अकु श्रीवास्तव की कहानी 'रोज़ी-रोटी' | Aaku Srivastava


कम शब्दों में लिखी गयी बड़ी कहानी...


अकु श्रीवास्तव की कहानी 'रोज़ी-रोटी' Aaku Srivastava's Kahani Rozi Roti

रोज़ी-रोटी

अकु श्रीवास्तव



‘‘अरे सुनीता ...... उठती हो ....... पांच बज चुके हैं।’’ राजीव ने अपनी पत्नी को जगाते हुए कहा। ‘‘अरे भई जल्दी उठो .. नहीं तो देर हो जायेगी.... फिर फायदा क्या होगा? जल्दी उठो, डॉक्टर ने तुमको तडक़े ही टहलने को कहा है न ...... चलो नहीं तो तुम्हारी तबीयत ठीक कैसे होगी।

‘‘ऊं.... ऊं छोडि़ए भी .... आज नहीं चलेंगे.... कल से चलेंगे... मुझे सर्दी लग रही है। ..... आप भी चुपचाप लेटिए।’’ सुनीता ने आलस्य में लेटे ही लेटे उत्तर दिया। अरे उठो भी.... कल तो कभी नहीं आता... और कल भी तो तुमने यही कहा था। राजीव ने कहा। परन्तु सुनीता नहीं उठी।

‘‘ओफ, तुम तो सुनती भी नहीं, एक तो तुमको ‘हाई ब्लड प्रेशर’ की बीमारी और फिर ऊपर से ‘डायबिटीज’। न जाने कितने बार डॉक्टर तुम्हें रोज सुबह टहलने के लिए कह चुके हैं..... पर एक तुम हो.... सुनती ही नहीं.. अच्छा चलो उठो तो। राजीव ने उसे अधिकारपूर्वक उठाते हुए कहा।

‘‘सिर दर्द हो रहा है।’’ सुनीता ने सिर पकड़ते हुए दूसरा बहाना खोजा।

‘‘पहले उठो तो, सब ठीक हो जाएगा।’’

‘‘नहीं बहुत दर्द हो रहा है।’’


‘‘ मैं जानता हूं, यह सब तुम्हारे बहाने हैं। अच्छा कोई बात नहीं ... मैं तुम्हारे सिरदर्द की दवा चाय बनाकर लाता हूं।’’ राजीव उठकर चाय बनाने चला गया। चाय बनाकर उसने एक कप सुनीता को दी तथा एक कप खुद ली। अब तो सुनीता को उठना ही पड़ गया। सभी दैनिक कार्यो से निवृत होने के बाद दोनो पति-पत्नी टहलने के लिए तैयार हो गये। बच्चों को भी राजीव ने उठा दिया था। उनको पढ़ते रहने का निर्देश देकर टहलने के लिए चल पड़े।

‘‘सुनीता ... देखो ....कितना सुहावना मौसम है.... ठंडी ठंडी हवा चल रही है...... लोग कितनी फुर्ती से आ-जा रहे हैं..... टहल रहे हैं, हंस-खेल रहे हैं।’’ राजीव ने सुनीता का मन बहलाने की दृष्टि से कहा। सुनीता ने कोई उत्तर न दिया। अब तक वे दोनों पार्क में आ चुके थे। जहां कोई दौड़ कर पार्क का चक्कर लगा रहा था, कोई बैठ कर सुस्ता रहा था। पूरा का पूरा पार्क फूलों की ताजगी से महक रहा था। सुनीता तथा राजीव ने भी तीन-चार चक्कर लगाये। कुछ देर आराम किया और लौट पड़े ...घर की ओर।

‘‘देखो....अगर तुम इस तरह रोज टहलने आया करो... तो तुम्हारी तबियत जल्दी ठीक हो जायगी।’’ राजीव ने सुनीता को समझाते हुए फिर कहा।

‘‘रोज... इतनी दूर .... आज ही इतना ज्यादा थक गयी हूं ... रोज आना तो मुश्किल है।’’ सुनीता ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

‘‘क्यों .... जैसे आज आई हो ... वैसे ही रोज आओगी... फिर तुमको यहां ताजी हवा मिलती है....वह बंद घर में कहां मिल सकती है... वैसे भी घर पर तुम दिन भर परेशान रहती होगी.. इस तरह कम से कम तुम्हें कुछ देर तसल्ली तो रहेगी।’’

 ‘‘हूं।’’ सुनीता बस चलती ही चली जा रही थी। घर जाते समय रास्ते में सब्जी मंडी थी। उसी तरफ से जाते हुए राजीव की नजर अचानक एक लड़की पर पड़ी। ‘‘देखो तो उसे,  सुनीता ...।’’ राजीव ने उस लड़की को सुनीता को दिखाते हुए कहा।

 ‘‘क्या देखूं .., लड़की है..है कुछ बीन रही है।’’ सुनीता ने उदासीनता से कहा।

‘‘यही तो तुमको मैं दिखाना चाहता हूं। यह लड़की ज्यादा से ज्यादा ग्यारह बारह साल की होगी। बदन पर एक फिराक है, और वह भी कई जगह से फटी हुई है। पैरों में अलग-अलग तरह की चप्पलें हैं। उनमें भी एक टूटी है। बाल उसके उघरे हैं, एक डोरे से बंधे हुए। लगता है कि तेल तो शायद उनमें महीनों से नहीं पड़ा है। दिसंबर की इस भयावह सर्दी में वह दोनों हाथों में थैला लिये इधर-उधर कुछ बीनती जा रही है।’’

राजीव लड़की की हालात देखते-देखते कहता गया।

‘‘जानती हो यह क्या बीन रही है।’’ राजीव सुनीता से पूछ पड़ा।

‘‘पता नहीं, कुछ बीन रही है।’’ सुनीता ने उसकी बात पर ध्यान न देते हुए उत्तर दिया।’’

वह बीन रही है, अपनी रोजी, अपनी रोटी। जब रात में सब्जीवाले सब्जी बेच कर घर लौटते हैं, तो उनके ठेले के इर्द-गिर्द कुछ सब्जी गिर जाती है...किसी के प्याज के एक-दो गाठें है... किसी का एक बैंगन । किसी की कुछ मिर्च बिखर जाती है... किसी की कुछ अदरक। कोई टमाटर छोड़ जाता है तो कोई आलू। यह लड़की यही सब बीन रही है। खोजती है। उसे कुछ न कुछ मिल जाता है। फिर इन सबको इकट्ठा करती है। जानती हो यह इन सबका क्या करेगी... । इनको गरीब-गुर्बा में बेच देगी....। और तब उसे जो कुछ पैसे मिलेंगे....उनसे इसके घरवालों का काम चलेगा। इसका यह काम रोज का होता है.... तडक़े चार बजे उठना ..... चाहे जाड़ा हो या बरसात। बीनती है.. इकट्ठा करती है तब बेचती है। इस समय भी देखो उसे ..... उसके हाथ के रोएं खड़े है .... फिर भी वह अपने काम में लगी है। कितनी मेहनत पड़ती है उसे अपनी रोटी के लिए। एक हम हैं, केवल अपने ही स्वास्थ्य के लिए सुबह उठने में आनाकानी करते हैं। सुनीता सिर नीचे किए हुए चुपचाप चलती जा रही थी, जैसे उसे अपने ऊपर ग्लानि से उसके मन में एक निश्चय भी उभर रहा था, अब वह रोज टहलने आया करेगी... यहां पढऩे को मिलती है जिंदगी की खुली किताब जिसमें रोजी रोटी की कहानी अंकित मिलती है, ऐसी कहानी जिससे मन में संवेदना के तार झंकृत हो जाते हैं।

(लगभग पैंतींस वर्ष पूर्व लिखी कहानी शायद आज भी सामयिक लगती है —अकु श्रीवास्तव )


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
अनामिका की कवितायेँ Poems of Anamika
सितारों के बीच टँका है एक घर – उमा शंकर चौधरी
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है