गोरक्षकों के नाम पर भस्मासुर पैदा करना चाहते हैं
~ विभूति नारायण राय
Cartoon by Keshav courtesy The Hindu |
क्या हम भी उस रपटीली राह पर चल पड़े हैं, जिस पर अस्सी और नब्बे के दशकों में चलकर पाकिस्तानी समाज बर्बाद हुआ था।
एक हिंदू साध्वी ने पहलू खान के हत्यारे की तुलना भगत सिंह से की, तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी चैनलों पर ऐसे मौलानाओं की बाढ़ आ गई है, जो हत्यारों को धार्मिक योद्धा बता रहे हैं।
कई हजार मील और एक पखवाड़े के फासले पर हुई दोनों हत्याओं में कुछ अद्भुत समानताएं हैं, जिन्हें हर भारतीय को चिंता के साथ देखना चाहिए। दोनों के पीछे समाज में मौजूद वे कट्टरपंथी हैं, जो धर्म की अपनी तरह से व्याख्या करते हैं। और दुर्भाग्य से, उनके धर्मावलंबियों का एक बड़ा समूह उन्हीं की तरह सोचने लगा है। हत्याओं के बाद भारतीय राज्य राजस्थान और पाकिस्तानी राज्य खैबर पख्तूनख्वा — दोनों के मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रियाएं भी एक ही जैसी थीं। दोनों ने इस घटना के लिए प्रांत को उत्तरदायी मानने से इनकार कर दिया। एक हिंदू साध्वी ने पहलू खान के हत्यारे की तुलना भगत सिंह से की, तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी चैनलों पर ऐसे मौलानाओं की बाढ़ आ गई है, जो हत्यारों को धार्मिक योद्धा बता रहे हैं। खुद उसके विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने हत्या के बाद पिछली तारीख से एक नोटिस जारी करके उसे ईश निंदक ठहराने का प्रयास किया।
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छिपे थे भाई... फहमीदा रियाज
दोनों मामलों में एक उत्साहवर्धक समानता भी है — पड़ोसी मौलवी के मस्जिद से एलान के बाद कि मशाल के जनाजे में शरीक होना कुफ्र होगा, एक बहादुर इंसान ने अपनी बंदूक दीवार से टिकाई और नमाज-ए-जनाजा पढ़ाई। मशाल के अध्यापक जियाउल्ला ने उसे न बचा पाने के लिए रोते हुए जियो चैनल पर पूरे पाकिस्तान से माफी मांगी और हत्यारों के साथ काम करने से इनकार करते हुए विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया। इसी तरह जयसिंहपुर में जब पहलू खान दफ्न हो रहा था, तो नम आंखों के साथ वहां के आस-पास के गावों के वे तमाम हिंदू मौजूद थे, जिनके साथ खेलते-कूदते पहलू का बचपन बीता था और जिनमें से कई उसे पशु खरीदने के लिए कर्ज देते थे। उसके एक ठाकुर दोस्त की यह छटपटाहट भी हौसला बढ़ाने वाली है कि काश, पहलू के कत्ल के समय वह भी मौके पर होता।
जनरल जियाउल हक की नीतियों ने जिन जेहादियों को पैदा किया था, वे आज अपने समाज के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए खतरा बने हुए हैं और पाकिस्तानी फौज पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों जवानों की कुर्बानियों के बावजूद उन्हें काबू नहीं कर पा रही है। क्या हम भी गोरक्षकों के नाम पर ऐसे ही भस्मासुर पैदा करना चाहते हैं?पाकिस्तान मे विवादित ईश निंदा कानून पिछले एक दशक में सैकड़ों ईसाइयों, हिंदुओं, अहमदियों की जान ले चुका है और जिस तरह से भारतीय राज्यों में गो-हत्या के खिलाफ बने कानूनों को सख्त बनाने की होड़ लगी है, उससे वह दिन दूर नहीं है, जब भीड़ को पीट-पीटकर हत्या करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह काम तो न्यायालय ही करने लगेगा।
हमें गंभीरता से बैठकर विचार करना होगा कि क्या हम भी उस रपटीली राह पर चल पड़े हैं, जिस पर अस्सी और नब्बे के दशकों में चलकर पाकिस्तानी समाज बर्बाद हुआ था। हमें याद रखना होगा कि इस राह में फिसलने के बाद ब्रेक लगाना निहायत ही मुश्किल होता है। जनरल जियाउल हक की नीतियों ने जिन जेहादियों को पैदा किया था, वे आज अपने समाज के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए खतरा बने हुए हैं और पाकिस्तानी फौज पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों जवानों की कुर्बानियों के बावजूद उन्हें काबू नहीं कर पा रही है। क्या हम भी गोरक्षकों के नाम पर ऐसे ही भस्मासुर पैदा करना चाहते हैं?
मेरी मित्र और उर्दू की मशहूर पाकिस्तानी शायरा फहमीदा रियाज ने 1999 में मेरे दफ्तर में बैठकर कुछ हिंदी कवियों के सामने भारतीय समाज में बढ़ रहे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धीरे-धीरे पाकिस्तान की राह पर जाने को लेकर अपनी एक ताजा कविता पढ़ी थी — तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छिपे थे भाई...। उसी दिन शाम को उन्होंने मॉडल स्कूल के इंडो-पाक मुशायरे में इसे पढ़ा और खूब तालियां लूटीं। दूसरे दिन जब वह जेएनयू के छात्रों के बीच इस कविता को पढ़ रही थीं, तो शराब के नशे में धुत्त दो दर्शक पिस्तौल लहराते हुए उनकी तरफ बढ़े। यह अलग बात है कि छात्रों ने उन्हें दबोच लिया और पिटाई के बाद पुलिस को सौंप दिया। पता नहीं, आज के जेएनयू में कोई भारतीय समाज में बढ़ रही कट्टरता व असहिष्णुता का जिक्र करे, तो छात्रों की क्या प्रतिक्रिया होगी?
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक के अपने विचार हैं।
विभूति नारायण राय, पूर्व आईपीएस अधिकारी
हिंदुस्तान डॉट कॉम से साभार)
००००००००००००००००
विभूति नारायण राय, पूर्व आईपीएस अधिकारी
हिंदुस्तान डॉट कॉम से साभार)
0 टिप्पणियाँ