वैसे तो अनेक पुरुष लेखक स्त्री को समझने की बात करते हैं, उसकी तरफ़ से लिखते हैं लेकिन प्रभात रंजन की ‘हंस’ में प्रकाशित कहानी ‘शनेल नंबर-5’ उस लेखकीय समझ को, एक पुरुष द्वारा स्त्री की दृष्टि से बू को समझने और समझाने के नए मायने सामने रखती है। प्रभात भाई, बधाई!
पाठक यदि शब्दों की गहराई मे उतरकर पढ़े तो कहानी का असल समझ आएगा। ~ सं0
शनेल नंबर-5
प्रभात रंजन
तब चंदा सेंट के नाम पर चार्ली का नाम जानती थी। बात उन दिनों की है जब वह परफ़्यूम कहना भी नहीं जानती थी, आसपास सब सेंट कहते थे। वह भी यही कहती थी।
चार्ली सेंट की भी एक कहानी थी जो वह सबको सुनाती थी- मैट्रिक में पढ़ती थी तो उसकी चचेरी बहन की शादी हुई थी। उसको उपहार में सेंट की बहुत सारी शीशियाँ मिली थीं, लैवेंडर, रोज़ और भी पता नहीं क्या-क्या। लेकिन उनमें बस यूँही उसने…
वैसे चंदा पक्के तौर पर नहीं कह सकती कि ऐसा ही था। कोई और बात भी थी शायद जो वह किसी को बता नहीं पाती थी, बता नहीं सकती थी…
असल में कुछ लोग होते हैं जिनको पसीना बहुत आता है, कुछ लोग होते हैं जिनको पसीना ही नहीं आता। दुनिया के लोगों को इस तरह से भी क्यों नहीं देखा जाता था, देखा जा सकता था? वह इसी तरह से देखती थी। असल में इसकी भी अपनी एक कहानी थी…
मैट्रिक के एक्ज़ाम के टाइम में उसको पढ़ाने के लिए ‘सर’ आते थे, तैयारी करवाने के लिए। सर ने शहर के लंगट सिंह कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी। बिहार यूनिवर्सिटी से एमए। उसके बाद से डायनामाइट कोचिंग चलाते थे। पिछले पाँच साल में उनके पढ़ाये कई लड़के/लड़कियों का नामांकन देश के अलग-अलग कई बड़े संस्थानों में हुआ था, हर साल उनके पढ़ाये कुछ हुए लड़के/लड़कियों का दाख़िला दिल्ली विश्वविद्यालय में हुआ था।
बड़ी ख्याति थी उदिष्ठ सर की। पापा ने इसलिए उनसे आग्रह किया था कि वे उसकी बेटी को पढ़ा दें। उसको भी ऐसा बना दें कि किसी बड़े विश्वविद्यालय में उसका दाख़िला हो जाये। बेटी का कैरियर बन जाये। उदिष्ठ सर के पढ़ाने से पटना, दिल्ली के यूनिवर्सिटी में उसका दाख़िला हुआ या नहीं लेकिन उदिष्ठ सर ने उसको बहुत कुछ सिखाया।
उसको तब यह बात समझ में आई कि जीवन में बहुत सी बातें गुप्त रूप से करनी पड़ती है, गुप्त रखनी पड़ती है। जी करता है किसी को बता दें, लेकिन किसी को बताने वाली नहीं होती। उदिष्ठ सर ने उसको कुल दस महीने पढ़ाया था। लेकिन इन दस महीनों में उसके जीवन में बहुत कुछ बदलाव आया जो उदिष्ठ सर मौक़ा देखकर उसको सिखाते रहे। उसने पहली बार जाना कि शिक्षा केवल किताबों से नहीं मिलती। गुरु बस किताबों से ज्ञान नहीं देते। जीवन का जो असली ज्ञान होता है वह किताबों के बाहर होता है।
वह दस महीने उसके जीवन में ऐसे हैं जिनको उसने किसी मनपसंद किताब की तरह सहेज रखा था। उसी तरह जिस तरह उसको पापा की अलमारी में कपड़ों के ढेर के नीचे नर-नारी पत्रिका के कई पुराने अंक मिले थे। उलट-पलट कर उसने जल्दी से उनको वापस उसी तरह छिपा दिया था। लेकिन यह किताब उसके मन के पन्नों पर थी। जब समय मिलता, एकांत मिलता वह अपनी उस मनचाही किताब का कोई मनचाहा पन्ना पलट लेती और उसमें डूब जाती।
सबसे पहले उसको सर ने ही कहा था, ‘तुम्हारे शरीर से पसीने की गंध बहुत आती है इसलिए ज़रूरी है कि तुम सेंट लगाया करो। ज़रूरी नहीं है कि सेंट में खूब ख़ुशबू आये लेकिन सेंट ऐसा हो जो पसीने की गंध को ख़त्म कर दे। उसके पसीने के गंध को भी तो सबसे पहले सर ने महसूस किया था। सर ने एक बार कहा था, जब दो लोग एक दूसरे के पसीने की गंध के अभ्यस्त हो जाते हैं तो उनके बीच सच्चा प्रेम हो जाता है। क्या उनके बीच…
एक सीख उन्होंने और दी थी- जब मनचाहे पुरुष से मिलना हो तो शरीर में सेंट नहीं लगाना चाहिए। क्या पता वह मनचाहा पुरुष स्त्री का पति न हो और उस गंध के कारण उसके प्रेम की बू फैल जाए। प्रेम वैसे तो ख़ुशबू देता है लेकिन समाज इसकी बू की तलाश में रहता है। बू महसूस हुई नहीं कि प्रेम में बाधाएँ शुरू हो जाती हैं, राहें मुश्किल हो जाती हैं। इसलिए कभी कभी ख़ुशबू भी बू बन जाती है।
उन्हीं दिनों की बात है जब दीदी ने शादी वाले अपने वैनिटी बॉक्स से उसको चार्ली का सेंट दिया था। अब यह उसको भी शायद ठीक से याद नहीं था कि चार्ली सेंट उसको सर ने दिया था पहली बार जिसको उसने दीदी के वैनिटी बॉक्स का चार्ली बना लिया था या सच में दीदी ने ही दिया था। सच-झूठ कई बार ऐसे ही घुले-मिले रहते हैं कि उनको अलगाने का मन ही नहीं करता।
वैसे सच बात तो यह है कि उसको तब तक सेंट का इसके अलावा कोई उपयोग नहीं समझ आता था वह पसीने की तीखी गंध को दूर न भी भगाए तो कुछ कम कर दे। बहुत बाद तक इसके अलावा कोई और उपयोग समझ नहीं आया। उदिष्ठ सर के बाद लंबे समय तक किसी के साथ उसने पसीना साझा भी नहीं किया था। न किसी ने उसकी पसीने की गंध को इतनी क़रीब से महसूस किया। उस गंध को वह चार्ली सेंट की गंध के पीछे छिपाये रहती थी।
इंटरमीडिएट के बाद उसकी सहेली रूमा दिल्ली फ़ैशन डिजाइनिंग पढ़ने गई। वह मुज़फ़्फ़रपुर में इंग्लिश ऑनर्स पढ़ने लगी। एमडीडीएम कॉलेज में। सब कहते दिल्ली में अगर किसी बढ़िया कॉलेज में नाम न लिखाये तो उससे भी बदनामी ही होती है। एमडीडीएम कॉलेज ज़िले में लड़कियों का नंबर वन कॉलेज है। वहाँ पढ़कर भी बहुत लड़कियाँ अफ़सर बनी, उनकी बड़े संपन्न घरों में शादियाँ हुई। नाते-रिश्तेदार यही कहते। कहीं से पढ़ा लो लड़की को, अंत में शादी की चिंता तो करनी ही पड़ती है। एमडीडीएम कॉलेज से पढ़कर भी लड़कियों की एक से एक शादी हुई।
हाँ तो बात रूमा की हो रही थी। वह तो दिल्ली नहीं जा पाई पढ़ने लेकिन रूमा जब छुट्टी में घर आती तो उसके लिए वह दिल्ली बन जाती। एक से एक बातें, एक से एक क़िस्से। सबसे बड़ी बात यह कि वहाँ लड़के-लड़की साथ-साथ घूमते-फिरते, जो चाहे करते और मज़े की बात यह है कि उनको कोई रोकता-टोकता भी नहीं। ‘ज़िंदगी तो दिल्ली में है चंदा, दिल्ली में’, वह आँख नचाते हुए चंदा से कहती।
उसने उसको बताया था कि दिल्ली में एक से एक सेंट मिलते हैं। उसी ने उसको पहली बात यह समझाई कि सेंट नहीं परफ़्यूम कहना चाहिये और दूसरी बात यह कि चार्ली का परफ़्यूम तो कोई ब्रांड ही नहीं है। यह तो वे लगाते हैं जिनको इस बारे में कुछ पता नहीं होता कि किस समय किस तरह की ख़ुशबू अपने साथ ले जानी चाहिये। अपने शरीर में लगानी चाहिए। परफ़्यूम का भी अपना अपना समय होता है। दिन के किस वक़्त शरीर से कौन सी ख़ुशबू आनी चाहिए इसका अपना क़ायदा होता है!
नहाने के बाद ऐसा परफ़्यूम लगाना चाहिये जिसकी ख़ुशबू लंबे समय तक आपको तरोताज़ा रखे। दफ़्तर जाते समय ऐसा परफ़्यूम लगायें जिसकी सुगंध भीनी हो। जो साँसों को महसूस तो हो लेकिन साँसों में चढ़े नहीं। शाम के समय जब कहीं जाना हो तो ऐसा परफ़्यूम लगाना चाहिये कि भीनी-भीनी ख़ुशबू में माहौल ख़ुशगवार बना रहे। रात में सोने के पहले परफ़्यूम ऐसा लगाना चाहिये नशीली नींद आ जाए और ख़्वाब में मनचाहा इंसान आये।
चंदा को दूसरी सहेली मीनल की बात याद आती थी- ‘अपने प्रेमी के लिए मैंने विक्टोरियाज सीक्रेट लगाना शुरू किया। उसकी गंध थोड़ी तीखी होती है लेकिन पसीने की गंध से तीखी गंध कुछ और नहीं होती। यक़ीन मानो मेरे प्रेमी को विक्टोरियाज सीक्रेट से इतना प्यार हो चुका है वह उसकी गंध को ही मेरे शरीर की गंध समझता है।‘
एक बार मीनल ने उससे कहा था- ‘अपने मन की ख़ुशबू के साथ जीने के लिए दो बातें ज़रूरी होती हैं। पहली बात तो यह कि जीवन में अकेले रहा जाए। न किसी के शरीर की आदत पड़ेगी न किसी ख़ास गंध की। लेकिन अकेलेपन से घबराकर हम दूसरे की कामना करते हैं… और वह जैसा होता है उसके साथ उसी तरह से निभाना पड़ता है।‘
मीनल को वह सब मिला जो सब चंदा ने सपने में सोचा था। मीनल उसके मुहल्ले में ही रहती थी। उसको उसके मम्मी-पापा ने दिल्ली मास कम्यूनिकेशन पढ़ने के लिए भेजा। बाद में जब वह दिल्ली के एक ‘बड़े’ न्यूज चैनल में रिपोर्टर बन गई उसने मुहल्ले के बाक़ी लोगों को तो छोड़ो अपने ही मम्मी-पापा को लोगों से कहते सुना था- पढ़ने में बड़ी तेज थी। हमारे मोहल्ले की ही है।
पढ़ाई के दिनों में जब वह गर्मी छुट्टी में आती तो चंदा उसी के साथ टेबल टेनिस खेलने जाती थी। टेबल टेनिस से उसको याद आया कि एक बार मीनल के बार-बार कहने पर उसके मम्मी-पापा ने शहर के एक स्पोर्टस एकेडमी में दाख़िला करवा दिया था। इंटर की परीक्षा देकर वह भी ख़ाली बैठी हुई थी। मीनल की इस बात से उसकी मम्मी प्रभावित हुई थीं- ‘चंदा की शादी के लिए अच्छा लड़का ढूँढियेगा तो दिल्ली, बैंगलोर का लड़का ही मिलेगा। और वहाँ जानती हैं आंटी, लोग सोसाइटी में रहते हैं। सोसाइटी के अंदर स्विमिंग पूल, टेबल टेनिस सब रहता है। इसलिए आना चाहिए।‘
‘जरूरी थोड़े होता है कि खेल कोई इसीलिए खेले कि उसको खिलाड़ी बनना हो। खेल तो आंटी सभा-सोसाइटी में रहने के लिए भी थोड़ा-बहुत ज़रूर आना चाहिए। टेबल टेनिस ऐसा खेल है जो घर में ही खेला जाता है। गिने-चुने लोग खेलने वाले, गिने चुने लोग खेल देखने वाले। इसलिए आंटी मेरे साथ इसको जाने दीजिए रोज़ एक घंटे की ही प्रैक्टिस होगी…’
चंदा की मम्मी को यह बात जम गई। इस बात को वह भी समझती थीं कि अब वह जमाना नहीं रह गया था कि लड़के वाले लड़की के कुशल गृहिणी होने से प्रभावित हो जायें। अब तो लड़के वाले भी यही देखते थे कि गृहिणी होने के अलावा लड़की और क्या क्या कर सकती थी।
मीनल से इसीलिए उसको बहुत जलन थी। वह दुनिया में अपनी शर्तों पर जीना सीख गई थी। कहती जीवन को पहले अकेले जीकर देख लेना चाहिये, जब लगे अकेलापन रास नहीं आ रहा तो शादी। ‘यह कितनी ग़लत बात है न कि हमारे समाज में, परिवार में लड़कियों के लिए माना जाता है कि उसकी ज़िंदगी शादी से ही शुरू होती है। जबकि मैं जिस दुनिया में जीती हूँ न वहाँ लड़कियाँ तब शादी करती हैं ज़िंदगी में अपना मुक़ाम बना चुकी होती हैं,’ टेबल टेनिस खेलते हुए ब्रेक के दौरान मीनल इसी तरह की बातें करती। ‘और बहुत सारे अनुभव ले चुकी होती हैं’, एक दिन आँख मारकर उसने कहा था। ‘बहुत साफ़ साफ़ समझ लो कि जीवन का अनुभव जितना होता है शादी उतनी ही सफल साबित होती है।‘
चंदा सुनती और बस सुनकर रह जाती। सुनने के सिवा और कर भी सकती थी। उसके पास एमडीडीएम कॉलेज में अच्छे से पढ़ाई के अलावा और विकल्प ही क्या था। सपनों की दुनिया, गंध की दुनिया जैसे सब पीछे छूटते जा रहे थे। कुछ भी नया जैसा नहीं हो रहा था। सहेलियों की शादी होती जा रही थी और उसके मम्मी-पापा पर भी दबाव बढ़ता जा रहा था कि चंदा की शादी कर दें।
यूनिवर्सिटी से एमए कर रही थी। एक्ज़ाम बस होने ही वाले थे। वह चाहती थी कि यूजीसी नेट एक्ज़ाम की तैयारी करे, दिल्ली जाकर और किसी बड़े विश्वविद्यालय में पीएचडी में नाम लिखाने की कोशिश करे। माँ का, बुआ का, मौसी का सबका यही कहना था कि यह सब तो शादी के बाद भी हो सकता है। दिल्ली में रहने वाले किसी लड़के से शादी करके। आजकल शादी के बाद कौन लड़का नहीं चाहता है कि उसकी पत्नी कमासुत बने। अच्छा घर, अच्छा वर मिल जाये।
वर खोजने में अधिक परेशानी भी नहीं हुई। चंदा की मौसी के देवर का लड़का था हिमांशु शेखर। एक अमेरिकी कंपनी का भारतीय अधिकारी। कहते हैं लड़की वाले एक-एक करोड़ तक दहेज देने के लिए तैयार थे लेकिन उसने, उसके परिवार ने चंदा को इसलिए चुना क्योंकि वह अंग्रेज़ी में एमए कर रही थी। मुज़फ़्फ़रपुर से पढ़ी थी तो क्या हुआ बीए में अंग्रेज़ी की यूनिवर्सिटी टॉपर थी। दिल्ली में उसको आराम से जॉब मिल सकता था। चाहती तो आगे पढ़ाई कर सकती थी।
सबसे बड़ी बात यह कि हिमांशु जिस तरह के सर्किल में रहता था उस सर्किल में उसको अंग्रेज़ी बोलने वाली लड़की ही चाहिए थी, जो चंदा थी। हिमांशु की माँ ने रिश्ता तय होने के पहले चंदा की माँ से कहा था, ‘हम चाहते हैं कि लड़की प्रेजेंटेबल हो। बेटा हमारा देश-दुनिया में जाता है। ऐसी वाइफ़ होनी चाहिए कि जहां जाये लोग प्रभावित हो जायें। रहना तो उसको बेटे के साथ ही है। उसी की दुनिया में न…
चंदा में उनको लगभग सारे गुण मिल गये थे। लगभग इसलिए क्योंकि एक शिकवा रह गया था। उसकी माँ बोली थी, ‘सब चीज तो ठीके है लेकिन लड़की मुज़फ़्फ़रपुर से पढ़ी है। दिल्ली की पढ़ी होती तो सबका कान काट लेती…’
शादी मुज़फ़्फ़रपुर में हुई लेकिन रिसेप्शन दिल्ली में। रिसेप्शन वाली रात जो उसको देखता हिमांशु की क़िस्मत पर रश्क करता। कहता- कितनी सुंदर पत्नी है। जब वह उनको बहुत गर्व से बताता कि चंदा इंगलिश में एमए है तो देखने-मिलने वालों की आँखें फैल जाती। चंदा को अपनी सास की बात याद आ जाती- लड़की को प्रेजेंटेबल होना चाहिये। यह सोचकर वह राहत की साँस लेती कि अब हो सकता है सास का यह दुख कुछ कम हुआ हो कि लड़की मुज़फ़्फ़रेपुर से पढ़ी है।
रिसेप्शन वाली रात उपहारों का अंबार लग गया था। लेकिन उसके लिए सबसे अच्छा तोहफ़ा था शनेल नंबर 5, उसके पति ने उसको परफ़्यूम दिया था। जब सब चले गये तो हिमांशु ने उसको परफ़्यूम देते हुए कहा था आज से यही लगाना। उस रात उसने लगाया और दिल्ली की वह पहली रात उसी ख़ुशबू की बेसुधी में बीती।
उसने पहले कभी इस परफ़्यूम का नाम भी नहीं सुना था। ख़ुशबू का यह नया संसार था। अगले दिन पति के दफ़्तर जाने के बाद उसने गूगल किया तो सबसे पहला आश्चर्य उसको यह हुआ कि शनेल बहुत महंगा परफ़्यूम था। पचीस हज़ार का कोई परफ़्यूम भी हो सकता था, उसने सोचा भी नहीं था। उसको बहुत शर्म आई अपने आप पर। वह ख़ुशबू के इस संसार के बारे में कितना कम जानती थी। हिमांशु के जाने के बाद दिन भर उसको कोई ख़ास कम तो रहता नहीं था। वह गूगल करती और शनेल की ख़ुशबू में डूब जाती।
उसको बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने पढ़ा कि प्रसिद्ध अभिनेत्री मर्लिन मुनरो भी शनेल लगाती थी- शनेल नंबर 5. कहते हैं उसकी इसी परफ़्यूम की ख़ुशबू एक दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी के कपड़ों से आती महसूस हुई और गॉसिप कालमों में उनके प्रेम संबंधों की खबरें आने लगी।
वह दिन रात शनेल के बारे में पढ़ती, उसकी ख़ुशबू को महसूस करती। शाम में हिमांशु के दफ़्तर से लौटकर आने के पहले नहा-धोकर शरीर में शनेल लगा लेती। हिमांशु उसको बहुत प्यार करता। उसको उदिष्ठ सर की बात कभी याद आ जाती तो हँसी भी आ जाती। बेचारे सेंट के बारे में कितना कम जानते थे। यह ख़ुशबू के बारे में कितना कम जानते थे। फिर यह सोचकर संतोष करती कि जितना जानते थे सब तो सिखाया ही था सर ने।
गूगल के अलावा उसकी दूसरी दोस्ती फ़ेसबुक से हो गई थी। हिमांशु ने कहा था कि फ़ेसबुक पर अकाउंट बनाकर अच्छ अच्छे पोस्ट लिखा करो। अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ी हो तो कुछ अच्छी किताबों के कोटेशन, किताबों पर पोस्ट डाला करो। इमेज का मेक ओवर करो। मेरी सोसाइटी हाई-फ़ाई है। थोड़ा तालमेल बिठाओ उससे। वह हर बात मान लेती।
दिन भर फ़ेसबुक पर रहती तो हिमांशु के प्रोफ़ाइल को भी खंगालती रहती थी। उसकी उपलब्धियों को देखती और खुश होती रहती थी मन ही मन। बड़े-बड़े लोगों के सामने प्रेजेंटेशन, बड़े बड़े शहरों में, बड़े बड़े होटलों में। वह अपनी तस्वीरों में वह हर कहीं होता था। बहुत गर्व से वह उसकी तस्वीरें, प्रोफ़ाइल के लिंक अपनी बहनों, सहेलियों को भेजती। कुछ तो जलन के मारे इसके व्हाट्सऐप मैसेज इग्नोर कर देतीं, कुछ दिल का ईमोजी बनातीं।
एक रूमा ही थी जो उसको समझाती- ‘बांध कर रखना अपने पतिदेव को। बहुत बड़ी प्रोफ़ाइल है। रोज़ाना बड़े बड़े लोगों से मिलता है, पार्टियों में एक से एक हाई-फ़ाई लड़कियों से मिलना जुलना होता होगा। ऐसे पुरुषों को रोकथाम से नहीं प्यार से ही बांधा जा सकता है। प्रेम का बंधन ही किसी को रोके रख सकता है सहेली!’
रूमा ने उसके दिमाग़ में शक का कीड़ा डाला तो हिमांशु की प्रोफ़ाइल को वह और गौर से देखने लगी। देखते देखते एक बात पर उसका ध्यान गया। उसकी प्रोफ़ाइल पर ऑफिस की लड़कियाँ बहुत आती थीं। दिल बनाती, लाइक करती। उसका ध्यान इस बात पर गया कि वे लड़कियाँ अपने हर पोस्ट में उसको टैग करती, उसके हर पोस्ट पर कमेंट करती या दिल बनाती। टैग-कमेंट में कुछ भी ऐसा वैसा नहीं होता था लेकिन होता तो था। उसके बाद उसका यही रूटीन हो गया। दिन भर हिमांशु के पोस्ट देखना, उस पर ऑफ़िस की लड़कियों के कमेंट देखना, बने हुए दिल को देखना। रोज़ सोचती कि आज शाम हिमांशु से ज़रूर पूछेगी लेकिन शाम होते ही वह नहा-धोकर शनेल लगाकर तैयार हो जाती और रात के प्यार में दिन का सारा शक-शुबहा घुल जाता।
एक दिन बहुत अजीब बात हुई। उसने सोचा कि रोज़-रोज़ एक ही परफ़्यूम क्या लगाना? गिफ्ट में इतने सारे मिले हैं कोई और लगा लेते हैं उसने सोचा। परफ़्यूम की बहुत सारी शीशियों में से उसको जोवन ब्लैक मस्क की शीशी बहुत पसंद आई- गुलाबी रंग की शीशी और उसकी भीनी भीनी ख़ुशबू। उसने खोला और लगा लिया। उस रात तो ग़ज़ब हो गया। पहली बार हिमांशु की बातों से उसको लगा कि वह चिढ़ गया था। अन्मयस्क-सा लग रहा था। रोज़ की तरह जब वह उसके सीने में सिर टिकाने गई तो उसने उसको अलग करते हुए कहा- ये क्या लगा लिया!
अजीब बात थी न। क्या यह किसी ख़ास ख़ुशबू से उसका प्यार था या किसी ख़ास ख़ुशबू से उसकी नफ़रत। रूमा ने ज्ञान दिया- ‘इसमें कोई ऐसी बात नहीं है। इंसान किसी ख़ास ख़ुशबू से किसी को जोड़कर देखने लगता है। क्या पता शनेल की ख़ुशबू उसको तुम्हारी ख़ुशबू लगती हो। या क्या कभी किसी लड़की से उसका कोई चक्कर रहा हो जो जोवन ब्लैक मस्क लगाती हो और तुम्हारे शरीर में उसकी ख़ुशबू देखकर उसको उसकी याद आ गई हो और वह चिढ़ गया हो। क्या पता… अब समय आ गया है थोड़ा-थोड़ा उसके जीवन में घुसना शुरू करो। दायें बायें से थोड़ा बहुत पूछना शुरू करो, काम के बारे में, सामाजिक जीवन के बारे में। अब महीना भर से ऊपर हो गया। नहीं तो क्या पता तुम शाम को शनेल लगाती रह जाओ जीजाजी ख़ुशबू किसी और की लेते रहें।‘
एक वीकेंड हिमांशु के साथ वह हौज़ ख़ास विलेज में एक रेस्तराँ में बैठी थी। वाइन के हल्के सुरूर में हिमांशु का मूड बहुत अच्छा लग रहा था तो चंदा ने धीरे से पूछा- ‘फ़ेसबुक पर इतना लड़की सब आपके पोस्ट पर दिल काहे बनाती है?’
‘क्या हुआ?’ हिमांशु अचानक ऐसे बोल पड़ा जैसे नींद से जागा हो।
‘कुछ नहीं। आपके फ़ेसबुक पर रोज़ देखती हूँ तो पूछ लिया’, चंदा ने सिर झुकाये हुए धीरे से जवाब दिया।
‘पागल हो। हमारी कंपनी की मार्केटिंग टीम की लड़कियाँ हैं। ऐसा तो नहीं है न कि कोई ख़ास लड़की हो, जो बार-बार दिल बनाती हो! लाइक करने, दिल बनाने में कोई अंतर नहीं होता है। कॉर्पोरेट लाइफ़ है। बहुत तेज चलती है ज़िंदगी यहाँ। ठहरकर कोई नहीं सोचता। सोचने का वक्त ही नहीं रहता!’
‘लेकिन आपकी ही हर पोस्ट पर लड़कियाँ दिल क्यों बनाती हैं सब?’
सुनते ही हिमांशु ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा। ‘अरे यार, तुम भी न! दिल का ईमोजी बनाने से क्या हो जाता है! मैंने तो इतना ध्यान से देखा भी नहीं था। अब तुम कह रही हो तो ध्यान गया।‘
इतना ही तुमको लगता है तो किसी दिन तुमको ऑफिस की किसी पार्टी में ले चलूँगा। देखना सब किस तरह से वहाँ करती हैं। यहाँ की ज़िंदगी कितनी अलग है तुमको समझ आएगा। और यह भी कि यह ज़िंदगी कितनी सहज है’, हिमांशु बोला और लाइव बैंड वालों से किसी गाने की फ़रमाइश करने लगा।
घर आने के बाद से वह रोज़ अपने पति की उस पार्टी का इंतज़ार करने लगी। उसने दुबारा तो नहीं कहा कि लेकिन उसको यक़ीन था कि एक दिन हिमांशु उसको पार्टी में लेकर ज़रूर जाएगा। उसको अपने दिल को सुकून मिल जाएगा।
संयोग से अगले ही वीकेंड नोएडा के एक पब में ऑफिस की पार्टी थी। हिमांशु ने कहा- ‘चलो आज सबसे मिल लेना।‘
‘कोई ऐसी वैसी हुई तो उससे भी’, चंदा ने आँख मारकर अपने पति से पूछा।
‘हाँ अपने हर दिमाग़ी फ़ितूर से भी मिल लेना’, कहते हुए हिमांशु ने उसको बाँहों में भर लिया।
इस तरह की पार्टी में वह पहली बार गई थी। अच्छा बुरा लगने से अधिक वह समझने की कोशिश कर रही थी। बात बात में यो-यो, या-या करते पुरुष, कॉकटेल पीती लड़कियाँ। सबसे ज्यादा ज्योति ही जोश में लग रही थी- ‘सेक्स ऑन द बीच प्लीज़!’ सुनकर वह सकपका गई। उसने पहली बार इस से कॉकटेल का नाम सुना था। लेकिन फिर भी इस तरह से आवाज़ लगाकर बोलने की क्या जरूरत थी, मेन्यू में दिखाकर भी तो माँग सकती थी। लेकिन नहीं सभी पुरुषों को बताना जो है कि वह कितनी बोल्ड है। उसको यह सब दिखावा बिलकुल पसंद नहीं।
जब गिलास आ गया तो वह लड़की गिलास उठाकर उसके बगल में आई और उसको गले से लगा लिया। ‘स्वीट हार्ट! कैसा लग रहा है यहाँ? कोई बात हो तो मुझे फ़ोन करना। कभी शॉपिंग करनी हो, कुछ चाहिए मुझे बताना। मैं ज्योति नेगी हूँ, छुट्टी वाले किसी भी दिन चलेंगे। पब हॉपिंग करोगी मेरे साथ’, बालों को झटकते हुए उस लड़की ने कहा।
‘मैं जानती हूँ। मतलब फ़ेसबुक पर कभी-कभी देखती रहती हूँ आपकी प्रोफ़ाइल’, चंदा ने बोला।
सुनकर ज्योति बोली- ‘तुम बहुत सुंदर हो और मासूम भी- इन्नोसेंट ब्यूटी!’ कहकर उसने चंदा को गले से लगा लिया। लेकिन न जाने क्यों ज्योति के गले लगने के बाद उसको कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। मगर पार्टी में थी। रस्म निभानी भी तो थी न। बाहर से सब अच्छा-अच्छा दिखाना होता है, दिल चाहे चूर चूर ही क्यों हो रहा हो। ऊपर से मुस्कुराना तो पड़ता ही है न!
‘ये आप क्या होता है बे! ये सब अब रहने दो। हिमांशु की बीवी हो। कॉर्पोरेट लाइफ़ को जीना सीखो। यहाँ आप आप कहने वाली लड़कियों को बहनजी कहा जाता है। वैसे फ़िक्र मत करो सब सीखा दूँगी’, कहते हुए ज्योति ने उसके कंधे पर धौल जमा दिया।
लेकिन चंदा को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जब से वह ज्योति से मिली थी तभी से कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। उस रात लौटकर हिमांशु के साथ उसको कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।
उस रात उसने रूमा को व्हाट्सअप पर मैसेज किया-
‘ख़ुशबू बू लगने लगी है। आज ज्योति जब मुझसे गले लगी तो उसके शरीर से शनेल की ख़ुशबू आ रही थी- शनेल नंबर 5 की!’
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1 टिप्पणियाँ
मजेदार कहानी लगी। खुशबू का व्यापार बहुत लंबा चलता है जीवन में। अलग विषय पर लिखी कहानी।
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