सेफ जोन से बाहर की कहानियां — 'स्वप्न, साजिश और स्त्री'


गीताश्री कहानियों के सेफ जोन से परिचित होते हुए भी बार-बार रिस्क लेती हैं। कहानियों में बोल्ड विषय लेने के आरोप उन पर निराधार है। वह बात को कहने में अपनाई गयी हर चुप्पी का विरोध अपनी कहानियों में करती हैं — वीरु सोनकर



गीताश्री

कवि की निगाह में कथा

— वीरु सोनकर



कहानी लेखन में स्त्री लेखिकाओं के अधिपत्य की हो तो हमे वह बिंदु तलाशने होते हैं जहाँ एक स्त्री लेखक समकालीन कहानी साहित्य में अपने हिस्से की एक जमीन बनाती है। जहां भावनाओं की दारुण गाथा से उपजता है स्त्री विमर्श।

दरअसल बात फिर स्त्री विमर्श तक ही नहीं रह जाती एक स्त्री लेखक कहानी लेखन में किस प्रकार उन प्रश्नो का सामना करती है जो उसके इस क्षेत्र में पदार्पण से पूर्व लगभग अनुत्तरित रहे थे। राजेन्द्र यादव के समय से लेकर अभी तक के कहानी लेखन में खुद के भीतर नयेपन को बरक़रार रखना किसी चुनौती से कम नहीं है यह बात हम चर्चित कहानीकार गीताश्री द्वारा लिखित ‘स्वप्न, साजिश और स्त्री’ के द्वारा समझ जाते हैं। यह हिंदी साहित्य का वह समय है जहां स्त्री लेखन अब किसी भी साहित्यिक मठ के आगे पीछे घूमने का मोहताज नहीं है।

कहानी लेखन में किरदार गढ़ना कितना अहम् हो सकता है यह हम गीताश्री के दूसरे कहानी संग्रह को किसी उदाहरण की तरह सामने रख कर समझ सकते है दरअसल कहानी के ताने-बाने बुनने की प्रक्रिया के साथ ही एक कहानीकार उसमे आये किरदारों को भी एक शक्ल देने लगता है। बहुधा कहानीकार कहानी कंटेंट पर  केंद्रित हो जाते है और किरदारों के आगे कथ्य को तवज्जो देते है, लेखक की ऐसी जल्दबाजी ही कहानी को सतही बना देती है।

गीताश्री कहानी के कथ्य के साथ साथ उनके किरदारों पर कितना मेहनत करती हैं, इसका श्रेष्ठ उदहारण संग्रह की एक कहानी ‘माई री मैं टोना करिहों’ से प्राप्त होता है। स्त्री विरोधी सत्ता के विरुद्ध अलग अलग स्तरों पर अपना संघर्ष कर रही दो महिलाएं एक दूसरे के जीवन स्तर से भिन्न होते हुए भी है भिन्न नहीं हैं। कथाकार ने दोनों किरदारों को अपनी कथा दृष्टि के दायरे से छूट नहीं दी है। कहानी में उनकी बेचारगी की कलई अंत में खुल ही जाती है और दोनों स्त्रियां यह जान जाती हैं कि वे एक ही धरातल पर खड़ी दो अलग अलग चेहरे वाली स्त्रियां हैं। उनका दुख जोड़ता है आपस में। इस कहानी का अंत स्त्री विमर्श को एक निष्कर्ष भी दे जाता है कि एक स्त्री को दूसरी स्त्री का साथ देना ही स्त्री विमर्श का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।

महानगरीय यथार्थ को खोलती इस कहानी का विषय तत्व जाना पहचाना होते हुए भी कहानी में एकदम नयापन है। गीताश्री कहानियों के विषय-चयन पर आपको हर बार एक नया टेस्ट देती हैं जिसका स्वाद आप अपने आस-पास महसूस तो करते हैं पर कहानियों में उसकी पहली दस्तक आपको यहाँ ही मिलती है।


वीरु सोनकर

गीताश्री किशोरावस्था की मानसिकता पर अपनी तेज़ पकड़ का प्रमाण ‘डायरी, आकाश और चिड़िया’ नामक कहानी से ही दे देती हैं। फ्रेंच शब्द 'वीडा' को किसी दोस्त या सहेली-सा प्रतीकात्मक किरदार मान कर रोली के संवाद एक बड़ी होती लड़की के अधूरे सपनो की आँच से चौकाते हैं। इस कहानी का अंत चौकाता नहीं है, सचेत करता है। यहाँ कथाकार का पत्रकार मन रागिनी के किरदार में अपने कर्त्तव्य बोध के साथ उतर आता है और कहानी अपनी ही लेखिका के साथ संवाद करती प्रतीत होती है। संशय, अन्वेषण के साथ साथ भावनात्मक पड़ताल करती हुई यह कहानी हमे भूलने नहीं देती कि लेखिका पहले एक पत्रकार है। किरदारों पर उनकी मेहनत तब दिखती है जब ‘उजड़े दयार में’ एक उपेक्षित स्त्री अपने ही पति को व्यंगात्मक रूप से 'डैडी' कहने लगती है। अपनी ही बेटी को अपने विरुद्ध पा कर भी वह खुद को सँभालने की कोशिश करती है। पुरुष सत्ता से प्राप्त खालीपन के बाद भी वह अपनी बेटी को अंत में वह एक सही सलाह देकर उसका मार्गदर्शन करती है।

स्वप्न, साजिश और स्त्री

एक चतुर कहानीकार के रूप में गीताश्री रिपीट नहीं होती, वह हर बार जिज्ञासा का एक नया फन्दा लेकर सामने आती हैं। ‘स्वप्न, साजिश और स्त्री’ की हर कहानी स्त्री विमर्श से सम्बंधित होते हुए भी अपनी विविधता और अंतर्द्वंद की गहनता से अचंभित करती है। वे किसी तीसरी दुनिया में जा कर अपने कथ्य की खोज नहीं करती, वह उन्हें अपने इसी धरातल पर ढूंढती हैं और एक सर्वमान्य हल की ओर बढ़ती हैं। वह कहानियों के सेफ जोन से परिचित होते हुए भी बार-बार रिस्क लेती हैं। कहानियों में बोल्ड विषय लेने के आरोप उन पर निराधार है। वह बात को कहने में अपनाई गयी हर चुप्पी का विरोध अपनी कहानियों में करती हैं। शहरी जनजीवन पर अपनी कहानियों का एक बड़ा हिस्सा रचते हुए, वह भावनाओ की प्रबलता का एक विशेषज्ञ दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। वह कहानियों में आश्चर्य को किसी प्रोडक्ट की तरह नहीं लाती बल्कि एक जायज परिणाम की ओर जाती हैं, जहाँ कहानी पाठक के सामने एक साफ़ रास्ता खोलती है। बतौर लेखिका गीताश्री अपनी कहानियों को सामाजिक उद्देश्यों से जोड़ कर मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना में अपनी अनिवार्य भूमिका निभाती हैं। समकालीन कहानी साहित्य पर उनकी पकड़ पहले की भाँति ही मजबूत बनी रहती है और अपनी कहानियों में नयेपन को वह किसी युवा लेखक सा बराबर बनाये रहती हैं।

हिंदी कहानी में एक खाली जगह, जो उन्हें ही भरना था, उस जगह पर बने रह कर भी वह आगे की ओर देखतीं हैं और आज के पुराने पड़ चुके सामाजिक ढाँचे को समय के अनुसार बदलने क्षमता रखती हैं। वह मानती हैं कि जातियाँ और धर्म सिर्फ पुरुषों के लिए होते हैं, स्त्री को हमेशा से धर्म और जाती के प्रश्नो से पहले स्त्री होने भर से ही हरा दिया जाता है। उनकी कहानियाँ एक जंग का आरम्भ है जिसका अंत बराबरी वाले समाज की प्रस्थापना है जहाँ स्त्री को अपने अधिकारो के लिए लड़ना न पड़े, उसकी भावुकता को कमजोरी नहीं मजबूती माना जाये।

91-7275302077
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा