सवारी-सवारी-सवारी !!! पुल बंगश—चद्दरवाला—भोलू शाह | नलिन चौहान संग दिल्ली


सवारी-सवारी-सवारी !!! पुल बंगश — चद्दरवाला — भोलू शाह | नलिन चौहान संग दिल्ली



नलिन चौहान का दिल्ली पर लिखा हर वाक्य मेरा प्रिय होता जा रहा है. उन्हें पढ़ते हुए यह लगातार महसूस होता रहता है कि नयी से लेकर ट्रांस यमुना से एनसीआर से लुटियन, पुरानी  वगैरह वगैरह दिल्ली में रहने, दिल्ली को जानने वाले असल में उसके बारे में 'कुछ नहीं' जानते.  ... भरत एस तिवारी, 24 फरवरी 2019

राजाओं को अमीर बनाने वाली एक नहर : नलिन चौहान

अकबर के जमाने में इसकी मरम्मत हुई और शाहजहां के समय में अली मर्दन खान ने ... 

भौगोलिक रूप से देखे तो यमुना नदी, रिज और पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली की पहचान रही है। दिल्ली में धरती की ढलान उत्तर से दक्षिण की ओर थी। दिल्ली क्षेत्र की भौतिक विशेषताओं में बृहत विविधता थी और इसी का परिणाम था कि मिट्टी में भी व्यापक किस्म के गुण थे। 

शाहजहांनाबाद के आसपास की भूमि चार भागों में बंटी हुई थी। शहर के उत्तर और दक्षिण में नदी का पुराना तल क्षेत्र, जो कि सिंचित सुविधाओं से युक्त होने के कारण उपजाऊ था, खादर कहलाता था। जबकि दक्षिण और पश्चिम का पहाड़ी क्षेत्र, जिससे होकर नहर गुजरती थी, बंजर था जो कि खंडरात कहलाता था। खंडरात कलां शब्द इसी से निकला था, जिसका मतलब ही था खंडहर। शायद यह भी एक वजह थी कि तब शाहजहांनाबाद के लोग जमीन के नीचे गड़े खजाना मिलने की उम्मीद में जहां-तहां खुदाई करते थे।

पश्चिमी रिज का पहाड़ी क्षेत्र रेतीला और सूखा था, जो कि कोही कहलाता था और 1840 में दिल्ली जिले का एक तिहाई भाग खेती के अयोग्य माना जाता था। नजफगढ़ झील का निचला और पानी से भरा क्षेत्र के नजदीक उत्तर का इलाका डाबर कहलाता था। आज पश्चिमी दिल्ली में जनकपुरी के करीब डाबड़ी गांव, जहां एक पुलिस स्टेशन भी है, के नाम का मूल उसी में निहित है।

दिल्ली का नक्शा 1807 में.
दिल्ली का नक्शा 1807 में.


दिल्ली में नदी और नहर के अनपेक्षित और अकथनीय परिवर्तन से अलग 19वीं सदी में इन इलाकों में राजनीतिक नियंत्रण और राजनीतिक नीति के कारण भूमि उपयोग के स्वरूप में अनेक बदलाव आए।



नदी के बहाव के मार्ग में बदलाव से धरती का उपजाऊपन भी प्रभावित हुआ। उस समय सिंचाई के तीन साधन थे। पहला नदी, जिस पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता था। दूसरा, कुंए जिनमें से कुछ का पानी खारा था और तीसरा मुहम्मद शाह तुगलक के जमाने से भी पुरानी मानी जाने वाली एक नहर (पश्चिमी यमुना नहर की पूर्ववर्ती) जिसका उद्गम करनाल में यमुना से था।





The channel of 'Ali Mardan Khan's canal at Karnal, with the encampment of the Raja of Patiala, Punjab on either side of it


Ali Mardan canal entered the city near Bholu Shah irrigating on the way orchards and gardens upto 20 Kms. Across this canal many small over bridges were constructed, such as the Chaddrwala Pul, Pul Bangash and Bholu Shah, and it divided into three branches: one branch went to Okhla encircling Nizamuddim and feeding Kutub road on the way, and this branch was named Sitare-Wali-Nahar. The second branch entered Chandni Chowk area before being branched off into two streams. One stream went to the main Chandni Chowk via Fatehpuri, but it took a right turn near Red Fort towards Faizpur before terminating at Delhi Gate to join the river. Another stream entered the fort following the present Old Delhi railway station and filled many tanks in the fort in order to keep the palace cool. Outside the fort, there was a water power driven flour mill. This canal was known by the name Nahar-e-Faiz (canal of plenty) in Chandni Chowk and inside the fort, Nahar-e-Bahisht (canal of paradise). The third part of the canal fed the Tis Hazari Bagh and Qudsia Bagh, and merged with the Yamuna near the present Inter-State Bus Terminal.
अकबर के जमाने में इसकी मरम्मत हुई और शाहजहां के समय में अली मर्दन खान ने खेती की जमीन की सिंचाई, शिकारगाहों सहित शहर को पानी उपलब्ध करवाने के लिए पुर्ननिर्माण किया। 17 वीं शताब्दी के अंत में सुजान रॉय ने बताया है कि नहर से कई परगनों में खेती में फायदा हुआ और राजधानी के करीब बागां को सिंचाई के लिए पानी मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका मुख्य उद्देश्य बागों को पानी मुहैया करवाना था जिसके कारण खेतों को भी पानी मिलने का फायदा हो गया। 1793 में इस नहर को देखकर विलियम फ्रैंकलिन ने लिखा कि यह 90 मील से भी लंबे क्षेत्र को उपजाऊ बना रही है। "एनशिंयट कैनाल्स" में कोल्विन ने लिखा है कि इस नहर को तैयार करवाने वाले व्यक्ति को इससे खासा फायदा हुआ और कहा जाता है कि नवाब सफदरजंग को इससे पच्चीस लाख की आमदनी हुई।
1770 के बाद करीब पचास साल तक यह नहर उपेक्षा का शिकार रही। दिल्ली पर अंग्रेजो के अधिकार के बाद नहर के कारण अमीर होने के किस्सों से प्रेरित होकर दो उद्यमी व्यक्तियों ने पहल करते हुए अपने और सरकार के फायदे के लिए प्रस्ताव रखें। मर्सर नामक एक अंग्रेज इंजीनियर ने अपने खर्चे पर नहर को तैयार करने की एवज में 20 साल तक होने वाली आय को लेने की पेशकश की। वहीं झज्जर नवाब के दीवान किशनलाल ने 70 हजार रूपए खर्च करके नजफगढ़ झील (जो कि 52 वर्ग मील का कोटरगत क्षेत्र था जिसमें पश्चिमी यमुना नहर बहती थी) से नहर निकालने और उससे आसपास के इलाकों के उपजाऊ बनने से अनुमानित लाभ में पचास फीसदी हिस्सेदारी का प्रस्ताव दिया था। इन दोनों प्रस्तावों को लेकर (अंग्रेज) सरकार और चतुर थी सो उसने इस काम को किसी एक व्यक्ति को न देने का फैसला किया। सरकारी अधिकारी भी इससे काम से होने वाले व्यावसायिक लाभ को लेकर जागरूक थे। शायद यही कारण था कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं हो सका। 

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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