Save 'The Wire' — Om Thanvi |
वायर कि जय ?
— ओम थानवी
आप जानते हैं, देश में मीडिया संकट में हैं। सरकार की सेवा करने (और बदले में मेवा पाने) में लगे पूँजीपति टीवी चैनलों, ऑनलाइन माध्यमों आदि को ख़रीद रहे हैं। स्वतंत्र संगठनों के मालिकों पर सरकार का विज्ञापनों, धमकियों आदि का प्रकारांतर नियंत्रण है।
ऐसे में वायर, न्यूज़ लॉंड्री आदि कुछेक ऑनलाइन माध्यम ही हैं, जो आज़ाद हैं और मुनाफ़े के मक़सद से नहीं बल्कि वास्तविक सरोकारों के लिए जोखिम लेकर भी आदर्श क़िस्म की पत्रकारिता कर रहे हैं।
'वायर' ने देश के सबसे ताक़तवर राजनेता से लड़ाई मोल ली है, क्योंकि नेता के पुत्र के व्यापार में दस्तावेज़ी अनाचार पाया गया है। वायर के इस साहस की घर-घर वाहवाही है। जब अख़बार-टीवी ज़्यादातर जनता के साथ नहीं रहे, सच कम ही जगहों पर अपनी ताक़त बनाए रखने की जद्दोजहद कर रहा है। ऐसे दुस्साहस को हतोत्साह करने के लिए कई हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
'वायर' पर 100 करोड़ का मुक़दमा ऐसी ही हरकत है। यह सच उगलने वाले मीडिया पर ही हमला नहीं है, देश के पुरुषार्थ की परीक्षा है।
मेरा मानना है कि उन नागरिकों को आगे आने की ज़रूरत है जो स्वाधीन भारत को स्वाधीन बनाए रखने पक्षधर हैं। बुलंद आवाज़ें बची रहें, कुचली न जाएँ इसके लिए उन माध्यमों की मदद करें जो संकट में हैं या डाले जा रहे हैं।
स्वाधीनता बचाने के लिए उठाया गया यह क़दम दरअसल नागरिक समाज की अपनी ही मदद होगा। इस अर्थ में भी कि ऐसे जानदार ऑनलाइन इदारों द्वारा अक्सर कोई चंदा नहीं लिया जाता, जबकि कितने ही निर्जीव अख़बार, पत्रकाएँ और चैनल हम नियमित रूप से पैसा देकर हासिल करते हैं।
मेरे पास आय का कोई स्थाई ज़रिया अब नहीं है, पर इंडियन एक्सप्रेस से मिले पैसे में से 10,000 रुपए वायर को भेजने में मुझे कोई बोझ नहीं।
आप भी ऐसे सहयोग पर विचार कीजिए। जैसा कि मैंने पहले कहा, हम जो ख़ास सामग्री पढ़ रहे हैं, यह उसी का प्रतिदान है, कोई चंदा नहीं है।
डाक का पता यह है:
कुछ नहीं तो मेरे इस संदेश को आगे अपने सजग-जागरूक मित्रों से साझा ही कर लीजिए।
ऐसे में वायर, न्यूज़ लॉंड्री आदि कुछेक ऑनलाइन माध्यम ही हैं, जो आज़ाद हैं और मुनाफ़े के मक़सद से नहीं बल्कि वास्तविक सरोकारों के लिए जोखिम लेकर भी आदर्श क़िस्म की पत्रकारिता कर रहे हैं।
'वायर' ने देश के सबसे ताक़तवर राजनेता से लड़ाई मोल ली है, क्योंकि नेता के पुत्र के व्यापार में दस्तावेज़ी अनाचार पाया गया है। वायर के इस साहस की घर-घर वाहवाही है। जब अख़बार-टीवी ज़्यादातर जनता के साथ नहीं रहे, सच कम ही जगहों पर अपनी ताक़त बनाए रखने की जद्दोजहद कर रहा है। ऐसे दुस्साहस को हतोत्साह करने के लिए कई हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
'वायर' पर 100 करोड़ का मुक़दमा ऐसी ही हरकत है। यह सच उगलने वाले मीडिया पर ही हमला नहीं है, देश के पुरुषार्थ की परीक्षा है।
स्वाधीनता बचाने के लिए उठाया गया यह क़दम दरअसल नागरिक समाज की अपनी ही मदद होगा। इस अर्थ में भी कि ऐसे जानदार ऑनलाइन इदारों द्वारा अक्सर कोई चंदा नहीं लिया जाता, जबकि कितने ही निर्जीव अख़बार, पत्रकाएँ और चैनल हम नियमित रूप से पैसा देकर हासिल करते हैं।
छोटे-मोटे शाह से कोई मीडिया उठने वाला नहीं है। फिर भी मौजूदा घड़ी में हमें 'वायर' को भुगतान कर पढ़ना चाहिए।
मेरे पास आय का कोई स्थाई ज़रिया अब नहीं है, पर इंडियन एक्सप्रेस से मिले पैसे में से 10,000 रुपए वायर को भेजने में मुझे कोई बोझ नहीं।
आप भी ऐसे सहयोग पर विचार कीजिए। जैसा कि मैंने पहले कहा, हम जो ख़ास सामग्री पढ़ रहे हैं, यह उसी का प्रतिदान है, कोई चंदा नहीं है।
'वायर' में 200 रुपए से लेकर अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी भी राशि के सहयोग का प्रावधान नीचे दिए लिंक पर है।
http://bit.ly/SaveWire
डाक का पता यह है:
द वायर
शहीद भगत सिंह मार्ग (पहली मंज़िल),
गोल मार्केट,
नई दिल्ली 100001.
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