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| अनन्या वाजपेयी |
गांधी की ऐसी जरूरत पहले कभी नहीं महसूस हुई
— अनन्या वाजपेयी
जिस दक्षिणपंथी हिंदू श्रेष्ठवादी पार्टी का शासन — अल्पसंख्यकों को आतंकित करने, दलितों और मुसलमानों को पीटने, और इंसानी एकता और आपसी सम्मान के वह सभी बंधन — जिन्होंने मतभेदों के बावजूद हमें राजनीतिक समुदाय के रूप में एकजुट रखा हो — को तोड़ने जैसी घटनाओं का सामान्यीकरण करता हो, तो यह तो तय है कि वह गांधी की भाषा में बात नहीं करती। और न ही वह किसी पारंपरिक तरीके के हिसाब से ही सच्ची ‘हिंदू’ है।
दिल्ली के आईआईटी में 10 जून को स्पिक मैके के पांचवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के फाइनल में पूरी रात चलने वाली कॉन्सर्ट की पहली पेशकश कर्नाटक के गायक टीएम कृष्णा की थी। उनके साथ वायलिन पर आरके श्रीराम कुमार और मृदंग पर अरुण प्रकाश थे। कृष्णा ने शुरुआत राग तोड़ी में त्याग राज की बेहतरीन कंपोजीशन दशरथी से की — खोयी-खोयी-सी, परेशान, और बेसुरी-सी — तोड़ी से चुपचाप वो लालगुडी जयरामन की राग बिहाग में थिल्लाना में आये और लगा अचानक जैसे आकाश में झरने गिर रहे हों । उसके बाद ‘वीर उत्तम’ — तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन की कंपा देने वाली रचना — को राग साहना में पेश की...तत्पश्चात कर्नाटकी संगीत की सिरमौर, श्यामा शास्त्री की ओ जगदंबा, भव्य राग आनंद भैरवी में सुनायी।
सब कुछ ठीक चल रहा था कृष्णा हमेशा की तरह मस्त और उन्मुक्त थे। उन तीनों दोस्तों (टीएम कृष्णा, आरके श्रीराम कुमार और अरुण प्रकाश) के बीच संगीत इस खूबसूरती से आवाजाही कर रहा था कि महफिल लगातार ज़ोरदार बनी हुई थी और श्रोताओं को यह भी था कि अब आगे क्या… कृष्णा ने अपने मधुर और गठे हुए अंदाज में कई रागों के मुख्य हिस्सों — वराली, खरहरप्रिया, नीलांबरी, बेगाडा — को एक साथ बुनकर मंत्रमुग्ध करता हुए मुख्य प्रस्तुति गाई।
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| अप्रत्याशित कर गुजरने की आदत कृष्णा को नहीं छोड़ती |
दहशत और खौफ यानी अप्रत्याशित कर गुजरने की आदत कृष्णा को नहीं छोड़ती, 1 घंटे 40 मिनट के आसपास बीत चुके थे और उन्होंने 15 वी शताब्दी में नरसी मेहता का लिखा गुजराती गीत वैष्णव जन को तेने कहिए गाना शुरू कर दिया... यह वही गीत है जिसे महात्मा गांधी ने अपनाया था और जिसे साबरमती आश्रम में प्रार्थना सभाओं में हमेशा गाया जाता था।
गांधी बस एक षड्यंत्रकारी बनिया थे — उनकी व्यापारिक जाति को अपमानित करता उपहास।
कृष्णा ने भजन की शुरुआत अरुण प्रकाश की बनाई धुन पर आधारित श्रुति से की और फिर राग खमाज की ओर बढ़ गए, यह वही राग है जिसमें यह भजन अधिकतर गाया जाता है। तेलुगु छोड़कर...तमिल छोड़कर... कृष्णा को गुजराती गाते हुए देखना रोमांचक था। इस तरह उन्होंने अपने कार्यक्रम की समाप्ति गांधी के उस प्रिय गीत से की जिसे कभी सारा हिंदुस्तान जानता था।
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| वायलिन वादक आरके श्रीराम कुमार |
वैसे तो उस शाम का एक-एक पल संवेदनशील था लेकिन कृष्णा की आवाज में वैष्णव जन को सुनना आंखों को नम कर गया।
हिंदुत्व कितनी बुरी तरह से हिंदूशीलता के गुणों को तहस-नहस करता है और 'वैष्णव जन' — मध्ययुगीन गुजरात के धर्मनिष्ठ हिन्दू का पर्याय — के अर्थ को किस तरह बिगाड़ देता है।
क्योंकि बस चंद घंटों पहले ही बीजेपी के अमित शाह ने अपमानजनक तरीके से गांधी को, छत्तीसगढ़ की एक जनसभा में, चतुर बनिया कहकर पुकारा था, भारत की आजादी के आंदोलन में महात्मा के योगदान को एक तरह से, कुटिलता चालाकी-भरा व्यापारी बताकर खारिज किया और उन आदर्शों, मूल्यों को भी खारिज किया जिन्हें हम हमेशा गांधीवादी संघर्ष से जोड़ते हैं। गांधी बस एक षड्यंत्रकारी बनिया थे — उनकी व्यापारिक जाति को अपमानित करता उपहास।
कृष्णा ने इस बेहतरीन मर्मस्पर्शी गाने को सुना कर हमें उस आदमी की याद दिलाई जिसकी राजनीतिक और और आध्यात्मिक स्मृति को नरेंद्र मोदी के भारत में रोज विवाद का मुद्दा बनाया जा रहा है। संगीत का उस्ताद हमारे ध्यान को वहां ले गया जहां इस गाने की आत्मा बसती है यानी समवेदना — किसी दूसरे इंसान की पीड़ा को समझ पाने, महसूस कर पाने की क्षमता।
वह क्या है जो देश में इस भयावह रूप से बदला है कि आज के समय में इस धुन को सुनना हृदयविदारक हो रहा है
नरसी मेहता अपने भजन में कहते हैं किसी इंसान को पवित्र समझो लेकिन तभी जब वह दूसरों के दर्द को (पीड परायी) महसूस करता हो, तभी जब वह दूसरों के दर्द (पर दुःखे) को दूर करने के लिए तत्पर हो और तभी जब वह यह बिना किसी अभिमान के (मन अभिमान न आणे रे) अपने भीतर की संवेदना के कारण करता हो। हिंदुत्व कितनी बुरी तरह से हिंदूशीलता के गुणों को तहस-नहस करता है और 'वैष्णव जन' — मध्ययुगीन गुजरात के धर्मनिष्ठ हिन्दू का पर्याय — के अर्थ को किस तरह बिगाड़ देता है।
मेहता ने लिखा और गांधीजी ने इसे आगे बढ़ाया कि सच्ची सहानुभूति, किसी पराए के दुख में, बिना खुद को बढ़ावा दिए, पीड़ित होना, किसी को सच्चा हिंदू बनाती है। जिस दक्षिणपंथी हिंदू श्रेष्ठवादी पार्टी का शासन — अल्पसंख्यकों को आतंकित करने, दलितों और मुसलमानों को पीटने, और इंसानी एकता और आपसी सम्मान के वह सभी बंधन — जिन्होंने मतभेदों के बावजूद हमें राजनीतिक समुदाय के रूप में एकजुट रखा हो — को तोड़ने जैसी घटनाओं का सामान्यीकरण करता हो, तो यह तो तय है कि वह गांधी की भाषा में बात नहीं करती। और न ही वह किसी पारंपरिक तरीके के हिसाब से ही सच्ची ‘हिंदू’ है।
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| किरण सेठ |
शनिवार की शाम श्रोताओं में सैकड़ों युवा थे. किरण सेठ के नेतृत्व में नॉन प्रॉफिट स्पिक मैके ने पिछले 40 सालों से लाखों छात्रों को कला से रूबरू कराया है और कला की शिक्षा दी है। मुझे स्कूल और कॉलेज के दिनों में स्पिक मैके के मुफ्त संगीत कार्यक्रम व्याख्यानों प्रदर्शनों की याद आ रही थी, जहां मैंने पहली दफा हिंदुस्तान के बड़े कलाकारों को देखा और सुना।
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| रश्मि मालिक (स्पिक मैके) व अन्य श्रोता |
हिंदुत्वकाल के भारत की त्रासदी सिर्फ विपक्ष, खास करके कांग्रेस और लेफ्ट का फासीवाद के खिलाफ खड़ा न हो पाना नहीं है। ना ही वो संघ की विचारधारा को मानने वालों का इतिहास के साथ जैसी चाही वैसी छेड़छाड़, गांधी को बदनाम करना, अंबेडकर का अपने हिसाब से फायदा उठाना, नेहरूवादी हर स्तंभ को गिराना... यहां तक की संविधान की धज्जियां उड़ा देना है भी नहीं । बीजेपी शासन का सबसे ज़हरीला प्रभाव — सहानुभूति, हमदर्दी, संवेदना का जनमानस से धीरे धीरे खत्म होते जाना है — और हमारा बिना किसी नैतिक मूल्य वाला, एक कमतर इंसान और एक कमतर भारतीय बनते जाना है।
कार्यक्रम की और तस्वीरें देखें
(अनन्या वाजपेयी के आलेख Why Gandhi’s favourite bhajan ‘Vaishnav Jan To’ is so important in Modi’s hate-filled India" का हिंदी अनुवाद - भरत तिवारी)
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