विनोद कुमार दवे की कवितायें



कविता के उद्देश्य को साकार करतीं नवोदित कवि विनोद कुमार दवे की कवितायेँ

Poems of Vinod Kumar Dave



कविता के उद्देश्य को साकार करतीं नवोदित कवि विनोद कुमार दवे की कवितायेँ

तुम कहां थे 

तुम कहां थे
माँ कहती थी तुम कण-कण में हो
दादी बताती थी वो सब देखता है
हर किताब में लिखा था
हम सब तेरे ही तो बच्चे है
तो मेरा सवाल है तुम कहां थे
तुम कहां थे जब गली के मुहाने पर
एक बूढ़ा कचरे में रोटी ढूंढ रहा था
क्या तुम कचरे में नहीं थे
तो आखिर तुम थे कहां
जब दरिंदों ने पड़ोस के गाँव में
मासूम की इज्जत लूटी
क्या तुम उन वहशी दरिंदों के दिलों में नहीं थे
क्या तुम उस मासूम के जिस्म में नहीं थे
क्या उस मासूम के रूप में तुम्हारा बलात्कार नहीं हुआ
क्या बलात्कारियों के रूप में तुम नहीं थे
तो तुम कहां थे
तुम कहां थे जब मंदिरों मस्जिदों के नाम पर
गर्दन काटी गई
क्या तुम तलवारों में थे
क्या तुम मंदिर या मस्जिद में थे
क्या तुम जलते हुए घरों में थे
क्या तुम फाड़ी गई सलवारों में थे
क्या तुम मिटाए गए सिंदूर में थे
क्या तुम उस पेट में थे
जिस गर्भ को चीर दिया गया था
क्या तुम उस ट्रेन में थे जिसे जलाया गया था
क्या तुम उस परमाणु बम में थे
जो हिरोशिमा नाकासाकी पर फेंका गया था
क्या तुम हिटलर में थे
क्या तुम हर कत्ल में शामिल थे
क्या तुम हर बलात्कार में शामिल थे
क्या तुम हर चोरी डकैती में शामिल थे
अगर नहीं थे तो आखिर तुम थे कहां
जवाब दो
तुम कहां थे?



मेरी मौत पर 

उस अकेले शख़्स ने पूछा
मेरी मौत पर रोएगा कौन
न कोई आगे न पीछे
क्या मेरी मौत पर कोई नहीं रोएगा
फिर उसकी उदास आँखें चमक उठी
क्या वो गौरैया रोएगी मेरे मरने पर
जिसे मैंने अपने घर में घोसला बनाने दिया
या वे कबूतर जिन्हें रोज चुग्गा देता था मैं
क्या उस बंदर की आँखें भीगेगी
जिसे मैंने बच्चे की तरह पाला था
या मेरी प्यारी बिल्ली
जो रोज मेरे हिस्से का भी दूध पी जाती थी
काली चाय की चुस्कियों के साथ
उस बिल्ली को खूब उलटा सीधा बोलता जाता मैं
क्या वो तोता रोएगा जिसे इतने सालों में
राम राम बोलना नहीं आया
या फिर वो नीम का पेड़ रोएगा क्या
जिसे मैंने अपने हाथों से बड़ा किया
उस अशोक की आँखों में पानी आएगा क्या
जो दिखते ही मन मोह लेता था
या फिर मेरे मरने पर
उस रातरानी की सुगंध का क्या होगा
जिसकी भीनी गंध आज भी मेरे नथुनों में है
कोई तो रोएगा न मेरे मरने पर
ये जो मेरा परिवार है
पेड़ पौधे पशु पक्षियों का परिवार।




जहन्नुम की तरफ़ 

ज़िन्दगी भर जंगलों की खाक छानी
गोबर के कंडों में बाटे पका-पका कर
उसे लगा के अब तो मजा नहीं आता
क्या ये रोज लकड़ियाँ काटनी
गाय भैंसों की गंदगी इकट्ठी करना
हर रोज खेत के चक्कर काटना
रोजाना ही ये चटनी और प्याज
कुछ तो अंतर आना चाहिए न जीवन में,
सुना है शहर में कोई गोबर बिनने लिए नहीं भागता
किसी को लकड़ियाँ नहीं काटनी पड़ती
आग भी बड़ी सी बाटली में भर के देते है
रसोई में पड़ी रहती है आग
जब चाहो दाल बाटा बनाओ
घर-घर में भटकुतरा* है
बड़ी-बड़ी दुकानें है जिनमें सब मिलता है
सुई से लेकर बड़ी मशीनें तक मिलती है एक ही दुकान में
और ये सब उसने सुना
उस से अब रहा नहीं जा रहा था
अपने मैले से अंगोछे में
कुछ बाटी चटनी और प्याज लपेट कर
जंगल का सीना चीरते हुए
उस रास्ते पर चल पड़ा
जो शायद जहन्नुम की तरफ़ जाता था।

(*भटकुतरा गोडवाड आदिवासी क्षेत्र में दुपहिया वाहनों को कहा जाता है।)



परिचय
विनोद कुमार दवे, अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत , साहित्य जगत में नव प्रवेश, पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी,  कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि  में रचनाएं प्रकाशित।

संपर्क:
206, बड़ी ब्रह्मपुरी
मुकाम पोस्ट : भाटून्द
तहसील : बाली
पाली - राजस्थान
306707
मोबाइल : 9166280718
ईमेल : davevinod14@gmail.com


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

दमनक जहानाबादी की विफल-गाथा — गीताश्री की नई कहानी
वैनिला आइसक्रीम और चॉकलेट सॉस - अचला बंसल की कहानी
जंगल सफारी: बांधवगढ़ की सीता - मध्य प्रदेश का एक अविस्मरणीय यात्रा वृत्तांत - इंदिरा दाँगी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
समीक्षा: अँधेरा : सांप्रदायिक दंगे का ब्लैकआउट - विनोद तिवारी | Review of writer Akhilesh's Hindi story by Vinod Tiwari
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी