'मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है' हिन्दू-हिंसा पर ब्रजेश राजपूत #BharatBandh

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मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है। वाटस अप पर चल रहे संदेशों को मानें तो 10 अप्रैल को सवर्णों ने बंद का आह्वान किया है तो 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इन दोनों तारीखों पर कोई पक्ष बवाल खडा ना करें। इसकी चिंता है।



बारह बोर की हो या तेरह बोर की... मेरा बेटा तो गया साब...

( सुबह सबेरे में ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, की ग्राउंड रिपोर्ट )


‘इस गली में जो गोली चली वो रिवाल्वर की थी मगर दीपक को तो बारह बोर की गोली लगी है?’

दृश्य एक : ग्वालियर के थाटीपुर का गल्ला कोठार की हरि केटर्स वाली गली। एक दिन पहले हुये उपद्रव के निशान हर ओर मौजूद थे। टूटे कांच और हर ओर बिखरे पत्थर गवाही दे रहे थे कि उस दिन जमकर उपद्रव हुआ होगा। गली के मोड पर ही लगा था ‘हरि केटर्स’ का वो बोर्ड जहां से सटकर राजा चौहान नाम के युवक की रिवाल्वर से फायरिंग करते हुये का वीडियो वाइरल हुआ था।



गली के आखिर में ही है, टीन की छत से बना, दीपक जाटव का मकान। दो तारीख को हुयी हिंसा में दीपक को तीन गोलियां लगीं थीं। सोमवार की सुबह जब थाटीपुर में हिंसा भडकी तो दीपक अपनी मां और भाई को घर में बंद कर पिता को तलाशने निकला था मगर खुद गोली का शिकार हो गया। दीपक सुबह ‘हरि केटर्स’ के बोर्ड के सामने ही चाय का ठेला लगाता था तो दिन में लोन पर उठाया हुआ आटो चलाता था।



दीपक के पिता का बुरा हाल है, उस पर पत्रकारों के ये सवाल, ‘इस गली में जो गोली चली वो रिवाल्वर की थी मगर दीपक को तो बारह बोर की गोली लगी है?’, बूढा बाप सुबक उठता है, ‘बारह की हो या तेरह की साब! मुझे नहीं मालूम, मेरा बेटा तो गया, उसकी लाश घर भी नहीं ला पाये, रात में ही जलाना पडी, हम सरकार से तो लड नहीं सकते, आप बताओ, ये नया आटो कौन चलायेगा, हमारा घर कौन चलायेगा?’



दृश्य दो : भिंड जिले के मेहगांव की ‘कृषि उपज मंडी’ के किनारे बसी ‘बौद्ध विहार कालोनी’। यहीं के मकान नंबर दस के बाहर, लोग जमीन पर दरी बिछाकर बैठे हैं, और अखबारों में छपी हिंसा की कवरेज को पढकर सुलग रहे हैं।

‘हमारे ही लोग मरे हैं और हमारे ऊपर ही मुकदमे दर्ज हो रहे हैं ये कहां का इंसाफ है?’ 




इसी घर का सोलह साल का आकाश, मेहगांव में सोमवार को हुये उपद्रव में चली गोली बारी में नहीं रहा था। कैमरा देखते ही सुलग उठते हैं लोग। ‘हमारे ही लोग मरे हैं और हमारे ऊपर ही मुकदमे दर्ज हो रहे हैं ये कहां का इंसाफ है?’ छह बहनों का इकलौता भाई आकाश सब्जी लेने गया था मगर जाने कैसे उपद्रवियों की भीड का हिस्सा हो गया और दोपहर तक घर आयी उसकी मौत की खबर। आकाश के साथ उस दिन भीड में शामिल नौजवान बताने लगे कि हम तो शांति से दुकान बंद करा रहे थे, मगर थोडी देर बाद ही, आगे से पुलिस, और पीछे से आरएसएस के लोगों ने घेर लिया, ऐसे में हम डंडे नहीं लहराते तो क्या करते? जान बचाकर भागे तो अब तक भाग ही रहे हैं, पुलिस हमें तलाश रही है, सैंकडों लोगो के नाम एफआईआर में तहसीलदार ने लिखा दिये हैं।‘



दृश्य तीन :भिंड जिले से सत्तर किलोमीटर दूर पडता है मछंड कस्बा जहां पुलिस की फायरिंग में महावीर राजावत मारा गया था। मछंड से महावीर के गांव गांद जाने में जिस भी गांव में गये तो हमारी गाडी देखकर लोग छिपते मिले। सोमवार की हिंसा के बाद, अब, पुलिस लोगों को तलाशती घूम रही है। बत्तीस साल के महावीर ने मां-बाप की सेवा के लिये शादी नहीं की थी। सोमवार को जब मछंड में भाई की दुकान में आग लगने की खबर सुनी तो भाग कर यहां आया और थाने का घेराव करने वाली भीड का हिस्सा बन बैठा। पुलिस ने जब गोली बरसाई तो गोली सीने में धंस गयी। गोली अंत्येष्टि से पहले ही, पुलिस मेटल डिटैक्टर की मदद से, मुश्किल से निकल पायी। महावीर के बुजुर्ग पिता एक तरफ बैठे सुबक रहे हैं तो सूरत से सोमवार को आया भाई सुरेंद्र भी, ग्वालियर में हिंसक भीड से पिटा और अस्पताल में बेहोश मिला। यहां घर आया तो भाई की लाश दरवाजे पर मिली। उधर मछंड में पहले बाजार की दुकानें जलीं और लुटीं हैं तो बाद में दलितों के घर जला दिये गये हैं। पुत्तु राम के रोड का घर जला दिया गया है, पत्नी और बेटी को छोड परिवार के सारे पुरूष दो दिन से लापता है।



ग्वालियर चंबल संभाग में चार दिन बिताने के बाद जब लौटा हूं, तो ये ऐसे ढेर सारे सीन, आंखों के सामने गडड मडड हो रहे हैं। एससीएसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के बाद जो भारत बंद हुआ उसमें सबसे ज्यादा हिंसा यहीं देखी गयी। आठ लोग यहां मारे गये, सौ डेढ सौ लोग ग्वालियर और भिंड के अस्पताल में इलाज करा रहे हैं तो हजारों लोगों के नाम पर भिंड, मुरैना और ग्वालियर जिले के थानों में एफआईआर कट रही है। पुलिस घरों पर दबिश दे रही है, तो थानों में मुजरिमों को रखने की जगह नहीं बची है।



मेहगांव में हमारे सामने ही कई युवकों को पुलिस थाने ले गयी ये कहकर कि इनके नाम एफआईआर में लिखे गये हैं। शिवराज सरकार में चार मंत्रि, तो मोदी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री वाले, इस इलाके के लोग हैरान हैं कि यहां ऐसी हिंसा क्यों भडकी और उसे रोका क्यों नहीं गया। क्या नेता-मंत्री केवल गाडी, बंगले और रूतबे के लिये ही हैं। दलित और सवर्णों के बीच ऐसा भयानक बंटवारा और वैमनस्य यहां हुआ हो और इसकी खबर किसी को ना हो ऐसे कैसे हो सकता है? यहां भडकी हिंसा में इलाके के गन कल्चर ने आग में घी का काम किया है। शहर की गलियों में जितनी बंदूकें रिवाल्वर लहराती दिखीं उसे देख हैरानी हुयी। खैर अब चिंता ये है कि सामाजिक बंटवारे का ये घाव कब तक और कैसे भरेगा, क्योंकि कुछ महीनों बाद राज्य में चुनाव है और तब तक इन जख्मों को जिंदा रखकर पार्टियों अपनी वोटों की रोटियां तो सेकेंगीं हीं, इस कडवी सच्चाई से क्या आप इनकार करेगें।

मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है। वाटस अप पर चल रहे संदेशों को मानें तो 10 अप्रैल को सवर्णों ने बंद का आह्वान किया है तो 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इन दोनों तारीखों पर कोई पक्ष बवाल खडा ना करें। इसकी चिंता है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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