टीआरपी संविधान के ब्योरों से कहीं अधिक माने रखती है...
Brazenness with which Raj has proven that he is an extra-constitutional Sarkar Raj (or should we say Goonda Raj) in Maharashtra, he deserves to be given his due...
सरकार राज
— राजदीप सरदेसाई का ब्लॉग
तो साहब, राज ठाकरे ने एक बार दोबारा से यह सिद्ध कर डाला कि अपने चाचा के जलवों के असली वारिस वो ही हैं। आपको याद हैं शिवसेना के असली सुप्रीमो के सामने साष्टांग दंडवत किये वो फिल्म स्टार्स, बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के मालिक, क्रिकेट-खिलाड़ी? देखा जाए तो राज ठाकरे बालासाहेब से एक क़दम आगे निकल गए, काहे से कि उनको महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री मिला, जिसने करण जौहर के साथ एक तरह से 'दलाल' हो के, वह समझौता कराया, जिसमें 'ए दिल है मुश्किल'' प्रोडूसर करण जौहर, अपनी फ़िल्म को परदे पर बगैर किसी हिंसक-कार्यवाही के दिखाए जाने के एवज में, सेना को 5 करोंड़ रूपये देने के लिए राज़ी हुए । और साथ में उन्होंने यह वादा भी करवाया कि वो आइन्दा किसी पाकिस्तानी कलाकार को अपनी फ़िल्म में नहीं लेंगे। भाई साहब, राज ठाकरे ने जिस बेहूदा तरीक़े से, ख़ुद को संविधानेतर सरकार राज (या ये कहें गुंडा राज) साबित किया है उसके लिए तो उन्हें मानना पड़ेगा। और यह सब तब जबकि म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव बस होने वाले हैं, मलतब ठाकरे ने प्राइम टाइम पब्लिसिटी पाने का पक्का जुगाड़ कर दिया।राजनीति-के-गुंडों को कुछेक करोंड़ रूपये से गिरा दिया
अब महाराष्ट्र के होनहार, युवा मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के लिए क्या कहें? भाई हमने उन्हें इसलिए चुना था कि महाराष्ट्र में क़ानून व्यवस्था दुरुस्त रहे, अब उन्होंने ऍमएनएस के साथ यह 'डील' (चाहें तो समझौता कह लें) पक्की करके, आखिर वही तो किया है।क्या दूर की कौड़ी फिट की है सरजी: राजनीति-के-गुंडों को कुछेक करोंड़ रूपये से गिरा दियाभाई अब हमें सिनेमा हाल के बाहर पुलिस क्यों चाहिए होगी। सोच के देखिये इस 'डील' से टैक्स देने वालों के कितने पैसे बच गए। हम यह थोड़े ही चाहते हैं कि हमारे पुलिस कांस्टेबल अपनी दीवाली हमारे सिनेमा की चौकीदारी में बिताएं? यह ज्यादा अच्छा नहीं होगा कि वो शहर के नाकों पर रह कर सीमापार से आने वाले 'असली' आतंकवादियों पर नज़र रखें ? क्या दूर की कौड़ी फिट की है सरजी: राजनीति-के-गुंडों को कुछेक करोंड़ रूपये से गिरा दिया, ऐके 47 से तो उन आतंकवादियों को मारा जाता है जिनके चेहरे नक़ाब से ढँके होते हैं।
'अल्पसंख्यक' तुष्टीकरण की बातें छोड़िये, असली 'डील' तो यह है: मुंबई के 'बहुसंख्यक' मूल निवासियों को संतुष्ट किया जाना
वैसे इसमें फडणवीस साहब ने नया क्या किया है, उन्होंने तो महाराष्ट्र की 1960 से चली आ रही गौरवशाली परंपरा को ही आगे बढ़ाया है, जिसमें कांग्रेस के वसंतराव नाईक ने मुंबई की सेनाओं का 'संतुष्टिकरण' किया था ? 'अल्पसंख्यक' तुष्टीकरण की बातें छोड़िये, असली 'डील' तो यह है: मुंबई के 'बहुसंख्यक' मूल निवासियों को संतुष्ट किया जाना । एक बात सच-सच बताइए, क्या किसी ने सच में यह सोचा था कि कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी अलग तरह की पार्टी है ? बस ये दुःखी रहने वाले 'लिबरल' हैं जो हमेशा की तरह इसपर भी रोना ही रोयेंगे। ‘राष्ट्रवादी' तो ख़ुश होंगे, होंगे ही होंगे ? और आप ही बताइए 'चरम-राष्ट्रवाद' के इस मौजूदा दौर में कोई भला क्यों इन मूरख 'एंटी नेशनल्स' की बातों में आये, इनका क्या भरोसा, क्या पता ये पाकिस्तानी फ़िल्मी कलाकारों को इंडियन सिनेमा में काम करते देखना चाहते हों। किया होगा गृहमंत्री ने फ़िल्म प्रोडूसरों की रक्षा का वादा, देखिये जब राज से काम चल जा रहा है तो राजनाथ की क्यों सुनें ? और यह न भूलिए कि कल को अगर बीजेपी अपने कम भरोसेमंद साथी शिवसेना के बजाय किसी और के बारे में सोचती है, तब ये दूसरा ठाकरे ज्यादा काम का निकल सकता है। समझे! क्या स्ट्रेटेजी है।टनटनाते मीडिया सूरमा
Pahlaj Nihalani: Does Arnab think he runs the country from his newsroom? (Sat, 8 Oct 2016-06:30am , Mumbai , DNA) |
दिलेर फ़िल्मी बिरादरी का अपने असल रंग
इन सारी बातों से ऊपर, आपकी दिलेर फ़िल्मी बिरादरी का अपने असल रंग को उजागर करना है। आप तो जानते हैं अपने परमवीर स्टार्स को जो परदे पर एक बार में १०-१० गुंडों से लड़ रहे होते हैं? आपने देखी अजय देवगन की 'दिलेर' अदाकारी जब वो पाकिस्तानी फ़िल्मकारों के खिलाफ़ बोल रहे थे (उस समय क्या उन्होंने बताया कि उन्होंने बीजेपी का चुनाव प्रचार किया था) या फिर करण जोहर का वो विडियो जिसमें वो गुंडों में फंसे रज़िया जैसे डरे दिखाई देते हैं, या फिर अमिताभ बच्चन को देखा, जब वो इस मुद्दे पर पूछे गए सवाल को ही टाल रहे थे ? शाहरुख़ चुप हैं (दूध के जले हैं सो छाछ भी फूँक फूँक?) आम़िर की फ़िल्म रिलीज़ होने वाली है, सलमान ने बोला लेकिन वो वैसे वाले 'समझदार' नहीं हैं, या हैं ? अब बचे बाकी मशहूर कलाकार और प्रोडूसर : अरे यार, वो क्यों बोल कर अपने कैरियर का सर ऊखल में डालें ? अब जब भारत के सबसे-बड़े सितारों ने चुप्पी साधी हुई है, तो आप किसी छुटभैये से क्या उम्मीद रखते हैं (ठीक है, अनुराग कश्यप छुटभैया नहीं है!) भाई साहब आज 'ऐ दिल है मुश्किल' की मुश्किल में है तो कल किसी भी और की मुश्किल हो सकती है।अंत में यह सवाल निकल के आता है : राजनीतिक/व्यापारिक लाभ ज़रूरी है कि सांस्कृतिक स्वतंत्रता की चाहत और भारत-पाक नागरिकों का आपसी मेलजोल ? भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी जिस तरह का जाप किये जा रहे थे "भारत से पहले कोई नहीं!"। वो ठीक से कह नहीं पाए कि इस छद्म-राष्ट्रीयता के दौर में, "पैसे जैसा कोई नहीं"।
उपसंहार: बगैर-नैतिकता और संविधानिक-अंधकार के इस समय में हमारे वीर सैनिक और उनके परिवार ही आख़िरी उम्मीद हैं। हम उनसे सिर्फ यह आशा ही रख सकते हैं कि 'इज्ज़त' और सम्मान उनके लिए सबसे ऊपर होते हैं और अपने बलिदान की लगायी गयी पाँच करोड़ कीमत को लेने से वह इंकार कर देंगे। जब हम इधर दीवाली की छुट्टी में एडीएचएम देखने की तैयारी कर रहे हैं, वे हमारी सीमाओं की रक्षा कर रहे होंगे।
हैप्पी दीवाली।
राजदीप सरदेसाई के
ब्लॉग (www.rajdeepsardesai.net/blog-views/sarkar-raj) का
ब्लॉग (www.rajdeepsardesai.net/blog-views/sarkar-raj) का
अंग्रेज़ी से अनुवाद
भरत तिवारी @BharatTiwari
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