनकर
कभी लिखता था/
कभी मिटाता था/
तो कभी
बारिश की बूंदों में बहने लगा था/
औरतें जो तवायफ़ होते हुए भी प्यार कर लेती हैं/
प्रेमिका जो पत्नी न होते
हुए भी माँ बन जाती है
और
पत्नी जो अब तक प्रेमिका
बनना चाह रही थी/
चुप हो गई
अब वो मर्द
गूंगा हो गया है.

५. किले की दीवार और चिड़िया का तिनका

गाड़ी गुजर रही थी
अपनी गति से
धीमे-धीमे दूर जाती हुई.
मैंने खिड़की से/ कई दृश्य देखे
जो रास्ते में चलते-चलते
बीच में आ जाते
गोया एक कहानी-सी
बुन रही थी-
मैं दृश्यों के आगे-पीछे
उनके भूगोल और वर्तमान
जानने की उत्सुकता में
अपने सहयात्री से पूछती हूँ
सहयात्री कुछ थमकर कह पड़ता है
कभी बहुत पहले यहाँ किला
हुआ करता था
अब पक्का मैदान बन गया है.
ये कुछ टूटी-फूटी
दीवारें बची हुई हैं
जो खुले आसमान के नीचे
निनाद करती हुई-सी खड़ी हैं और
जो हवा यहाँ से गुजर के जाती है
उसकी कोई दिशा या नाम नहीं होता
मैं दृश्यों को छोड़ती हुई आगे बढ़ती हूँ
फिर दूसरा दृश्य आ जाता है
कोई चिड़िया गाती है/ कोई खेत आता है
एक घोसला बुनता हुआ देखती हूँ-
चिड़िया की चोंच का तिनका
मुझे उस किले की दीवार से
मज़बूत मालूम पड़ता है
फिर आगे जाती हुई गाड़ी से
कुछ और दृश्य आते हैं
मैं अपने गंतव्य तक पंहुच चुकी हूँ.
आज उस यात्रा के दशक बीत चुके हैं
मगर जो कुछ बार-बार
मेरी आँखों के सामने
एक फ्लैशबैक-सा घूमता और चमकता है
उसमें मैं पाती हूँ
किले की दीवार और चिड़िया का तिनका
और भी कई हरी-नीली तस्वीरें
जो अभी भी यहीं कहीं
तैरती हुई-सी जान पड़ती हैं.

६. लव जिहाद 

अच्छा लगता है
तुम्हारा सबसे लोहा लेना
यह जाहिर कर देना कि
तुम मुझसे प्यार कर रही हो
तुम्हारे समाज, धर्म, जाति और
मुल्क ने तुम पर पाबंदियां लगाने की बहुत कोशिश की है
कभी शब्द बाण से तो
कभी कठघड़े में खड़ा कर
तुमसे कहते हैं सब
तुम मुजरिम हो
तुम सजा के लायक हो
तुम्हारी नज्मों को बैन किया जाएगा
सुनो शायरा, तुम्हारी जुबान पर टेप
और हाथों में हथकड़ियां डाल देनी चाहिए
तुम न्यूज़पेपर में छपती हो
तुम्हारे लिए एक दिन का ब्लैकआउट रखा जाएगा
और तुम चिल्लाकर
सीधा जवाब दे देती हो
बैन करो मुझे!
मैं अपने दुश्मन देश के लड़के के साथ
गिरफ्तार हूँ मुहब्बत में
तुम्हारे बनाए हुए कठघरे
मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते
मन की कोई रेखा नहीं
जहां क्रॉस-बॉर्डर का खेल खेला जा सके
तुम्हें हथियार डालना होगा
ये मन की भाषा है
सब देशों में बोली जाती है
गीतों का बीज है
नज़्म के लिए
उसका आशिक है
मैं अनंत गगन में
उड़ने लगी हूँ
गिरफ्तार करो मुझे
मेरे मन को कर सको तो
लो, देखो- बह गया वो
सागर में मिल गया
डूब गया
गहरा जा रहा
बिछाओ- जाल बिछाओ, बन्दूक लाओ
जंजीर लाओ
चाबुक मारो
वो तो डूब गया रे.....!

७.अबोल 

चुपचाप ठीक उसी तरह
जैसे साँझ अभी -अभी
ढल ही रही थी
रात के आगमन से पहले
बहुत हौले पद्चाप पर
धीमे-धीमे दिया के लौ में
सोखते जाते तेल-से
और/
रात की धुन में आसमान पर
चुप सितारे बसंत की अगुआई में
बहुत चमकता मालूम पड़ता है
तुम उसी तरह आ जाते हो
मेरे ख्यालों में
मेरी करवटों में
मेरे अंतहीन मौन प्रश्नों से जूझते हुए
मूक ही उत्तर देते हो
कुछ उस तरह जैसे
जवान होती गेहूं की बालियों से
यकायक फूट आते है दानें
तुम उसी तरह आ जाते हो
मेरे अनंत सवालों में
एक गूढ़ जवाब के तहत
छिपे रहते हो हरदम
मेरे अबोलेपन में
बोलते हुए।

८. हवा महल: एक

बालू की भीत पर
कुछ लिखते हुए,
कुछ मिटते हुए
कभी आंधी समेत लाती है उसे
कभी झोंका दूर तक ले जाता है.
मैं बार-बार उँगलियाँ फेरती हूँ
टीला बनती हूँ
और ऊँचा, और ऊंचा
क्या है यह?
समय की जिजीविषा
या हवा का घर?
बार-बार बुनियाद
बिखरकर भी, बनती है.
हाँ, हवा महल कह सकते हो तुम
जहां उम्मीदें दौड़ती हुई
किसी गाड़ी से आती हैं
किस समय पता नहीं
किस स्टेशन की पटरियों से
पता है, हाँ पता है मुझे
जहाँ साँसें चलती हैं
खुले आसमान के नीचे.

हवा महल: दो 

मैं तुम्हारे पास हूँ
हवा में एक महल बना है
थोड़ी देर में बारिश होगी
महल बह जाएगा
और मैं तुमसे पहले बहूंगी.
बहुत संजीदगी से
महल की किवाड़ पर
दीपक जलती हूँ
बारिश ख़त्म हो गई
सच में क्या?
मैं छत पर जा रही हूँ
चाँद तक पंहुचने के लिए
रेत की सीढ़ियां
तुम बनाते हो
और मुझे पीछे से लटकने को कहते हो.
देखो सूरज चढ़ गया
ये क्या?
तुमने मुझे पहले छोड़ दिया
आह!
मैं चोटिल हो गई.

९. अद्भुत दुनिया 

जुनूनी हवा की कहानी में
जीवन का सच
एक विराम पर
जो बहुत से यात्रा का पड़ाव-बिंदु है
यहाँ प्लेटफ़ॉर्म-सी सांसें
थम-थम जाती हैं
एक शहर बनकर!
बंजारों की बस्ती में
कोई प्रयोजन नहीं
इस आपाधापी का
एक झाड़ू है जो
बार-बार अपनी व्यवस्था की
तस्दीक करता है
बड़े सलीके से
एक स्त्री बुहारती रहती है
जब-तब
इस स्टेशन पर
ज़िन्दगी बहुत साफ़ है
बुहारी ज़मीन-सी
जहां पत्ते कथा खोलते हैं
चुपचाप सांस-दर-सांस
एक तिश्नगी/
एक आह
क्या आह-भर ही है ज़िन्दगी?
एक फक्कड़ की बस्ती में
बहुत खूबसूरत हो जाती है
दुनिया की बेचैनियों से दूर
एक सलीके से ली गई सांसों में
किसी स्केच-सी खिंची
एक गहरी रेखा में
बहुत खूब फंसती ही जा रही
बुनती ही जा रही
एक अद्भुत दुनिया.



१०. इश्क के पत्ते

तुमने सपनों से निकलकर
घर के दरवाज़े खोल दिए
इश्क के पत्ते
सूखी टहनियों पर हरे हो गए
हम पेड़ की टहनियों को पकड़कर
दौड़ लगाने लगे
पेड़ झूलने लगा
हमारे हाथ ने टहनियों का
अब साथ छोड़ दिया है
हम भागने लगे
अपने सपनों की दुनिया से
अब ज़मीन पर
जहां-जहां पाँव पड़े
गूलर के फूल खिल गए
ये जंगल है
एक रहस्यवादी दुनिया
तुमको छूने लगी बेतरतीब
इश्क पत्ते ने
बरस का हिसाब दिया
पूरे डेढ़ बरस का
एक-एक पत्ता
वैसा ही हरा
मेरे हाथ का भी
तेरे हाथ का भी
हम दुनिया जीने लगे
कश मारकर एक-दूसरे में
ढलने लगे/
बहने लगे/
इश्क के पत्ते पर
कुछ अंक पढ़े हमने
ये हमारे जनम की वर्ष्गांठ है
पिछले से अगले तक
मैंने कई सदियाँ पार की हैं
इन्हीं पत्तों को सहलाती हुई
अपनी मास और लहू से
चिपकाये हुए
देखो, एक-एक पत्ता खुलने लगा
अब मैं जंगल हूँ/
एक रहस्यमयी जंगल
जहाँ गुलर के फूल खिलते हैं
मैं, पत्तों की कहानी हूँ
तुम मेरे जंगल में
कैसे आ गए?
जब आए हो तो रुको
चलो तुम्हें गुलर दिखलाती हूँ
ये क्या तुम गूलर के पिता हो!
और
मैं क्या हूँ?
देखो, जंगल में फूल-फूल
बिखर गए
हम रहस्यमयी दम्पति
        अपने जंगल में अदृश्य हो गए.


११. अधूरे हम 

समय की दो सुई
प्रकाश की एक चिंगारी
तथा
मेरे शरीर पर हवाओं की हर छुअन
का कहना है कि
मुझे आपकी याद आती है
रात का ख़ौफ़
गीत के कुछ उदास ताल
तथा
आत्मा की प्यास
केवल सुनाओ तुम
प्यार की एक कहानी
जो कभी पूरी नहीं की जा सकी
और
अधूरी रह गई
भटकती आत्मा की तरह
चौराहों पर, गलियों में
और
शहरों में मशहूर हुए गीतों की तरह!
मुझे पसंद है;
आंधी-तूफ़ान,
भूकंप,
बारिश
तथा
सभी खतरनाक परिणाम
यह एक अंत है
जोकि समाप्त हुआ
फिर भी कभी ख़त्म जो नहीं होता
वो सब खतरे मेरे हैं
और
देखो, मैं पुनर्जीवित हुई!
००००००००००००००००

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