तीतर फांद: अन्याय ख़िलाफ़ में खड़े मनुष्य के लोकतान्त्रिक मुक्ति का उत्तर-आधुनिक पाठ है


समीक्षा

सत्यनारायण पटेल प्रकृति को साथ लेकर चलते हैं

— विनोद विश्वकर्मा




'तीतर फांद' चर्चित उपन्यासकार सत्यनारायण पटेल का नवीनतम कथा संग्रह है, मेरा ख्याल है कि आप अभी 'गाँव भीतर गाँव' उपन्यास को भूले न होंगे लेकिन यह कहानी संग्रह आपको इसलिए नहीं पढ़ना चाहिए की यह आपके प्रिय कथाकार का है, बल्कि इसलिए पढ़ना चाहिए कि यह आज के समय का जीवंत दस्तावेज़ है, हमारे समाज का कच्चा चिट्ठा है, आम आदमी की पीड़ा का अंतर्नाद है। न जाने क्यों मुझे इस संग्रह की कहानियां पढ़कर अमरीकी कथाकार ओ हेनरी की याद बरबस आती रही, शायद इसलिए कि इस संग्रह की कहानियां हमें ठीक उसी तरह मनुष्य बनाने की कोशिश करती हैं जैसे 'आखिरी पत्ता', समाज से इंसानियत का आखिरी पत्ता झड़ चुका है, पर हेनरी अपनी कला से बचाये हुए है। ठीक उसी तरह तीतरी का संघर्ष हमारे बीच एक इंसान को जिन्दा कर देता है।



पिछले कुछ वर्षों में देश का जो हाल रहा है, जनतंत्र और लोकतंत्र कहीं क्यों खोता गया है, इसकी पूरी समझ और अपनी कलात्मकता में मानव को मानव बनाने की कोशिश करती इस संग्रह की कहानियों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि आज हमारा ईमान 'जर्जर' क्यों हो गया है ? ऐसा क्या हो गया है कि कोई ख़ास विचारधारा और कोई ख़ास व्यक्ति ही क्यों हमारे मन का, विचार का, नियंत्रण करना चाहता है, और वह लोकतांत्रिक ताकतों को झटका दे रहा है।

विनोद विश्वकर्मा

ये कहानियां हमारे आपके हम सबके जीवन की हैं, यह ऐसी बतकही में कही हुई बातें हैं जो हमें अपनी लगती हैं, कहीं न कहीं इनके विषयों में हम सब शामिल हैं। बहुत पहले हमने इस बात के लिए संघर्ष किया था कि समाज में लोकतंत्र की स्थापना हो और जनता का हित उसमें प्रमुख हो लेकिन आज जनता की कीमत कैसे घटी है, मंत्रियों, अफसरों और असंवैधानिक जुलूसों की कीमत बढ़ गई है, जैसे यह लोग जो कह रहे हैं, और कर रहें हैं वही सही है और हमारी विवशता है कि सब ठप्प है, क्योंकि मंत्री आ रहा है, कहीं जुलूस निकल रहा है, कान में, दिमाग में 'ढम्म...ढम्म..ढम्म' बज रहा है। पहले कभी जब यह ध्वनि हमें सुनाई पड़ती थी तो जन जागृति के लिए होती थी लेकिन आज फासीवादी विचारधारा की वृद्धि और व्यक्ति पूजा के लिए होती है ऐसा क्यों है ?लोकतंत्र के मूल्य हमारी चिंता का विषय आज क्यों नहीं हैं,  यही चिंता है हमारे कथाकार की।

समाज में कैसे और किस तरह से स्त्री कीमत में कमी आई है, कुछ चीजें क्यों आज आतंक का पर्याय बन गई हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है, वह भी मनुष्य हैं, इस दृष्टि से 'न्याव', 'मैं यहीं खड़ा हूँ', 'गोल टोपी' कहानियों को लिया जा सकता है, गोल टोपी हमारे इस छद्म को उजागर करती है कि मुस्लिम भी मनुष्य है ? जबकि न्याव और मैं यहीं खड़ा हूँ स्त्री की वर्तमान दशा को दिखाती हैं। मिन्नी मछली और सांड कहानी समाज में और व्यवस्था में फैले अन्याय की कहानी है। न्याव कहानी हैं यह सोचने पर विवश करती है कि क्यों हम ऐसा समाज बनाते ही क्यों हैं कि उसे हमें ही नष्ट करना पड़ता है।

सत्यनारायण पटेल की यह बहुत बड़ी विशेषता है कि वह प्रकृति को साथ लेकर चलते हैं, और इस क्रम में वह पक्षियों और पेड़ों का मानवीकरण कर लेते हैं, पक्षी और पेड़, हवा और पानी अपनी संवदेनाएँ कह सकते हैं, हमारे समय का मूल्यांकन कर सकते हैं। इसका दर्शन हमें औपन्यासिक और महाकाव्यात्मक औदात्य लिए हुए कहानी 'तीतर फांद' में होते हैं, मुझे लगता है कि यह कहानी हमारे समय की और हमारे वर्तमान रामराज्य की सच्ची गाथा है, जो यह बताती है कि रामराज्य पहले की तरह ही आसमान में ही है, अर्थात वह कहीं नहीं है, वह कुछ लोगों का जुमला है, और जुमला इसलिए कि वह अपना विकास कर सकें, वह केवल अपने विकास की बात करते हैं, क्योंकि सबका साथ और सबका विकास कितना सच है? हम इस कहानी में देखते हैं।

'तीतर फांद' सत्य में एक तीतर के परिवार की कहानी है, जो समय की फांद में अख्लाख की तरह मारा जाता है। लेखक यानी मोहन का इस परिवार से गहरा रिश्ता है, और वह इनसे मन से जुड़ा है। हो सकता है कि इसे पढ़ते हुए आपको लगने लगे कि आप क्या पढ़ रहे हैं लेकिन आपको धैर्य से और अंत तक पढ़ना है, यह कहानी अपने आप में हमारे समाज के सभी पक्षों को प्रकट कर देती है और यह बार - बार प्रश्न खड़ा करती है कि हमारा इंसान होना और इंसान की तरह व्यवहार न करना कितना सही है ?

आम आदमी किस तरह से शासन प्रशासन की फांद में फंस गया है, काम के नाम पर वादे हैं, और सुशासन के नाम पर जंगलराज। काम के स्थान पर भाषण और वादे हैं। रोटी के स्थान पर सपने हैं : यथा - "सुन लो भाई, सुन लो बहना/स्मार्ट सिटी बनाऊंगा!/बुलेट ट्रेन में घुमाउंगा!/स्वर्ग की सैर कराऊँगा !/रोजगार की रट छोड़ दो ........!"(तीतर फांद,  पृष्ठ - 160)आदमी सत्य से दूर है, किसान आत्महत्या कर रहा है, भूख से मर रहा है। पर हमारा महाराजा हमें सपने दिखा रहा है। ऐसा क्यों है? जमीनी हकीकत यह है कि जो गाय का मांस खाने से मना कर रहे हैं वही गाय को मार रहे हैं। और इसका दोष किसी निर्दोष पर डाल दे रहे हैं।



तीतर फांद,  छुटकी तीतरी की कहानी है जिसे मोहन अपने घर में रखता है, अपनी बेटी की तरह मानता है, और अपने मित्रों से ही उसे नहीं बचा पाता है, इस कहानी में जंगल एक प्रतीक है जो तीतरी के लिए है, पर मनुष्यों के बीच उग आए अमानवीय जंगल जिसमें संविधान दो कौड़ी का भी नहीं है, और अचानक ऐसा क्यों हो गया है, इसकी पीड़ा सहती है तीतरी, जो तिवारी और बड़ा बाबू के मांस खाने की लालसा के कारण उन्ही का शिकार होती है। यहाँ किसान और तीतरी की कोई कीमत नहीं है, शम्भू सिंह भी मारा गया है, तीतरी की तरह, बस लोग उसे आत्महत्या कहते हैं। बाजार, विज्ञापन और राजनीति के कुचक्र में फंसे आम आदमीं की छटपटाहट की यात्रा है तीतर फांद,  जिसे हम अपना लेते हैं, और तीतरी के पक्ष में खड़ें हो जाते हैं, मेरे विचार में किसी लेखक की यह सबसे बड़ी देन है कि वह हमें अन्याय के विपक्ष में खड़ा कर दें।

कला के स्तर पर सत्यनारायण पटेल कहानियां लिखते नहीं गढ़ते हैं, जिस तरह से प्रकृति ने अपने आप बना दिए हैं जंगल, नदी, पहाड़ और झरने, जो हमें यह एहसास दिलाते हैं कि हम कहाँ हैं, इनके पात्र, भाषा और संवेदना के स्तर पर हमारे साथ चलने लगते हैं, हमारे जीने, रोने, हँसने के साथी बन जाते हैं और हमें अंत तक वहां ले जाते हैं जहाँ जाने को हमने कभी सोचा भी नहीं था। हमें हमारे ही भूले हुए को याद दिलाने के लिए कथाकार सत्यनारायण पटेल को इस कहानी संग्रह के लिए बधाई।



'तीतर फांद'(कहानी संग्रह),
लेखक-सत्यनारायण,
प्रकाशक-आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
पेपरबैक
पृष्ठ-167,
मूल्य-150.


विनोद विश्वकर्मा,
युवा उपन्यासकार और समीक्षक
सहायक प्राध्यापक, हिन्दी,  शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सतना, मध्यप्रदेश-485001, मो. 09424733246,
ईमेल:dr.vinod.vishwakarma@gmail.com


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan