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शशिभूषण द्विवेदी की कहानी — बॉर्डर | #ShashiBhooshanDwivedi


कहानी कहने के इस शशिभूषण द्विवेदी तरीके को कहानी लिखने की कोशिश में जुटे लेखकों को समझना चाहिए. छोटी-सी सम्पूर्ण कहानी  'बॉर्डर'! 




शशिभूषण द्विवेदी की कहानी — बॉर्डर 

बहुवचन, अंक: 60 (जनवरी-मार्च 2019) से साभार

बॉर्डर शब्द का जिक्र आते ही जाने क्यों हमारे मन में दुनिया के तमाम देशों की सरहदों, उनके तनाव, युद्ध और खून-खराबे के दृश्य घूमने लगते हैं। पैंसठ और इकहत्तर के युद्ध तो हमने नहीं देखे लेकिन करगिल तो हमारे सामने ही गुजरा था। शायद ही कोई शहर या कस्बा हो जब कारगिल से शहीदों की लाशें न आ रही हों। ट्रेनों का हाल यह था कि कश्मीर जाने वाली तमाम ट्रेनें और स्पेशल ट्रेनंे सैनिकों से भरी होती थी। लोग उन्हें सम्मान देते, सलाम करते। हालांकि उस दौर में हमने नागरिक जीवन में सैनिकों की उद्दंडता भी देखी थी। एक फिल्म के सिलसिले में मैं बाघा बॉर्डर भी गया था। शायद वह शांति का समय था इसलिए तब मुझे वहां कुछ भी असहज नहीं लगा था सिवाय उन तारों के बाड़ो के जो दोनों देशों की सीमाओं को अलग करते थे। वैसे लोगों ने बताया था कि तनाव के दिनों में भी यहां के आम जनजीवन पर खास प्रभाव नहीं पड़ता। कितने तो किसानों के खेत बाड़े के उस पार हैं और कितनों के इस पार। रिश्तेदारियां भी हैं। आना-जाना लगा रहता है। हां, कई बार बाड़े के तारों में छोड़ी गई बिजली के कारण मवेशी जरूर मारे जाते हैं। उन्हें किसी बॉर्डर का पता जो नहीं होता। तब मुझे लगा कि टीवी और अखबार हमें कितना कुछ गलत बताते हैं। खैर, मैं यहां जिस बॉर्डर की बात कर रहा हूं वह किन्हीं दो देशों के बीच का बॉर्डर नहीं है बल्कि अपने ही देश के भीतर हमने कितने तो बॉर्डर बना रखे हैं। भले उनकी बाड़ेबंदी न की हो लेकिन एक युद्ध यहां भी लगातार लड़ा जाता है दो राज्यों के बॉर्डर पर। यह दिल्ली-यूपी का बॉर्डर है। आप इसे किसी भी दूसरे राज्य के बॉर्डर के रूप में भी देख सकते हैं। किस्सा शुरू करने से पहले मैं जरा इस बॉर्डर का नक्शा स्पष्ट कर दूं।

बॉर्डर के उस तरफ दिल्ली है जिसकी रंगत ही निराली है। कुछ साल पहले मेट्रो ने आकर इसे और भी निखार दिया है। दूसरी तरफ गोल चक्कर के इस तरफ यूपी शुरू हो जाता है। आटो की रेलमपेल और धुत्त शराबियों की गालियां सुनकर आपको चेतावनी मिल जाती है कि मुस्कुराइए कि आप यूपी में हैं। दिल्ली का आखिरी शराब का ठेका यहीं पर है जिस पर सुबह बारह से रात दस बजे तक शराबियों, स्मैकियों और जेबकतरों की भीड़ एक-दूसरे पर चढ़ी रहती है।

मुझे लगता है कि दिन भर में जितने लोग यहां दिल्ली की कमोबेश सस्ती और अच्छी शराब खरीद पाते होंगे, उससे ज्यादा लोग अपनी जेब कटवाते होंगे। पुलिस रहती है लेकिन डंडा लेकर बैठती ऊंघती हुई। जब कभी उसकी नींद खुलती है तो दो-चार जेबकतरों को लपड़िया कर अपनी ड्यूटी पूरी कर लेती है। यहीं ओल्ड स्कूल का एक सिनेमाहाॅल है जहां अकसर वही फिल्में चलती हैं जो पहले सामान्य सिनेमाहाॅलों में मार्निंग शो में चला करती थीं। उसके आसपास तमाम किस्म की दुकानंे हैं और ऊपर के हिस्से के दड़बेनुमा कमरों में कुछ लोग रहते भी हैं।

सिनेमाहाॅल के भीतर मैं कभी गया नहीं लेकिन एक शरीफ रिक्शेवाले ने बताया कि कभी जाइएगा भी नहीं वरना आपको उल्टी आ जाएगी। वहां सब कुछ होता है, सब कुछ मने सब कुछ। मैंने उससे जानना चाहा कि आज के मल्टीप्लैक्स के जमाने में ये सिनेमाहाॅल चलता भी है? तो उसने बताया कि-जी भरा रहता है। हमारे जैसे लोग कहां मल्टीप्लैक्स में जा सकते हैं। हमारी औकात और पसंद का सनीमा तो यहीं होता है। इस दौर में यह अब तक बचा है, यही गनीमत है। उसने अफसोस के स्वर में कहा। मुझे अपने किशोरावस्था के दिन याद आ गए जब वर्जित दृश्यों को देखने की उत्कंठा में हम क्लास छोड़कर ऐसे ही मार्निंग शो में घुस जाया करते थे जो तब भी अट्ठारह वर्ष से कम वालों के लिए वर्जित थे। उस शो में तब भी हम कुछ उद्दंड छात्रों के अलावा इसी वर्ग के अधेड़-बूढ़े सीटी मारते दिखते थे। पूरी फिल्म में एकाध ही वर्जित दृश्य होता था जिसके लिए लोग पूरा दो-ढाई घंटा बर्बाद करते थे। मुझे लगा कि वो दुनिया बिलकुल नहीं बदली। हां, दृश्य से ओझल जरूर हो गई जिसे कई बार हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।

शरीफ रिक्शेवाले ने आँख मारकर कहा-गुरु यहां सब कुछ मिलता है। शराब, स्मैक, गांजा, लडकी-लडका सब। कमी किसी चीज की नहीं, सब मजा है।

याद आया कि इसी बॉर्डर पर एक लडकी मेरे पीछे पड़ गई थी। मैं एक बीयर लेकर पड़ोस के एक सुनसान पार्क में बैठा था कि वो पीछे-पीछे मेरे बगल में आकर बैठ गई। मैंने पूछा-क्या है? उसने कहा कि साहब मदद की जरूरत है। मैंने कहा-कैसी? उसने कहा कि मेरा बेटा बीमार है, गाजियाबाद हास्पिटल में भर्ती है। आप जो कहोगे मैं करूंगी। उस समय मेरी जेब में हजार रुपये थे। मेरा कमीनापन जाग गया था। अतृप्त इच्छाएं थीं। मुझे लगा कि पांच सौ में वो कुछ भी करने को तैयार है। वैसे मैं उसके बच्चे के बारे में भी सोच रहा था। अपनी बीवी से इतनी सी बात मैं बता नहीं सकता था। बाद में खैर बता दी। मेरा सौभाग्य या दुर्भाग्य, उस औरत ने कुछ किया नहीं, बल्कि चिल्लाने लगी। मैंने हजार रुपये देकर किसी तरह अपना पीछा छुड़ाया और इस तरह मेरी इज्जत बच गई। साली इज्जत। ये बात जब मैंने अपनी पत्नी को बताया तो वो ठहाका मारकर हँसी। बोली-बॉर्डर पर दुश्मन विषकन्याएं भी रखता है, संभलकर रहा कीजिए।

मैं बॉर्डर के इस अंडरवल्र्ड के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। इतना पता था कि यहां जेबकतरे बहुत हैं। यहां की डग्गामार बसों में तो इसकी संभावना नब्बे प्रतिशत है और बसवाले भी इसमें शामिल रहते हैं। अब आटोवाले से एक नई कहानी मिली कि जो तीन-चार किलोमीटर के हम आटोवाले को दस रुपये देते हैं, उसमें हर चक्कर पर बीस रुपये की अवैध वसूली यानी रंगदारी होती है जिसका बड़ा हिस्सा विधायक, सांसद और मुख्यमंत्राी तक जाता है। यही नहीं, चोरी-चकारी भी उसमें शामिल है। मैं चौंक गया। फिर यह भी पता चला कि ट्रक और ट्रांसपोर्ट वालों का भी एक अलग अंडरवल्र्ड है और सब पुलिस के वैधानिक नियंत्रण में होता है। यह सचमुच का बॉर्डर था जिसके कई मोर्चे थे। एक मोर्चे पर मैं भी शहीद हुआ। हुआ यह था कि मैं दिन-दोपहर तीन बजे बॉर्डर से आटो पकड़ कर घर जा रहा था कि अचानक से पीछे से एक लड़का मुझे पकड़ लेता है।

भैया-भैया, मुझे पहचाना नहीं? मैं सोनू का दोस्त।

मैंने उसे देखा। पहचानने की कोशिश करने लगा। सोनू काॅमन नाम है और संयोग से मेरे भाई का नाम भी लेकिन उसके साथ मैंने उसे कभी देखा नहीं था।

फिर सोचा कि क्या पता उसका पुराना दोस्त हो। मैंने हाथ मिलाया। पूछा कि कैसे हो? तो वो बताने लगा कि भैया, यहां गुंडे बहुत हैं। यहीं सामने वाले ढाबे में काम करता हूं। कल गुंडों ने बहुत मारा।

उसने भरी भीड़ में अपनी कमीज उतारकर दिखाया। उस पर डंडों के कई निशान थे। मैं पिघल गया। मैंने कहा-चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। वो गले लगकर रोने लगा। मैं उसे दिलासा देता रहा।

फिर उसने कहा कि भैया आप बहुत कमजोर हो गए हो। चलो सामने वाला ढाबा अपना ही है, खाना खिलाता हूं।

मैंने कहा कि नहीं, मैं खाकर आया हूं।

वो पैर छूकर चला गया। मैं आटो में बैठा। पता चला कि मेरी जेब से तीन हजार रुपये और मेरा मोबाइल गायब है।

बॉर्डर पर सेनाएं लगी हुई थीं और दुश्मन ने प्यार से घात लगा दी थी। अब भी मैं रोज बॉर्डर पर तैनात रहता हूं और दुश्मन घात लगाए बैठा है। कभी भी शहीद हो सकता हूं। ऐसा शहीद जिसे कभी शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा।
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1 टिप्पणियाँ

  1. Strange "water hack" burns 2lbs overnight

    More than 160 thousand men and women are trying a simple and SECRET "liquid hack" to lose 1-2 lbs every night as they sleep.

    It's easy and it works every time.

    Here's how to do it yourself:

    1) Take a glass and fill it half full

    2) Then do this crazy HACK

    so you'll be 1-2 lbs lighter as soon as tomorrow!

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