हमको कभी माफ़ मत करना, तबरेज़...
दो दिन हुए, तबरेज़ की पिटाई का वीडियो न जाने कितने ही लोगों ने भेजा...देखने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था...और फिर आज एक दोस्त से बात हुई और वहां से जवाब आया, "मुसलमान के लिए अब इस मुल्क़ में कोई जगह नहीं...तुम लोग जो चाहें कोशिश कर लो, अब इस मुल्क़ के ज़्यादातर हिंदू, हमारे ख़िलाफ़ हैं...हम बस चुपचाप पंचर बनाते रहें और ज़िंदगी की ख़ैर मनाएं..."
हमारे पास सारे मैसेज साम्प्रदायिक तो नहीं आते...समाज को बेहतर करने के भी आते हैं...लेकिन हम वो मैसेज किसको फॉरवर्ड करते हैं? उन्हीं दोस्तों को, जो पहले से ये सारी बातें समझते हैं...क्या हम ये मैसेज अपने पिता, मां, भाई-बहन, रिश्तेदारों और दोस्तों को भेजते हैं, जो इस साम्प्रदायिकता से भरते जा रहे हैं...जो इन शैतानों के मानसिक चंगुल में आते जा रहे हैं...हम इग्नोर करते हैं...
मैं आज पहली बार ये नहीं कह सका कि ऐसे कैसे हो जाएगा...
मैं नहीं कह पाया कि सब ठीक हो जाएगा...
मैं ये भी नहीं कह पाया कि हम लड़ेंगे मिलकर...
मैं ये भी नहीं कह पाया कि आखिरकार हम इनको हरा देंगे...
मैं क्या कहता आखिर और क्या कह पाता???
इसके ठीक बाद एक और दोस्त का मैसेज आया, जिसने हनुमान चालीसा का वीडियो भेजा था...मैंने बस इतना कहा कि यार ये सब मत भेजा करो...और फिर उससे आगे बात हुई...उसका पहला रिएक्शन था,
'यार, उसे मुसलमान की तरह क्यों देख रहे हो...वो चोरी कर के भाग रहा था...क्रिमिनल में भी तुम लोग यार हिंदू-मुस्लिम करते हो...'
मैं फिर चुप था...
मैं उससे ये नहीं कह पाया कि अगर बात हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं थी तो उस से जय श्री राम और जय हनुमान के नारे क्यों लगवाए गए?
मैं उससे ये भी नहीं कह पाया कि क्या कोई हिंदू चोरी करते पकड़ा जाता, तो भी उससे जय श्री राम के नारे लगवाए जाते?
मैं उससे ये भी नहीं पूछ सका कि क्या जय श्री राम बोलने से चोरी या कोई भी अपराध कम हो जाता है?
मैं उससे ये भी नहीं पूछ सका कि क्या अगर उसने चोरी की भी थी, तो क्या उसे पीट कर मार डालना चाहिए था?
मैं चाहता हूं कि मेरी दाढ़ी को देख भी किसी दिन मुझे ये लोग मुस्लिम समझें...मैं भी अपना नाम तबरेज़ बता दूं...मुझे भी पीट कर ये लोग मार डालें और शायद उस रोज़ कम से कम मेरे परिवार, मेरे रिश्तेदारों और मेरे दोस्तों को ये अहसास हो जाए कि वो किस पागलपन के साथ खड़े थे...और कोई रास्ता मुझे नहीं सूझता है...मैं दोनों से कुछ नहीं कह सका...मैं किसको समझाऊं...और क्या कह कर...क्या कहूं मैं अपने मुस्लिम दोस्तों से कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा? क्या 5 साल में कुछ ठीक हुआ? क्या हम इतनी ताकत और मेहनत से लड़ रहे हैं साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ कि हम कुछ ठीक कर सकें? क्या हम रोज़ देश की तमाम राजनैतिक विपक्षी ताकतों से लेकर, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को ,साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ने की जगह एक-दूसरे की छवि खराब करने में लगे रहते नहीं देखते हैं...हम किस मुंह से उनको ढांढस बंधा दें...हम कैसे उनसे कहें कि हम बचा लेंगे...
क्या कहूं मैं अपने उस दोस्त से, जो इस घटना को सीधे नहीं तो अप्रत्यक्ष तौर पर सही ठहरा रहा है...ऐसे तमाम दोस्तों से सिर्फ दोस्ती बचाए रखने के लिए हम सालोंसाल चुप नहीं रहे हैं क्या...क्या हमने पिछले ही तमाम वक्त में संवाद की जगह सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर देना या ऐसे लोगों को इग्नोर करने का रास्ता नहीं चुना...हमारे पास सारे मैसेज साम्प्रदायिक तो नहीं आते...समाज को बेहतर करने के भी आते हैं...लेकिन हम वो मैसेज किसको फॉरवर्ड करते हैं? उन्हीं दोस्तों को, जो पहले से ये सारी बातें समझते हैं...क्या हम ये मैसेज अपने पिता, मां, भाई-बहन, रिश्तेदारों और दोस्तों को भेजते हैं, जो इस साम्प्रदायिकता से भरते जा रहे हैं...जो इन शैतानों के मानसिक चंगुल में आते जा रहे हैं...हम इग्नोर करते हैं...
हम में से कितने लोग ये सवाल लेकर अदालत जाएंगे कि आखिर मेडिकल कंडीशन्स के बावजूद कैसे तबरेज़ को जेल भेज दिया गया...हम में से कितने लोग शरीक होंगे किसी विरोध प्रदर्शन में कि सरकारों और मुल्क के तमाम लोगों को दिखे कि इतने सारे लोग, तबरेज़...हर तबरेज़ के साथ हैं...घूम फिर के उन प्रदर्शनों में वही छोटे और लम्बे बालों, कुर्तों, किताबों और चश्मों वाले चेहरे दिखेंगे...जबकि आपमें से कितने ही लोग इस सब के खिलाफ़ हैं...पर आप नहीमं आएंगे...और देश को ये संदेश दे दिया जाएगा कि कुछ इंटेलेक्चुअलस् के अलावा किसी को इससे दिक्कत नहीं है...देश इसके साथ है...
मैं अभी बिल्कुल साफ तौर पर कहता हूं कि ये चोरी का मामला ही नहीं है, जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगवाने, पुलिस के तबरेज़ को बिना किसी प्रोसीज़र को फॉलो किए गिरफ्तार करने, मेडिकल स्थिति के बावजूद हिरासत में भेज दिए जाने से...और अब झारखंड के बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रिया से साफ है कि इसमें स्थानीय प्रशासन, नेता, पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया तक में शामिल लोगों की या तो मिलीभगत है, या फिर लापरवाही है...ये मामला साफ करता है कि हम नाज़ी जर्मनी बनने से बहुत दूर नहीं हैं...और ये भी कि अब भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस चाहे भी तो अपने ही पैदा किए भस्मासुरों को कंट्रोल नहीं कर सकती...हालांकि वो ऐसा चाहती भी नहीं है...
मैं चाहता हूं कि मेरी दाढ़ी को देख भी किसी दिन मुझे ये लोग मुस्लिम समझें...मैं भी अपना नाम तबरेज़ बता दूं...मुझे भी पीट कर ये लोग मार डालें और शायद उस रोज़ कम से कम मेरे परिवार, मेरे रिश्तेदारों और मेरे दोस्तों को ये अहसास हो जाए कि वो किस पागलपन के साथ खड़े थे...और कोई रास्ता मुझे नहीं सूझता है...
मैं मरना नहीं चाहता पर ये हालात किसी समझदार आदमी के जीने के लायक नहीं हैं...आपको लगता है कि अभी इतने खराब हालात भी नहीं हैं...या सबकुछ ठीक है...तो मैं आपको बता दूं, आपको किसी ने बताया नहीं है...आप मर चुके हैं...
नाथूराम गोडसे को माफ़ कर दीजिए और उसके नाम को गाली की तरह मत इस्तेमाल कीजिए क्योंकि गांधी को हम सब इतनी बार मार चुके हैं कि गोडसे को गांधी का क़ातिल कहना, गांधी और गोडसे, दोनों के ही साथ अन्याय होगा...गांधी, अगर कहीं हो सकते होंगे तो अनशन पर बैठे होंगे...अगर होते, तो झारखंड में अनशन पर बैठ गए होते...
और तबरेज़...मेरे भाई...मेरे दोस्त...मैंने आखिरकार तुम्हारा वीडियो देखा...मैं ज़ार-ज़ार रोने लगा...तुम बेहद ख़ूबसूरत नौजवान थे और सुनो हमको कभी माफ़ मत करना...हम इस लायक भी नहीं हैं कि हमको माफ़ किया जा सके...दरअसल हम इस लायक भी नहीं हैं कि हम तुम्हारा नाम भी अपने मुंह से लें....
अलविदा मेरे मुल्क़...अलविदा नागरिकों...आपको श्रद्धांजलि...अपने-अपने लिए आप सब दो मिनट का मौन रखिए...क्योंकि जब सब मर गए हैं तो आपके लिए कोई और कैसे मौन रखेगा...
रेस्ट इन पीस...
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- मयंक सक्सेना
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मयंक सक्सेना |
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