कहानी: इंसानी जंगलराज - रीता दास राम | Kahani: Insani JungleRaj - Reeta Das Ram

जब कहानी मासूमियत को बरक़रार रखते हुए संदेश देने की कोशिश करती है तब उसे सफल कहानी माना जाना चाहिए। रीता दास राम की कहानी 'इंसानी जंगलराज' पढ़िएगा, अपनी राय रखिएगा। ~ सं०  



इंसानी जंगलराज

~ रीता दास राम

कवि / लेखिका /  एम.ए., एम फिल, पी.एच.डी. (हिन्दी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई 
प्रकाशित पुस्तक: “हिंदी उपन्यासों में मुंबई” 2023 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली), / उपन्यास : “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” 2023, (वैभव प्रकाशन, रायपुर) / कहानी संग्रह: “समय जो रुकता नहीं” 2021 (वैभव प्रकाशन, रायपुर)  / कविता संग्रह: 1 “गीली मिट्टी के रूपाकार” 2016 (हिन्द युग्म प्रकाशन)  2. “तृष्णा” 2012 (अनंग प्रकाशन). विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित: ‘हंस’, कृति बहुमत, नया ज्ञानोदय, साहित्य सरस्वती, ‘दस्तावेज़’, ‘आजकल’, ‘वागर्थ’, ‘पाखी’, ‘शुक्रवार’, ‘निकट’, ‘लमही’ वेब-पत्रिका/ई-मैगज़ीन/ब्लॉग/पोर्टल- ‘पहचान’ 2021, ‘मृदंग’ अगस्त 2020 ई पत्रिका, ‘मिडियावाला’ पोर्टल ‘बिजूका’ ब्लॉग व वाट्सप, ‘शब्दांकन’ ई मैगजीन, ‘रचनाकार’ व ‘साहित्य रागिनी’ वेब पत्रिका, ‘नव प्रभात टाइम्स.कॉम’ एवं ‘स्टोरी मिरर’ पोर्टल, समूह आदि में कविताएँ प्रकाशित। / रेडिओ : वेब रेडिओ ‘रेडिओ सिटी (Radio City)’ के कार्यक्रम ‘ओपेन माइक’ में कई बार काव्यपाठ एवं अमृतलाल नागरजी की व्यंग्य रचना का पाठ। प्रपत्र प्रस्तुति : एस.आर.एम. यूनिवर्सिटी चेन्नई, बनारस यूनिवर्सिटी, मुंबई यूनिवर्सिटी एवं कॉलेज में इंटेरनेशनल एवं नेशनल सेमिनार में प्रपत्र प्रस्तुति एवं पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित। / सम्मान:- 1. ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान’ 2013, तृतीय स्थान ‘तृष्णा’ को उज्जैन, 2. ‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान’ – 2016 नागदा में ‘अभिव्यक्ति विचार मंच’ 2015-16, 3. ‘हेमंत स्मृति सम्मान’ 2017 ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को ‘हेमंत फाउंडेशन’ की ओर से, 4. ‘शब्द मधुकर सम्मान-2018’ मधुकर शोध संस्थान दतिया, मध्यप्रदेश, द्वारा ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को राष्ट्र स्तरीय सम्मान, 5. साहित्य के लिए ‘आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान’ 2019, मुंगेर, बिहार, 6. ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ द्वारा ‘महिला रचनाकार सम्मान’ 2021 / पता: 34/603, एच॰ पी॰ नगर पूर्व, वासीनाका, चेंबूर, मुंबई – 400074. / मो: 09619209272. ई मेल: reeta.r.ram@gmail.com 


शहर की चिकनी सपाट साफ़ सड़क आगे बढ़ती चौराहे से मिलती चार रास्तों को जोड़ती चौड़ी हो गई है। इसी शांत सड़क पर कुछ आवारा कुत्तों की मटरगश्ती हमेशा चलती है। आवारा इसलिए कि उनका कोई मालिक नहीं है। उन्हें बाँध कर रखने वाला कोई नहीं। रोटी देने वाला कोई नहीं। वे खुली आज़ाद  गलियों में पले हैं जिन्हें कोई इंजेक्शन नहीं दिया गया। कोई उनकी देखभाल नहीं कर रहा है। कचरे में पड़ा जूठा खाते हैं और इन्ही रास्तों पर पड़े रहते। वे अपनी गली के बादशाह है। किसी पर भी भौंक सकते है। गुर्रा सकते है। काट सकते है। भगा सकते है। पीछा कर सकते है। अब भी पाँच-छह कुत्ते अपनी गली के शेर बने बैठे हैं। ये गली कुत्तों की है इस पर राज भी इन्हीं का। 
 
कुत्तों ने देखा, पट्टे में बंधे एक कुत्ते को अपनी मालकिन के साथ आते हुए। बहुत सुंदर सफेद स्वच्छ धुला-धुला-सा साफ़ कुत्ता। अपनी मालकिन के कभी आगे तो कभी पीछे चलता। सूँघता हुआ सड़क को, जैसे पता करना चाहता हो, क्या कुछ घट चुका है -- इस सड़क पर उसके आने के पहले और क्या कुछ घटने वाला है उसके आने के बाद। चौकन्ना। सतर्क। इधर-उधर ताकता हुआ। वह देखता है, उन आवारा कुत्तों को देखते हुए अपनी ओर। थोड़ा डरते, थोड़ा सहमते, सकुचाते हल्का-सा गुर्राते, बीच-बीच में पूंछ हिलाते, बहुत कम पर भौंकते, चला जा रहा है वह उस ओर मालकिन के इशारे पर जहाँ चलने का उसे आदेश मिलता है। 
हंसने लगे सभी आवारा कुत्ते। समाज ने जिन्हें आवारा नाम जो दिया है। किसी पर भी हँस सकते है। किसी को भी देख सकते है। किसी की भी खिल्ली उड़ा सकते है .... क्या फरक पड़ता है। भौंकते हुए आपस में बतियाते वो सभी लगे उड़ाने खिल्ली। चिढ़ाने लगे मासूम को, जो बँधा है मालकिन के आज्ञा के घेरे में जबकि वे सभी है आज़ाद। उस बेचारे की मजबूरी या किस्मत वो सभी क्या जाने।  

“अरे देखो !! वो कुत्ता। कुत्तों के नाम पर धब्बा। इंसानों का गुलाम। कैसे पट्टे में बँधा चला जा रहा है। मालिक के पीछे-पीछे दुम हिलाते। बेचारा। बँधा हुआ है। मन की कर भी नहीं सकता। मन-मुताबिक घूम भी नहीं सकता। दौड़ के कहीं आ-जा भी नहीं सकता। जहाँ उसे ले जाया जाता है वो वहीं जा पाता है।” बंधे हुए कुत्ते ने चौंकते हुए कान खड़े किए। उनकी बातें सुनी। नजरंदाज़ किया। फिर असहनीय अंदाज में अपमानित-सा पलटा, उन कुत्तों को देखकर लगा भौंकने। उसकी मालकिन उसे दूसरी ओर खींचे लिए जा रही थी ताकि वह इन आवारा कुत्तों से दूर रहे। लेकिन उसने बोलना जारी रखा, 

“ओ आवारा! कुत्तों ... कमीनों सबके सब। दिन भर गली में घूमते हो इधर-उधर मुँह मारते हुए। तुम्हारा कोई पता ठिकाना नहीं। कचरे में मुँह घुसाते फिरते हो। कुछ नहीं मिला तो मैला खाते हो। एक दूसरे को काट खाने को दौड़ते हो। दिन भर गली में भौंकते रहते हो। झगड़ा करना ही जैसे तुम्हारा मकसद है। दिन भर झगड़ते हो। और मुझ पर कीचड़ उछालते हो .... शर्म आनी चाहिए तुम्हें !!” सुनकर एक वरिष्ठ आवारा कुत्ते को चोट पहुँची। 

“ओए पालतू। नौकर कहीं का। दिन भर जी हुजूरी करने वाले। पट्टे और मालिक के बल पर इतरा रहा है? अच्छा खाना तू खा रहा है ना! तो खा। आलीशान रह। लेकिन याद रख ये सब तुझे तभी मिलता है जब तू इनकी चाकरी करता है। चापलूसी करता है। इनके घर की पहरेदारी करता है। ‘उठ’ बोले तो! उठता है, ‘बैठ’ बोले तो! बैठता है। अगर ये नहीं करेगा ना! तो ये लोग तुझे लात मार कर घर से बाहर निकाल देंगे। समझा ना। ज्यादा इतरा मत। है तो तू दरकारी नौकर ही ना। जिस दिन तेरी कोई दरकार नहीं होगी तुझे धक्के मार कर भगा देंगे। फिर तू भी किसी गली में पड़ा मिलेगा धूल में लोटता। समझा ना! कार्पेट पर सोने वाले इतरा मत।” 

“ओ समझ लो !! मैं कोई नौकर नहीं। अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। इन्होंने मुझे पसंद किया इसलिए मैं यहाँ हूँ। तुम्हारा क्या जाता है। मुझे गुलाम कहने वाले अपनी आज़ादी की फिक्र करो। मैं तो फिर भी मेहनत की खाता हूँ। गली-गली भटकता नहीं। किसी को बेवजह काटता नहीं। जितना मिलता है खाता हूँ। संतोषी हूँ।” 

“अरे जा-जा, मेहनत की खाने वाला। इसके लिए तुझे कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं हम नहीं जानते क्या? दरवाजे पर खड़े रहना, आंगतुक को देख कर भौंकना, गेंद उठाकर लाना, जो दिया जितना दिया खाना, मालिकों को देखकर पूंछ हिलाना। ना-नुकूर किया तो डाँट खाना। कभी मालिक पर भौंक कर तो देख पता चल जाएगा तुझको उनकी नज़रों में तेरी अपनी असलियत.... समझा ना।” सुनकर पट्टे में बँधा कुत्ता हल्के से गुर्राते हुए खींचे जाने की वजह से अपने रास्ते चला गया। जैसे कि कर रहा हो सच का सामना। सोचते। मुसकुराते। मालकिन की राह पर चलते जो अगले मोड़ से अपने घर की तरफ ले जा रही है।  

रास्ते के किनारे तटस्थ खड़ी बिल्ली देख रही थी, सच क्या है और क्या है झूठ। कुछ कुछ झिझकते, समझते, रास्ता बदलते उसने ‘म्याऊँ’ कहा। जैसे सलाम दुआ दिया लिया जा रहा हो। एक कौवे ने ‘काँव-काँव’ की चीख पुकार मचाई जैसे कह रहा हो ‘बस बस यहाँ यह सब चलता रहता है। अपनी दादागिरी अपने पास रखो’। कुछ चिड़िया भरभरा कर उड़ चली दूसरे मुहल्ले की ओर के ‘हमें नहीं पड़ना इनके पचड़े में’। पेड़ खामोशी से खड़े मुँह फेर हवा के साथ देखने लगे दूसरी ओर। कुत्ते मजे से पत्थरों को सूंघते पिशाब करने में लग गए। पौधों ने मुँह सिकोड़ कर नजरें भींच ली। बिल्ली ने इतने आहिस्ते से दूसरी गली का रुख किया कि किसी को पता भी न चला। चीटियाँ अपना खाना ले जाती निरंतर गतिशील रही बांबी की ओर। चूहे कचरों में घूमते अचानक बिलों की ओर दौड़ पड़े। 

तेज आती गाड़ी ने पास आकर जोर से हॉर्न बजाई और कुत्ते बौखलाकर तितर-बितर हो गए। गाड़ी पट्टे वाले कुत्ते के घर के सामने रुकी। और पट्टे वाला कुत्ता पूरी मासूमियत से दुम हिलाते बाहर निकला। मालिक को देख लगा सूंघने और पूँछ हिलाने। मालिक की नजरों में देखता रहा जैसे हालचाल पूछ या बता रहा हो। दूर से देखते रहे चिड़िया, कौवे, चीटियाँ, चूहे और कुत्ते ना समझते हुए सही-गलत। बिल्ली ने धीरे से पालतू कुत्ते के घर प्रवेश किया, इधर-उधर देखते हुए बड़ी सतर्कता से छुपते हुए कि कोई देख ना ले। मालिक और कुत्ते की तुकबंदी में व्यवधान ना पड़े जो अपनी तर्ज पर आवभगत में व्यस्त थे। मालिक ने कुत्ते को गोद में उठाया पुचकारा, प्यार किया और साथ लिए अंदर जाने लगा। बिल्ली जल-भुन कर कह उठी, 
“ ‘म्याऊँ’, हाँ हाँ ठाठ है तुम्हारी, कभी गोद में तो कभी बिस्तर पर, कभी नाश्ते तो कभी डॉगस फूड। नहाने का अपना लुत्फ, जिसका तो हमने कभी स्वाद भी नहीं चखा। हाँ बारिश के पानी में भीगे जरूर हैं” बिल्ली खिसियाहट में कह गई। 

मालिक की वाहवाही लेने के लिए कुत्ता बिल्ली को देख भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकते ही घर के लोगों ने बिल्ली को भगाने और दूध की पतीली को फ़िज़ में रखने की क्रिया में शीघ्रता दिखाई। बिल्ली ने मुँह फुलाकर जल्दी से दूसरे कमरे की ओर रुख किया। 

“कौन है ये ‘इंसान’। जो एक कुत्ते पर शासन कर रहे है। क्यों बंदी बना रखा है उसे। सिर्फ अपने घर की शोभा बढ़ाने।” बिल्ली की बड़बड़ाहट कुत्ते ने सुन ली। 

“नहीं सुख का भोग है बस। सुविधानुसार राजसी ठाठ” बिल्ली ने चौंक कर देखा किसने बोला है। कुत्ता अपने जगह को सूँघता, गोल गोल घूम तसल्ली करता अपने जगह पर बैठ गया।
 
“कुछ भी बोल रहा है! ऐसी बात होती तो और भी होते कई... !” बिल्ली ने अचरज से पूछा। 

“तुम्हें पता है म्याऊँ ! यहाँ एक खरगोश भी था। दो तीन सफेद चूहे भी।”

“क्या बात कर रहा है!! मैंने तो नहीं देखा” बिल्ली की निगाह चमकी। 

“हाँ-हाँ बहुत प्यारे थे वे सभी” कुत्ता कह उठा। 

“तो ... कहाँ है वो ? कुछ भी बोल रहा है।” बिल्ली ने चंचलता से तुरंत पूरे घर की तलाशी ली। 

“दो दिन पहले जाने क्या हुआ कोई नज़र नहीं आते, मुझे लगा तुमने ही खाए होंगे!” कुत्ते की बात सुनकर बिल्ली सहमकर दो कदम पीछे हो गई। 

“क्या बक रहा है। मैंने तो देखा ही नहीं ... खाती कैसे? तुम्हारे मालिक ने किसी को बेच दिए होंगे। आज कल ये इंसान हम जानवरों की अच्छी नस्ल को पालने और बेचने के धंधे में बहुत पैसा कमा रहे हैं। और तो और पता है ‘डॉग शो’ भी होते हैं। प्रतियोगिताएं होती है। कुत्तों को कपड़े भी पहनाए जाते हैं। बिलकुल इंसानों जैसे।” 

“हाँ, पता है मुझे ..।“” कुत्ते ने उपेक्षित हामी भरी। 

“जाने क्यों ! ये इंसानों को नंगापन बर्दाश्त नहीं होता। ये लोग इसे इतनी अहमियत देते हैं। मान-सम्मान से जोड़ते हैं। इसके कारण हत्या और आत्महत्या तक कर बैठते हैं। पता नहीं क्या है ये नंगापन ... ये ही जाने।” 

“ये लोग जिसे नंगा होना कहते हैं सभी तो वैसे ही पैदा होते हैं। जानवर क्या और इंसान क्या, पक्षी भी सारे ही।“” कुत्ते ने सोचनीय मुद्रा बनाई और कहा। 

“हाँ और जीवन भर नंगे ही रहते हैं। हमें तो कुछ नहीं लगता। ये लोग जाने क्या-क्या सोचते हैं। उसे अपनी नाक कहते हैं याने कि इज़्ज़त। इनकी ही नाक जाने क्यों इतनी ऊँची।” 

“सब किया धरा है इनकी बुद्धि का। जिसे दिमाग कहा जाता हैं। इसमें सोचने समझने की शक्ति होती है। इससे विचार करने की राहें खुलती है, इसलिए इंसान इतना पेचीदा है। किसी को नंगई से परेशानी है कोई नंगई को इन्जॉय करता है। बात समझ में आई!” कुत्ते ने ज्ञानी होने की भूमिका निभाई। 

“बस बस! चुप कर। लगता है कोई आ रहा है। किसी ने हमें बोलते सुन लिया तो!” बिल्ली शंकित हुईं। 

“तो क्या इन लोगों को हमारी बात समझ में थोड़ी ना आती है” कुत्ते ने हल्की-सी मुस्कान में जवाब दिया। 

“तुझे कैसे पता ? अगर आती हो तो?” बिल्ली बोली। 

“नहीं भई। अभी इन्होंने इतनी भी प्रगति नहीं की हैं कि हमारी जुबान समझ लें। चाँद पर जा चुके हैं। मंगल पर जाने की कल्पना करते हैं। जबकि अपनी पृथ्वी को ही अब तक नहीं समझ पाए हैं। जहाँ रहते हैं उसी का दिन-रात दोहन करते रहते हैं।”

“क्या मतलब? तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर है” बिल्ली ने उपेक्षा में मुँह फिरा लिया। 

“खैर जाने दो। तुम अपने काम से मतलब रखो” कुत्ते ने कहा और मुँह घुमा कर बैठ गया।  

“क्या मतलब? तुम्हें क्या लगता मैं बुद्धू हूँ?” बिल्ली की त्यौरियाँ चढ़ गई। 

“नहीं मेरी अम्मा! बहुत होशियार हो तुम। दबे पाँव आती हो और दबे पाँव चली जाती हो किसी को पता भी नहीं चलता। 

“हाँ-हाँ, इस बात में तो मैं माहिर हूँ।” बिल्ली ने मान से कहा।   

“तुमसे कोई बात छुपी रह सकती है भला।” कुत्ते ने बकवास से बचने में खैरियत समझी। 

“एक बात बताओ? ये इंसान है क्या चीज ? कौन है ये लोग? कहाँ से आए हैं? क्यों सभी पर राज करना चाहते हैं?” बिल्ली ने उत्साहित हो पूछा। 

“ये तो पता नहीं। हाँ इतना जानता हूँ। ये लोग भी यहीं पैदा होते हैं हमारे ही जैसे, और यहीं मर जाते हैं। पर जब तक जीवित रहते हैं एक स्पर्धा में जीते हैं। एक अंजानी होड। एक प्रतियोगिता हरदम-हरपल। सभी में बेहतर होने की भूख। सबसे अलग होने की आकांक्षा। इच्छानुसार पाने की जिद्द जिसकी कोई सीमा ही नहीं।”

“अच्छा?” बिल्ली ने आश्चर्य से आँखें फैलाई।  

“हमारी भूख पेट से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाती है। पर इनकी भूख इनके दिमाग पर राज करती है। सबसे आगे निकलने की होड़ में जीती है इंसानी दुनिया। यह एक तरह से इनका जंगल ही है जहाँ इनका ही राज है। 

“क्या! क्या मतलब? जंगलराज याने !! जंगल मैंने भी देखा है। बहुत बड़ा होता है और डरावना भी। बहुत पहले मैं वहाँ से भाग आई।” बिल्ली बोल उठी।  

“सच है। जंगल में हिंसा और ताकत का राज चलता है। जिसके पास यह चीज हो वही वहाँ रह सकता है। कमजोर पर ताकत से जीत हासिल करते हुए। बिलकुल ऐसा ही जैसा ये इंसानी समाज।” कुत्ते ने कहा। 

“हाँ देखती हूँ ये इंसान भी सब पर अपना कब्ज़ा क़ायम करना चाहता है। क्या जानवर, क्या पक्षी, क्या पेड़, पौधे, पहाड़, जमीन क्या आसमान। ये लोग इंसानों को भी नहीं छोड़ते। कमजोर इंसानों पर तो तानाशाही होती है। उनका हर तरीके से इस्तेमाल करते है। किसी-किसी इंसान की हालत तो जानवरों से भी बदतर होती है” बिल्ली ने कहा। 

“इंसानों के बीच भी बसते है जैसे शेर, चीते, लकड़बग्घे, सियार... चालाक और रक्त पिपासु।” कुत्ते ने भड़ास निकाली। 

“ओए चुप कर, मुझे डर लगता है। जंगल से यहाँ आई थी यह सोचकर कि यहाँ सभ्यता बसती है चैन से रहूँगी, लेकिन नहीं। यहाँ भी एक दूसरे ही जंगल के दर्शन होते है। इंसानों का बनाया हुआ जंगल। जो ताकतवर हो उसी की जीत, उसी का राज।” बिल्ली ने घबराकर स्थिति का जायजा लिया जाने में भलाई समझी। 

कहीं सोच-सोच कर बीपी ना बढ़ जाए इंसानों की तरह और वह निकल पड़ी खिड़की से बाहर इंसानों की दुनिया के बीच अपनी दुनिया की ओर। अपनी आज़ाद  दुनिया में जहाँ आज़ादी का मतलब ‘सतर्क जिंदगी’ था। किसी ट्रक या गाड़ी के नीचे आकर मिलने वाली मौत नहीं जिसे वह इंसानी जंगलराज की देन कहती है।   

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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7 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी कहानी 👏👏👏👏

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    1. निमिषा जी हार्दिक धन्यवाद 🌹

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    2. निमिषा जी हार्दिक धन्यवाद 🌹

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  2. वाह! बहुत अच्छी कहानी। कितनी बारीकी और कोमलता से इंसान को आईना दिखाती है ये कहानी। लेखिका को बधाई।

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    1. सादर धन्यवाद आपका बहुत ध्यान से कहानी पढ़ने के लिए 🌹

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  3. बहुत अच्छी लगीं कहानी।

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