दर्द हो मेरा, दवा भी हो... समीक्षा: उपन्यास (इरा टाक) 'लव ड्रग' कमलेश वर्मा
मेरे हाथ अख़बार का कागज़ था जिसमें मुझे समय के दो कान काट कर रखने थे अजायबखाना में रखे कीमती पत्थरों का मोह मुझसे अब तक न छूट सका मगर मैं कश्मीर से …
"संगीता के युवा मन में पीढ़ियों की जड़ें गहरी हैं। इन कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है संगीता संकेत में कुछ कह रही हैं।" जिस पुस्तक की समीक्षा …