शहर की सुबह - इंदिरा दांगी रचना घर से दूध की थैलियाँ लेने निकली है। ऊँचाई-तराईनुमा बेढब इलाक़े में बने एलआईजी, एमआईजी, अपार्टमेंटों…
आगे पढ़ें »ह्म्म्म ज़ियादातर लोग कहेंगे कि – पता है... जब तक हम यह नहीं जान लेते कि सब एक ही हैं; इस ‘सब’ में आप से लेकर ‘ब्लैक होल’ तक शामिल हैं, तबतक ह…
आगे पढ़ें »बढ़े हैं साहित्य में अवसर ~ वंदना सिंह हिंदी साहित्य में हाल के दिनों में जिन युवा लेखकों ने अपने लेखन से साहित्य जगत का ध्यान अपन…
आगे पढ़ें »इंदिरा दाँगी ने वर्तमान हिंदी कथाजगत से उस युवा कहानीकार की कमी पूरी की है जिसका लेखन न सिर्फ़ रोचक है बल्कि विषयों को अपने ख़ास-तरीके से पेश भी करता ह…
आगे पढ़ें »ये साहित्य वाले बड़े पहुँचे हुए पीर होते हैं — सामने लाख गले लगायें अपने साथ वालों को, पीठ पीछे अमूमन उतारेंगे ही उनकी... इंदिरा दाँगी (कहानी -…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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