इन्दिरा दाँगी के उपन्यास ‘विपश्यना’ की आलोचना | Critical review Indira Dangi's novel 'Vipshyana' विपश्यना : जीवन-सत्य का अन्वेषण डॉ व…
साँप वाला बॉक्स उठाया और फिर दौड़ा — शायद बिना ही साँसों के। और अबकी जो गिरा... लिखते जाओ इंदिरा दाँगी...लिखते जाओ. प्रिय लेखक यों ही नही…
‘‘अम्मा भूख लगी है !’’ ‘‘अभी तो खाई थी रोटी घण्टा भर पहले !’’ दीपा चुप है किसी गुनहगार की तरह; लेकिन उसकी रिरियाती दृष्टि में भूख़ साक्षात् …
Hindi drama writing, an Art form getting extinct. — Anant Vijay इंदिरा दांगी के नाटक 'आचार्य' से मेरा जुड़ाव आत्मीय है, वो ऐसे …
कहानी - नईम कव्वाल इंदिरा दाँगी टूटी मज़ार के आगे एक सूनी सड़क जाती है। सड़क के भी आगे, कच्चे रास्ते पर चली जा रही है एक लेटेस्ट माडल क…
शहर की सुबह - इंदिरा दांगी रचना घर से दूध की थैलियाँ लेने निकली है। ऊँचाई-तराईनुमा बेढब इलाक़े में बने एलआईजी, एमआईजी, अपार्टमेंटों…
ह्म्म्म ज़ियादातर लोग कहेंगे कि – पता है... जब तक हम यह नहीं जान लेते कि सब एक ही हैं; इस ‘सब’ में आप से लेकर ‘ब्लैक होल’ तक शामिल हैं, तबतक ह…